काव्य गुण एवं काव्य दोष

कक्षा - 12 हिंदी साहित्य 
विषय: काव्य गुण एवं काव्य दोष

काव्य गुण
परिचय:

काव्य में रस का होना अनिवार्य है, और इस रस को बढ़ाने वाले, काव्य की शोभा में वृद्धि करने वाले तथा उसे अधिक प्रभावशाली बनाने वाले तत्त्वों को 'काव्य गुण' कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्य में वीरता, उदारता, दया आदि गुण होते हैं, उसी प्रकार काव्य में भी माधुर्य, ओज और प्रसाद गुण होते हैं। ये गुण काव्य के आंतरिक सौन्दर्य को प्रकट करते हैं।

आचार्य मम्मट के अनुसार, "ये रसस्य अंगिनो धर्माः शौर्यादय इवात्मनः।" अर्थात् गुण रस के उसी प्रकार अनिवार्य अंग हैं, जैसे शूरता आदि आत्मा के।

काव्य गुण के प्रकार:

मुख्य रूप से काव्य गुण तीन प्रकार के होते हैं:

माधुर्य गुण (Madhurya Gun - Sweetness/Grace)

अर्थ: माधुर्य का अर्थ है - मधुरता या मिठास। जिस काव्य रचना को पढ़ने या सुनने से हृदय द्रवित हो जाए, मन में मधुरता का संचार हो, उसे माधुर्य गुण युक्त काव्य कहते हैं।

विशेषताएँ:

1. इसमें कर्णप्रिय, कोमल वर्णों का प्रयोग होता है (जैसे - क, ख, ग, च, छ, ज, झ, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, स, ह)।

2. कठोर वर्णों (ट, ठ, ड, ढ, ण) तथा संयुक्त अक्षरों का अभाव या बहुत कम प्रयोग होता है।

3. अनुस्वार (ं) या पंचमाक्षरों (ङ, ञ, ण, न, म) का प्रयोग होता है।

4. यह श्रृंगार, करुण और शांत रस में प्रमुखता से पाया जाता है।

उदाहरण:

"बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाय॥" (बिहारी)

स्पष्टीकरण: इस दोहे में कोमल वर्णों का प्रयोग है, कोई कठोर वर्ण नहीं है। इसे पढ़ने से मन में श्रीकृष्ण और गोपियों की मधुर लीला का चित्र उभरता है, जिससे आनंद और मधुरता का अनुभव होता है।

"कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदयँ गुनि॥" (तुलसीदास)

स्पष्टीकरण: यहाँ 'क', 'न' जैसे कोमल वर्णों की आवृत्ति और अनुस्वार का प्रयोग है। यह मधुर ध्वनि उत्पन्न करता है और मन को प्रिय लगता है।

"फटा पुराना जूता अपना, पहन पहन मुस्काता हूँ।
नहीं फकीरी पर अपनी मैं, तिल भर भी शर्माता हूँ।" (हरिवंशराय बच्चन)

स्पष्टीकरण: सरल, सहज शब्दावली और कोमल भावों की अभिव्यक्ति इसे माधुर्य गुण युक्त बनाती है, जिसमें जीवन की सहजता का चित्रण है।

"देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोये॥" (नरोत्तमदास)

स्पष्टीकरण: यहाँ करुण रस की प्रधानता है और कोमल शब्दावली का प्रयोग है, जो हृदय को द्रवित करता है।

"मंद-मंद मुरली बजावत अधर धरे,
मंद-मंद निकस्यो मुकुंद मधुवन तें।" (कवि पद्माकर)

स्पष्टीकरण: 'म' और 'द' जैसे कोमल वर्णों की आवृत्ति, अनुस्वार का प्रयोग और मधुर भाव इसे माधुर्य गुण से युक्त बनाता है।


ओज गुण (Oj Gun - Vigour/Energy)

अर्थ: ओज का अर्थ है - तेज, प्रताप या दीप्ति। जिस काव्य रचना को पढ़ने या सुनने से मन में उत्साह, वीरता, जोश, स्फूर्ति या उत्तेजना का संचार हो, उसे ओज गुण युक्त काव्य कहते हैं।

विशेषताएँ:

1. इसमें कठोर वर्णों (ट, ठ, ड, ढ, ण) तथा संयुक्त अक्षरों का प्रयोग अधिक होता है।

2. रेफ (र्) और रकार का प्रयोग होता है।

3. लंबे-लंबे सामासिक पदों (समास युक्त शब्द) का प्रयोग होता है।

4. यह वीर, रौद्र, भयानक और वीभत्स रस में प्रमुखता से पाया जाता है।

उदाहरण:

"बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥" (सुभद्रा कुमारी चौहान)

स्पष्टीकरण: इस रचना में 'बुंदेले', 'हरबोलों', 'मर्दानी', 'झाँसी' जैसे शब्दों में कठोरता और संयुक्त अक्षरों का प्रयोग है। इसे पढ़ते ही मन में वीरता और उत्साह का भाव जागृत होता है।

"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती॥" (जयशंकर प्रसाद)

स्पष्टीकरण: 'हिमाद्रि', 'तुंग श्रृंग', 'प्रबुद्ध', 'समुज्ज्वला', 'स्वतंत्रता' जैसे शब्दों में कठोरता, संयुक्त अक्षर और सामासिक पदों का प्रयोग है, जो जोश और राष्ट्रीय भावना जगाते हैं।

"चढ़ चेतक पर तलवार उठा, रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट-काट, करता था सफल जवानी को॥" (श्याम नारायण पाण्डेय)

स्पष्टीकरण: 'चेतक', 'तलवार', 'काट-काट' जैसे शब्द और वीर रस की अभिव्यक्ति इसे ओजपूर्ण बनाती है।

"डग-डग करती जब चलती थी, तो काँप उठते थे मगदल।
क्षण भर में ही हाहाकार, मच जाता था भूमंडल॥" (राष्ट्रकवि दिनकर)

स्पष्टीकरण: यहाँ 'डग-डग', 'मगदल', 'हाहाकार', 'भूमंडल' जैसे शब्दों में ओज है, जो युद्ध की भयंकरता और शक्ति का वर्णन करते हैं।

"साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।" (भूषण)

स्पष्टीकरण: 'चतुरंग', 'सैन', 'सरजा सिवाजी', 'जंग' जैसे शब्दों और वीर भाव की अभिव्यक्ति से ओज गुण स्पष्ट होता है।


प्रसाद गुण (Prasad Gun - Clarity/Lucidity)

अर्थ: प्रसाद का अर्थ है - प्रसन्नता, निर्मलता या स्वच्छता। जिस काव्य रचना को पढ़ते या सुनते ही उसका अर्थ सरलता से समझ में आ जाए, और मन प्रसन्न हो जाए, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते हैं।

विशेषताएँ:

1. इसमें सरल, सुबोध और प्रचलित शब्दों का प्रयोग होता है।

2. अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं होती, जैसे सूखी लकड़ी में आग तुरंत फैल जाती है, वैसे ही यह गुण चित्त में तुरंत व्याप्त हो जाता है।

3. यह सभी रसों में पाया जा सकता है, लेकिन शांत और भक्ति रस में विशेष रूप से।

उदाहरण:

"वह आता –
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक," (सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला')

स्पष्टीकरण: इस कविता की भाषा अत्यंत सरल और स्पष्ट है। पढ़ते ही एक गरीब, भूखे व्यक्ति का चित्र आँखों के सामने आ जाता है और उसका अर्थ तुरंत समझ में आ जाता है।

"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।" (तुलसीदास)

स्पष्टीकरण: यह पंक्ति अत्यंत सरल है और इसका अर्थ तुरंत स्पष्ट हो जाता है कि जिसकी जैसी भावना होती है, उसे प्रभु वैसे ही दिखाई देते हैं।

"हे प्रभो! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए॥" (प्रार्थना)

स्पष्टीकरण: यह प्रार्थना सरल शब्दों में ईश्वर से सद्बुद्धि और दुर्गुणों से मुक्ति की कामना करती है, जिसका अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं होती।

"जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।" (मैथिलीशरण गुप्त)

स्पष्टीकरण: यहाँ पेड़ के पत्ते के माध्यम से कर्म की महत्ता को सरल शब्दों में समझाया गया है, जो आसानी से समझ में आ जाता है।

"चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बरतल में॥" (मैथिलीशरण गुप्त)

स्पष्टीकरण: भाषा सरल, प्रवाहमयी और चित्रमयी है। अर्थ तुरंत समझ में आ जाता है और मन प्रसन्न होता है।

काव्य दोष
परिचय:

काव्य के रस का अपकर्ष करने वाले अर्थात् रस-सौंदर्य को हानि पहुँचाने वाले तत्त्व 'काव्य दोष' कहलाते हैं। जिस प्रकार मानव शरीर में कोई विकार उसे कुरूप बना देता है, उसी प्रकार काव्य में दोष आने से उसकी सुंदरता और प्रभाव कम हो जाता है।

आचार्य मम्मट के अनुसार, "मुख्यार्थहतिर्दोषो रसश्च मुख्यस्तदाश्रयाद्वाच्यः।" अर्थात् मुख्यार्थ (और रस) को क्षति पहुँचाने वाले तत्व दोष हैं।

प्रमुख काव्य दोष:
1. श्रुतिकटुत्व दोष (Shrutikatutva Dosh - Harsh Sound)

अर्थ: जब काव्य में ऐसे कठोर वर्णों या शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो सुनने में अप्रिय या कर्णकटु (कानों को कड़वे) लगें, तो वहाँ श्रुतिकटुत्व दोष होता है।

पहचान: ट, ठ, ड, ढ, ण (टवर्ग) जैसे कठोर वर्णों का अधिक प्रयोग या ऐसे संयुक्त अक्षर जो उच्चारण में कर्कश हों।

उदाहरण:

"कवि के कठिनतर कर्म की करते नहीं हम दृष्टता।"

स्पष्टीकरण: यहाँ 'कठिनतर', 'कर्म', 'दृष्टता' शब्दों में 'ट', 'ठ', 'ष' जैसे कठोर वर्णों का प्रयोग हुआ है, जो सुनने में कर्कश लगते हैं।

"भट भटकि भई विकट निसि, प्रविस्ट भये नर नाह।"

स्पष्टीकरण: 'भट', 'भटकि', 'विकट', 'प्रविस्ट' शब्दों में टवर्ग के वर्णों और संयुक्त अक्षरों के कारण कर्कशता आ गई है।

"तवंगी के तट में पहुँच ठहर ठठको क्यों?"

स्पष्टीकरण: 'तट', 'ठहर', 'ठठको' शब्दों में टवर्ग के वर्णों की आवृत्ति से यह दोष उत्पन्न हुआ है।

"निष्ठुर तुम ने छोड़ दिया निज अंचल में अभिसार।"

स्पष्टीकरण: 'निष्ठुर' शब्द में 'ष' और 'ठ' के प्रयोग से कठोरता आई है, जो माधुर्य को बाधित करती है।

2. ग्राम्यत्व दोष (Gramyatva Dosh - Rusticity/Vulgarity)

अर्थ: जब शिष्ट साहित्यिक भाषा में गँवारू, असभ्य या बोलचाल के ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो काव्य के स्तर के अनुकूल न हों, तो वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है।

पहचान: ऐसे शब्द जो लोकभाषा या ग्रामीण बोली के हों और साहित्यिक गरिमा के अनुरूप न हों।

उदाहरण:

"मूँड़ पे मुकुट धरे सोहत हैं गोपाल।"

स्पष्टीकरण: यहाँ 'मूँड़' शब्द गँवारू है। इसके स्थान पर 'मस्तक' या 'सिर' शब्द का प्रयोग उचित होता। "मस्तक पे मुकुट धरे सोहत हैं गोपाल।"

"और शहरों की क्या कहूँ बात, वहाँ मट्टी भी महंगी है।"

स्पष्टीकरण: यहाँ 'मट्टी' शब्द ग्रामीण बोलचाल का है। साहित्यिक भाषा में 'मिट्टी' या 'मृदा' शब्द अधिक उपयुक्त होता।

"कठिन देखि घोंघा जस खाजा।"

स्पष्टीकरण: 'घोंघा' और 'खाजा' जैसे शब्द काव्य की साहित्यिक गरिमा को कम करते हैं।

"रावण मारा गया सुनकर सब निच्चित हुए।"

स्पष्टीकरण: 'निच्चित' शब्द ग्रामीण प्रयोग है, इसके स्थान पर 'निश्चित' या 'निश्चिंत' होना चाहिए था।

3. अपुष्टार्थ दोष (Apushtarth Dosh - Weak Meaning)

अर्थ: जब काव्य में किसी बात को कहने के लिए ऐसे शब्द का प्रयोग किया जाए जो उस अर्थ को पूरी तरह या प्रभावशाली ढंग से व्यक्त न कर पाए, अर्थात् जहाँ अर्थ की पुष्टि न हो, वहाँ अपुष्टार्थ दोष होता है।

पहचान: जहाँ प्रयुक्त शब्द अपेक्षित अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करने में कमजोर या अपर्याप्त लगे।

उदाहरण:

"तुम पीत वसन परिधान किये, दिखते हो कुछ-कुछ छैल छबीले।"

स्पष्टीकरण: यहाँ 'कुछ-कुछ' शब्द कथन को कमजोर बना रहा है। यदि नायक वास्तव में छैल छबीला है तो 'कुछ-कुछ' कहना अर्थ को अपुष्ट करता है।

"विश्व में मिलते नहीं हैं वीर भारत सरीखे।"

स्पष्टीकरण: यहाँ 'मिलते नहीं हैं' कथन को सामान्य बना रहा है। इसके स्थान पर "विश्व में भारत सरीखे वीर दुर्लभ हैं" या "नहीं हैं कोई वीर भारत सरीखे" अधिक सशक्त होता। यहाँ अर्थ की पुष्टि पूरी तरह नहीं हो रही। (इसे अक्रमत्व दोष का उदाहरण भी माना जा सकता है यदि क्रम पर जोर दिया जाए।)

"उस वन में बहुत से वृक्ष थे।"

स्पष्टीकरण: 'बहुत से' कहने से वन की सघनता का भाव पूरी तरह व्यक्त नहीं होता। "उस वन में असंख्य वृक्ष थे" या "वह वन वृक्षों से सघन था" अधिक पुष्ट होता।

"वह दृश्य अत्यंत मनमोहक था।"

स्पष्टीकरण: यदि दृश्य वास्तव में बहुत सुंदर था, तो 'अत्यंत' शब्द ठीक है, पर यदि कवि कहना चाहता है कि वह अद्वितीय था, तो 'अद्वितीय' या 'अभूतपूर्व' शब्द अधिक पुष्ट होते। यहाँ संदर्भ महत्वपूर्ण है, पर कभी-कभी 'अत्यंत' जैसे शब्द भी भाव को पूरी तरह व्यक्त नहीं कर पाते।

4. क्लिष्टत्व दोष (Klishtatva Dosh - Obscurity)

अर्थ: जब काव्य में ऐसे शब्दों या वाक्य रचना का प्रयोग किया जाए जिससे अर्थ समझने में बहुत कठिनाई हो या अर्थ देर से समझ में आए, तो वहाँ क्लिष्टत्व दोष होता है। 'क्लिष्ट' का अर्थ है - कठिन।

पहचान: दुरूह (कठिन) शब्दावली, जटिल वाक्य-विन्यास, शास्त्रीय या दार्शनिक शब्दों का अनावश्यक प्रयोग।

उदाहरण:

"अजसु न चाहिय केवल स्वामिहि। तोहिं तजि जो भज विषय अकामिहि।।"

स्पष्टीकरण: इस पंक्ति का अर्थ समझने के लिए काफी प्रयास करना पड़ता है। इसका सरल अर्थ है: "केवल स्वामी (राम) को अपयश नहीं चाहिए। (हे मूर्ख मन!) तुझे छोड़कर जो निष्काम भाव से विषयों को भजता है (अर्थात् विषय भोग की कामना न करते हुए भी विषय सेवन करता है), उसे अपयश नहीं मिलता।" यह रचना जटिल है।

"हे उत्तरा के धन, रहो तुम उत्तरा के पास ही।"

स्पष्टीकरण: यहाँ 'उत्तरा के धन' का अर्थ अर्जुन है (उत्तर का पुत्र अभिमन्यु और अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित, अर्जुन के लिए 'धन' समान)। यह अर्थ सामान्य पाठक के लिए समझना कठिन है।

"नखत, वेद, ग्रह, जोरि अरधकरि, सोइ बनत अब खात।"

स्पष्टीकरण: यहाँ पहेलीनुमा भाषा है। नखत (27), वेद (4), ग्रह (9) को जोड़कर (27+4+9=40), उसका आधा (20) करने पर 'विष' (बीस) बनता है, जिसे खाने की बात कही गई है। यह समझने में बहुत कठिन है।

"मंदोदरि दृग धारि वारि कहि प्रिय सों बचन पुनि पुनि।"

स्पष्टीकरण: 'दृग धारि वारि' का अर्थ है 'आँखों में आँसू भरकर'। यह 표현 क्लिष्ट है।

5. अक्रमत्व दोष (Akramatva Dosh - Incorrect Word Order)

अर्थ: जब काव्य में शब्दों का क्रम व्याकरण या लोक-प्रसिद्धि के अनुसार ठीक न हो, जिससे अर्थ समझने में बाधा उत्पन्न हो या वाक्य अटपटा लगे, तो वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।

पहचान: शब्दों का आगे-पीछे होना, अन्वय (वाक्य के पदों का परस्पर संबंध) में कठिनाई।

उदाहरण:

"विश्व में मिलते नहीं हैं वीर भारत सरीखे।"

स्पष्टीकरण: यहाँ शब्दों का क्रम सही नहीं है। सही क्रम होना चाहिए: "भारत सरीखे वीर विश्व में नहीं मिलते।" या "विश्व में भारत सरीखे वीर नहीं मिलते।"

"सीता हरण राम कर बाण।"

स्पष्टीकरण: यहाँ शब्दों का क्रम गलत है। उचित क्रम होगा: "राम के बाण से सीता का हरण" (यदि यह अर्थ है) या "राम ने बाण से (रावण को मारकर) सीता का हरण (से उद्धार) किया।" संदर्भ के अनुसार अर्थ बदल सकता है, पर दिया गया क्रम अटपटा है।

"देती नहीं दिखाई भीड़ में वह मुझे।"

स्पष्टीकरण: सही क्रम होगा: "वह मुझे भीड़ में दिखाई नहीं देती।"

"रखा पानी परात को हाथ छुयो नहिं।" (प्रसिद्ध उदाहरण, प्रसाद गुण में भी है पर यहाँ क्रम की दृष्टि से देखें)

स्पष्टीकरण: यद्यपि यह प्रसिद्ध है, पर व्याकरणिक क्रम होगा: "परात को पानी (लाकर) रखा, (पर) हाथ (से) नहीं छुआ।" प्रचलित होने के कारण इसे दोषपूर्ण नहीं माना जाता, पर नए कवि के लिए यह दोषपूर्ण हो सकता है।

6. पुनरुक्ति दोष (Punarukti Dosh - Redundancy)

अर्थ: जब काव्य में एक ही अर्थ वाले शब्दों का अनावश्यक रूप से दोबारा प्रयोग किया जाए, तो वहाँ पुनरुक्ति दोष होता है।

पहचान: समानार्थक शब्दों का एक साथ प्रयोग बिना किसी विशेष प्रयोजन के।

उदाहरण:

"कोमल वचन सभी को भाते, अच्छे लगते मधुर वैन।"

स्पष्टीकरण: 'कोमल वचन' और 'मधुर वैन' दोनों का अर्थ लगभग समान है (मीठे बोल)। एक ही बात को दो बार कहा गया है।

"पुनि फिर राम निकट सो आई।"

स्पष्टीकरण: 'पुनि' और 'फिर' दोनों का अर्थ 'दोबारा' या 'पुनः' होता है। एक ही शब्द का प्रयोग पर्याप्त था।

"सजल नैनों से अश्रु बह रहे थे।"

स्पष्टीकरण: 'सजल नैन' का अर्थ ही है 'आँसुओं से भरे नेत्र'। फिर 'अश्रु बह रहे थे' कहना अनावश्यक है। "सजल नैनों से जल बह रहा था" या "नैनों से अश्रु बह रहे थे" कहना पर्याप्त होता।

"क्यों व्यर्थ ही तुम परिश्रम कर रहे हो?"

स्पष्टीकरण: 'व्यर्थ' का अर्थ ही है 'बिना किसी फल के'। यदि परिश्रम व्यर्थ है तो वह निष्फल ही होगा। "क्यों व्यर्थ परिश्रम कर रहे हो?" या "क्यों निष्फल परिश्रम कर रहे हो?" पर्याप्त है।

निष्कर्ष

उत्तम काव्य रचना के लिए यह आवश्यक है कि उसमें काव्य गुणों का समावेश हो और काव्य दोषों से बचा जाए। काव्य गुण जहाँ काव्य को प्रभावशाली और आनंददायक बनाते हैं, वहीं काव्य दोष उसके सौंदर्य और रसास्वादन में बाधा उत्पन्न करते हैं।

विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

                            कक्षा - 12 हिंदी अनिवार्य 
                    पाठ - विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
प्रश्न 1 – नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (✓) का निशान लगाइए :
(1) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि- 
(क) इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है।
(ख) इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं।
(ग) इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है।
(घ) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
उत्तर – इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
(2) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है –
(क) विजुअल                   
(ख) नेट                  
(ग) बाइट                  
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – उपर्युक्त सभी।
(3) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो –
(क) जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो।
(ख) जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके।
(ग) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो।
(घ) जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो।
उत्तर – जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके।
प्रश्न 4– इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जिस तरह से हर विषय के पक्ष और विपक्ष होते हैं, उसी प्रकार इंटरनेट के भी दो पक्ष हैं। इंटरनेट पत्रकारिता से हमें सूचनाएँ तत्काल उपलब्ध हो जाती हैं परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औजार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी ज़रिया है। इसके साथ ही यह अत्यंत महँगा साधन भी है।
प्रश्न 5– श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर – श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम है – टी०वी०।
पक्ष में तर्क –
1. टी०वी० पर समाचार सुनाई देने के साथ-साथ दिखाई भी देते हैं, जिससे सजीवता आती है और यह दर्शकों को बाँधे रखता है।
2. यह साक्षर-निरक्षर दोनों ही तरह के दर्शकों के लिए उपयोगी होते हैं।
3. कम समय में अधिक व् विभन्न जगहों के समाचार दिखाए जा सकते हैं।
4. समाचारों को अलग-अलग तरह से रुचिकर बनाकर दिखाया जाता है।
विपक्ष में तर्क –
1. गरीब व्यक्ति टी०वी० नहीं खरीद सकता। 
2. दूर-दराज के स्थानों पर अभी इसकी पहुँच नहीं है।
3. समाचार सुनने के लिए समाचार के प्रसारण का इंतजार करना पड़ता है।
4. किसी समाचार पर सोच-विचार के लिए नहीं रुक सकते।
विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन पाठ पर आधारित अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – 
प्रश्न 1 – प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर – जनसंचार माध्यमों में प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट प्रमुख है।
प्रश्न 2 – जनसंचार के माध्यमों (प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट) में, समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में क्या अंतर है?
उत्तर – जनसंचार के माध्यमों में, समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में अंतर जानने के लिए कभी ध्यान से किसी शाम या रात को टी.वी. और रेडियो पर सिर्फ समाचार सुनिए और मौका मिले तो इंटरनेट पर जाकर उन्हीं समाचारों को फिर से पढ़िए। अगले दिन सुबह अखबार ध्यान से पढ़िए। इन सभी माध्यमों में पढ़े, सुने या देखे गए समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में आपको फर्क नज़र आएगा। सबसे सहज और आसानी से नज़र आने वाला अंतर तो यही दिखाई देता है कि जहाँ अखबार पढ़ने के लिए है, वहीं रेडियो सुनने के लिए और टी.वी. देखने के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने, तीनों की ही सुविधा है। जाहिर है कि अखबार छपे हुए शब्दों का माध्यम है जबकि रेडियो बोले हुए शब्दों का।
प्रश्न 3 – मुद्रित माध्यमों की विशेषताऐं लिखिए।
उत्तर – मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।
1. अगर आप अखबार या पत्रिका पढ़ रहे हों तो आप अपनी पसंद के अनुसार किसी भी पृष्ठ और उस पर प्रकाशित किसी भी समाचार या रिपोर्ट से पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं।
2. मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
3. मुद्रित माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है। इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल हैं।
4. मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ़ बातें लिख सकते हैं क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है।
प्रश्न 4 – डेडलाइन किसे कहते हैं?
उत्तर – अखबार 24 घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है। अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है, जिसे डेडलाइन कहते हैं।
प्रश्न 5 – मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का ध्यान क्यों रखना चाहिए?
उत्तर – मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का पूरा ध्यान रखना चाहिए। जैसे किसी अखबार या पत्रिका के संपादक ने अगर आपको 250 शब्दों में रिपोर्ट या फीचर लिखने को कहा है तो आपको उस शब्द सीमा का ध्यान रखना पडे़गा। इसकी वजह यह है कि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती। साथ ही उन्हें विभिन्न विषयों और मुद्दों पर सामग्री प्रकाशित करनी होती है। महत्त्व और जगह की उपलब्धता के अनुसार वे निश्चित करते हैं कि किसे कितनी जगह मिलेगी।
प्रश्न 6 – मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर – मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि वहीं चिपक जाएगी। उसे सुधारने के लिए अखबार या पत्रिका के अगले अंक का इंतजार करना पडे़गा। यही कारण है कि अखबार या पत्रिका में यथासंभव कोशिश की जाती है कि कोई गलती या अशुद्धि न छप जाए। इसके लिए अखबार/पत्रिकाओं में संपादक के साथ एक पूरी संपादकीय टीम होती है जिसकी मुख्य ज़िम्मेदारी प्रकाशन के लिए जा रही सामग्री से गलतियों और अशुद्धियों को हटाकर उसे प्रकाशन योग्य बनाना है।
प्रश्न 7 – मुद्रित माध्यमों की खामियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – मुद्रित माध्यमों की खामियाँ –
1. मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा के ज़रिये एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो। निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं। 
2. मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
3. मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को पाठकों की रुचियों और ज़रूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है। 
4. मुद्रित माध्यम रेडियो, टी.वी. या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होते हैं। 
5. मुद्रित माध्यमों के लेखकों और पत्राकारों को प्रकाशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।
6. मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती। 
7. मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि  वहीं चिपक जाएगी। 
प्रश्न 8 – मुद्रित माध्यमों में लेखन में किन बातें का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर – मुद्रित माध्यमों में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें –
1. लेखन में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शैली का ध्यान रखना ज़रूरी है। प्रचलित भाषा के प्रयोग पर ज़ोर रहता है।
2. समय-सीमा और आवंटित जगह के अनुशासन का पालन करना हर हाल में जरूरी है।
3. लेखन और प्रकाशन के बीच गलतियों और अशुद्धियों को ठीक करना ज़रूरी होता है।
4. लेखन में सहज प्रवाह के लिए तारतम्यता बनाए रखना ज़रूरी है
प्रश्न 9 – रेडियो, अखबार और टी.वी. में क्या अंतर है ?
उत्तर – रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि अखबार पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं। और अगर किसी समाचार/लेख या फीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में न आए तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ भी सकता है। लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतजार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है। रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होता है। रेडियो की तरह टेलीविज़न भी एकरेखीय माध्यम है लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों तसवीरों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। टी.वी. में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं। लेकिन रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है। वैसे तो तीनो ही माध्यमों- प्रिंट, रेडियो और टी.वी. की अपनी-अपनी चुनौतियाँ हैं लेकिन संभवतः रेडियो प्रसारणकर्ताओं के लिए अपने श्रोताओ को बाँधकर रखने की चुनौती सबसे कठिन है।
प्रश्न 10 – उलटा पिरामिड-शैली क्या है?
उत्तर – उलटा पिरामिड-शैली में समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना / विचार / समस्या का ब्योरा कालानुक्रम के बजाए सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह कि इस शैली में, कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है। उलटा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता। उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो, बॉडी और समापन। समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्त्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहम हिस्सा होता है। इसके बाद बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है। हालाँकि इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यहाँ तक कि प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं, अगर ज़रूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ को काटकर हटाया भी जा सकता है और उस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 11 – रेडियो के लिए समाचार लेखन में अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी क्यों रखनी चाहिए?
उत्तर – रेडियो के लिए समाचार लेखन में अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए। जैसे-एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए। लेकिन 2837550 लिखने के बजाय अठ्ठाइस लाख सैंतीस हजार पाँच सौ पचास लिखा जाना चाहिए अन्यथा वाचक/ वाचिका को पढ़ने में बहुत मुश्किल होगी। इसी तरह 2837550 रुपए को रेडियो में लगभग अट्टाइस लाख रुपए लिखना श्रोताओं को समझाने के लिहाज़ से बेहतर है। इस तरह की वित्तीय संख्याओं को उनके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं। जैसे खेलों के स्कोर को उसी तरह लिखना चाहिए। सचिन तेंदुलकर ने अगर 98 रन बनाए हैं तो उसे लगभग सौ रन नहीं लिख सकते। रेडियो समाचार कभी भी संख्या से नहीं शुरू होना चाहिए। इसी तरह तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी न कि अगस्त 15, 1985 ।
प्रश्न 12 – रेडियो के लिए समाचार लेखन-बुनियादी बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर – रेडियो के लिए समाचार कॉपी तैयार करते हुए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है –
1. साफ-सुथरी और टाइप्ड कॉपी होनी चाहिए। 
2. प्रसारण के लिए तैयार की जा रही समाचार कॉपी को कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए। 
3. कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोड़ा जाना चाहिए। 
4. एक लाइन में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए। 
5. पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए और पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। 
6. समाचार कॉपी में ऐसे जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर (एब्रीवियेशंस), अंक आदि नहीं लिखने चाहिए जिन्हें पढ़ने में ज़बान लड़खड़ाने लगे। 
7. अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए। 
8. अखबारों में % और $ जैसे संकेत चिह्नों से काम चल जाता है लेकिन रेडियो में यह पूरी तरह वर्जित है यानी प्रतिशत और डॉलर लिखा जाना चाहिए। 
9. तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी न कि अगस्त 15, 1985 ।
10. संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल में काफी सावधानी बरतनी चाहिए। 
प्रश्न 13 – टी.वी. खबरों के विभिन्न चरण कौन से हैं?
उत्तर – किसी भी टी.वी. चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी.वी. में भी यह सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं –
1. फ़्लैश  या ब्रेकिंग न्यूज़ 
2. ड्राई एंकर
3. फोन-इन
4. एंकर-विजुअल
5. एंकर-बाइट
6. लाइव
7. एंकर-पैकेज
प्रश्न 14 – फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ क्या है?
उत्तर – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम से कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।
प्रश्न 15 – ड्राई एंकर क्या है?
उत्तर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते एंकर, दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।
प्रश्न 16 – फोन-इन में क्या होता है?
उत्तर – एंकर रिपोर्टर से फोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज्यादा से ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, वह दर्शकों को बताता है।
प्रश्न 17 – एंकर-विजुअल में क्या होता है?
उत्तर – जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
प्रश्न 18 – एंकर-बाइट क्या है?
उत्तर – बाइट यानी कथन। टेलीविज़न पत्रकारिता में बाइट का काफी महत्त्व है। टेलीविज़न में किसी भी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।
प्रश्न 19 – रेडियो और टी.वी. की सरल, संप्रेषणीय और प्रभावी भाषा को जाँचने का क्या तरीका है?
उत्तर – रेडियो और टी.वी. में आप कितनी सरल, संप्रेषणीय और प्रभावी भाषा लिख रहे हैं, यह जाँचने का एक बेहतर तरीका यह है कि आप समाचार लिखने के बाद उसे बोल-बोलकर पढें। इस प्रक्रिया में आपको स्वयं यह अहसास हो जाएगा कि भाषा में कितना प्रवाह है, उसे पढ़ने में समाचार वाचक / वाचिका या एंकर को कोई दिक्कत तो नहीं होगी, या उसे सभी लोग आसानी से समझ तो जाएँगे।
प्रश्न 20 – रेडियो और टी.वी. समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर कैसी सावधानी बरतनी पड़ती है?
उत्तर – रेडियो और टी.वी. समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।
प्रश्न 21 – रेडियो और टेलीविशन समाचार की भाषा और शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर – भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी.वी. का उद्देश्य है। लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
1. आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी.वी. समाचार में भी करें। 
2. सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। 
3. ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। 
4. द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। 
5. तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। – – – साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। 
6. मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं। 
7. वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहने का धीरज हो। 
8. वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो कि कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे।
9. शब्द प्रचलित हों और उनका उच्चारण सहजता से किया जा सके।
प्रश्न 22 – इंटरनेट पर पत्रकारिता के कौन से रूप हैं?
उत्तर – इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के ज़रिये भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।
प्रश्न 23 – इंटरनेट पत्रकारिता से आपका क्या आशय है?
उत्तर – इंटरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर यदि हम, किसी भी रूप में खबरों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचर, झलकियों, डायरियों के ज़रिये अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दर्ज करने का काम करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। आज तमाम प्रमुख अखबार पूरे के पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई प्रकाशन समूहों ने और कई निजी कंपनियों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है। चूँकि यह एक अलग माध्यम है, इसलिए इस पर पत्रकारिता का तरीका भी थोड़ा-सा अलग है। 

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) 
प्रश्न 1 – प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-कौन से हैं?
(क) प्रिंट                              (ख) रेडियो और इंटरनेट
(ग) टी.वी                             (घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 2 – जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना कौन सा है?
(क) प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम               (ख) टी.वी.माध्यम
(ग) रेडियो और इंटरनेट                      (घ) समाचार माध्यम
उत्तर – (क) प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम
प्रश्न 3 – भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला?
(क) सन् 1555 में गोवा में                  (ख) सन् 1546 में गोवा में
(ग) सन् 1556 में गोवा में                  (घ) सन् 1456 में गोवा में
उत्तर – (ग) सन् 1556 में गोवा में
प्रश्न 4 – भारत में पहला छापाखाना मिशनरियों ने क्यों खोला था?
(क) पुस्तकें छापने के लिए                                   
(ख) धर्म प्रचार के लिए
(ग) धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए                  
(घ) शैक्षणिक साक्षरता बढ़ाने के लिए
उत्तर – (ग) धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए
प्रश्न 5 – टेलीविज़न में किसका महत्त्व सर्वाधिक होता है?
(क) शब्दों का                                 (ख) ध्वनियों का
(ग) दृश्यों तसवीरों का                      (घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) दृश्यों तसवीरों का
प्रश्न 6 – उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को कितने हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है?
(क) दो                        (ख) चार                    
(ग) छः                        (घ) तीन
उत्तर – (घ) तीन
प्रश्न 7 – खबर का सबसे अहम हिस्सा क्या होता है?
(क) इंट्रो                     (ख) समापन               
(ग) बॉडी                    (घ) भाषा
उत्तर – (क) इंट्रो
प्रश्न 8 – जो अखबार प्रिंटर रूप में उपलब्ध ना होकर केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है उसका क्या नाम है?
(क) प्रसाक्षी                (ख) प्रभास                 
(ग) प्रभासाक्षी             (घ) प्रभाक्षी
उत्तर – (ग) प्रभासाक्षी
प्रश्न 9 – टीवी जनसंचार का कैसा माध्यम है?
(क) श्रव्य माध्यम                           (ख) दृश्य एवं श्रव्य माध्यम
(ग) दृश्य माध्यम                            (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) दृश्य एवं श्रव्य माध्यम
प्रश्न 10 – रेडियो जनसंचार का कैसा माध्यम है?
(क) श्रव्य माध्यम                          (ख) दृश्य एवं श्रव्य माध्यम
(ग) दृश्य माध्यम                           (घ) केवल (ख)
उत्तर – (क) श्रव्य माध्यम
प्रश्न 11 – इंटरनेट जनसंचार को किस नाम से जाना जाता है?
(क) इंटरनेट पत्रकारिता                                    
(ख) ऑनलाइन पत्रकारिता
(ग) साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता             
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 12 – भारत में इंटरनेट का कौन सा दौर चल रहा है?
(क) दूसरा दौर              (ख) पहला दौर              
(ग) तीसरा दौर             (घ) चौथा दौर
उत्तर – (क) दूसरा दौर
प्रश्न 13 – भारत में इंटरनेट का दूसरा दौर कब से शुरू माना जाता है?
(क) 1993           (ख) 2023           
(ग) 2003            (घ) 2013
उत्तर – (ग) 2003
प्रश्न 14 – सर्वाधिक खर्चीला जनसंचार माध्यम कौन-सा है?
(क) रेडियो                 (ख) टेलीविज़न          
(ग) समाचार पत्र          (घ) इंटरनेट
उत्तर – (घ) इंटरनेट
प्रश्न 15 – मुद्रण का आरंभ किस देश में हुआ?
(क) भारत          (ख) जापान           (ग) चीन            (घ) भूटान
उत्तर – (ग) चीन
प्रश्न 16 – समाचार लेखन की प्रभावशाली शैली कौन सी है?
(क) उल्टा पिरामिड शैली         (ख) वर्णनात्मक शैली
(ग) पिरामिड शैली                 (घ) विवेचनात्मक शैली
उत्तर – (क) उल्टा पिरामिड शैली
प्रश्न 17 – आधुनिक युग में इंटरनेट पत्रकारिता का कौन-सा दौर चल रहा है?
(क) प्रथम       (ख) तृतीय          (ग) चतुर्थ       (घ) द्वितीय
उत्तर – (ख) तृतीय
प्रश्न 18 – समाचार पत्र को प्रकाशित करने के लिए आखिरी समय सीमा को क्या कहा जाता है?
(क) डैड लाइन          (ख) ब्लैक लाइन          
(ग) रैड लाइन           (घ) ब्लू लाइन
उत्तर – (क) डैड लाइन
प्रश्न 19 – प्रिंट मीडिया के लाभ क्या हैं?
(क) प्रिंट मीडिया को धीरे-धीरे, दुबारा या मजी के अनुसार पढ़ा जा सकता है
(ख) किसी भी पृष्ठ या समाचार को पहले या बाद में पढ़ा जा सकता है
(ग) इन्हें सुरक्षित रखकर संदर्भ की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 20 – अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय क्यों है?
(क) शब्दों के स्थायित्व के कारण
(ख) इसे अपनी इच्छानुसार कहीं भी, कभी भी पढ़ा जा सकता है
(ग) कठिन व् गूढ़ शब्दों व् वाक्यांशों को समझने का समय मिल जाता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी