कक्षा - 12-हिंदी साहित्य (छंद)



कक्षा - 12 हिंदी साहित्य
व्याकरण - छंद


छंद (Prosody/Meter)

परिभाषा:
"छंद" शब्द 'छद्' धातु से बना है, जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना' या 'खुश करना'। वर्णों या मात्राओं की संख्या, क्रम, गति, यति और तुक के नियमों से बंधी हुई रचना को छंद कहते हैं। यह काव्य को गेयता (musicality) और प्रभावशीलता प्रदान करता है।

छंद का महत्व:

  • काव्य में एक निश्चित लय और संगीतात्मकता लाता है।

  • रचना को कर्णप्रिय (कानों को सुखद लगने वाली) बनाता है।

  • भावों की अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावशाली बनाता है।


छंद के अंग (Elements of Prosody):

छंद को समझने के लिए उसके प्रमुख अंगों को समझना आवश्यक है:

  1. वर्ण (Syllable):
    अक्षर को वर्ण कहते हैं। हिंदी में दो प्रकार के वर्ण माने जाते हैं, जो मात्रा गणना में महत्वपूर्ण हैं:

    • लघु (ह्रस्व) वर्ण: वे वर्ण जिनके उच्चारण में कम समय लगता है।

      • इनका चिह्न ' । ' (एक खड़ी पाई) होता है।

      • जैसे: अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु आदि।

    • गुरु (दीर्घ) वर्ण: वे वर्ण जिनके उच्चारण में लघु से दुगुना समय लगता है।

      • इनका चिह्न ' ऽ ' (अवग्रह) होता है।

      • जैसे: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ आदि।

    मात्रा गणना के प्रमुख नियम:

    • ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ, ऋ) और उनसे बनी मात्राएँ हमेशा लघु ( । ) होती हैं। (उदा: कल, तुम, सुन)

    • दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) और उनसे बनी मात्राएँ हमेशा गुरु ( ऽ ) होती हैं। (उदा: राजा, पानी, सोए)

    • अनुस्वार (ं) युक्त वर्ण गुरु ( ऽ ) होता है। (उदा: हंस, कंपन)

    • विसर्ग (:) युक्त वर्ण गुरु ( ऽ ) होता है। (उदा: प्रातः, दुःख)

    • संयुक्त अक्षर (जैसे क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) या आधे वर्ण (जैसे क्, त्) से पहले वाला लघु वर्ण यदि वह छोटा हो, तो गुरु ( ऽ ) हो जाता है। (उदा: 'सत्य' में 'स' गुरु, 'पत्ता' में 'प' गुरु)। यदि संयुक्त अक्षर से पहले ही गुरु वर्ण हो, तो वह गुरु ही रहता है। (उदा: 'रास्ता' में 'रा' गुरु)।

    • हलंत (्) वाले वर्ण की मात्रा नहीं गिनी जाती।

  2. मात्रा (Morae):
    किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। लघु वर्ण की एक मात्रा और गुरु वर्ण की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं।

  3. गति (Rhythm/Flow):
    छंद को पढ़ते समय आने वाला स्वाभाविक प्रवाह या लय।

  4. यति (Pause):
    छंद को पढ़ते समय जहाँ रुकना या विराम लेना पड़े, उसे यति कहते हैं। यह प्रायः चरण के अंत में होता है।

  5. तुक (Rhyme):
    चरणों के अंत में समान ध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग। यह कविता को संगीतात्मकता प्रदान करता है। (जैसे: जल-थल, पवन-भवन)।

  6. चरण (Line/Foot):
    छंद की प्रत्येक पंक्ति को 'चरण' या 'पद' कहते हैं। अधिकांश छंदों में चार चरण होते हैं।

  7. गण (Group of 3 Syllables):
    वर्णिक छंदों में तीन वर्णों के समूह को 'गण' कहते हैं। गणों की संख्या आठ होती है। इन्हें याद करने का सूत्र है: "यमाताराजभानसलगा"

    • यगण (यमात - । ऽ ऽ)

    • मगण (मातारा - ऽ ऽ ऽ)

    • तगण (ताराज - ऽ ऽ ।)

    • रगण (राजभा - ऽ । ऽ)

    • जगण (जभान - । ऽ ।)

    • भगण (भानस - ऽ । ।)

    • नगण (नसल - । । ।)

    • सगण (सलगा - । । ऽ)


छंद के प्रकार (Types of Prosody):

मुख्यतः छंद तीन प्रकार के होते हैं:

  1. मात्रिक छंद (Mora-based Metre):
    इन छंदों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है। वर्णों के लघु-गुरु होने का क्रम निश्चित नहीं होता, केवल मात्राएँ गिनी जाती हैं। जैसे: दोहा, सोरठा, चौपाई, रोला, हरिगीतिका आदि।

  2. वर्णिक छंद (Syllable-based Metre):
    इन छंदों में वर्णों की संख्या और उनका लघु-गुरु क्रम (गण) निश्चित होता है। इनमें मात्राओं का कोई निश्चित नियम नहीं होता। जैसे: सवैया, कवित्त आदि।

  3. मुक्त छंद (Free Verse):
    इनमें वर्णों या मात्राओं की संख्या या क्रम का कोई निश्चित नियम नहीं होता। यह छंद सभी बंधनों से मुक्त होता है। आधुनिक कविता में इसका प्रयोग अधिक होता है।


प्रमुख छंदों का विस्तृत अध्ययन (Detailed Study of Main Meters):

कक्षा 12 के पाठ्यक्रम में प्रायः मात्रिक छंदों का अध्ययन प्रमुख होता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण छंदों का वर्णन है:

1. दोहा छंद (Doha):

  • परिभाषा व पहचान: यह एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं।

    • इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।

    • इसके दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

    • सम चरणों (दूसरे और चौथे) के अंत में प्रायः गुरु-लघु (ऽ।) वर्ण आते हैं।

    • सम चरणों में तुक (rhyme) आवश्यक है।

  • उदाहरण:
    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
    पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

  • मात्रा गणना व स्पष्टीकरण:
    ब | डा | हु | आ | तो | क्या | हु | आ
    । ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ = 13 मात्राएँ (पहला चरण)

    जै | से | पे | ड़ | ख | जू | र
    ऽ ऽ ऽ । । ऽ । = 11 मात्राएँ (दूसरा चरण)

    पं | थी | को | छा | या | न | हीं
    ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ । ऽ = 13 मात्राएँ (तीसरा चरण)

    फ | ल | ला | गे | अ | ति | दू | र
    । । ऽ ऽ । । ऽ । = 11 मात्राएँ (चौथा चरण)

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण में पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ हैं। दूसरे और चौथे चरण के अंत में 'र' ('खजूर' और 'दूर') में तुक मिल रही है। अतः यह दोहा छंद है।

2. सोरठा छंद (Soratha):

  • परिभाषा व पहचान: यह भी एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है। यह दोहा छंद का ठीक विपरीत (उल्टा) होता है। इसमें भी चार चरण होते हैं।

    • इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

    • इसके दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।

    • विषम चरणों (पहले और तीसरे) के अंत में तुक होती है।

  • उदाहरण:
    मूक होइ बाचाल, पंगु चढ़इ गिरिवर गहन।
    जासु कृपा सो दयाल, द्रवउ सकल कलि मल दहन।।

  • मात्रा गणना व स्पष्टीकरण:
    मू | क | हो | इ | बा | चा | ल
    ऽ । ऽ । ऽ ऽ । = 11 मात्राएँ (पहला चरण)

    पं | गु | च | ढ़ | इ | गि | रि | व | र | ग | ह | न
    ऽ । । । । । । । । । । । । = 13 मात्राएँ (दूसरा चरण)

    जा | सु | कृ | पा | सो | द | या | ल
    ऽ । । ऽ ऽ । ऽ । = 11 मात्राएँ (तीसरा चरण)

    द्र | व | उ | स | क | ल | क | लि | म | ल | द | ह | न
    । । । । । । । । । । । । । = 13 मात्राएँ (चौथा चरण)

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण में पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ हैं। पहले और तीसरे चरण के अंत में 'बाचाल' और 'दयाल' में तुक है। अतः यह सोरठा छंद है।

3. चौपाई छंद (Chaupai):

  • परिभाषा व पहचान: यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं।

    • इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं।

    • प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है।

    • अंतिम दो चरणों में या कभी-कभी सभी चारों चरणों में तुक होती है।

    • चरण के अंत में जगण ( । ऽ ।) और तगण (ऽ ऽ ।) नहीं आते (यह विशेष पहचान है)।

  • उदाहरण:
    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।
    राम दूत अतुलित बल धामा।
    अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।

  • मात्रा गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    ज | य | ह | नु | मा | न | ज्ञा | न | गु | न | सा | ग | र
    । । । । ऽ । ऽ । । । ऽ । । = 16 मात्राएँ (पहला चरण)

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ हैं और चरणों के अंत में तुक मिल रही है (सागर-उजागर, धामा-नामा)। अतः यह चौपाई छंद है।

4. रोला छंद (Rola):

  • परिभाषा व पहचान: यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं।

    • इसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं।

    • प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर यति (विराम) होती है।

    • सम चरणों के अंत में तुक होती है।

  • उदाहरण:
    उठो, उठो हे वीर आज तुम निद्रा त्यागो।
    करो महा संग्राम नहीं कायर हो भागो।।

  • मात्रा गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    उ | ठो | उ | ठो | हे | वी | र | आ | ज | तु | म
    । ऽ । ऽ ऽ ऽ । ऽ ऽ । । = 11 मात्राएँ (यति)

    नि | द्रा | त्या | गो
    । ऽ ऽ ऽ = 13 मात्राएँ (यति के बाद)
    कुल = 24 मात्राएँ

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ हैं, तथा 11 और 13 मात्राओं पर यति है। अंत में तुक भी मिल रही है (त्यागो-भागो)। अतः यह रोला छंद है।

5. कुंडलिया छंद (Kundaliya):

  • परिभाषा व पहचान: यह एक विषम मात्रिक छंद है। यह दो छंदों - दोहा और रोला - के मेल से बनता है।

    • इसमें कुल 6 चरण होते हैं।

    • पहले दो चरण दोहा छंद के होते हैं (13-11 मात्राएँ)।

    • शेष चार चरण रोला छंद के होते हैं (24-24 मात्राएँ)।

    • इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि जिस शब्द से यह छंद प्रारंभ होता है, उसी शब्द से इसका अंत भी होता है।

    • दोहे का चौथा चरण (11 मात्रा वाला) ही रोला छंद के पहले चरण का प्रारंभिक अंश बनता है।

  • उदाहरण:
    साईं बैर न कीजिए, गुरु, पंडित, कवि, यार।
    पुत्र, स्त्री, फकीर, वैद्य, बावनिया, और दार।।
    बावनिया, और दार, बैर की जड़ है भारी।
    बचते रहिए हुजूर, न हो अपनी खुआरी।।
    कहत गिरिधर कविराय, सुनिए मेरे मन की।
    पाहुन निज बैरन, साईं सब जग की।।

  • स्पष्टीकरण: इस कुंडलिया छंद का प्रारंभ 'साईं' शब्द से हुआ है और अंत भी 'साईं' शब्द से हुआ है। इसके पहले दो चरण दोहा छंद के नियम का पालन करते हैं (13-11 मात्राएँ) और अगले चार चरण रोला छंद के नियम का पालन करते हैं (24-24 मात्राएँ)। दोहे का चौथा चरण ('बावनिया, और दार') ही रोला के प्रथम चरण का हिस्सा बना है। अतः यह कुंडलिया छंद है।


2 नंबर के प्रश्न के लिए संभावित उत्तर:

  1. प्रश्न: छंद किसे कहते हैं? इसके प्रमुख दो अंग बताइए।
    उत्तर: वर्णों या मात्राओं की संख्या, क्रम, गति, यति और तुक के नियमों से बंधी हुई रचना को छंद कहते हैं। यह काव्य को गेयता और प्रभावशीलता प्रदान करता है। इसके प्रमुख दो अंग हैं: वर्ण (लघु-गुरु) और मात्रा

  2. प्रश्न: दोहा छंद के लक्षण (पहचान) लिखिए।
    उत्तर: दोहा एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों (दूसरे और चौथे) के अंत में तुक होती है।

  3. प्रश्न: चौपाई छंद की परिभाषा व एक उदाहरण दीजिए।
    उत्तर: चौपाई एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है तथा अंतिम दो चरणों या सभी चरणों में तुक मिलती है।
    उदाहरण: जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।

पाठ्यक्रम के अनुसार 

  1. गीतिका

  2. हरिगीतिका

  3. छप्पय

  4. कुंडलिया

  5. द्रुतविलंबित

  6. वंशस्थ

  7. कवित्त

  8. सवैया


कक्षा - 12 हिंदी साहित्य
व्याकरण - छंद

(पुनरावृत्ति: छंद के अंग)
छंद को समझने के लिए उसके अंगों (वर्ण-लघु/गुरु, मात्रा, यति, गति, तुक, चरण, गण) को याद रखना आवश्यक है।

  • लघु ( । ): अ, इ, उ, ऋ तथा उनसे बनी मात्राएँ। (1 मात्रा)

  • गुरु ( ऽ ): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ तथा उनसे बनी मात्राएँ। अनुस्वार (ं) और विसर्ग (:) युक्त वर्ण गुरु होते हैं। संयुक्त अक्षर से पहले का लघु वर्ण गुरु हो जाता है। (2 मात्राएँ)

  • गण (वर्णिक छंदों के लिए): तीन वर्णों का समूह। कुल 8 गण: यमाताराजभानसलगा।

    • यगण (यमात - । ऽ ऽ)

    • मगण (मातारा - ऽ ऽ ऽ)

    • तगण (ताराज - ऽ ऽ ।)

    • रगण (राजभा - ऽ । ऽ)

    • जगण (जभान - । ऽ ।)

    • भगण (भानस - ऽ । ।)

    • नगण (नसल - । । ।)

    • सगण (सलगा - । । ऽ)


प्रमुख छंदों का विस्तृत अध्ययन:

आपके पाठ्यक्रम के अनुसार छंदों का विवरण निम्न प्रकार है:

1. गीतिका छंद (Geetika):

  • प्रकार: सम मात्रिक छंद।

  • परिभाषा व पहचान:

    • यह चार चरणों वाला छंद होता है।

    • इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं।

    • प्रत्येक चरण में 14 और 12 मात्राओं पर यति (विराम) होता है।

    • चरण के अंत में प्रायः लघु-गुरु (।ऽ) वर्ण होते हैं।

    • सम चरणों में तुक होती है।

  • उदाहरण:
    हे प्रभो! आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये।
    शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिये।।
    लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें।
    ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक, वीर व्रतधारी बनें।।

  • मात्रा गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    हे(ऽ) प्र(।) भो(ऽ)! आ(ऽ) नं(ऽ) द(।) दा(ऽ) ता(ऽ) ज्ञा(ऽ) न(ऽ) = 14 मात्राएँ (यति)
    ह(।) म(।) को(ऽ) दी(ऽ) जि(।) ये(ऽ) = 12 मात्राएँ
    कुल = 26 मात्राएँ

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएँ हैं। 14 और 12 मात्राओं पर यति है। चरणों के अंत में लघु-गुरु (।ऽ) का क्रम है (दीजिये - कीजिये, बनें - बनें) और तुक भी मिल रही है। अतः यह गीतिका छंद है।

2. हरिगीतिका छंद (Harigeetika):

  • प्रकार: सम मात्रिक छंद।

  • परिभाषा व पहचान:

    • यह चार चरणों वाला छंद होता है।

    • इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं।

    • प्रत्येक चरण में 16 और 12 मात्राओं पर यति (विराम) होता है।

    • चरण के अंत में प्रायः लघु-गुरु (।ऽ) वर्ण होते हैं।

    • सम चरणों में तुक होती है।

  • उदाहरण:
    प्रिय पति वह मेरा प्राण-प्यारा कहाँ है?
    दुख-जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है?
    लक्ष्मण जिसने हा! हमारा किया था।
    वह दयामय देवता सा कहाँ है?

  • मात्रा गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    प्रि(।) य(।) प(।) ति(।) व(।) ह(।) मे(ऽ) रा(ऽ) प्रा(ऽ) ण(ऽ) प्या(ऽ) रा(ऽ) = 16 मात्राएँ (यति)
    क(।) हाँ(ऽ) है(ऽ) = 12 मात्राएँ
    कुल = 28 मात्राएँ

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ हैं। 16 और 12 मात्राओं पर यति है। चरणों के अंत में लघु-गुरु (।ऽ) का क्रम है (कहाँ है - कहाँ है) और तुक भी मिल रही है। अतः यह हरिगीतिका छंद है।

3. छप्पय छंद (Chhappay):

  • प्रकार: विषम मात्रिक छंद (यह दो छंदों - रोला और उल्लाला - के मेल से बनता है)।

  • परिभाषा व पहचान:

    • इसमें कुल 6 चरण होते हैं।

    • इसके प्रथम चार चरण रोला छंद के होते हैं (प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ, 11 और 13 पर यति)।

    • इसके अंतिम दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं (प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ, 15 और 13 पर यति)।

    • रोला के सम चरणों (दूसरे और चौथे) में तुक होती है, और उल्लाला के दोनों चरणों में भी तुक होती है।

    • यह प्रायः शौर्य, वीरता या भक्ति आदि का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त होता है।

  • उदाहरण (प्रथम चार चरण रोला के, अंतिम दो उल्लाला के):
    नीलांबर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है। (रोला - 11+13 = 24 मात्राएँ)
    सूर्य-चंद्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।। (रोला - 11+13 = 24 मात्राएँ)
    नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। (रोला - 11+13 = 24 मात्राएँ)
    बंदीजन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन हैं।। (रोला - 11+13 = 24 मात्राएँ)
    करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की। (उल्लाला - 15+13 = 28 मात्राएँ)
    हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।। (उल्लाला - 15+13 = 28 मात्राएँ)

  • स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण में पहले चार चरण रोला छंद के नियमानुसार 24-24 मात्राओं वाले हैं, और अंतिम दो चरण उल्लाला छंद के नियमानुसार 28-28 मात्राओं वाले हैं। यह दो भिन्न छंदों का संयोजन है, अतः यह छप्पय छंद है।

4. कुंडलिया छंद (Kundaliya):

  • प्रकार: विषम मात्रिक छंद (यह दो छंदों - दोहा और रोला - के मेल से बनता है)।

  • परिभाषा व पहचान:

    • इसमें कुल 6 चरण होते हैं।

    • इसके प्रथम दो चरण दोहा छंद के होते हैं (13-11 मात्राएँ)।

    • इसके अंतिम चार चरण रोला छंद के होते हैं (प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ, 11 और 13 पर यति)।

    • इसकी सबसे बड़ी और आसान पहचान यह है कि जिस शब्द से यह छंद प्रारंभ होता है, उसी शब्द से इसका अंत भी होता है।

    • दोहे का चौथा चरण (11 मात्रा वाला) ही रोला छंद के पहले चरण का प्रारंभिक अंश बनता है।

  • उदाहरण:
    साईं बैर न कीजिए, गुरु, पंडित, कवि, यार। (दोहा - 13, 11)
    पुत्र, स्त्री, फकीर, वैद्य, बावनिया, और दार।। (दोहा - 13, 11)
    बावनिया, और दार, बैर की जड़ है भारी। (रोला - 24)
    बचते रहिए हुजूर, न हो अपनी खुआरी।। (रोला - 24)
    कहत गिरिधर कविराय, सुनिए मेरे मन की। (रोला - 24)
    पाहुन निज बैरन, साईं सब जग की।। (रोला - 24)

  • स्पष्टीकरण: इस कुंडलिया छंद का प्रारंभ 'साईं' शब्द से हुआ है और अंत भी 'साईं' शब्द से हुआ है। इसके पहले दो चरण दोहा छंद के नियम का पालन करते हैं (13-11 मात्राएँ) और अगले चार चरण रोला छंद के नियम का पालन करते हैं (24-24 मात्राएँ)। दोहे का चौथा चरण ('बावनिया, और दार') ही रोला के प्रथम चरण का हिस्सा बना है। अतः यह कुंडलिया छंद है।


वर्णिक छंद (गणों के साथ):

वर्णिक छंदों में वर्णों की संख्या और गणों का क्रम महत्वपूर्ण होता है।

5. द्रुतविलंबित छंद (Drutavilambit):

  • प्रकार: सम वर्णिक छंद।

  • परिभाषा व पहचान:

    • इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं।

    • गणों का क्रम निश्चित होता है: नगण (।।।), भगण (ऽ।।), भगण (ऽ।।), रगण (ऽ।ऽ)। (सूत्र: नभभर)

    • अंत में तुक आवश्यक नहीं होती, पर प्रायः पाई जाती है।

  • उदाहरण:
    दिवस का अवसान समीप था।
    गगन था कुछ लोहित हो चला।
    तरु-शिखा पर थी अब राजती।
    कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा।। (महाकवि 'हरिऔध' की 'प्रियप्रवास' से)

  • वर्ण व गण गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    दि व स (।।।) - नगण
    का अ व (ऽ।।) - भगण
    सा न स (ऽ।।) - भगण
    मी प था (ऽ।ऽ) - रगण
    कुल वर्ण = 12

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण हैं और गणों का क्रम 'नगण, भगण, भगण, रगण' है। अतः यह द्रुतविलंबित छंद है।

6. वंशस्थ छंद (Vanshasth):

  • प्रकार: सम वर्णिक छंद।

  • परिभाषा व पहचान:

    • इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं।

    • गणों का क्रम निश्चित होता है: जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।), रगण (ऽ।ऽ)। (सूत्र: जतजर)

    • अंत में तुक आवश्यक नहीं होती।

  • उदाहरण:
    अहो! बड़ो न्याय विधाता का।
    यहाँ न होता मन मा का।।
    विदित है संसार में कि राम है।
    अजेय, धीर, गम्भीर काम है।।

  • वर्ण व गण गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    अ हो ब (।ऽ।) - जगण
    ड़ो न्या य (ऽऽ।) - तगण
    वि धा ता (।ऽ।) - जगण
    का य हाँ (ऽ।ऽ) - रगण
    कुल वर्ण = 12

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण हैं और गणों का क्रम 'जगण, तगण, जगण, रगण' है। अतः यह वंशस्थ छंद है।

7. कवित्त छंद (Kavitt):

  • प्रकार: वर्णिक दंडक छंद। (इसमें वर्णों की संख्या अधिक होती है, इसलिए इसे 'दंडक' कहते हैं।)

  • परिभाषा व पहचान:

    • इसमें 4 चरण होते हैं।

    • इसके प्रत्येक चरण में 31 से 33 वर्ण होते हैं।

    • यति प्रायः 16 और 15 या 16 और 16 या 17 पर होती है (अर्थात् चरण के दो खंड होते हैं, जिनका कुल योग 31-33 वर्ण होता है)।

    • चरण के अंतिम वर्ण गुरु (ऽ) होना अनिवार्य है।

    • इसमें गणों का कोई निश्चित क्रम नहीं होता, बल्कि यह वर्ण संख्या पर आधारित होता है।

  • उदाहरण:
    फूलीं फलीं प्रेम बेलि सोई सींचि सब भाँति,
    प्रगटि प्रसून पुंज परागनि पूरि है।
    मंद-मंद मारुत सुमंद-मंद आवत है,
    गावत बसंत चारु चाँदनी सुहाई है।। (कवि देव से)

  • वर्ण गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    फू लीं फ लीं प्रे म बे लि सो ई सीं चि स ब भाँ ति = 16 वर्ण (यति)
    प्र ग टि प्र सू न पुं ज प रा ग नि पू रि है = 16 वर्ण
    कुल वर्ण = 32

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में लगभग 31 से 33 वर्ण हैं (यहाँ 32 वर्ण हैं) और अंत में गुरु वर्ण (है - ऽ) आया है। अतः यह कवित्त छंद है।

8. सवैया छंद (Savaiya):

  • प्रकार: सम वर्णिक छंद। (सवैया कई प्रकार के होते हैं, जैसे मत्तगयंद, दुर्मिल, किरीट, आदि। आपके पाठ्यक्रम में सामान्यतः मत्तगयंद या दुर्मिल सवैया पूछा जाता है।)

  • परिभाषा व पहचान:

    • इसमें 4 चरण होते हैं।

    • इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं।

    • विभिन्न प्रकार के सवैयों में गणों का क्रम भिन्न-भिन्न होता है।

  • मत्तगयंद सवैया (Matta Gayand Savaiya): (यह सवैया का सबसे प्रसिद्ध प्रकार है)

    • पहचान: इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं। गणों का क्रम है: सात भगण (ऽ।।) और अंत में दो गुरु (ऽऽ)। (सूत्र: सात भगण अंत दो गुरु)

  • उदाहरण (मत्तगयंद सवैया):
    या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारो।
    आठहु सिद्धि नवो निधि के सुख, नंद की गाइ चराइ बिसारो।। (रसखान से)

  • वर्ण व गण गणना व स्पष्टीकरण (पहले चरण का):
    या ल कु (ऽ।।) - भगण
    टी अ रु (ऽ।।) - भगण
    का म रि (ऽ।।) - भगण
    या प र (ऽ।।) - भगण
    रा ज ति (ऽ।।) - भगण
    हूँ पु र (ऽ।।) - भगण
    को त जि (ऽ।।) - भगण
    डा रो (ऽऽ) - गुरु-गुरु
    कुल वर्ण = 23

    स्पष्टीकरण: उपरोक्त उदाहरण के प्रत्येक चरण में 23 वर्ण हैं और गणों का क्रम 'सात भगण' और अंत में 'दो गुरु' है। अतः यह मत्तगयंद सवैया है।


2 नंबर के प्रश्नों के लिए संभावित उत्तर:

  1. प्रश्न: गीतिका छंद के लक्षण लिखिए।
    उत्तर: गीतिका एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं, जिनमें 14 और 12 मात्राओं पर यति होती है। चरण के अंत में प्रायः लघु-गुरु (।ऽ) वर्ण आते हैं।

  2. प्रश्न: छप्पय छंद की परिभाषा बताते हुए इसकी बनावट स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर: छप्पय एक विषम मात्रिक छंद है जो रोला और उल्लाला छंदों के मेल से बनता है। इसमें कुल 6 चरण होते हैं। इसके पहले चार चरण रोला छंद के होते हैं (प्रत्येक में 24 मात्राएँ), जबकि अंतिम दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं (प्रत्येक में 28 मात्राएँ)।

  3. प्रश्न: द्रुतविलंबित छंद की पहचान व गण-क्रम लिखिए।
    उत्तर: द्रुतविलंबित एक सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। इसका गण-क्रम निश्चित होता है: नगण (।।।), भगण (ऽ।।), भगण (ऽ।।), रगण (ऽ।ऽ)। (सूत्र: नभभर)

  4. प्रश्न: सवैया छंद से आप क्या समझते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
    उत्तर: सवैया एक सम वर्णिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। सवैया कई प्रकार के होते हैं, जिनमें गण-क्रम भिन्न होता है।
    उदाहरण (मत्तगयंद सवैया):
    या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारो।
    आठहु सिद्धि नवो निधि के सुख, नंद की गाइ चराइ बिसारो।।



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