हिंदी यात्रा
तुलसीदास
हृदय सिंधु मति सीप समाना ।
स्वाति सारदा कहहिं सुजाना ।
जो बरषइ बर बारि विचारू ।
होंहि कवित मुक्तामनि चारू ।
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