काव्यगुण

जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं, ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गुणों के कारण मनुष्य की शोभा बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।

काव्यगुण काव्य में  आन्तरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण या शब्द गुण कहते हैं। यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है, जैसे फूल में सुगन्ध।

आचार्य वामन द्वारा प्रवर्तित रीति सम्प्रदाय को ही गुण सम्प्रदाय भी कहा जाता है

काव्यगुण 

काव्य में  आन्तरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण या शब्द गुण कहते हैं। यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है, जैसे फूल में सुगन्ध।

अर्थात काव्य की शोभा करने वाले  या रस को प्रकाशित करने वाले तत्व या विशेषता का नाम ही गुण है।

विशेष : 

1. काव्य गुण और रीति परस्पर आश्रित है।

2. काव्य गुणों पर व्यापक और विस्तृत चर्चा आचार्य वामन ने की।
आचार्य वामन ने गुण को स्पष्ट करते हुए स्वरचित ’काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ ग्रंथ में लिखा है

"काव्याशोभायाः कर्तारी धर्माः गुणाः।       तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः।।’’
अर्थात् शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है। 
वामन के अनुसार ’गुण’ काव्य के नित्य धर्म है।
इनकी अनुपस्थिति में काव्य का अस्तित्व असंभव है।
काव्य गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं -
1. माधुर्य  2. ओज  3. प्रसाद

1. माधुर्य गुण 

किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में जहाँ मधुरता का संचार होता है, उसमें माधुर्य गुण होता है। यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है।
(अ) माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है,  जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज,  झ, त, द, न, ...आदि। (ट वर्ग को छोडकर)
(ब)  इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता।
(स) आनुनासिक वर्णों की अधिकता।
(द) अल्प समास या समास का अभाव।
इस प्रकार हम कह सकते हैं,कि  कर्ण प्रिय, आर्द्रता, समासरहितता, चित की द्रवणशीलता और प्रसन्नताकारक     काव्य माधुर्य गुण युक्त काव्य होता है।
1. बसों मोरे नैनन में नंदलाल,
मोहिनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल।
2. कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि॥

3.फटा हुआ है नील वसन क्या, ओ यौवन की मतवाली ।

   देख अकिंचन जगत लूटता, छवि तेरी भोली भाली ।।

2. ओज गुण 

ओज का शाब्दिक अर्थ है-तेज, प्रताप या दीप्ति ।
 जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं ।
यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स, रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है।
(अ) इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है।
(ब) इसमें संयुक्त वर्ण 'र' के संयोगयुक्त ट, ठ, ड, ढ, ण का प्राचुर्य होता है।
(स) समासाधिक्य और कठोर वर्णों की प्रधानता होती है।
1. बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

2. हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।
    स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।

3. हाय रुण्ड गिरे, गज झुण्ड गिरे, फट-फट अवनि पर        शुण्ड गिरे।
   भू पर हय विकल वितुण्ड गिरे, लड़ते-लड़ते अरि  
    झुण्ड गिरे।

3. प्रसाद गुण 

प्रसाद का शाब्दिकार्थ है - निर्मलता, प्रसन्नता।
जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, उसे प्रसाद गुण कहते हैं। इस गुण से युक्त काव्य सरल, सुबोध एवं सुग्राह्य होता है। जैसे अग्नि सूखे ईंधन में तत्काल व्याप्त हो जाती है, वैसे ही प्रसाद गुण युक्त रचना भी चित्त में तुरन्त समा जाती है।
यह सभी रसों में पाया जा सकता है।
1. जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
    तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।

2. हे प्रभो ज्ञान दाता ! ज्ञान हमको दीजिए।
    शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।

3. विस्तृत नभ का कोई कोना,
    मेरा न कभी अपना होना।
    परिचय इतना इतिहास यही ,
    उमड़ी कल थी मिट आज चली।।

हिंदी साहित्य का इतिहास


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1. 16वीं-17वीं शताब्दी के युग को ’हिन्दी काव्य का स्वर्ण युग’ किसने माना है ?
(अ) गार्सा-द-तासी          (ब) जार्ज ग्रियर्सन✔️
(स) मिश्रबंधु                  (द) शिव सिंह सेंगर

2. भक्ति आंदोलन को इस्लाम की देन न मानकर दक्षिण के अलवार भक्तों की देन मानने वाले विद्वान
है ?
(अ) हजारी प्रसाद द्विवेदी✔️         (ब) मिश्रबंधु
(स) डाॅ. रामकुमार वर्मा
(द) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

3. भक्ति आंदोलन को ईसाई धर्म के प्रभाव स्वरूप विकसित किसने माना है ?
(अ) ग्रियर्सन ने✔️                (ब) रामचन्द्र शुक्ल ने
(स) हजारी प्रसाद द्विवेदी ने      (द) आबिद हुसैन ने

4. ’’सगुणोपासक भक्त भगवान के सगुण और निर्गुण दोनों रूप मानता है, पर भक्ति के लिए सगुण रूप ही स्वीकार करता है, निर्गुण रूप ज्ञानमर्गियों के लिए छोङ देता है’’ यह कथन किस आलोचक का है ?
(अ) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल✔️
(ब) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(स) डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त
(द) डाॅ. पिताम्बरदत बङथवाल

5. ’हरिभक्ति रसामृत सिंधु’ के रचयिता है ?
(अ) जगन्न्ााथ                   (ब) तुलसीदास
(स) श्री रूपगोस्वामी✔️       (द) गोकुलनाथ

6. ’भक्ति भावना पराजित मनोवृति की उपज रही है
और न ही इस्लाम धर्म के बलात् प्रचार के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई है। हिन्दु सदा से आशावादी रहा है।’ कथन है ?
(अ) आचार्य शुक्ल      (ब) हजारी प्रसाद द्विवेदी✔️
(स) बच्चन सिंह         (द) जार्ज ग्रियर्सन

7. ’’हिन्दू पूजै देहरा, मुसलमान मसीद।’’ पद के रचयिता है ?
(अ) कबीर                   (ब) रैदास
(स) ज्ञानदेव                 (द) नामदेव✔️

8. नामदेव के गुरू कौन थे ?
(अ) विसोवा खेचर✔️        (ब) ज्ञानदेव
(स) एकनाथ                     (द) तुकाराम

9. सुमेलित कीजिएः
(सम्प्रदाय)                  (प्रवर्तक)
(क) तपसी शाखा          1. अग्रदास
(ख) रसिक सम्प्रदाय      2. जगजीवन दास
(ग) सत्यनामी सम्प्रदाय   3. हितहरिवंश
(घ) राधावल्लभ सम्प्रदाय 4. कील्हदास
कूटः
क ख ग घ
(अ) 4 1 2 3✔️         (ब) 1 2 3 4
(स) 4 1 3 2              (द) 4 2 1 3

10. सुमेलित कीजिएः
(आचार्य)             (दर्शन)
(क) शंकराचार्य     1. विशिष्टाद्वैतवाद
(ख) वल्लभाचार्य    2. द्वैताद्वैतवाद
(ग) रामानुजाचार्य   3. अद्वैतवाद
(घ) निम्बार्क         4. शुद्धाद्वैतवाद
कूटः
क ख ग घ
(अ) 3 4 1 2✔️           (ब) 2 3 1 4
(स) 2 4 1 3                (द) 3 4 2 1

11. भक्ति आंदोलन को निर्गुण भक्ति साहित्य और सगुण भक्ति साहित्य दो भागों में किसने विभाजित किया ?
(अ) रामचंद्र शुक्ल       (ब) हजारी प्रसाद द्विवेदी✔️
(स) रामकुमार वर्मा      (द) गणपतिचन्द्र गुप्त

12. ’’मेरा साहिब एक है, दूजा कहा न जाय, साहिब दूजा जो कहुँ साहब खरा रिसाय।’’ पद के रचयिता
है ?
(अ) दादू                  (ब) कबीर✔️
(स) पीपा                 (द) धन्ना

13. ’’संतमत के समस्त कवियों में कवि कबीर सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक थे।’’ कथन है ?
(अ) रामचन्द्र शुक्ल              (ब) डाॅ. नगेन्द्र✔️
(स) हजारीप्रसाद द्विवेदी       (द) रामकुमार वर्मा

14. कबीर की रचनाओं को धर्मदास द्वारा ’बीजक’ में सम्पादित कब किया गया ?
(अ) सन् 1468 ई.           (ब) सन् 1565 ई.
(स) सन् 1464 ई.✔️      (द) सन् 1562 ई.

15. ’’तुलसी को छोङकर हिन्दी भाषी जनता पर कबीर के समान या उनसे अधिक प्रभाव किसी कवि का नहीं पङा।’’ उक्त कथन है ?
(अ) श्यामसुंदर दास✔️        (ब) डाॅ. रामकुमार वर्मा
(स) हजारी प्रसाद द्विवेदी      (द) डाॅ. नगेन्द्र

16. ’’हिन्दू तुरक प्रमाण रमैनी सबदी साखी,
पच्छपात नहिं बचन सबहिं के हित की भाखी,
आरूढ दसा है जगत पर, मुख देखी नाहिन भनी,
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णश्रम षट् दरसनी।’’ पक्तियों के रचनाकार है ?
(अ) नाभादास✔️            (ब) अनंतदास
(स) जनगोपाल                (द) संत पीपा

17. ’’तुम जिन जानो गीत है, यह निज ब्रहम विचार,
मैं कहता हूँ आंखिन देखी, तूँ कहता कागद की लेखी।’’ के रचनाकार है ?
(अ) कबीर✔️                 (ब) संत पीपा
(स) रैदास                      (द) सुंदरदास

18. निम्न में से किस संत कवि की काव्यभाषा निमाङी थी ?
(अ) जम्भनाथ                      (ब) दादूदयाल
(स) संत सींगा✔️                 (द) बाबालाल

19. दादूदयाल की रचनाओं का प्रामाणिक संकलन ’दादूदयाल’ का संकलन किसके द्वारा किया गया ?
(अ) श्यामसुंदर दास द्वारा
(ब) परशुराम चतुर्वेदी द्वारा✔️
(स) पुरोहित हरिनारायण शर्मा
(द) पीताम्बर दत्त बङथवाल

20. मलूकदास की रचनाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना है ?
(अ) ज्ञानबोध✔️                 (ब) रतनखान
(स) बारह खङी                   (द) सुख सागर
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