अपठित बोध ( गद्यांश )

अपठित का अर्थ -

'अ' का अर्थ है 'नहीं' और 'पठित' का अर्थ है - 'पढा हुआ' अर्थात जो पढ़ा नहीं गया हो । प्रायः शब्द का अर्थ उल्टा करने के लिए उसके आगे 'अ' उपसर्ग लगा देते हैं।
यहाँ 'पठित' शब्द से 'अपठित' शब्द का निर्माण 'अ' लगने के कारण हुआ है।

'अपठित' की परिभाषा - 

गद्य एवं पद्य का वह अंश जो पहले कभी नहीं पढ़ा गया हो, ' अपठित' कहलाता है । दूसरे साहबों में , ऐसा उदाहरण जो पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों से न लेकर किसी अन्य पुस्तक या भाषा -खण्ड से लिया गया हो, अपठित अंश माना जाता है ।

विधि एवं विशेषताएँ

  1. प्रस्तुत अवतरण को मन-ही-मन एक-दो बार पढ़ना चाहिए।
  2. अनुच्छेद को पुनः पढ़ते समय विशिष्ट स्थलों को रेखांकित करना चाहिए।
  3. अपठित के उत्तर देते समय भाषा एकदम सरल, व्यावहारिक और सहज होनी चाहिए। बनावटी या लच्छेदार भाषा का प्रयोग करना एकदम अनुचित होगा।
  4. अपठित से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर लिखते समय कम-से-कम शब्दों में अपनी बात कहने का प्रयास करना चाहिए।
  5. शीर्षक देते समय संक्षिप्तता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
उदाहरण ( उत्तर सहित)

1. संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईर्ष्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।

प्रश्न

(क) मनुष्य अधर्म के कारण होने वाले अनर्थ को कैसे समझने लगा है
(i) संतों के अनुभव से
(ii) वर्ण भेद से
(iii) घृणा, ईर्ष्या, वैमनस्य, कटुता से
(iv) अपनी शुभ बुधि से

(ख) विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों की वृद्धि का परिणाम क्या हुआ है|
(i) देशों में भिन्नता बढ़ी है।
(ii) देशों में वैमनस्यता बढ़ी है।
(iii) देशों की दूरियाँ कम हुई है।
(iv) देशों में विदेशी व्यापार बढ़ा है ।

(ग) देश में आज भी कौन-सी समस्या है

(i) नफ़रत की
(ii) वर्ण-भेद की
(iii) सांप्रदायिकता की
(iv) अमीरी-गरीबी की

(घ) किस कारण से देश में मानव के बीच, घृणा, ईर्ष्या, वैमनस्यता एवं कटुता में कमी नहीं आई है?
(i) नफ़रत से
(ii) सांप्रदायिकता से
(iii) अमीरी गरीबी के कारण
(iv) वर्ण-भेद के कारण

(ङ) मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है
(i) शिक्षा का व्यापक प्रसार
(ii) धर्म का व्यापक प्रसार
(ii) प्रेम और सद्भावना का व्यापक प्रसार
(iv) उपर्युक्त सभी

उत्तर-
(क) (iv) (ख) (iii) (ग) (ii) (घ) (iv) (ङ) (i)

2. संघर्ष के मार्ग में अकेला ही चलना पड़ता है। कोई बाहरी शक्ति आपकी सहायता नहीं करती है। परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन आदि मानवीय गुण व्यक्ति को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दो महत्त्वपूर्ण तथ्य स्मरणीय है – प्रत्येक समस्या अपने साथ संघर्ष लेकर आती है। प्रत्येक संघर्ष के गर्भ में विजय निहित रहती है। एक अध्यापक छोड़ने वाले अपने छात्रों को यह संदेश दिया था – तुम्हें जीवन में सफल होने के लिए समस्याओं से संघर्ष करने को अभ्यास करना होगा। हम कोई भी कार्य करें, सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने का संकल्प लेकर चलें। सफलता हमें कभी निराश नहीं करेगी। समस्त ग्रंथों और महापुरुषों के अनुभवों को निष्कर्ष यह है कि संघर्ष से डरना अथवा उससे विमुख होना अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है और अपने विकास को अनावश्यक रूप से बाधित करना है। आप जागिए, उठिए दृढ़-संकल्प और उत्साह एवं साहस के साथ संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़िए और अपने जीवन के विकास की बाधाओं रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कीजिए।

प्रश्न

(क) मनुष्य को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं
(i) निर्भीकता, साहस, परिश्रम
(ii) परिश्रम, लगन, आत्मविश्वास
(iii) साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम
(iv) परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन

(ख) प्रत्येक समस्या अपने साथ लेकर आती है–
(i) संघर्ष
(ii) कठिनाइयाँ
(iii) चुनौतियाँ
(iv) सुखद परिणाम

(ग) समस्त ग्रंथों और अनुभवों का निष्कर्ष है
(i) संघर्ष से डरना या विमुख होना अहितकर है।
(ii) मानव-धर्म के प्रतिकूल है।
(iii) अपने विकास को बाधित करना है।
(iv) उपर्युक्त सभी

(घ) ‘मानवीय’ शब्द में मूल शब्द और प्रत्यय है
(i) मानवी + य
(ii) मानव + ईय
(iii) मानव + नीय
(iv) मानव + इय

(ङ) संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़ने के लिए आवश्यक है
(i) दृढ़ संकल्प, निडरता और धैर्य
(ii) दृढ़ संकल्प, उत्साह एवं साहस
(iii) दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और साहस
(iv) दृढ़ संकल्प, उत्तम चरित्र एवं साहस

उत्तर-
(क) (iv) (ख) (i) (ग) (iv) (घ) (ii) (ङ) (ii)

3. कार्य का महत्त्व और उसकी सुंदरता उसके समय पर संपादित किए जाने पर ही है। अत्यंत सुघड़ता से किया हुआ कार्य भी यदि आवश्यकता के पूर्व न पूरा हो सके तो उसका किया जाना निष्फले ही होगा। चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिए जाने पर यदि रखवाला उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करे तो सर्वत्र उपहास का पात्र ही बनेगा। उसके देर से किए गए उद्यम का कोई मूल्य नहीं होगा। श्रम का गौरव तभी है जब उसका लाभ किसी को मिल सके। इसी कारण यदि बादलों द्वारा बरसाया गया जल कृषक की फ़सल को फलने-फूलने में मदद नहीं कर सकता तो उसका बरसना व्यर्थ ही है। अवसर का सदुपयोग न करने वाले व्यक्ति को इसी कारण पश्चाताप करना पड़ता है।

प्रश्न

(क) जीवन में समय का महत्त्व क्यों है?
(i) समय काम के लिए प्रेरणा देता है।
(ii) समय की परवाह लोग नहीं करते।
(iii) समय पर किया गया काम सफल होता है।
(iv) समय बड़ा ही बलवान है।

(ख) खेत का रखवाला उपहास का पात्र क्यों बनता है?
(i) खेत में पौधे नहीं उगते।
(ii) समय पर खेत की रखवाली नहीं करता।
(iii) चिड़ियों का इंतजार करता रहता है।
(iv) खेत पर मौजूद नहीं रहता।।

ग) चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिए जाने पर यदि रखवाला उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करे तो सर्वत्र उपहास का पात्र ही बनेगा। इस पदबंध का प्रकार होगा
(i) संज्ञा
(ii) सर्वनाम
(iii) क्रिया
(iv) क्रियाविशेषण

(घ) बादल का बरसना व्यर्थ है, यदि
(i) गरमी शांत न हो।
(ii) फ़सल को लाभ न पहुँचे
(iii) किसान प्रसन्न न हो
(iv) नदी-तालाब न भर जाएँ

(ङ) गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(i) बादल का बरसना
(ii) चिड़ियों द्वारा खेत का चुगना
(iii) किसान का पछतावा करना
(iv) समय का सदुपयोग

उत्तर-
(क) (iii) (ख) (ii) (ग) (i)(घ) (ii) (ङ) (iv)

4. मानव जाति को अन्य जीवधारियों से अलग करके महत्त्व प्रदान करने वाला जो एकमात्र गुरु है, वह है उसकी विचार-शक्ति। मनुष्य के पास बुधि है, विवेक है, तर्कशक्ति है अर्थात उसके पास विचारों की अमूल्य पूँजी है। अपने सविचारों की नींव पर ही आज मानव ने अपनी श्रेष्ठता की स्थापना की है और मानव-सभ्यता का विशाल महल खड़ा किया है। यही कारण है कि विचारशील मनुष्य के पास जब सविचारों का अभाव रहता है तो उसका वह शून्य मानस कुविचारों से ग्रस्त होकर एक प्रकार से शैतान के वशीभूत हो जाता है। मानवी बुधि जब सद्भावों से प्रेरित होकर कल्याणकारी योजनाओं में प्रवृत्त रहती है तो उसकी सदाशयता का कोई अंत नहीं होता, किंतु जब वहाँ कुविचार अपना घर बना लेते हैं तो उसकी पाशविक प्रवृत्तियाँ उस पर हावी हो उठती हैं। हिंसा और पापाचार का दानवी साम्राज्य इस बात का द्योतक है कि मानव की विचार-शक्ति, जो उसे पशु बनने से रोकती है, उसका साथ देती है।

प्रश्न

(क) मानव जाति को महत्त्व देने में किसका योगदान है?
(i) शारीरिक शक्ति का
(ii) परिश्रम और उत्साह का
(iii) विवेक और विचारों का
(iv) मानव सभ्यता का

(ख) विचारों की पूँजी में शामिल नहीं है
(i) उत्साह
(ii) विवेक
(iii) तर्क
(iv) बुधि

(ग) मानव में पाशविक प्रवृत्तियाँ क्यों जागृत होती हैं?
(i) हिंसाबुधि के कारण
(ii) असत्य बोलने के कारण
(iii) कुविचारों के कारण
(iv) स्वार्थ के कारण

(घ) “मनुष्य के पास बुधि है, विवेक है, तर्कशक्ति है’ रचना की दृष्टि से उपर्युक्त वाक्य है
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) जटिल

(ङ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है
(i) मनुष्य का गुरु
(ii) विवेक शक्ति
(iii) दानवी शक्ति
(iv) पाशविक प्रवृत्ति

उत्तर-
(क) (iii) (ख) (i) (ग) (iii) (घ) (i) (ङ) (ii)

5. बातचीत करते समय हमें शब्दों के चयन पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि सम्मानजनक शब्द व्यक्ति को उदात्त एवं महान बनाते हैं। बातचीत को सुगम एवं प्रभावशाली बनाने के लिए सदैव प्रचलित भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। अत्यंत साहित्यिक एवं क्लिष्ट भाषा के प्रयोग से कहीं ऐसा न हो कि हमारा व्यक्तित्व चोट खा जाए। बातचीत में केवल विचारों का ही आदानप्रदान नहीं होता, बल्कि व्यक्तित्व का भी आदान-प्रदान होता है। अतः शिक्षक वर्ग को शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। शिक्षक वास्तव में एक अच्छा अभिनेता होता है, जो अपने व्यक्तित्व, शैली, बोलचाल और हावभाव से विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और उन पर अपनी छाप छोड़ता है।

प्रश्न

(क) शिक्षक होता है
(i) राजनेता
(ii) साहित्यकार
(iii) अभिनेता
(iv) कवि

(ख) बातचीत में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए?
(i) अप्रचलित
(ii) प्रचलित
(iii) क्लिष्ट
(iv) रहस्यमयी

(ग) शिक्षक वर्ग को बोलना चाहिए?
(i) सोच-समझकर
(ii) ज्यादा
(iii) बिना सोचे-समझे
(iv) तुरंत

(घ) बातचीत में आदान-प्रदान होता है–
(i) केवल विचारों का
(ii) केवल भाषा का
(ii) केवल व्यक्तित्व का
(iv) विचारों एवं व्यक्तित्व का

(ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है
(i) बातचीत की कला
(ii) शब्दों का चयन
(iii) साहित्यिक भाषा
(iv) व्यक्तित्व का प्रभाव

उत्तर-
(क) (iii) (ख) (iii) (ग) (i) (घ) (iv) (ङ) (ii)



रस विवेचन

【रस विवेचन】
रस की परिभाषा –

रस का सम्बंध आनन्द से है | कविता को पढने या नाटक को देखने से पाठक , श्रोता अथवा दर्शक को जो आनन्द प्राप्त होता है | उसे ही रस कहते है |

रस और उसका स्थाई भाव – प्राचीन भारतीय विद्वानों ने नौ रस माने है | जिसका विवरण निम्नलिखित है –

रस का नाम स्थाई भाव

1.   श्रृंगार - रति (प्रेम)
2.   हास्य - हास
3.   करूण - शोक
4.   रौद्र - क्रोध
5.   वीर - उत्साह
6.   भयानक - भय
7.   वीभत्स - जुगुप्सा (घृणा )
8.   अद्भुत - विस्मय
9.   शान्त - निर्वेद

करुण रस की परिभाषा – 

‘शोक’ नामक स्थाई भाव, विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रस रुप मे परिणत हो तो वहाँ पर करुण रस होता है | अर्थात् किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति के नाश होने से हृदय के अंदर उत्पन्न क्षोभ को करुण रस कहते है |

करुण रस के उदाहरण – 

1. “मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन-सा पटक रही थी शीश, अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश?”

इस पद मे श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता का करुण दशा का वर्णन किया गया है |
स्पष्टीकरण – 
स्थाई भाव – शोक 
विभाव (आलम्बन) – श्रवण कुमार 
आश्रय – पाठक 
उद्दीपन – महाराज दशरथ की उपस्थिति 
अनुभाव – सिर का पटकना 
संचारी भाव – विषाद, स्मृति, प्रलाप आदि |

2. अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ |
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल ||
हाय रूक गया यहाँ संसार, बना सिंदूर अनल अंगार |
वातहत लतिका यह सुकुमार, पडी है छिन्नाधार ||

3. प्रियपति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है ?
दु:ख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ?
लख मुख जिसका मैं, आज लौं जी सकी हूँ ,
वह हृदय दुलारा नैन तारा कहाँ है ?

4. जथा पंख बिनु खग अति दीना | मनि बिनु फन करिबर कर हीना ||
अस मम जिवन बंधु बिन तोही | जौ जड दैव जियावह मोही ||

हास्य रस की परिभाषा –

किसी की विकृत आकृति, आकार , वेश भूषा चेष्टा आदि को देखकर हृदय में विनोद का भाव जागृत होने पर हास्य रस की उत्पत्ति होती है ‌| हास्य रस का स्थाई भाव हास है | अर्थात् जहाँ हास नामक स्थाई भाव, विभाव , अनुभाव और संचारी भावो से संयोग से रस रुप मे परिणत होता है , तो वहाँ हास्य रस की निष्पत्ति होती है |

हास्य रस के उदाहरण – ‌ 

1. बिंध्य के बासी उदासी तपोब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे |
गोतमतीय तरी, तुलसी, सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे ||
ह्रै हैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद – मंजुल – कंज तिहारे |
कीन्ही भली रघुनायकजू करूना करि कानन को पगु धारे ||

इसमे विंध्याचल के तपस्वियों का वर्णन किया गया है |

स्पष्टीकरण- 
स्थाई भाव – हास 
आलम्बन – विंध्याचल के तपस्वी 
आश्रय – पाठक 
उद्दीपन – गौतम की स्त्री का उद्धार होना 
अनुभाव – मूनियों की कथा को सुनना |
संचारी भाव – उत्सुकता हर्ष , चंचलता आदि |

2. काहू न लखा सो चरित विसेखा | सो सरूप नर कन्या देखा ||
मरकट बदन भयंकर देही | देखत हृदय क्रोध भा तेही ||
जेहि दिसि बैठे नारद फूली | सो दिसि तेहि न विलोकी भूली ||
पुनि – पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं | देखि दशा हरगन मुसकाहीं ||

3. सीस पर गंगा हँसे, भुजनि भुजंगा हँसे,
‘हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में |
कीन्ही भली रघुनायकजू करुना करि कानन को पगु धारे ||

4. जेहि दिदि बैठे नारद फूली | सो देहि तेहिं न विलोकी भूली ||
पुनि- पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहिं | देखि दसा हर गन मुसुकाहीं ||