समास

समास क्या है ? समास का अर्थ संक्षिप्त करना है। दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बने शब्द को समस्तपद कहा जाता है । जब दो या दो से अधिक पद अपनी विभक्ति को छोड़कर आपस में मिलते हैं, तो उनके मिले संक्षिप्त रूप को समास कहते हैं।
जैसे :- वन को गमन - वनगमन।
यहाँ वन के साथ कर्म कारक चिह्न 'को' का लोप हो गया।

समास से उत्पन्न विशेषताएँ -
1. समास करने से बात को संक्षेप में लिखा या कहा जा सकता है।
2. समास द्वारा मिलाए गए शब्द एक शब्द की भाँति प्रयोग में आते हैं।
3. समासों के प्रयोग से भाषा सशक्त, प्रभावपूर्ण और चुस्त हो जाती है।
4. समास के मिलाए गए शब्दों में पहले को पूर्व पद तथा दूसरे को उत्तर पद कहा जाता है।
5. इन पदों में कभी पहला पद, कभी दूसरा पद और कभी दोनों पद प्रधान होते हैं।

समास-विग्रह - समस्त पद (समास द्वारा जोड़े गए शब्द) को उसके पूर्व रूप में लाना या अलग करके लिखना समास-विग्रह कहा जाता है।
जैसे - 'हवनसामग्री ' समस्त पद या समास है । इसका विग्रह करने पर 'हवन के लिए सामग्री' यह पहला रूप हो जाएगा।

अन्य उदाहरण - ब्रजरज - ब्रज की रज, जलमग्न - जल में मग्न, भवनसामग्री - भवन (निर्माण) के लिए सामग्री, हस्तलिखित - हस्त (हाथ) से लिखी गई।

समास के भेद  - समास के छह भेद होते हैं - 
(1) अव्ययीभाव समास
(2) तत्पुरुष समास
(3) कर्मधारय समास
(4) द्विगु समास
(5) बहुव्रीहि समास
(6) द्वंद्व समास

कुछ विद्वान 'कर्मधारय' तथा 'द्विगु' को तत्पुरुष समास के ही उपभेद मानते हैं। इस प्रकार समास के मुख्य चार भेद भी माने जाते हैं। 

(1) अव्ययीभाव समास 

जिस समास का पहला पद अव्यय होता है उसे 'अव्ययीभाव' समास कहते हैं। अव्ययीभाव समास का पूर्वपद (पहला पद) प्रधान होता है। इस समास में प्रायः पहला पद अव्यय होता है। कभी - कभी दूसरा पद भी अव्यय देखा जाता है। इस समास का अव्यय के रूप में ही प्रयोग होता है। उदाहरण -
समास (समस्त पद)               विग्रह
यथासमय                     समय के अनुसार
यथासंभव                     जैसा संभव हो
यथाशक्ति                     शक्ति के अनुसार
यथाविधि                      विधि के अनुसार
आजीवन                      जीवन भर
आजन्म                        जन्म से लेकर
आसमुद्र                        समुद्र पर्यंत
प्रतिदिन                        दिन-दिन, प्रत्येक दिन
प्रतिवर्ष                         प्रत्येक वर्ष
प्रत्येक                          प्रति एक, एक-एक
निर्जल                          निः जल (बिना जल)
नित्यप्रति                       नित्य प्रति
घर-घर                          घर घर (प्रत्येक घर)
दिनभर                         दिन भर (सारे दिन)
बेवफा                          वफ़ा के बिना

(2) तत्पुरुष समास

  • इस समास में पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
  • समस्त पद बनाते समय पदों के विभक्ति चिह्नों को लुप्त किया जाता है।
  • इस समास की दो प्रकार से रचना होती है:

(क) संज्ञा + संज्ञा/विशेषण

युद्ध का क्षेत्र = युद्धक्षेत्र
दान में वीर = दानवीर

(ख) संज्ञा + क्रिया

शरण में आगत = शरणागत
स्वर्ग को गमन = स्वर्गगमन

कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं:

1. कर्म तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'को')

जहाँ पूर्व पद में कर्म कारक की विभक्ति का लोप  हो जाता है। वहाँ कर्म तत्पुरुष होता है। उदाहरण के लिए-

समस्त पदविग्रह
परलोकगमनपरलोक को गमन 
यशप्राप्तयश को प्राप्त
मरणप्राप्तमरण को प्राप्त
स्वर्गगतस्वर्ग को गया हुआ
विद्यालयगतविद्यालय को आया हुआ
नगरगतनगर को गया हुआ 

2. करण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'से, के द्वारा')

करण तत्पुरुष समास के पूर्वपद में करण कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण के लिए-

समस्त पदविग्रह
रक्त लिप्त रक्त से लिप्त 
देवदत्तदेव के द्वारा दिया गया
हस्तलिखितहस्त से  लिखित
प्रेमपीड़ितप्रेम  से पीड़ित
पुत्रसंतुष्टपुत्र के द्वारा संतुष्ट
स्वरचितस्वयं के द्वारा रचित
परिश्रमसाध्यपरिश्रम से साध्य
राजपालितराजा के द्वारा पालित 
विद्यालंकृतविद्या से अलंकृत
पुरस्कारसम्मानितपुरस्कार से सम्मानित

3. सम्प्रदान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'के लिए')

संप्रदान तत्पुरुष में पूर्व पद के संप्रदान कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण के लिए-

समस्त पदविग्रह
छात्रशालाछात्रों के लिए शाला
यज्ञसामग्रीयज्ञ के लिए सामग्री
मार्गव्ययमार्ग के लिए व्यय
रसोईघररसोई के लिए घर
प्रयोगभवनप्रयोग के लिए भवन
राष्ट्रप्रेमराष्ट्र के लिए प्रेम
हाथघड़ीहाथ के लिए घड़ी
गुरुदक्षिणागुरु के लिए दक्षिणा
बलिपुरुषबलि के लिए पुरुष
आरामकुर्सीआराम के लिए कुर्सी

4. अपादान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'से' [अलग होने का भाव])

अपादान तत्पुरुष समास में पूर्व पद के अपादान कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है जैसे- 

समस्त पदविग्रह
धनहीनधन से  हीन
चौरभयचोर से भय
वनागमनवन से आगमन
राजभयराजा से भय
जन्मांधजन्म से अंधा
भयभीतभयभीत
सर्वसुंदरसबसे सुंदर
आचारशून्य आचार से शून्य 
ऋणमुक्तऋण से मुक्त

5. संबंध तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'का, के, की')

संबंध तत्पुरुष समास में पूर्व पद के संबंध कारक की विभक्ति होती है, उसका लोप कर पूर्व पद को उत्तर पद के साथ जोड़ दिया जाता है। जैसे- 

समस्त पदविग्रह
राष्ट्रीय सुरक्षाराष्ट्र की सुरक्षा
रामाश्रयराम का आश्रय
देवमूर्तिदेव की मूर्ति
राष्ट्रपिताराष्ट्र का पिता
राजघराना राजा का घराना 
राजमहलराजा का महल
देशवासीदेश का वासी
स्वास्थ्यरक्षास्वास्थ्य की रक्षा
राजकुलराजा का कुल
करोड़पतिकरोड़ों का पति
मकानमालिकमकान का मालिक 
जनहितजनों का हित
धनशक्तिधन की शक्ति 
हिमालयहिम का आलय
दीनबंधुदीनो का बंधु 

6. अधिकरण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'में, पर')

जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति का- मैं, पर का लोप हो जाता है वहां अधिकरण तत्पुरुष समास होता है. जैसे

समस्त पदविग्रह
धर्मवीरधर्म में वीर
कलानिधिकला में निधि
लोकप्रियलोक में प्रिय
भक्तिमग्नभक्ति में मग्न 
वनवासवन में वास 
शरणागतशरण में आगत 
पुरुषोत्तमपुरुषों में उत्तम
डिब्बाबंदडिब्बे में बंद
जगबीतीजग पर बीती
सरदर्दसर में दर्द 

यद्यपि तत्पुरुष समास के अधिकांश विग्रहों में कोई विभक्ति चिह्न अवश्य आता है परंतु तत्पुरुष समास के कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनके विग्रहों में विभक्ति चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता; संस्कृत में इस भेद को नञ तत्पुरुष कहा जाता है। जैसे:

समस्त-पदविग्रह
अनाचारन आचार
अनदेखान देखा हुआ
अन्यायन न्याय
अनभिज्ञन अभिज्ञ
नालायकनहीं लायक
अचलन चल
नास्तिकन आस्तिक
अनुचितन उचित

(3) कर्मधारय समास

  • इस समास में पूर्व पद तथा उत्तर पद के मध्य में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है।
  • पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रह
चंद्रमुखचंद्र जैसा मुखकमलनयनकमल के समान नयन
देहलतादेह रूपी लतामहादेवमहान देव
नीलकमलनीला कमलपीतांबरपीला अंबर (वस्त्र)
सज्जनसत् (अच्छा) जननरसिंहनरों में सिंह के समान

(4) द्विगु समास

यह कर्मधारय समास का उपभेद होता है। इस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्त पद किसी समुह को बोध होता है।

समस्त पदसमास-विग्रहसमस्त पदसमास-विग्रह
नवग्रहनौ ग्रहों का समूहदोपहरदो पहरों का समाहार
त्रिलोकतीन लोकों का समाहारचौमासाचार मासों का समूह
नवरात्रनौ रात्रियों का समूहशताब्दीसौ अब्दो (वर्षों) का समूह
अठन्नीआठ आनों का समूहत्रयम्बकेश्वरतीन लोकों का ईश्वर

(5) बहुव्रीहि समास

जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे:

समस्त पदसमास-विग्रह
दशाननदश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठनीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचनासुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबरपीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदरलंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्माबुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
श्वेतांबरश्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी

(6) द्वंद्व समास

इस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर योजक या समुच्चय बोधक शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे- सत्य-असत्य , भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा, माता-पिता

"और" का प्रयोग समान प्रकृति के पदों के मध्य तथा "या" का प्रयोग विपरीत प्रकृति के पदों के मध्य किया जाता है। उदाहरण: माता-पिता = माता और पिता (समान प्रकृति) गाय-भैंस = गाय और भैंस (समान प्रकृति) धर्माधर्म = धर्म या अधर्म (विपरीत प्रकृति) सुरासुर = सुर या असुर (विपरीत प्रकृति)


द्वंद्व समास के तीन भेद होते हैं- इतरेतर द्वंद्व, समाहार द्वंद्व, वैकल्पिक द्वंद्व

1. इतरेतर द्वन्द्व समास

इतरेतर द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है और प्रत्येक दो पदों के बीच में और शब्द का लोप पाया जाता है उसे इतरेतर द्वन्द्व समास कहते हैं।

उदाहरण :-

माता-पितामाता और पिता
तन-मनतन और मन
ज्ञान-विज्ञानज्ञान और विज्ञान
धनु-र्बाणधनुष और बाण
जल-वायुजल और वायु
लव-कुशलव और कुश
लोटा-डोरीलोटा और डोरी
तिर-सठतीन और साठ
सीता-रामसीता और राम
सुरा-सरसुर और असुर

2. वैकल्पिक द्वन्द्व समास

जिसमे समस्त पद में दो विरोधी शब्दों का प्रयोग हो और प्रत्येक दो पदों के बीच या अथवा में से किसी एक का लोप पाया जाए उसे वैकल्पिक द्वन्द्व समास कहते है।

दो-चारदो या चार
लाभा-लाभलाभ या अलाभ
सुरा-सुरसुर या असुर
भला-बुराभला या बुरा
धर्मा-धर्माधर्म या अधर्म
आजकलआज या कल
ऊँच नीचऊँच या नीच
जीवन मरणजीवन और मरण

3. समाहार द्वन्द्व समास

जिसमे दोनों पद प्रधान हो और दोनों ही पद बहुवचन में प्रयुक्त हो, उसे समाहार द्वन्द्व समास कहते है। इसके विग्रह के अंत में आदि शब्द का प्रयोग किया जाता हैं।

उदाहरण :-

फल-फूलफल फूल आदि
दाल-रोटीदाल रोटी आदि
कपड़ा-लत्ताकपड़ा लत्ता आदि
हाथ-पैरहाथ पैर आदि
साग-पातसाग पात आदि
पेड़-पौधेपेड़ पौधे आदि
धन दौलतधन दौलत आदि


कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर

कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है।

जैसे: नीलकंठ = नीला कंठ।

बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है।

जैसे: नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।


संधि और समास में अंतर

संधि में वर्णों का मेल होत है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे: देव + आलय = देवालय।

समास में दो पदों का मेल होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।

जैसे: विद्यालय = विद्या के लिए आलय।




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