कक्षा - 12 हिंदी अनिवार्य (अलंकार)

कक्षा - 12 (अलंकार)
परिभाषा: 'अलंकार' शब्द 'अलम्' + 'कार' से बना है, जिसका अर्थ है 'आभूषण' या 'सुंदर बनाने वाला'। जिस प्रकार आभूषण स्त्री के सौंदर्य में वृद्धि करते हैं, उसी प्रकार अलंकार काव्य के सौंदर्य में वृद्धि करते हैं। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।
अलंकार के भेद (मुख्यतः):
शब्दालंकार: जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य में सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न होता है। यदि इन शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची रख दिए जाएँ तो चमत्कार समाप्त हो जाता है। (उदाहरण: अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति)
अर्थालंकार: जहाँ अर्थ के कारण काव्य में सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न होता है। इसमें शब्द बदलने पर भी अर्थ और अलंकार का सौंदर्य बना रहता है। (उदाहरण: विरोधाभास, अतिशयोक्ति, विभावना, सन्देह, भ्रांतिमान)
शब्दालंकार (Shabdalankar):

1. अनुप्रास अलंकार (Alliteration):

परिभाषा: जहाँ एक ही वर्ण (अक्षर) की आवृत्ति (दोहराव) दो या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
पहचान: वर्ण की पुनरावृत्ति।
उदाहरण:
● "तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।"
● "चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।"
स्पष्टीकरण:
• पहले उदाहरण में 'त' वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है।
• दूसरे उदाहरण में 'च' वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

2. श्लेष अलंकार (Pun/Coalescence):

परिभाषा: जहाँ एक शब्द का प्रयोग एक ही बार होता है, किन्तु उसके दो या दो से अधिक अर्थ निकलते हों, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। 'श्लेष' का अर्थ ही 'चिपका हुआ' होता है, अर्थात् एक शब्द में कई अर्थ चिपके हों।
पहचान: एक शब्द, प्रयोग एक बार, अर्थ अनेक।
उदाहरण:
"रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून।।"
स्पष्टीकरण: यहाँ 'पानी' शब्द के तीन अर्थ हैं:
मोती के संदर्भ में: चमक या कांति। (मोती बिना चमक के मूल्यहीन है)
मनुष्य के संदर्भ में: मान-सम्मान या प्रतिष्ठा। (मनुष्य बिना मान-सम्मान के व्यर्थ है)
चून (आटा) के संदर्भ में: जल। (आटा बिना पानी के उपयोगहीन है)
अतः एक ही 'पानी' शब्द के अनेक अर्थ होने के कारण यहाँ श्लेष अलंकार है।

3. यमक अलंकार (Repetition with different meanings):

परिभाषा: जहाँ एक शब्द या शब्दांश का प्रयोग दो या दो से अधिक बार होता है और प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न होता है, वहाँ यमक अलंकार होता है।
पहचान: एक ही शब्द का बार-बार प्रयोग, पर हर बार अर्थ अलग।
उदाहरण:
"कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाए बौराए जग, या पाए बौराए।।"
स्पष्टीकरण: यहाँ 'कनक' शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है और दोनों बार इसके अर्थ भिन्न हैं:
पहले 'कनक' का अर्थ है - सोना (gold)।
दूसरे 'कनक' का अर्थ है - धतूरा (a poisonous plant)।
सोना पाने से व्यक्ति मदमस्त हो जाता है और धतूरा खाने से व्यक्ति पागल हो जाता है। अतः यहाँ यमक अलंकार है।

4. वक्रोक्ति अलंकार (Pun/Double Entendre due to intonation or double meaning):

परिभाषा: जहाँ वक्ता (बोलने वाला) किसी बात को किसी और अभिप्राय (इरादे) से कहे, परन्तु श्रोता (सुनने वाला) उसका कोई दूसरा ही अर्थ लगा ले, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। यह अर्थ भेद या तो कंठ-स्वर (काकु) के कारण होता है या शब्द के अनेक अर्थों (श्लेष) के कारण।
पहचान: कही हुई बात का अलग अर्थ निकलना, गलतफहमी।
उदाहरण:
"को तुम? इत आए कहाँ?
घनश्याम हो तो किंतै बरसो।"
स्पष्टीकरण: यहाँ राधा पूछती हैं "तुम कौन हो? यहाँ क्यों आए हो?" कृष्ण उत्तर देते हैं "मैं घनश्याम हूँ।" (घनश्याम का एक अर्थ कृष्ण और दूसरा अर्थ घना काला बादल)। राधा कृष्ण का अर्थ 'घना काला बादल' लगाती हैं और कहती हैं "यदि तुम बादल हो, तो कहीं और जाकर बरसो।" यहाँ कृष्ण के कथन का श्रोता (राधा) ने भिन्न अर्थ लिया, अतः वक्रोक्ति अलंकार है।

अर्थालंकार (Arthalankar):

5. विरोधाभास अलंकार (Paradox):

परिभाषा: जहाँ काव्य में किसी बात को कहने पर वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास (प्रतीत) हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।
पहचान: ऊपरी तौर पर दो विरोधी बातें दिखें, पर वास्तव में उनमें विरोध न हो, बल्कि कोई गहरा अर्थ छिपा हो।
उदाहरण:
"या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।"
स्पष्टीकरण: यहाँ 'स्याम रंग' (काला रंग) में डूबने से 'उज्ज्वल' (सफेद/साफ) होने की बात कही गई है। सामान्यतः काला रंग किसी को काला ही बनाता है, उज्ज्वल नहीं। परन्तु यहाँ 'स्याम रंग' का अर्थ कृष्ण भक्ति है। कृष्ण भक्ति में डूबने से मन निर्मल और पवित्र होता है, इसलिए यहाँ विरोध का आभास मात्र है, वास्तविक विरोध नहीं। अतः विरोधाभास अलंकार है।

6. अतिशयोक्ति अलंकार (Hyperbole):

परिभाषा: जहाँ किसी वस्तु, व्यक्ति या बात का वर्णन इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए कि लोक-मर्यादा (संसार की सीमा) का अतिक्रमण हो जाए या असंभव लगे, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
पहचान: किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहना, असंभव सा लगना।
उदाहरण:
"हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।"
स्पष्टीकरण: यहाँ हनुमान की पूँछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका का जल जाना और राक्षसों का भाग जाना वर्णित है। यह बात इतनी बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है कि असंभव लगती है। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

7. विभावना अलंकार (Special Causation/Effect without cause):

परिभाषा: जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाए, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
पहचान: बिना कारण के ही कार्य का होना।
उदाहरण:
"बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।"
स्पष्टीकरण: यहाँ 'पैर न होते हुए भी चलना' और 'कान न होते हुए भी सुनना' तथा 'हाथ न होते हुए भी अनेक प्रकार के कार्य करना' बताया गया है। ये कार्य बिना अपने अपेक्षित कारणों (पैर, कान, हाथ) के हो रहे हैं। अतः यहाँ विभावना अलंकार है।

8. सन्देह अलंकार (Doubt):

परिभाषा: जहाँ किसी वस्तु में किसी दूसरी वस्तु के होने का सन्देह बना रहे और निश्चय न हो पाए, वहाँ सन्देह अलंकार होता है। इसमें 'क्या यह है, या वह है?' जैसी स्थिति बनी रहती है।
पहचान: दो समान चीजों में भ्रम की स्थिति बनी रहे, निर्णय न हो पाए (प्रायः 'कि', 'या', 'अथवा' जैसे शब्दों का प्रयोग)।
उदाहरण:
"सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है?
सारी ही कि नारी है कि नारी ही की सारी है?"
स्पष्टीकरण: यहाँ द्रौपदी के चीरहरण के समय यह निश्चय नहीं हो पा रहा है कि साड़ी के बीच स्त्री है या स्त्री के बीच साड़ी है, या साड़ी ही स्त्री है या स्त्री ही साड़ी है। सन्देह बना रहता है, निर्णय नहीं हो पाता। अतः यहाँ सन्देह अलंकार है।

9. भ्रांतिमान अलंकार (Misconception/Illusion):

परिभाषा: जहाँ समानता के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु समझ लिया जाए और उसी के अनुसार कार्य भी कर लिया जाए, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। इसमें सन्देह की तरह भ्रम बना नहीं रहता, बल्कि एक चीज को दूसरी मान लिया जाता है।
पहचान: किसी एक चीज को गलती से दूसरी चीज मान लेना और उसी के अनुरूप व्यवहार करना।
उदाहरण:
"नाक का मोती अधर की कांति से,
बीज दाड़िम का समझ भ्रांति से।
देख उसको हुआ शुक मौन है,
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?।"
स्पष्टीकरण: यहाँ कवि कहता है कि नायिका की नाक में पहने मोती को उसके होंठों की लालिमा (अधर की कांति) के कारण तोते (शुक) ने अनार का दाना (बीज दाड़िम) समझ लिया है। तोते को ऐसी भ्रांति हो गई है कि वह स्वयं को मौन करके सोच रहा है कि यह दूसरा तोता कौन है? यहाँ तोते को 'भ्रांति' हुई है, उसने मोती को अनार का दाना मान लिया है और उसी के अनुसार कार्य (मौन होना और सोचना) कर रहा है। अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।
2 नंबर के प्रश्न के लिए संभावित उत्तर:
प्रश्न: अनुप्रास अलंकार की परिभाषा व एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: जहाँ एक ही वर्ण (अक्षर) की आवृत्ति (दोहराव) दो या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण: "तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।"
प्रश्न: यमक और श्लेष अलंकार में क्या अंतर है?
उत्तर: यमक अलंकार में एक ही शब्द का प्रयोग दो या दो से अधिक बार होता है और प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न होता है। (जैसे: 'कनक कनक' में सोना और धतूरा)
श्लेष अलंकार में एक शब्द का प्रयोग एक ही बार होता है, किन्तु उसके दो या दो से अधिक अर्थ निकलते हैं। (जैसे: 'पानी' के तीन अर्थ)
प्रश्न: विरोधाभास अलंकार किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: जहाँ काव्य में किसी बात को कहने पर वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास (प्रतीत) हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।
उदाहरण: "ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।"
(स्पष्टीकरण: यहाँ काले रंग में डूबने से उज्ज्वल होने की बात में विरोध का आभास है, पर इसका अर्थ कृष्ण भक्ति से मन के निर्मल होने से है।)
प्रश्न: सन्देह और भ्रांतिमान अलंकार में मुख्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 
सन्देह अलंकार में समानता के कारण किसी वस्तु के विषय में सन्देह बना रहता है और निश्चय नहीं हो पाता। (यह 'क्या यह है, या वह है?' की स्थिति है।)
भ्रांतिमान अलंकार में समानता के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु समझ लिया जाता है और उसी के अनुरूप कार्य भी कर लिया जाता है। (यह 'यह वह ही है' का भ्रम है, जो सत्य मान लिया जाता है।)
प्रश्न: 'बिनु पग चलै सुनै बिनु काना' पंक्ति में कौन सा अलंकार है और क्यों?
उत्तर: इस पंक्ति में विभावना अलंकार है। क्योंकि यहाँ कारण (पैर, कान) न होते हुए भी कार्य (चलना, सुनना) का होना बताया गया है।

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