कक्षा - 12 हरिवंश राय बच्चन ( आत्म परिचय )

                 काव्य भाग – आत्म-परिचय, एक गीत
                       कविता का प्रतिपादय एवं सार
                                आत्मपरिचय

प्रतिपादय- कवि का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है।
कवि अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है- उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उत्तर आई है कि दुनिया का तलबगार नहीं हूँ। बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ-जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है।
किसी असंभव आदर्श की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से कि जैसे दुनिया से इन्हें कोई वास्ता ही नहीं है। 
सार-कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। वह निरर्थक कल्पनाओं में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यह संसार कभी भी किसी की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाया है। कवि सुख-दुख, यश-अपयश, हानि-लाभ आदि द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में एक जैसा रहता है। यह संसार मिथ्या है, अत: यहाँ स्थायी वस्तु की कामना करना व्यर्थ है।
कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। संसार उसे कवि कहता है, परंतु वह स्वयं को नया दीवाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

                           आत्मपरिचय

मैं जग – जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ !
मैं स्नेह-सुरा का पान किया कस्ता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ;
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ !

शब्दार्थ- जग-जीवन -सांसारिक गतिविधि। झंकृत -तारों को बजाकर स्वर निकालना। सुरा -शराब। स्नेह -प्रेम। पान -पीना। ध्यान करना -परवाह करना। गाते -प्रशंसा करते।
व्याख्या- बच्चन जी कहते हैं कि मैं संसार में जीवन का भार उठाकर घूमता रहता हूँ। इसके बावजूद मेरा जीवन प्यार से भरा-पूरा है। जीवन की समस्याओं के बावजूद कवि के जीवन में प्यार है। उसका जीवन सितार की तरह है जिसे किसी ने छूकर झंकृत कर दिया है। फलस्वरूप उसका जीवन संगीत से भर उठा है। उसका जीवन इन्हीं तार रूपी साँसों के कारण चल रहा है। उसने स्नेह रूपी शराब पी रखी है अर्थात प्रेम किया है तथा बाँटा है। उसने कभी संसार की परवाह नहीं की। संसार के लोगों की प्रवृत्ति है कि वे उनको पूछते हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। कवि अपने मन की इच्छानुसार चलता है, अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है।
विशेष-
1. कवि ने निजी प्रेम को स्वीकार किया है।
2. संसार के स्वार्थी स्वभाव पर टिप्पणी की है।
3. ‘स्नेह-सुरा’ व ‘साँसों के तार’ में रूपक अलंकार है।
4. ‘जग-जीवन’, ‘स्नेह-सुरा’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. ‘किया करता हूँ’, ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति में गीत की मस्ती है।
प्रश्न-
(क) जग-जीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है?
उत्तर:- ‘जग-जीवन का भार लिए फिरने’ से कवि का आशय है- सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा-पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है।
(ख) ‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर:- ‘स्नेह-सुरा’ से आशय है -प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है।
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।
उत्तर:- ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते’ का आशय है -यह संसार उन लोगों की स्तुति(प्रशंसा) करता है जो संसार के अनुसार चलते हैं और उसका गुणगान करते है।
(घ) ‘साँसों के तार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा?
उत्तर:- ‘साँसों के तार’ से कवि का तात्पर्य है -उसके जीवन में भरा प्रेम रूपी तार, जिनके कारण उसका जीवन चल रहा है। मेरे विचार से उन्हें कवि की प्रेयसी ने झंकृत किया होगा।

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
            है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ !
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
           जग भव-सागर तरने की नाव बनाए,
मैं भव-मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

शब्दार्थ- उदगार- दिल के भाव। उपहार -भेंट। भाता -अच्छा लगता। स्वप्नों का संसार -कल्पनाओं की दुनिया। दहा -जलना। भव-सागर -संसार रूपी सागर। मौज -लहरों।
व्याख्या -कवि अपने मन की भावनाओं को दुनिया के सामने कहने की कोशिश करता है। उसे खुशी के जो उपहार मिले हैं, उन्हें वह साथ लिए फिरता है। उसे यह संसार अधूरा लगता है। इस कारण यह उसे पसंद नहीं है। वह अपनी कल्पना का संसार लिए फिरता है। उसे प्रेम से भरा संसार अच्छा लगता है। वह कहता है कि मैं अपने हृदय में आग जलाकर उसमें जलता हूँ अर्थात मैं प्रेम की जलन को स्वयं ही सहन करता हूँ। प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के जो सुख-दुख आते हैं, उनमें मस्त रहता हूँ। यह संसार आपदाओं का सागर है। लोग इसे पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। उसे संसार की कोई चिंता नहीं है।
विशेष-
1. कवि ने प्रेम की मस्ती को प्रमुखता दी है।
2. व्यक्तिवादी विचारधारा की प्रमुखता है।
3. ‘स्वप्नों का संसार’ में अनुप्रास तथा ‘भव-सागर’ और ‘भव मौजों’ में रूपक अलंकार है।
4. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
5. तत्सम शब्दावली की बहुलता है।
6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है।
प्रश्न-
(क) कवि के हृदय में कौन-सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यथित क्यों है?
उत्तर – कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है।
(ख) ‘निज उर के उद्गार व उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘निज उर के उद्गार’ का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है। ’निज उर के उपहार’ से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना चाहता है।
(ग) कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
उत्तर – कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उनके अनुसार संसार अधूरा है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है।
(घ) संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता हैं?
उत्तर – संसार में रहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसलिए मनुष्य को हँसते हुए जीना चाहिए।

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों’ में अवसाद लिए फिरता हूँ,
        जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं , हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ !
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं हैं, हाय, जहाँ पर दाना!
        फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं  सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !

शब्दार्थ- यौवन -जवानी। उन्माद -पागलपन। अवसाद -उदासी, खेद। यत्न -प्रयास। नादान -नासमझ, अनाड़ी। दाना -चतुर, ज्ञानी। मूढ़ -मूर्ख। जग -संसार। 

व्याख्या- कवि कहता है कि उसके मन पर जवानी का पागलपन सवार है। वह उसकी मस्ती में घूमता रहता है। इस दीवानेपन के कारण उसे अनेक दुख भी मिले हैं। वह इन दुखों को उठाए हुए घूमता है। कवि को जब किसी प्रिय की याद आ जाती है तो उसे बाहर से हँसा जाती है, परंतु उसका मन रो देता है अर्थात याद आने पर कवि-मन व्याकुल हो जाता है।
कवि कहता है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें सीख रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहे अनुसार चलना सीख रहा हूँ।
विशेष-
1. पहली चार पंक्तियों में कवि ने आत्माभिव्यक्ति की है तथा अंतिम चार में सांसारिक जीवन के विषय में बताया है।
2. ‘उन्मादों में अवसाद’ में विरोधाभास अलंकार है।
3. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति से गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है।
4. ‘कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
5. ‘नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना’ में सूक्ति जैसा प्रभाव है।
6. खड़ी बोली है।
प्रश्न-
(क) ‘यौवन का उन्माद’ का आशय है।
उत्तर:- कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है।
(ख) कवि की मनःस्थिति कैसी है?
उत्तर:- कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।
(ग) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं?
उत्तर:- कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने के लिए प्रयास करते हैं, परंतु वे कभी सफल नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।
(घ) कवि सीखे ज्ञान को क्यों भूला रहा है?
उत्तर:- कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं होती, जिससे वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके।

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
         जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
        हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ!

शब्दार्थ- नाता -संबंध। वैभव -समृद्ध। पग -पैर। रोदन -रोना। राग -प्रेम। आग -जोश। भूप -राजा। प्रासाद -महल। निछावर -कुर्बान। खंडहर -टूटा हुआ भवन। भाग -हिस्सा।
व्याख्या- कवि कहता है कि मुझमें और संसार-दोनों में कोई संबंध नहीं है। संसार के साथ मेरा टकराव चल रहा है। कवि अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता है। यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है, परंतु कवि हर कदम पर धरती को ठुकराया करता है। अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी के प्रतिकूल आचार-विचार रखता है। कवि कहता है कि वह अपने रोदन में भी प्रेम लिए फिरता है। उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई है अर्थात उसमें असंतोष झलकता है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, फिर भी उस पर राजाओं के महल न्योछावर होते हैं। ऐसे खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता है जिसे महल पर न्योछावर कर सके।
विशेष-
1. कवि ने अपनी अनुभूतियों का परिचय दिया है।
2. ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार है।
3. ‘रोदन में राग’ और ‘शीतल वाणी में आग’ में विरोधाभास अलंकार तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. ‘और’ की आवृत्ति में यमक अलंकार है।
5. ‘कहाँ का’ और ‘जग जिस पृथ्वी पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है तथा खड़ी बोली का प्रयोग है।
प्रश्न-
(क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं?
उत्तर- कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मर्जी से संसार बनाता व मिटाता है।
(ख) कवि और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति हैं?
उत्तर- कवि को सांसारिक आकर्षणों का मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करते हैं।
(ग) ‘शीतल वाणी में’ आग लिए फिरता हूँ’ -से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर सके।
(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं?
उत्तर- कवि के पास प्रेम महल के खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार के बड़े-बड़े राजा प्रेम के आवेग में राजगद्दी भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।


मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना,
मैं फूट पडा, तुम कहते, छंद बनाना;
          क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक क्या दीवान!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
         जिसको सुनकर जग झूम, झुके; लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

शब्दार्थ- फूट पड़ा- जोर से रोया। दीवाना- पागल। मादकता- मस्ती। नि:शेष- संपूर्ण।

व्याख्या -कवि कहता है कि प्रेम की पीड़ा के कारण उसका मन रोता है। अर्थात हृदय की व्यथा शब्द रूप में प्रकट हुई। उसके रोने को संसार गाना मान बैठता है। जब वेदना अधिक हो जाती है तो वह दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है। संसार इस प्रक्रिया को छंद बनाना कहती है। कवि प्रश्न करता है कि यह संसार मुझे कवि के रूप में अपनाने के लिए तैयार क्यों है? वह स्वयं को नया दीवाना कहता है जो हर स्थिति में मस्त रहता है। समाज उसे दीवाना क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार में घूमता रहता है। उसके जीवन में जो मस्ती शेष रह गई है, उसे लिए वह घूमता रहता है। इस मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम में झुक जाते हैं तथा आनंद से झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार में घूमता है जिसे लोग गीत समझने की भूल कर बैठते हैं।
विशेष-
1. कवि मस्त प्रकृति का व्यक्ति है। यह मस्ती उसके गीतों से फूट पड़ती है।
2. ‘कवि कहकर’ तथा ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार और ‘क्यों कवि . अपनाए’ में प्रश्न अलंकार है।
3. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
4. ‘मैं’ शैली के प्रयोग से कवि ने अपनी बात कही है।
5. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है।
6. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति गेयता में वृद्धि करती है।
7. तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।

(क) कवि की किस बात को संसार क्या समझता हैं?
उत्तर- कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है।
(ख) कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों?
(ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।
(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?
(ग) कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर दुनिया झूमती है।
(घ) कवि संसार को क्या संदेश देता हैं? संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद से लहराता है

कवि परिचय : हरिवंश राय बच्चन

जन्म: 27 नवंबर 1907, इलाहाबाद (प्रयागराज)
मृत्यु: 18 जनवरी 2003, मुंबई

मुख्य धारा: हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक और हालावादी दर्शन के प्रवर्तक।

प्रमुख रचनाएँ: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, क्या भूलूँ क्या याद करूँ (आत्मकथा)।
भाषा-शैली: इनकी भाषा सीधी-सादी, जीवंत और संवेदनशील है। इन्होंने फारसी के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग किया है।

पाठ का सारांश
इस पाठ में बच्चन जी की दो कविताएँ संकलित हैं:-
आत्मपरिचय: इस कविता में कवि अपने और संसार के संबंधों के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी मस्ती और प्रेम की दुनिया में खोए रहते हैं। वे संसार के साथ अपने विरोधाभासी (contradictory) संबंधों को उजागर करते हैं। जैसे - वे रोते हैं तो भी उसमें संगीत होता है, उनकी शीतल वाणी में भी आग छिपी है। कविता का मूल भाव है - दुनिया से मेरा संबंध प्रीति-कलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।
एक गीत (दिन जल्दी-जल्दी ढलता है): यह गीत 'निशा निमंत्रण' काव्य संग्रह से लिया गया है। इसमें कवि ने समय के बीतने के एहसास को बताया है। एक राहगीर (पथिक) अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए तेजी से चलता है क्योंकि उसे डर है कि रात न हो जाए। पक्षी भी अपने बच्चों की याद करके तेजी से पंख फड़फड़ाते हैं। लेकिन कवि के जीवन में कोई ऐसा नहीं है जो उनका इंतज़ार कर रहा हो, इसलिए यह सोचकर उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। यह गीत जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता है।

NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर 'मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' - विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर: इन दोनों पंक्तियों में विरोधाभास है, लेकिन इनका गहरा अर्थ है।
● 'जग-जीवन का भार लिए फिरना' का अर्थ है कि कवि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरी तरह निभाते हैं। वे संसार से अलग नहीं हैं।
● 'कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' का अर्थ है कि कवि सांसारिक बातों, व्यर्थ की आलोचनाओं और लोक-निंदा की परवाह नहीं करते। वे वही करते हैं जो उनका मन कहता है, जो उन्हें सही लगता है।
इस प्रकार, कवि जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मस्ती को बनाए रखते हैं।

प्रश्न 2: जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं - कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर: यहाँ 'दाना' का अर्थ है ज्ञानी और समझदार लोग, और 'नादान' का अर्थ है मूर्ख या सांसारिक मोह-माया में फँसे लोग। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि यह संसार ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के लोगों से मिलकर बना है। जहाँ कुछ लोग सत्य और ज्ञान को पहचानते हैं, वहीं अधिकतर लोग सांसारिक भोग-विलास और धन-संपत्ति को ही सब कुछ मानकर उसके पीछे भागते रहते हैं। कवि कहते हैं कि इतना सत्य जानने के बाद भी लोग नादानी करते हैं, तो मैं प्रेम में दीवाना बनकर नादान क्यों न रहूँ?

प्रश्न 3: 'मैं और, और जग और, कहाँ का नाता' - पंक्ति में 'और' शब्द की विशेषता बताइए।

उत्तर: इस पंक्ति में 'और' शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है और हर बार इसका अर्थ अलग है, जिससे पंक्ति में एक विशेष सौंदर्य उत्पन्न हुआ है।
● पहला 'और': 'मैं और' में 'और' का अर्थ है 'अलग' या 'भिन्न'। (मेरा स्वभाव अलग है)
● दूसरा 'और': 'जग और' में 'और' का अर्थ भी 'अलग' है। (संसार का स्वभाव अलग है)
● तीसरा 'और': 'और जग' के बीच योजक (conjunction) के रूप में प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है 'तथा'।
पूरा अर्थ है: मेरा स्वभाव अलग है, और इस संसार का स्वभाव अलग है, इसलिए हम दोनों में कोई संबंध कैसे हो सकता है।

प्रश्न 4: 'शीतल वाणी में आग' - के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: यह भी एक विरोधाभासी कथन है। 'शीतल वाणी' का अर्थ है कि कवि की भाषा और अभिव्यक्ति बहुत सहज, सरल और ठंडी है। लेकिन 'आग' का अर्थ है कि उन शब्दों में प्रेम की तीव्रता, विद्रोह का भाव और जोश भरा हुआ है। कवि अपनी शीतल वाणी के माध्यम से समाज की कुरीतियों और जड़ नियमों के प्रति अपने असंतोष और विद्रोह की आग को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 5: बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

उत्तर: बच्चे इस आशा में घोंसलों (नीड़ों) से झाँक रहे होंगे कि उनके माता-पिता (पक्षी) दिन ढलने पर उनके लिए भोजन लेकर लौट रहे होंगे। वे माता-पिता से मिलने वाले स्नेह, स्पर्श और भोजन की आतुरता में बाहर झाँकते हैं।

प्रश्न 6: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' - की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है:
1. समय की गति: यह पंक्ति बार-बार आकर यह बताती है कि समय किसी के लिए नहीं रुकता, वह तेजी से बीत रहा है।
2. लक्ष्य प्राप्ति की आतुरता: यह पंक्ति पथिक और पक्षियों को अपने लक्ष्य (घर) तक पहुँचने के लिए प्रेरित करती है।
3. कवि की निराशा: जब कवि यह सोचता है कि उसका कोई इंतज़ार नहीं कर रहा, तो यही पंक्ति उसे निराश करती है और उसके कदमों को धीमा कर देती है।
यह पंक्ति कविता के केंद्रीय भाव को गति और गहराई प्रदान करती है।

राजस्थान बोर्ड (RBSE) के विगत वर्षों के महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1: 'आत्मपरिचय' कविता के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर: हरिवंश राय बच्चन।
प्रश्न 2: कवि किसका पान किया करते हैं?
उत्तर: कवि स्नेह-सुरा (प्रेम रूपी शराब) का पान किया करते हैं।
प्रश्न 3: कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
उत्तर: कवि को संसार इसलिए अपूर्ण लगता है क्योंकि उसमें सच्चे प्रेम और भावुकता का अभाव है।
प्रश्न 4: चिड़िया के पंखों में चंचलता क्यों आ जाती है?
उत्तर: अपने बच्चों से शीघ्र मिलने की आतुरता के कारण चिड़िया के पंखों में चंचलता आ जाती है।
प्रश्न 5: कवि के पग शिथिल क्यों हो जाते हैं?
उत्तर: जब कवि को यह याद आता है कि घर पर कोई भी उनकी प्रतीक्षा करने वाला नहीं है, तो यह सोचकर उनके कदम शिथिल (धीमे) हो जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1: कवि का जीवन 'विरुद्धों का सामंजस्य' है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवि हरिवंश राय बच्चन का जीवन विरुद्धों (विरोधाभासों) का सामंजस्य है। वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी सांसारिकता से अलग रहते हैं। वे दुनिया के बीच रहकर भी अपनी मस्ती में जीते हैं। उनकी 'शीतल वाणी में आग' है और वे 'रोदन में राग' लिए फिरते हैं। इस प्रकार, वे सुख-दुःख, प्रेम-वैराग्य, मिलन-वियोग जैसे विरोधी भावों को एक साथ साधकर चलते हैं।

प्रश्न 2: 'मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि कवि अपने दुःख और पीड़ा को भी गीत या कविता का रूप दे देते हैं। उनके लिए उनका रोना भी एक संगीत की तरह है, जिसमें प्रेम की गहरी अनुभूति छिपी होती है। वे अपने व्यक्तिगत दुःख को अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं, जो दूसरों के लिए एक प्रेम-गीत बन जाता है।

प्रश्न 3: "मुझसे मिलने को कौन विकल?" - यह प्रश्न कवि के उर में क्या भरता है और क्यों?

उत्तर: यह प्रश्न कवि के हृदय में विह्वलता (व्याकुलता) और निराशा भर देता है। इससे उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कवि के जीवन में कोई ऐसा प्रिय व्यक्ति नहीं है जो घर पर उनसे मिलने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हो। जीवन में प्रेम और अपनेपन की यह कमी उन्हें शिथिल और उदास कर देती है।

सप्रसंग व्याख्या (4-5 अंक)

काव्यांश:
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!
उत्तर:
प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग-2' में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता 'आत्मपरिचय' से उद्धृत है। इसमें कवि अपने जीवन और संसार के साथ अपने संबंधों को व्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि मेरे ऊपर संसार की अनेक जिम्मेदारियों का बोझ है, जिन्हें मैं एक सामाजिक व्यक्ति होने के नाते निभा रहा हूँ। लेकिन इन बोझ और जिम्मेदारियों के बावजूद मेरे हृदय में सबके लिए प्रेम भरा हुआ है। मेरा जीवन प्रेम से संचालित होता है। कवि आगे कहते हैं कि उनके जीवन रूपी सितार के साँसों रूपी तारों को किसी प्रिय ने अपने प्रेम-स्पर्श से झंकृत कर दिया है, अर्थात् उनके जीवन में प्रेम का संगीत भर दिया है। वे उसी प्रेम की मधुर स्मृति और संगीत के सहारे अपना जीवन जी रहे हैं।
विशेष:
1. कवि ने संसार के साथ अपने विरोधाभासी संबंध को उजागर किया है।
2. 'जग-जीवन', 'साँसों के तार' में रूपक अलंकार है।
3. भाषा सरल, सहज और खड़ी बोली हिंदी है।
4. रचना में गेयता और संगीतात्मकता का गुण है।
5. कवि की आत्म-स्वीकृति का भाव प्रकट हुआ है।

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