विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

                            कक्षा - 12 हिंदी अनिवार्य 
                    पाठ - विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
प्रश्न 1 – नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (✓) का निशान लगाइए :
(1) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि- 
(क) इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है।
(ख) इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं।
(ग) इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है।
(घ) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
उत्तर – इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
(2) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है –
(क) विजुअल                   
(ख) नेट                  
(ग) बाइट                  
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – उपर्युक्त सभी।
(3) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो –
(क) जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो।
(ख) जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके।
(ग) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो।
(घ) जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो।
उत्तर – जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके।
प्रश्न 4– इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जिस तरह से हर विषय के पक्ष और विपक्ष होते हैं, उसी प्रकार इंटरनेट के भी दो पक्ष हैं। इंटरनेट पत्रकारिता से हमें सूचनाएँ तत्काल उपलब्ध हो जाती हैं परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औजार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी ज़रिया है। इसके साथ ही यह अत्यंत महँगा साधन भी है।
प्रश्न 5– श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर – श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम है – टी०वी०।
पक्ष में तर्क –
1. टी०वी० पर समाचार सुनाई देने के साथ-साथ दिखाई भी देते हैं, जिससे सजीवता आती है और यह दर्शकों को बाँधे रखता है।
2. यह साक्षर-निरक्षर दोनों ही तरह के दर्शकों के लिए उपयोगी होते हैं।
3. कम समय में अधिक व् विभन्न जगहों के समाचार दिखाए जा सकते हैं।
4. समाचारों को अलग-अलग तरह से रुचिकर बनाकर दिखाया जाता है।
विपक्ष में तर्क –
1. गरीब व्यक्ति टी०वी० नहीं खरीद सकता। 
2. दूर-दराज के स्थानों पर अभी इसकी पहुँच नहीं है।
3. समाचार सुनने के लिए समाचार के प्रसारण का इंतजार करना पड़ता है।
4. किसी समाचार पर सोच-विचार के लिए नहीं रुक सकते।
विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन पाठ पर आधारित अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर – 
प्रश्न 1 – प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर – जनसंचार माध्यमों में प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट प्रमुख है।
प्रश्न 2 – जनसंचार के माध्यमों (प्रिंट, टी.वी., रेडियो और इंटरनेट) में, समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में क्या अंतर है?
उत्तर – जनसंचार के माध्यमों में, समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में अंतर जानने के लिए कभी ध्यान से किसी शाम या रात को टी.वी. और रेडियो पर सिर्फ समाचार सुनिए और मौका मिले तो इंटरनेट पर जाकर उन्हीं समाचारों को फिर से पढ़िए। अगले दिन सुबह अखबार ध्यान से पढ़िए। इन सभी माध्यमों में पढ़े, सुने या देखे गए समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में आपको फर्क नज़र आएगा। सबसे सहज और आसानी से नज़र आने वाला अंतर तो यही दिखाई देता है कि जहाँ अखबार पढ़ने के लिए है, वहीं रेडियो सुनने के लिए और टी.वी. देखने के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने, तीनों की ही सुविधा है। जाहिर है कि अखबार छपे हुए शब्दों का माध्यम है जबकि रेडियो बोले हुए शब्दों का।
प्रश्न 3 – मुद्रित माध्यमों की विशेषताऐं लिखिए।
उत्तर – मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।
1. अगर आप अखबार या पत्रिका पढ़ रहे हों तो आप अपनी पसंद के अनुसार किसी भी पृष्ठ और उस पर प्रकाशित किसी भी समाचार या रिपोर्ट से पढ़ने की शुरुआत कर सकते हैं।
2. मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
3. मुद्रित माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है। इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल हैं।
4. मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ़ बातें लिख सकते हैं क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है।
प्रश्न 4 – डेडलाइन किसे कहते हैं?
उत्तर – अखबार 24 घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है। अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है, जिसे डेडलाइन कहते हैं।
प्रश्न 5 – मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का ध्यान क्यों रखना चाहिए?
उत्तर – मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का पूरा ध्यान रखना चाहिए। जैसे किसी अखबार या पत्रिका के संपादक ने अगर आपको 250 शब्दों में रिपोर्ट या फीचर लिखने को कहा है तो आपको उस शब्द सीमा का ध्यान रखना पडे़गा। इसकी वजह यह है कि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती। साथ ही उन्हें विभिन्न विषयों और मुद्दों पर सामग्री प्रकाशित करनी होती है। महत्त्व और जगह की उपलब्धता के अनुसार वे निश्चित करते हैं कि किसे कितनी जगह मिलेगी।
प्रश्न 6 – मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर – मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि वहीं चिपक जाएगी। उसे सुधारने के लिए अखबार या पत्रिका के अगले अंक का इंतजार करना पडे़गा। यही कारण है कि अखबार या पत्रिका में यथासंभव कोशिश की जाती है कि कोई गलती या अशुद्धि न छप जाए। इसके लिए अखबार/पत्रिकाओं में संपादक के साथ एक पूरी संपादकीय टीम होती है जिसकी मुख्य ज़िम्मेदारी प्रकाशन के लिए जा रही सामग्री से गलतियों और अशुद्धियों को हटाकर उसे प्रकाशन योग्य बनाना है।
प्रश्न 7 – मुद्रित माध्यमों की खामियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – मुद्रित माध्यमों की खामियाँ –
1. मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा के ज़रिये एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो। निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं। 
2. मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
3. मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को पाठकों की रुचियों और ज़रूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है। 
4. मुद्रित माध्यम रेडियो, टी.वी. या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होते हैं। 
5. मुद्रित माध्यमों के लेखकों और पत्राकारों को प्रकाशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।
6. मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती। 
7. मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि  वहीं चिपक जाएगी। 
प्रश्न 8 – मुद्रित माध्यमों में लेखन में किन बातें का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर – मुद्रित माध्यमों में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें –
1. लेखन में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शैली का ध्यान रखना ज़रूरी है। प्रचलित भाषा के प्रयोग पर ज़ोर रहता है।
2. समय-सीमा और आवंटित जगह के अनुशासन का पालन करना हर हाल में जरूरी है।
3. लेखन और प्रकाशन के बीच गलतियों और अशुद्धियों को ठीक करना ज़रूरी होता है।
4. लेखन में सहज प्रवाह के लिए तारतम्यता बनाए रखना ज़रूरी है
प्रश्न 9 – रेडियो, अखबार और टी.वी. में क्या अंतर है ?
उत्तर – रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि अखबार पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं। और अगर किसी समाचार/लेख या फीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में न आए तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ भी सकता है। लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतजार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है। रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होता है। रेडियो की तरह टेलीविज़न भी एकरेखीय माध्यम है लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों तसवीरों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। टी.वी. में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं। लेकिन रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है। वैसे तो तीनो ही माध्यमों- प्रिंट, रेडियो और टी.वी. की अपनी-अपनी चुनौतियाँ हैं लेकिन संभवतः रेडियो प्रसारणकर्ताओं के लिए अपने श्रोताओ को बाँधकर रखने की चुनौती सबसे कठिन है।
प्रश्न 10 – उलटा पिरामिड-शैली क्या है?
उत्तर – उलटा पिरामिड-शैली में समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना / विचार / समस्या का ब्योरा कालानुक्रम के बजाए सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह कि इस शैली में, कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है। उलटा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता। उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है-इंट्रो, बॉडी और समापन। समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में मुखड़ा भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्त्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहम हिस्सा होता है। इसके बाद बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है। हालाँकि इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यहाँ तक कि प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं, अगर ज़रूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ को काटकर हटाया भी जा सकता है और उस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 11 – रेडियो के लिए समाचार लेखन में अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी क्यों रखनी चाहिए?
उत्तर – रेडियो के लिए समाचार लेखन में अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए। जैसे-एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए। लेकिन 2837550 लिखने के बजाय अठ्ठाइस लाख सैंतीस हजार पाँच सौ पचास लिखा जाना चाहिए अन्यथा वाचक/ वाचिका को पढ़ने में बहुत मुश्किल होगी। इसी तरह 2837550 रुपए को रेडियो में लगभग अट्टाइस लाख रुपए लिखना श्रोताओं को समझाने के लिहाज़ से बेहतर है। इस तरह की वित्तीय संख्याओं को उनके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं। जैसे खेलों के स्कोर को उसी तरह लिखना चाहिए। सचिन तेंदुलकर ने अगर 98 रन बनाए हैं तो उसे लगभग सौ रन नहीं लिख सकते। रेडियो समाचार कभी भी संख्या से नहीं शुरू होना चाहिए। इसी तरह तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी न कि अगस्त 15, 1985 ।
प्रश्न 12 – रेडियो के लिए समाचार लेखन-बुनियादी बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर – रेडियो के लिए समाचार कॉपी तैयार करते हुए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है –
1. साफ-सुथरी और टाइप्ड कॉपी होनी चाहिए। 
2. प्रसारण के लिए तैयार की जा रही समाचार कॉपी को कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए। 
3. कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोड़ा जाना चाहिए। 
4. एक लाइन में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए। 
5. पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए और पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। 
6. समाचार कॉपी में ऐसे जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर (एब्रीवियेशंस), अंक आदि नहीं लिखने चाहिए जिन्हें पढ़ने में ज़बान लड़खड़ाने लगे। 
7. अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए। 
8. अखबारों में % और $ जैसे संकेत चिह्नों से काम चल जाता है लेकिन रेडियो में यह पूरी तरह वर्जित है यानी प्रतिशत और डॉलर लिखा जाना चाहिए। 
9. तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी न कि अगस्त 15, 1985 ।
10. संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल में काफी सावधानी बरतनी चाहिए। 
प्रश्न 13 – टी.वी. खबरों के विभिन्न चरण कौन से हैं?
उत्तर – किसी भी टी.वी. चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी.वी. में भी यह सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं –
1. फ़्लैश  या ब्रेकिंग न्यूज़ 
2. ड्राई एंकर
3. फोन-इन
4. एंकर-विजुअल
5. एंकर-बाइट
6. लाइव
7. एंकर-पैकेज
प्रश्न 14 – फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ क्या है?
उत्तर – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम से कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।
प्रश्न 15 – ड्राई एंकर क्या है?
उत्तर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते एंकर, दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।
प्रश्न 16 – फोन-इन में क्या होता है?
उत्तर – एंकर रिपोर्टर से फोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज्यादा से ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, वह दर्शकों को बताता है।
प्रश्न 17 – एंकर-विजुअल में क्या होता है?
उत्तर – जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
प्रश्न 18 – एंकर-बाइट क्या है?
उत्तर – बाइट यानी कथन। टेलीविज़न पत्रकारिता में बाइट का काफी महत्त्व है। टेलीविज़न में किसी भी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।
प्रश्न 19 – रेडियो और टी.वी. की सरल, संप्रेषणीय और प्रभावी भाषा को जाँचने का क्या तरीका है?
उत्तर – रेडियो और टी.वी. में आप कितनी सरल, संप्रेषणीय और प्रभावी भाषा लिख रहे हैं, यह जाँचने का एक बेहतर तरीका यह है कि आप समाचार लिखने के बाद उसे बोल-बोलकर पढें। इस प्रक्रिया में आपको स्वयं यह अहसास हो जाएगा कि भाषा में कितना प्रवाह है, उसे पढ़ने में समाचार वाचक / वाचिका या एंकर को कोई दिक्कत तो नहीं होगी, या उसे सभी लोग आसानी से समझ तो जाएँगे।
प्रश्न 20 – रेडियो और टी.वी. समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर कैसी सावधानी बरतनी पड़ती है?
उत्तर – रेडियो और टी.वी. समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।
प्रश्न 21 – रेडियो और टेलीविशन समाचार की भाषा और शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर – भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी.वी. का उद्देश्य है। लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
1. आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी.वी. समाचार में भी करें। 
2. सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। 
3. ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। 
4. द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। 
5. तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। – – – साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। 
6. मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं। 
7. वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहने का धीरज हो। 
8. वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो कि कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे।
9. शब्द प्रचलित हों और उनका उच्चारण सहजता से किया जा सके।
प्रश्न 22 – इंटरनेट पर पत्रकारिता के कौन से रूप हैं?
उत्तर – इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के ज़रिये भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है।
प्रश्न 23 – इंटरनेट पत्रकारिता से आपका क्या आशय है?
उत्तर – इंटरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर यदि हम, किसी भी रूप में खबरों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचर, झलकियों, डायरियों के ज़रिये अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दर्ज करने का काम करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। आज तमाम प्रमुख अखबार पूरे के पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई प्रकाशन समूहों ने और कई निजी कंपनियों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है। चूँकि यह एक अलग माध्यम है, इसलिए इस पर पत्रकारिता का तरीका भी थोड़ा-सा अलग है। 

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) 
प्रश्न 1 – प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-कौन से हैं?
(क) प्रिंट                              (ख) रेडियो और इंटरनेट
(ग) टी.वी                             (घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 2 – जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना कौन सा है?
(क) प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम               (ख) टी.वी.माध्यम
(ग) रेडियो और इंटरनेट                      (घ) समाचार माध्यम
उत्तर – (क) प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम
प्रश्न 3 – भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला?
(क) सन् 1555 में गोवा में                  (ख) सन् 1546 में गोवा में
(ग) सन् 1556 में गोवा में                  (घ) सन् 1456 में गोवा में
उत्तर – (ग) सन् 1556 में गोवा में
प्रश्न 4 – भारत में पहला छापाखाना मिशनरियों ने क्यों खोला था?
(क) पुस्तकें छापने के लिए                                   
(ख) धर्म प्रचार के लिए
(ग) धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए                  
(घ) शैक्षणिक साक्षरता बढ़ाने के लिए
उत्तर – (ग) धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए
प्रश्न 5 – टेलीविज़न में किसका महत्त्व सर्वाधिक होता है?
(क) शब्दों का                                 (ख) ध्वनियों का
(ग) दृश्यों तसवीरों का                      (घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) दृश्यों तसवीरों का
प्रश्न 6 – उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को कितने हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है?
(क) दो                        (ख) चार                    
(ग) छः                        (घ) तीन
उत्तर – (घ) तीन
प्रश्न 7 – खबर का सबसे अहम हिस्सा क्या होता है?
(क) इंट्रो                     (ख) समापन               
(ग) बॉडी                    (घ) भाषा
उत्तर – (क) इंट्रो
प्रश्न 8 – जो अखबार प्रिंटर रूप में उपलब्ध ना होकर केवल इंटरनेट पर उपलब्ध है उसका क्या नाम है?
(क) प्रसाक्षी                (ख) प्रभास                 
(ग) प्रभासाक्षी             (घ) प्रभाक्षी
उत्तर – (ग) प्रभासाक्षी
प्रश्न 9 – टीवी जनसंचार का कैसा माध्यम है?
(क) श्रव्य माध्यम                           (ख) दृश्य एवं श्रव्य माध्यम
(ग) दृश्य माध्यम                            (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) दृश्य एवं श्रव्य माध्यम
प्रश्न 10 – रेडियो जनसंचार का कैसा माध्यम है?
(क) श्रव्य माध्यम                          (ख) दृश्य एवं श्रव्य माध्यम
(ग) दृश्य माध्यम                           (घ) केवल (ख)
उत्तर – (क) श्रव्य माध्यम
प्रश्न 11 – इंटरनेट जनसंचार को किस नाम से जाना जाता है?
(क) इंटरनेट पत्रकारिता                                    
(ख) ऑनलाइन पत्रकारिता
(ग) साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता             
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 12 – भारत में इंटरनेट का कौन सा दौर चल रहा है?
(क) दूसरा दौर              (ख) पहला दौर              
(ग) तीसरा दौर             (घ) चौथा दौर
उत्तर – (क) दूसरा दौर
प्रश्न 13 – भारत में इंटरनेट का दूसरा दौर कब से शुरू माना जाता है?
(क) 1993           (ख) 2023           
(ग) 2003            (घ) 2013
उत्तर – (ग) 2003
प्रश्न 14 – सर्वाधिक खर्चीला जनसंचार माध्यम कौन-सा है?
(क) रेडियो                 (ख) टेलीविज़न          
(ग) समाचार पत्र          (घ) इंटरनेट
उत्तर – (घ) इंटरनेट
प्रश्न 15 – मुद्रण का आरंभ किस देश में हुआ?
(क) भारत          (ख) जापान           (ग) चीन            (घ) भूटान
उत्तर – (ग) चीन
प्रश्न 16 – समाचार लेखन की प्रभावशाली शैली कौन सी है?
(क) उल्टा पिरामिड शैली         (ख) वर्णनात्मक शैली
(ग) पिरामिड शैली                 (घ) विवेचनात्मक शैली
उत्तर – (क) उल्टा पिरामिड शैली
प्रश्न 17 – आधुनिक युग में इंटरनेट पत्रकारिता का कौन-सा दौर चल रहा है?
(क) प्रथम       (ख) तृतीय          (ग) चतुर्थ       (घ) द्वितीय
उत्तर – (ख) तृतीय
प्रश्न 18 – समाचार पत्र को प्रकाशित करने के लिए आखिरी समय सीमा को क्या कहा जाता है?
(क) डैड लाइन          (ख) ब्लैक लाइन          
(ग) रैड लाइन           (घ) ब्लू लाइन
उत्तर – (क) डैड लाइन
प्रश्न 19 – प्रिंट मीडिया के लाभ क्या हैं?
(क) प्रिंट मीडिया को धीरे-धीरे, दुबारा या मजी के अनुसार पढ़ा जा सकता है
(ख) किसी भी पृष्ठ या समाचार को पहले या बाद में पढ़ा जा सकता है
(ग) इन्हें सुरक्षित रखकर संदर्भ की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 20 – अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय क्यों है?
(क) शब्दों के स्थायित्व के कारण
(ख) इसे अपनी इच्छानुसार कहीं भी, कभी भी पढ़ा जा सकता है
(ग) कठिन व् गूढ़ शब्दों व् वाक्यांशों को समझने का समय मिल जाता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी

कक्षा - 12 पाठ -6 बादल राग

                   पाठ - 6 बादल राग


व्याख्या एवं अर्थग्रहण 

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या 

1. 

तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुःख की छाया-
जगके दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी                                                        
भरी आकांक्षाओं से,                                                   
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर।                             
उर में  पृथ्वी के, आशाओं से                                
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,                                      
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल! (पृष्ठ-41)

 __________________________________________

शब्दार्थ- तिरती-तैरती या विचरण करती। समीर-सागर-वायुरूपी समुद्र। अस्थिर- क्षणिक, चंचल। दग्ध-जला हुआ। निर्दय- बेदर्द। विप्लव- विनाश, क्रांति, अशांति। प्लावित- बाढ़ से ग्रस्त, बहा दिया गया। रण-तरी- युद्ध की नौका। माया- खेल। आकांक्षा-कामना। भेरी- नगाड़ा। सजग- जागरूक। सुप्त- सोया हुआ। अंकुर- बीज से निकला नन्हा पौधा। उर- हृदय। ताकना- अपेक्षा से एकटक देखना। नवजीवन-नया जीवन
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’  के छठे खण्ड से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसमें कवि ने बादल को विप्लव व क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया है।
व्याख्या- कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांतिदूत रूपी बादल! तुम आकाश में ऐसे मंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर कोई नौका तैर रही हो। यह उसी प्रकार है जैसे अस्थिर सुख पर दुख की छाया मंडराती रहती है। सुख हवा के समान चंचल है तथा अस्थायी है। बादल संसार के जले हुए हृदय पर निर्दयी प्रलयरूपी माया के रूप में हमेशा स्थित रहते हैं। बादलों की युद्धरूपी नौका में आम आदमी की इच्छाएँ भरी हुई रहती हैं। कवि कहता है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात कमजोर व निष्क्रिय व्यक्ति भी संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं। हे विप्लव के बादल! ये अंकुर नए जीवन की आशा में सिर उठाकर तुझे ताक रहे हैं अर्थात शोषितों के मन में भी अपने उद्धार की आशाएँ फूट पड़ती हैं।
विशेष-

(i) बादल को क्रांतिदूत के रूप में चित्रित किया गया है।
(ii) प्रगतिवादी विचारधारा का प्रभाव है।
(iii) तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
(iv) काव्य की रचना मुक्त छंद में है।                        (v) ‘समीर-सागर’, ‘दुख की छाया’ आदि में रूपक, ‘सजग सुप्त’ में अनुप्रास तथा काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है।
(vi) वीर रस का प्रयोग है। 


कक्षा 12 सहर्ष स्वीकारा है

                       कक्षा - 12 पाठ - 5
                         सहर्ष स्वीकारा है 
प्रतिपादय- मुक्तिबोध की कविताएँ आमतौर पर लंबी होती हैं। इन्होंने जो भी छोटी कविताएँ लिखी हैं उनमें एक है ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ जो ‘भूरी-भूरी खाक-धूल‘ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है-‘स्वीकारना’ और दूसरा होता है-‘सहर्ष स्वीकारना’ यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली, कविता प्रेरणा के उस उत्स तक भी हमको ले जाती है। उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता के इसी ‘सहजता’ के चलते उसको स्वीकार किया था-कुछ इस तरह स्वीकार किया था कि आज तक सामने नहीं भी है तो भी आस-पास उसके होने का एहसास है-
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

सार- कवि कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी है, वह मुझे सहर्ष स्वीकार है। मुझे जो कुछ भी मिला है, वह तुम्हारा दिया हुआ है तथा तुम्हें प्यारा है। मेरी गर्वीली गरीबी, विचार-वैभव, गंभीर अनुभव, दृढ़ता, भावनाएँ आदि सब पर तुम्हारा प्रभाव है। तुम्हारे साथ मेरा न जाने कौन-सा नाता है कि मैं जितनी भी भावनाएँ बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, वे भावनाएँ उतनी ही अधिक उमड़ती रहती हैं। तुम्हारा चेहरा मेरी ऊपरी धरती पर चाँद के समान अपनी कांति बिखेरता रहता है। कवि कहता है कि “मैं तुम्हारे प्रभाव से दूर जाना चाहता हूँ क्योंकि मैं भीतर से दुर्बल पड़ने लगा हूँ। तुम्हीं मुझे दंड दो ताकि मैं दक्षिण ध्रुव की अंधकारमयी अमावस्या की रात्रि के अँधेरों में लुप्त हो जाऊँ। मैं तुम्हारे उजालेपन को अधिक सहन नहीं कर पा रहा हूँ। तुम्हारी ममता की कोमलता भीतर से चुभने-सी लगी है। मेरी आत्मा कमजोर पड़ने लगी है।” वह स्वयं को पाताली अँधेरों की गुफाओं में लापता होने की बात कहता है, किंतु वहाँ भी उसे प्रियतम का सहारा है।

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर  व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

जिंदगी में जो कुछ हैं, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत हैं अपलक हैं-
संवेदन तुम्हारा हैं!!

शब्दार्थ – सहर्ष- खुशी के साथ। स्वीकारा- मन से माना। गरबीली– स्वाभिमानी। गंभीर– गहरा। अनुभव– व्यावहारिक ज्ञान। विचार-वैभव– भरे-पूरे विचार। दृढ़ता– मजबूती। सरिता– नदी। भीतर की सरिता – भावनाओं की नदी। अभिनव– नया। मौलिक– वास्तविक। जाग्रत– जागा हुआ। अपलक–निरंतर। संवेदन– अनुभूति।

व्याख्या – कवि कहता है कि मेरी जिंदगी में जो कुछ है, जैसा भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी-ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है।
विशेष-
(i) कवि अपनी हर उपलब्धि का श्रेय उसको (माँ या प्रिया) देता है।
(ii) संबोधन शैली है।
(iii) ‘मौलिक है’ की आवृत्ति प्रभावी बन पड़ी है।
(iv) ‘विचार-वैभव’ और ‘भीतर की सरिता’ में रूपक अलंकार तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(v) ‘सहर्ष स्वीकारा’, ‘गरबीली गरीबी’, ‘विचार-वैभव’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(vi) खड़ी बोली है।
(vi) काव्य की रचना मुक्तक छंद में है, जिसमें ‘गरबीली’, ‘गंभीर’ आदि विशेषणों का सुंदर प्रयोग है।
प्रश्न
(क) कवि जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार क्यों करता हैं?
उत्तर- कवि को अपने जीवन की हर उपलब्धि व स्थिति इसलिए सहर्ष स्वीकार है क्योंकि यह सब कुछ उसकी माँ या प्रेयसी को प्रिय लगता है; क्योंकि उसे कवि की हर उपलब्धि पसंद है।
(ख) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण का औचित्य और सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण है-गरबीली। इसका औचित्य यह है कि कवि इस दशा में भी अपना स्वाभिमान बनाए हुए है। वह गरीबी को बोझ न मानकर उस स्थिति में भी प्रसन्नता महसूस कर रहा है।
(ग) कवि किन्हें नवीन और मौलिक मानता है तथा क्यों?
उत्तर- कवि स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, वैचारिक चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंत:करण की भावनाओं को मौलिक मानता है। इसका कारण यह है कि ये सब उसके यथार्थ के प्रतिफल हैं और इन पर किसी का प्रभाव नहीं है।
(घ) ‘जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है’—इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है’-कथन का आशय यह है कि कवि के पास जो कुछ उपलब्धियाँ हैं वह उसे (अभीष्ट महिला) को प्रिय हैं। इन उपलब्धियों में वह अपनी प्रियतता (माँ या प्रिया) का समर्थन महसूस करता है।

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! 

शब्दार्थ -रिश्ता– रक्त संबंध। नाता– संबंध। उँड़ेलना- बाहर निकालना। सोता–झरना।

व्याख्या- कवि कहता है कि तुम्हारे साथ न जाने कौन-सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाये हुए तुम्हारे स्नेह रूपी जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह फिर-फिर चारों ओर से सिमटकर चला आता है और मेरे हृदय में भर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है। वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और उधर तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। कवि का आंतरिक व बाहय जगत-दोनों उसी स्नेह से युक्त स्वरूप से संचालित होते हैं।
विशेष-
(i) कवि अपने प्रिय के स्नेह से पूर्णत: आच्छादित है।
(ii) ‘दिल में क्या झरना है’ में प्रश्न अलंकार है।
(iii) ‘भर-भर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है,’जितना भी उँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है’ में विरोधाभास अलंकार है, ‘मीठे पानी का सोता है’ में रूपक अलंकार है, प्रिय के मुख की चाँद के साथ समानता के कारण उपमा अलंकार है।
(iv) मुक्तक छंद है।
(v) खड़ी बोली युक्त भाषा में लाक्षणिकता है।
प्रश्न
(क) कवि अपने उस प्रिय संबंधी के साथ अपने संबंध कैसे बताता हैं?
उत्तर- कवि का अपने उस प्रिय के साथ गहरा संबंध है। उसके स्नेह से वह अंदर व बाहर से पूर्णत: आच्छादित है और उसका स्नेह उसे भिगोता रहता है।
(ख) कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है तथा क्यों?
उत्तर- कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम बाहर उँड़ेलता है, उतना ही यह फिर भर जाता है।
(ग) कवि प्रिय को अपने जीवन में किस प्रकार अनुभव करता है?
उत्तर- कवि प्रिय को अपने जीवन में इस प्रकार अनुभव करता है जैसे धरती पर सदा चाँद मुस्कराता रहता है। कवि के जीवन पर सदा उसके प्रिय का मुस्कराता हुआ चेहरा जगमगाता रहता है।

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।                                                
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिरती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवित व्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !           
शब्दार्थ- दंड– सजा। दक्षिण ध्रुवी अंधकार- दक्षिण ध्रुव पर छाने वाला गहरा अँधेरा। अमावस्या- चंद्रमाविहीन काली रात। अंतर- हृदय, अंत:करण। परिवेष्टित- चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित- छाया हुआ, ढका हुआ। रमणीय- मनोरम। उजेला- प्रकाश। ममता- अपनापन, स्नेह। मँडराती- छाई हुई। पिराती- दर्द करना। अक्षम- अशक्त। भवितव्यता- भविष्य की आशंका। बहलाती- मन को प्रसन्न करती। सहलाती- दर्द को कम करती हुई। आत्मीयता- अपनापन।

व्याख्या- कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है। वह उस अंधकार को अपने शरीर, हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। यह उजाला अब उसके लिए असहनीय हो गया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव उसके भीतर मँडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण उसकी आत्मा बहुत कमजोर और असमर्थ हो गई है। उसे भविष्य में होने वाली अनहोनी से डर लगने लगा है। उसे भीतर-ही-भीतर यह डर लगने लगा है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है।
विशेष-
(i) कवि अत्यधिक मोह से अलग होना चाहता है।
(ii) संबोधन शैली है।
(iii) खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है, जिसमें तत्सम शब्दों की बहुलता है।
(iv) अंधकार-अमावस्या निराशा के प्रतीक हैं।
(v) ‘ममता के बादल’, ‘दक्षिण ध्रुव अंधकार-अमावस्या’ में रूपक अलंकार,’छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार, तथा ‘बहलाती-सहलाती’ में स्वर मैत्री अलंकार है।
(vi) कोमलता व आत्मीयता का मानवीकरण किया गया है।
(vii) ‘सहा नहीं जाता है’ की पुनरुक्ति से दर्द की गहराई का पता चलता है।
प्रश्न
(क) कवि क्या दंड चाहता हैं और क्यों ?
उत्तर- कवि अपनी प्रियतमा को भूलने का दंड चाहता है क्योंकि उसके अत्यधिक स्नेह के कारण उसकी आत्मा कमजोर हो गई है। उसका अपराधबोध से दबा मन यह प्रेम सहन नहीं कर पा रहा है। उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।
(ख) कवि अपने जीवन में क्या चाहता है ?
उत्तर- कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वस्तुत: वह अपने प्रिय को भूलना चाहता है तथा उसके विस्मरण को शरीर, मुख और हृदय में बसाकर उसमें डूब जाना चाहता है।
(ग)  कवि को क्या सहन नहीं होता?
उत्तर- कवि की प्रियतमा के स्नेह का उजाला अत्यंत रमणीय है। कवि का व्यक्तित्व चारों ओर से उसके स्नेह से घिर गया है। इस अद्भुत, निश्छल और उज्ज्वल प्रेम के प्रकाश को उसका मन सहन नहीं कर पा रहा है।
(घ)  कवि की आत्मा कैसे हो गई है तथा क्यों ?
उत्तर- कवि की आत्मा अत्यंत कमजोर हो गई है क्योंकि वह अपनी प्रियतमा के अत्यधिक स्नेह के कारण पराश्रित हो गया है। यह स्नेह उसके मन को अंदर-ही-अंदर पीड़ित कर रहा है। दुख से छटपटाता किसी अनहोनी की कल्पना मात्र से ही उसका मन काँप उठता है।

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता हैं, होता-सा संभव हैं
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकार है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं।  

शब्दार्थ–पाताली अँधेरे- धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध। गुहा- गुफा। विवर- बिल। लापता- गायब। कारण- मूल प्रेरणा। घेरा- फैलाव। वैभव-समृद्ध।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है। वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगों में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपने प्रिय का ही सहारा है। उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण हैं। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित हैं। कवि ने हर सुख-दुख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं।
विशेष-
(i) कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रियतमा के योगदान को स्वीकार किया है।
(ii) ‘पाताली अँधेरे’ व ‘धुएँ के बादल’ आदि उपमान विस्मृति के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
(iii) ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार है।
(iv) ‘लापता कि . सहारा है!’ में विरोधाभास अलंकार है।
(v) काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग है।
(vi) मुक्तक छंद है।
प्रश्न
(क) कवि दड पाने की इच्छा क्यों रखता हैं?
उत्तर- कवि अपनी प्रियतमा के बिना अकेला रहना सीखना चाहता है। वह गुमनामी के अँधेरे में खोना चाहता है। प्रिया के अत्यधिक स्नेह ने कवि को भीतर से कमजोर बना दिया है। कवि स्वयं को अपनी प्रियतमा का दोषी मानता है, अत: वह दंड पाना चाहता है।
(ख) कवि दंड-स्वरूप कहाँ जाना चाहता हैं और क्यों?
उत्तर- कवि दंड स्वरूप गहन अंधकार वाली गुफाओं, सुरंगों या धुएँ के बादलों में छिप जाना चाहता है। इससे वह अपनी प्रियतमा से दूर रह पाएगा और अकेला रहना सीख सकेगा।
(ग) प्रियतमा के बारे में कवि क्या अनुभव करता है?
उत्तर- कवि को अपनी प्रियतमा के बारे में यह अनुभव है कि उसके जीवन की हर गतिविधि पर उसका प्रभाव है। उसके जीवन में जो कुछ घटित होने वाला है, उन सब पर उसकी प्रियतमा की अदृश्य छाया है।
(घ) कवि को जीवन की हर दशा सहर्ष क्यों स्वीकार है?
उत्तर- कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, सफलताएँ-असफलताएँ सभी कुछ खुशी-खुशी अपनाया है क्योंकि ये उसकी प्रियतमा को अच्छे लगते हैं और उन्हें अस्वीकार करना कवि के लिए असंभव है।



कक्षा 12 कैमरे में बंद अपाहिज

                         कक्षा - 12 पाठ - 4 
                        कैमरे में बंद अपाहिज
प्रतिपादय-'कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गये हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ दूर-संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीड़ा को दर्शक वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए। आज विडंबना यह है कि जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियो के भीतर की दुनिया को समाज के सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द, यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते हैं।
सार-इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं को शक्तिशाली बताते हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता है। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके। इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ वाक्य से उसके व्यापार की प्रोल खुल जाती है।

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर  व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे 
एक बंद कमरे में  
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या हैं
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा।

शब्दार्थ-  समर्थ- सक्षम। शक्तिवान- ताकतवर। दुबल- कमजोर। बंद कमरे में- टी.वी. स्टूडियो में। अपाहिज -अपंग, विकलांग। दुख -कष्ट।

व्याख्या-कवि मीडिया के लोगों की मानसिकता का वर्णन करता है। मीडिया के लोग स्वयं को समर्थ व शक्तिशाली मानते हैं। वे ही दूरदर्शन पर बोलते हैं। अब वे एक बंद कमरे अर्थात स्टूडियो में एक कमजोर व्यक्ति को बुलाएँगे तथा उससे प्रश्न पुछेंगे। क्या आप अपाहिज हैं? यदि हैं तो आप क्यों अपाहिज हैं? क्या आपका अपाहिजपन आपको दुख देता है? ये प्रश्न इतने बेतुके हैं कि अपाहिज इनका उत्तर नहीं दे पाएगा, जिसकी वजह से वह चुप रहेगा। इस बीच प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को निर्देश देता है कि इसको (अपाहिज को) स्क्रीन पर बड़ा-बड़ा दिखाओ। फिर उससे प्रश्न पूछा जाएगा कि आपको कष्ट क्या है? अपने दुख को जल्दी बताइए। अपाहिज इन प्रश्नों का उत्तर नहीं देगा क्योंकि ये प्रश्न उसका मजाक उड़ाते हैं।
विशेष
1. मीडिया की मानसिकता पर करारा व्यंग्य है।
2. काव्यांश में नाटकीयता है।
3. भाषा सहज व सरल है।
4. व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न
(क) ‘हम दूरदर्शन पर बोलेंगे’ में आए ‘हम’ शब्द से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर- दूरदर्शन पर ‘हम’ बोलेगा कि हम शक्तिशाली हैं तथा अब हम किसी कमजोर का साक्षात्कार लेंगे। यहाँ’हम’ समाज का ताकतवर मीडिया है।
(ख) प्रश्न पूछने वाला अपने उद्देश्य में कितना सफल हो पाता हैं और क्यों?
उत्तर- अपाहिज से पूछे गए प्रश्न बेतुके व निरर्थक हैं। ये अपाहिज के वजूद को झकझोरते हैं तथा उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाते हैं। फलस्वरूप वह चुप हो जाता है। इस प्रकार प्रश्न पूछने वाला अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता। उसकी असफलता का कारण यह है कि उसे अपंग व्यक्ति की व्यथा से कोई वास्ता नहीं है। वह तो अपने कार्यक्रम की लोकप्रियता बढ़ाना चाहता है।
(ग) प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को क्या निर्देश देता है और क्यों?
उत्तर- प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को अपंग की तस्वीर बड़ी करके दिखाने के लिए कहता है ताकि आम जनता की सहानुभूति उस व्यक्ति के साथ हो जाए और कार्यक्रम लोकप्रिय हो सके।

सोचिए
बताइए 
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
 कैसा
यानी कैसा लगता है 
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
( यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा )

शब्दार्थ- रोचक- दिलचस्प। वास्ते- के लिए। इंतज़ार- प्रतीक्षा।
व्याख्या-इस काव्यांश में कवि कहता है कि मीडिया के लोग अपाहिज से बेतुके सवाल करते हैं। वे अपाहिज से पूछते हैं कि-अपाहिज होकर आपको कैसा लगता है? यह बात सोचकर बताइए। यदि वह नहीं बता पाता तो वे स्वयं ही उत्तर देने की कोशिश करते हैं। वे इशारे करके बताते हैं कि क्या उन्हें ऐसा महसूस होता है। थोड़ा सोचकर और कोशिश करके बताइए। यदि आप इस समय नहीं बता पाएँगे तो सुनहरा अवसर खो देंगे। अपाहिज के पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता कि वह अपनी पीड़ा समाज के सामने रख सके। मीडिया वाले कहते हैं कि हमारा लक्ष्य अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है और इसके लिए हम ऐसे प्रश्न पूछेगे कि वह रोने लगेगा। वे समाज पर भी कटाक्ष करते हैं कि वे भी उसके रोने का इंतजार करते हैं। वह यह प्रश्न दर्शकों से नहीं पूछेगा।

विशेष-
1. कवि ने क्षीण होती मानवीय संवेदना का चित्रण किया है।
2. दूरदर्शन के कार्यक्रम निर्माताओं पर करारा व्यंग्य है।
3. काव्य-रचना में नाटकीयता तथा व्यंग्य है।
4. सरल एवं भावानुकूल खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
5. अनुप्रास व प्रश्न अलंकार हैं।
6. मुक्तक छंद है।

प्रश्न
(क) कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की किस मानसिकता को उजागर किया हैं?
उत्तर- कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की व्यावसायिकता पर करारा व्यंग्य किया है। वे अपाहिज के कष्ट को कम करने की बजाय उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वे क्रूरता की तमाम हदें पार कर जाते हैं।
(ख) संचालकों द्वारा अपाहिज को संकेत में बताने का उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर- संचालक संकेत द्वारा अपाहिज को बताते हैं कि वह अपना दर्द इस प्रकार बताए जैसा वे चाहते हैं। यहाँ दर्द किसी का है और उसे अभिव्यक्त करने का तरीका कोई और बता रहा है। किसी भी तरह उन्हें अपना कार्यक्रम रोचक बनाना है। यही उनका एकमात्र उद्देश्य है।
(ग) दर्शकों की मानसिकता क्या है।
उत्तर- दर्शकों की मानसिकता है कि वे किसी की पीड़ा के चरम रूप का आनंद लेते हैं। वे भी संवेदनहीन हो गए हैं क्योंकि उन्हें भी अपंग व्यक्ति के रोने का इंतजार रहता है।
(घ) दूरदर्शन वाले किस अवसर की प्रतीक्षा में रहते हैं?
उत्तर- दूरदर्शन वाले इस अवसर की प्रतीक्षा में रहते हैं कि उनके सवालों से सामने बैठा अपाहिजरो पड़े, ताकि उनका कार्यक्रम रोचक बन सके।

फिर हम परदे पर दिखाएँगे
फुल हुई आँख काँ एक बडी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर 
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे) 
एक और कोशिश
दर्शक 
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों को एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा बस करो नहीं हुआ रहने दो परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई)
धन्यवाद!

शब्दार्थ – कसमसाहट- बेचैनी । धीरज- धैर्य । परदे पर -टी.वी. पर । वक्त -समय । कसर -कमी ।

व्याख्या -कवि कहता है कि दूरदर्शन वाले अपाहिज का मानसिक शोषण करते हैं। वे उसकी फूली हुई आँखों की तसवीर को बड़ा करके परदे पर दिखाएँगे। वे उसके होंठों पर होने वाली बेचैनी और कुछ न बोल पाने की तड़प को भी दिखाएँगे। ऐसा करके वे दर्शकों को उसकी पीड़ा बताने की कोशिश करेंगे। वे कोशिश करते हैं कि वह रोने लगे। साक्षात्कार लेने वाले दर्शकों को धैर्य धारण करने के लिए कहते हैं। वे दर्शकों व अपाहिज दोनों को एक साथ रुलाने की कोशिश करते हैं। तभी वे निर्देश देते हैं कि अब कैमरा बंद कर दो। यदि अपाहिज अपना दर्द पूर्णत: व्यक्त न कर पाया तो कोई बात नहीं। परदे का समय बहुत महँगा है। इस कार्यक्रम के बंद होते ही दूरदर्शन में कार्यरत सभी लोग मुस्कराते हैं और यह घोषणा करते हैं कि आप सभी दर्शक सामाजिक उद्देश्य से भरपूर कार्यक्रम देख रहे थे। इसमें थोड़ी-सी कमी यह रह गई कि हम आप दोनों को एक साथ रुला नहीं पाए। फिर भी यह कार्यक्रम देखने के लिए आप सबका धन्यवाद!

विशेष-
1. अपाहिज की बेचैनी तथा मीडिया व दर्शकों की संवेदनहीनता को दर्शाया गया है।
2. मुक्त छंद है।
3. उर्दू शब्दावली का सहज प्रयोग है।
4. ‘परदे पर’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. व्यंग्यपूर्ण नाटकीयता है।

प्रश्न
(क) कार्यक्रम-संचालक परदे पर फूली हुई आँख की तसवीर क्यों दिखाना चाहता हैं?
उत्तर- कार्यक्रम-संचालक परदे पर फूली हुई आँख की बड़ी तसवीर इसलिए दिखाना चाहता है ताकि वह लोगों को उसके कष्ट के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बता सके। इससे जहाँ कार्यक्रम प्रभावी बनेगा, वहीं संचालक का वास्तविक उद्देश्य भी पूरा होगा।
(ख) ‘ एक और कोशिश ‘-इस पंक्ति का क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर- ‘एक और कोशिश’ कैमरामैन व कार्यक्रम-संचालक कार्यक्रम संचालन कर रहे हैं। वे अपाहिज को रोती मुद्रा में दिखाकर अपने कार्यक्रम की लोकप्रियता बढ़ाना चाहते हैं, इस प्रकार वे अपाहिज से मनमाना व्यवहार करवाना चाहते हैं, जिसमें वे अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं।
(ग) कार्यक्रम-संचालक दोनों को एक साथ रुलाना चाहता हैं, क्यों?
उत्तर- कार्यक्रम-संचालक अपाहिज व दर्शकों-दोनों को एक साथ रुलाना चाहता था। ऐसा करने से उसके कार्यक्रम का सामाजिक उद्देश्य पूरा हो जाता तथा कार्यक्रम भी रोचक व लोकप्रिय हो जाता।
(घ) संचालक किस बात पर मुस्कराता हैं? उसकी मुस्कराहट में क्या छिपा हैं?
उत्तर- संचालक कार्यक्रम खत्म होने पर मुस्कराता है। उसे अपने कार्यक्रम के सफल होने की खुशी है। उसे अपाहिज की पीड़ा से कुछ लेना-देना नहीं। इस मुस्कराहट में मीडिया की संवेदनहीनता छिपी है। इसमें पीड़ित के प्रति सहानुभूति नहीं, बल्कि अपने व्यापार की सफलता छिपी है।