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कक्षा -12 हिंदी साहित्य ( रामचन्द्र शुक्ल- प्रेमघन छाया स्मृति)



कक्षा - 12 हिंदी साहित्य

पाठ - प्रेमघन छाया स्मृति

लेखक - आचार्य रामचंद्र शुक्ल


1. लेखक का साहित्यिक परिचय: आचार्य रामचंद्र शुक्ल

परिचय:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक साहित्यकार, निबंधकार, आलोचक, संपादक और इतिहासकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म सन् 1884 में बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा मिर्जापुर में हुई जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की, किंतु साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं का गहन अध्ययन किया। वे मिर्जापुर में मिशन स्कूल में ड्राइंग मास्टर रहे और बाद में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1941 में उनका निधन हो गया। आचार्य शुक्ल ने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा दी और उसे वैज्ञानिक एवं सैद्धांतिक धरातल प्रदान किया। उनके नाम पर एक युग (शुक्ल युग) का नामकरण हुआ, जो उनकी महत्ता का परिचायक है।

प्रमुख कृतियाँ:
आचार्य शुक्ल की साहित्यिक देन अत्यंत समृद्ध है। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. आलोचना ग्रंथ:

    • रस मीमांसा: यह उनके सैद्धांतिक आलोचना का सर्वोच्च ग्रंथ है, जिसमें भारतीय काव्यशास्त्र, विशेषकर रस सिद्धांत का वैज्ञानिक विवेचन किया गया है।

    • त्रिवेणी: इसमें सूर, तुलसी और जायसी की कविताओं का तुलनात्मक तथा आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।

    • जायसी ग्रंथावली की भूमिका: यह जायसी के पद्मावत पर लिखी गई विस्तृत एवं गंभीर आलोचना है।

    • तुलसी ग्रंथावली की भूमिका: तुलसी के काव्य पर आधारित आलोचनात्मक भूमिका।

  2. निबंध संग्रह:

    • चिंतामणि (भाग 1, 2, 3, 4): यह उनके मनोवैज्ञानिक, मनोविकारात्मक और साहित्यिक निबंधों का संग्रह है। 'क्रोध', 'श्रद्धा-भक्ति', 'लोभ और प्रीति', 'उत्साह', 'कविता क्या है?' जैसे निबंध इसी संग्रह में संकलित हैं, जो उनकी गहन चिंतन शक्ति और विश्लेषण क्षमता को दर्शाते हैं।

  3. इतिहास ग्रंथ:

    • हिंदी साहित्य का इतिहास: यह हिंदी साहित्य का सर्वाधिक प्रामाणिक और व्यवस्थित इतिहास ग्रंथ माना जाता है, जिसने हिंदी साहित्य के काल-विभाजन और नामकरण को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया।

  4. संपादन:

    • काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका: (सह-संपादन)

    • हिंदी शब्द सागर: (सह-संपादन)

    • भ्रमरगीत सार: (संपादन व भूमिका)

    • जायसी ग्रंथावली: (संपादन व भूमिका)

    • तुलसी ग्रंथावली: (संपादन व भूमिका)

  5. अनुवाद:

    • शशांक: (बँगला उपन्यास का अनुवाद)

    • विश्व प्रपंच: (जर्मन दार्शनिक हैकल की पुस्तक का अनुवाद)

साहित्यिक विशेषताएँ:

  • आलोचना के क्षेत्र में: शुक्ल जी ने हिंदी आलोचना को पहली बार शास्त्रीय, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान किया। उन्होंने रस सिद्धांत को आधुनिक संदर्भों में व्याख्यायित किया।

  • निबंध शैली: उनके निबंधों में विचारों की गंभीरता, भाषा की प्रौढ़ता और विश्लेषण की सूक्ष्मता मिलती है। वे अपने निबंधों में समाज, संस्कृति, साहित्य और मनोविज्ञान के गूढ़ तत्वों का उद्घाटन करते हैं।

  • भाषा-शैली: शुक्ल जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग अधिक है। उनकी शैली गंभीर, विचारात्मक और विश्लेषणात्मक है। कहीं-कहीं वे मुहावरेदार भाषा का प्रयोग भी करते हैं। वाक्य विन्यास सुगठित और तार्किक होता है। उनकी शैली में एक संयम और परिपक्वता दिखाई देती है।

  • राष्ट्रीय चेतना: यद्यपि वे मुख्य रूप से आलोचक और निबंधकार थे, उनके लेखन में भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना की गहरी छाप मिलती है।

हिंदी साहित्य में स्थान:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य में एक युग प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्हें 'आलोचना के सम्राट' और 'निबंध सम्राट' की उपाधि से नवाजा जाता है। उनके 'हिंदी साहित्य का इतिहास' ने हिंदी साहित्य के अध्ययन को एक नई दिशा दी। वे अपनी विद्वत्ता, चिंतन-गहनता और मौलिक दृष्टि के कारण सदैव स्मरणीय रहेंगे।


2. पाठ का सार: प्रेमघन छाया स्मृति

'प्रेमघन छाया स्मृति' आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक निबंध है। इस पाठ में लेखक ने अपने बचपन के दिनों की स्मृतियों के माध्यम से हिंदी के प्रसिद्ध कवि और भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकार बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' के व्यक्तित्व, उनके साहित्यिक संस्कार और उस समय के मिर्जापुर के साहित्यिक वातावरण का जीवंत चित्रण किया है।

  • बचपन की यादें और प्रेमघन का आकर्षण: लेखक अपने बचपन (9-10 वर्ष) की बात करते हैं जब वे मिर्जापुर में रहते थे। उस समय हिंदी के प्रति लोगों में विशेष अनुराग नहीं था, लेकिन भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके मंडल के साहित्यकारों के प्रति लेखक के मन में गहरा सम्मान था। वे 'प्रेमघन' जी को एक महत्वपूर्ण व्यक्ति मानते थे और उनसे मिलने के लिए उत्सुक रहते थे।

  • प्रेमघन का विलक्षण व्यक्तित्व: लेखक ने प्रेमघन जी के व्यक्तित्व की कुछ अनोखी विशेषताओं का वर्णन किया है। वे एक रईस और शौकीन व्यक्ति थे, जिनके हर काम में एक विशेष अंदाज़ होता था। उनकी बातचीत का ढंग भी अनूठा था, वे अपनी बात को घुमा-फिराकर और मुहावरेदार भाषा में कहते थे, जिससे सामने वाला अक्सर भ्रमित हो जाता था। वे अक्सर रात में अपनी छत पर बैठे दिखाई देते थे, जिससे उन्हें 'छाया' के रूप में देखने का अनुभव होता था।

  • पहली मुलाकात और प्रभाव: लेखक ने प्रेमघन जी को पहली बार अपने मोहल्ले में देखा था। उन्हें देखकर लेखक को लगा कि वे बिल्कुल वही व्यक्ति हैं जैसा उनके बारे में सुना था। प्रेमघन जी का मकान ऊँचा था और वे अक्सर खंभे के सहारे खड़े दिखाई देते थे। लेखक को उनका यह रूप बहुत आकर्षक लगा।

  • साहित्यिक मंडली और वातावरण: मिर्जापुर में प्रेमघन जी के घर पर एक साहित्यिक मंडली जमा होती थी। लेखक भी धीरे-धीरे इस मंडली में शामिल होने लगे। यहाँ कविता, गद्य, नाटक आदि पर गंभीर चर्चाएँ होती थीं। भारतेंदु जी के नाटक मंडली के सदस्यों द्वारा खेले जाते थे। उस समय हिंदी साहित्य की भाषा पर भी विचार-विमर्श होता था, जैसे 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल' का भाव।

  • प्रेमघन की विनोदप्रियता और भाषा-शैली: प्रेमघन जी अपनी विनोदप्रियता के लिए भी प्रसिद्ध थे। वे अक्सर हास्य-विनोद करते थे और अपनी बातों से लोगों को हंसाते थे। उनकी भाषा में संस्कृत, उर्दू और क्षेत्रीय शब्दों का सुंदर मिश्रण था। वे अपनी बातचीत में एक विशेष प्रकार का प्रवाह और मौलिकता रखते थे। लेखक ने उनके द्वारा कही गई कुछ विशिष्ट बातों के उदाहरण भी दिए हैं, जैसे 'आजकल आप अपनी किस नई चीज़ का इन्तजार कर रहे हैं?' का अर्थ 'नई कविता या पुस्तक' से था।

  • लेखक पर प्रेमघन का प्रभाव: प्रेमघन जी के सानिध्य में रहकर लेखक के साहित्यिक संस्कार विकसित हुए। उन्हें हिंदी साहित्य के प्रति और भी गहरा अनुराग हुआ। प्रेमघन जी की बातें, उनका व्यक्तित्व और उनकी साहित्यिक संगति ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल के भावी साहित्यिक जीवन की नींव रखी। यह पाठ दिखाता है कि कैसे एक युवा मन पर अपने आदर्श का गहरा प्रभाव पड़ता है और कैसे ये स्मृतियाँ व्यक्ति के जीवन को आकार देती हैं।

  • निष्कर्ष: यह निबंध न केवल प्रेमघन जी के व्यक्तित्व और तत्कालीन साहित्यिक परिवेश का चित्रण करता है, बल्कि आचार्य शुक्ल के शुरुआती साहित्यिक जीवन और उनके हिंदी प्रेम की पृष्ठभूमि को भी स्पष्ट करता है। यह एक मार्मिक और प्रेरणादायक संस्मरण है।


3. NCERT प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: लेखक ने अपने आप को 'नागरी-प्रचारिणी का एक मामूली सदस्य' क्यों कहा है?
उत्तर: लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने आप को 'नागरी-प्रचारिणी का एक मामूली सदस्य' इसलिए कहा है क्योंकि वे अत्यधिक विनम्र स्वभाव के थे। यद्यपि वे नागरी-प्रचारिणी पत्रिका के संपादन मंडल में थे और हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन में उनका योगदान अतुलनीय था, फिर भी वे स्वयं को साधारण सदस्य ही मानते थे। यह उनकी सहजता, महानता और अपने कार्य के प्रति समर्पण को दर्शाता है। वे केवल एक संस्था से जुड़कर खुद को बड़ा दिखाना नहीं चाहते थे, बल्कि हिंदी के उत्थान को ही अपना मुख्य ध्येय मानते थे।

प्रश्न 2: लेखक का बचपन किस शहर में बीता? वहाँ प्रेमघन जी का क्या प्रभाव था?
उत्तर: लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल का बचपन मिर्जापुर शहर में बीता। मिर्जापुर में प्रेमघन जी का बहुत प्रभाव था। वे वहाँ के साहित्यिक वातावरण के केंद्र बिंदु थे। उनके घर पर अक्सर साहित्यिक मंडली जमा होती थी, जहाँ कविता, गद्य और नाटक पर गंभीर चर्चाएँ होती थीं। प्रेमघन जी एक शौकीन और रईस व्यक्ति थे, जिनका रहन-सहन और बातचीत का ढंग अनोखा था। वे भारतेंदु हरिश्चंद्र के मंडल के प्रमुख सदस्य थे और उनकी उपस्थिति से मिर्जापुर का साहित्यिक परिवेश जीवंत था। लेखक के मन में उनके प्रति गहरा आकर्षण और सम्मान था।

प्रश्न 3: लेखक को प्रेमघन जी के व्यक्तित्व में क्या विशेषताएँ दिखाई दीं?
उत्तर: लेखक को प्रेमघन जी के व्यक्तित्व में निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई दीं:

  1. अनोखा बातचीत का ढंग: उनकी बात करने का तरीका निराला था। वे अपनी बात को सीधे न कहकर घुमा-फिराकर, मुहावरेदार भाषा में कहते थे, जिससे सुनने वाला अक्सर भ्रमित हो जाता था।

  2. विनोदप्रियता: वे हास्य-विनोद प्रिय व्यक्ति थे और अपनी बातों से लोगों को खूब हंसाते थे।

  3. रईसी और शौकीन मिजाज: वे एक रईस और शौकीन व्यक्ति थे, जिनके हर काम में एक विशेष अंदाज़ और भव्यता थी।

  4. विलक्षण रहन-सहन: उनका रहन-सहन दूसरों से अलग था। वे अक्सर छत पर खंभे के सहारे खड़े दिखाई देते थे।

  5. साहित्यिक संस्कार: वे भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकार थे और उनके घर पर साहित्यिक गोष्ठियाँ होती थीं, जिससे तत्कालीन साहित्यिक माहौल जीवंत रहता था।

  6. गंभीरता और सादगी का मेल: उनके व्यक्तित्व में गंभीरता और सादगी का अनोखा मेल था।

प्रश्न 4: लेखक को साहित्य की ओर आकर्षित करने में प्रेमघन जी की क्या भूमिका थी?
उत्तर: लेखक को साहित्य की ओर आकर्षित करने में प्रेमघन जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लेखक बचपन से ही भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके मंडल के साहित्यकारों के प्रति आकर्षित थे। प्रेमघन जी के मिर्जापुर में होने से लेखक को उनके सानिध्य में आने का अवसर मिला। प्रेमघन जी के घर होने वाली साहित्यिक गोष्ठियाँ, जहाँ कविता, गद्य और नाटक पर चर्चाएँ होती थीं, ने लेखक के साहित्यिक संस्कारों को सींचा। प्रेमघन जी की बातचीत का अनोखा ढंग, उनकी विनोदप्रियता और उनके साहित्यिक ज्ञान ने लेखक को गहराई से प्रभावित किया। उनके सानिध्य में ही लेखक को हिंदी साहित्य की बारीकियों को समझने का अवसर मिला, जिसने उनके भावी साहित्यिक जीवन की नींव रखी। प्रेमघन जी के प्रति उनके मन में जो श्रद्धा थी, उसने ही उन्हें हिंदी साहित्य से जोड़ा।

प्रश्न 5: 'इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कौतूहल का अद्भुत मिश्रण था' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जब पहली बार प्रेमघन जी को दूर से देखते हैं, तो उनके मन में कई भाव मिश्रित होते हैं। 'पुरातत्व' यहाँ प्रेमघन जी के पुराने, पारंपरिक और विशिष्ट व्यक्तित्व को दर्शाता है, जिसे लेखक ने कहानियों में सुना था। इस 'पुरातत्व' के प्रति लेखक के मन में 'प्रेम' था क्योंकि वे भारतेंदु मंडल के सदस्य थे और हिंदी साहित्य के पुरोधा थे, जिनसे लेखक पहले से ही प्रभावित थे। इसके साथ ही, उन्हें देखने की 'कौतूहल' (उत्सुकता) भी थी कि वे असल में कैसे दिखते हैं और उनका व्यक्तित्व कैसा है। यह पंक्ति लेखक के मन में प्रेमघन जी के प्रति गहरी श्रद्धा, जिज्ञासा और उनके व्यक्तित्व की अनोखी छाप को व्यक्त करती है।

प्रश्न 6: ‘नई-नई कविताओं का एक रास्ता खुलता जा रहा था’ – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव यह है कि जिस समय आचार्य रामचंद्र शुक्ल युवा हो रहे थे, वह भारतेंदु युग का अंत और द्विवेदी युग का प्रारंभिक काल था। हिंदी साहित्य में गद्य का विकास हो रहा था और ब्रजभाषा के साथ-साथ खड़ी बोली में भी कविताएँ लिखी जाने लगी थीं। भारतेंदु मंडल के कवियों ने पुरानी परिपाटी को छोड़कर नए विषयों पर, जन-जीवन से जुड़ी कविताओं पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। इस प्रकार, 'नई-नई कविताओं का एक रास्ता खुलता जा रहा था' का अर्थ है कि साहित्य में नवाचार आ रहा था, कविता के नए स्वरूप, नए विषय और नई भाषा शैली सामने आ रही थी, जिससे हिंदी साहित्य को एक नई दिशा मिल रही थी। यह उस समय के साहित्यिक जागरण और विकास की ओर संकेत करता है।


4. बोर्ड पेपर में आए हुए प्रश्न उत्तर (राजस्थान बोर्ड के अनुसार)

प्रश्न 1 (लघु उत्तरात्मक): आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंधों की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंधों की प्रमुख विशेषताएँ हैं:

  1. विचारों की गंभीरता: उनके निबंधों में गहन चिंतन और मौलिक विचारों की प्रधानता होती है।

  2. विश्लेषणात्मकता: वे किसी भी विषय का सूक्ष्मता से विश्लेषण करते हैं और उसके विभिन्न पक्षों को स्पष्ट करते हैं।

  3. मनोवैज्ञानिकता: 'चिंतामणि' के निबंधों में मानव मन के भावों और मनोविकारों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण मिलता है।

  4. भाषा की प्रौढ़ता: उनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग अधिक होता है।

  5. शैली की गंभीरता: उनकी शैली गंभीर, विचारात्मक और व्याख्यात्मक होती है, जो विषय के अनुरूप होती है।

प्रश्न 2 (लघु उत्तरात्मक): 'प्रेमघन छाया स्मृति' पाठ में प्रेमघन जी के बातचीत के ढंग की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर: 'प्रेमघन छाया स्मृति' पाठ में प्रेमघन जी के बातचीत के ढंग की सबसे प्रमुख विशेषता यह बताई गई है कि वे अपनी बात सीधे-सीधे न कहकर घुमा-फिराकर, टेढ़े-मेढ़े ढंग से और मुहावरेदार भाषा में कहते थे। वे ऐसा विनोदप्रियता के लिए करते थे, जिससे सुनने वाला कभी-कभी भ्रमित भी हो जाता था। उनका यह ढंग उनकी व्यक्तिगत पहचान बन गया था और उनकी हर बात में एक अनोखापन और मौलिकता होती थी।

प्रश्न 3 (निबंधात्मक/व्याख्यात्मक): 'प्रेमघन छाया स्मृति' एक संस्मरणात्मक निबंध है। इस कथन की सार्थकता पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर: 'प्रेमघन छाया स्मृति' आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित एक अत्यंत सफल संस्मरणात्मक निबंध है। यह कथन पूरी तरह से सार्थक है क्योंकि:

  1. स्मृतियों का चित्रण: पाठ पूरी तरह से लेखक के बचपन की स्मृतियों पर आधारित है। लेखक अपने बाल्यकाल में मिर्जापुर में प्रेमघन जी से हुई मुलाकातों, उनके व्यक्तित्व, उनके घर के साहित्यिक वातावरण और उनके विचित्र बातचीत के ढंग को याद करते हैं और उनका सजीव चित्रण करते हैं।

  2. व्यक्तिगत अनुभव: यह निबंध लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों और अनुभूतियों पर केंद्रित है। इसमें प्रेमघन जी के प्रति लेखक की श्रद्धा, उत्सुकता और उनके सानिध्य में विकसित हुए साहित्यिक संस्कारों का वर्णन है।

  3. अतीत का पुनर्स्मरण: संस्मरण वह गद्य विधा है जिसमें लेखक अपने जीवन में घटित किसी घटना, व्यक्ति या स्थान का अपनी स्मृति के आधार पर कलात्मक वर्णन करता है। यह पाठ इसी कसौटी पर खरा उतरता है, क्योंकि शुक्ल जी ने वर्षों बाद अपनी बचपन की यादों को जीवंत किया है।

  4. भावनात्मक जुड़ाव: पाठ में लेखक का प्रेमघन जी के प्रति भावनात्मक जुड़ाव स्पष्ट झलकता है, जो संस्मरण की एक अनिवार्य विशेषता है।
    अतः, यह पाठ अपनी विषय-वस्तु और शैली दोनों दृष्टियों से एक उत्कृष्ट संस्मरणात्मक निबंध है।

प्रश्न 4 (दीर्घ उत्तरात्मक): आचार्य रामचंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है? 'प्रेमघन छाया स्मृति' पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: आचार्य रामचंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य में योगदान अतुलनीय है। उन्हें 'हिंदी साहित्य का इतिहास' लिखकर साहित्य के काल-विभाजन और नामकरण को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने का श्रेय दिया जाता है। वे हिंदी आलोचना के जनक माने जाते हैं, जिन्होंने 'रस मीमांसा' जैसे ग्रंथ लिखकर भारतीय काव्यशास्त्र को आधुनिक संदर्भों में व्याख्यायित किया। उनके 'चिंतामणि' निबंध संग्रह हिंदी निबंध साहित्य की अमूल्य निधि हैं, जिनमें गहन चिंतन और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की प्रधानता है।

'प्रेमघन छाया स्मृति' पाठ के संदर्भ में उनका योगदान और भी स्पष्ट होता है:

  1. साहित्यिक पृष्ठभूमि का चित्रण: यह पाठ उस समय के साहित्यिक वातावरण का जीवंत चित्रण करता है, जब हिंदी साहित्य प्रारंभिक अवस्था में था और भारतेंदु मंडल जैसे साहित्यकार उसके उन्नयन के लिए प्रयासरत थे। शुक्ल जी ने इन शुरुआती प्रयासों का महत्व समझाया है।

  2. आधुनिक गद्य का विकास: शुक्ल जी स्वयं आधुनिक हिंदी गद्य के प्रमुख शिल्पकार थे। यह संस्मरण दिखाता है कि कैसे वे बचपन से ही साहित्य के प्रति आकर्षित हुए और कैसे उनके साहित्यिक संस्कार प्रेमघन जैसे लोगों के सानिध्य में पले-बढ़े, जिसने उन्हें बाद में इतना बड़ा साहित्यकार बनाया।

  3. हिंदी प्रेम का उद्गम: पाठ में लेखक का हिंदी और अपनी 'निज भाषा' के प्रति गहरा प्रेम झलकता है। यह वही प्रेम था जिसने उन्हें जीवनभर हिंदी साहित्य की सेवा करने और उसे समृद्ध करने के लिए प्रेरित किया।

  4. संस्मरणात्मक लेखन का उदाहरण: यह पाठ स्वयं शुक्ल जी की संस्मरण लेखन शैली का एक सुंदर उदाहरण है, जो उनकी भाषा पर पकड़ और भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता को दर्शाता है।

इस प्रकार, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने न केवल अपने लेखन से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि 'प्रेमघन छाया स्मृति' जैसे पाठों के माध्यम से उन्होंने तत्कालीन साहित्यिक समाज और अपनी स्वयं की साहित्यिक यात्रा की पृष्ठभूमि को भी स्पष्ट किया, जो हिंदी साहित्य के इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।