कक्षा 12 बात सीधी थी पर
कक्षा - 12 अभिव्यक्ति और माध्यम ( कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण )
कक्षा 12 कविता के बहाने (कुंवर नारायण)
कक्षा 12 पतंग ( आलोक धन्वा )
कक्षा 12 एक गीत ( दिन जल्दी जल्दी ढलता है )
कक्षा - 12 हरिवंश राय बच्चन ( आत्म परिचय )
कवि परिचय : हरिवंश राय बच्चन
जन्म: 27 नवंबर 1907, इलाहाबाद (प्रयागराज)
मृत्यु: 18 जनवरी 2003, मुंबई
मुख्य धारा: हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक और हालावादी दर्शन के प्रवर्तक।
प्रमुख रचनाएँ: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, क्या भूलूँ क्या याद करूँ (आत्मकथा)।
भाषा-शैली: इनकी भाषा सीधी-सादी, जीवंत और संवेदनशील है। इन्होंने फारसी के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग किया है।
पाठ का सारांश
इस पाठ में बच्चन जी की दो कविताएँ संकलित हैं:-
आत्मपरिचय: इस कविता में कवि अपने और संसार के संबंधों के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी मस्ती और प्रेम की दुनिया में खोए रहते हैं। वे संसार के साथ अपने विरोधाभासी (contradictory) संबंधों को उजागर करते हैं। जैसे - वे रोते हैं तो भी उसमें संगीत होता है, उनकी शीतल वाणी में भी आग छिपी है। कविता का मूल भाव है - दुनिया से मेरा संबंध प्रीति-कलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।
एक गीत (दिन जल्दी-जल्दी ढलता है): यह गीत 'निशा निमंत्रण' काव्य संग्रह से लिया गया है। इसमें कवि ने समय के बीतने के एहसास को बताया है। एक राहगीर (पथिक) अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए तेजी से चलता है क्योंकि उसे डर है कि रात न हो जाए। पक्षी भी अपने बच्चों की याद करके तेजी से पंख फड़फड़ाते हैं। लेकिन कवि के जीवन में कोई ऐसा नहीं है जो उनका इंतज़ार कर रहा हो, इसलिए यह सोचकर उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। यह गीत जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता है।
प्रश्न 1: कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर 'मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' - विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
प्रश्न 2: जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं - कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
प्रश्न 3: 'मैं और, और जग और, कहाँ का नाता' - पंक्ति में 'और' शब्द की विशेषता बताइए।
प्रश्न 4: 'शीतल वाणी में आग' - के होने का क्या अभिप्राय है?
प्रश्न 5: बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
प्रश्न 6: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' - की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
राजस्थान बोर्ड (RBSE) के विगत वर्षों के महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (1 अंक)
लघूत्तरात्मक प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1: कवि का जीवन 'विरुद्धों का सामंजस्य' है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 2: 'मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3: "मुझसे मिलने को कौन विकल?" - यह प्रश्न कवि के उर में क्या भरता है और क्यों?
सप्रसंग व्याख्या (4-5 अंक)
भारतीय कलाएँ
रचनात्मक लेखन
महानगरीय जीवन : अभिशाप या वरदान
कहा गया है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मानव ने ज्यों-ज्यों सभ्यता की ओर कदम बढ़ाए त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गई। अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह इधर-उधर जाने के लिए विवश हुआ। इसी क्रम में मनुष्य ने बेहतर जीवनयापन के लिए शहर की ओर कदम बढ़ाए।
महानगरीय जीवन का अपना एक विशेष आकर्षण होता है। यह आकर्षण है-आधुनिकता की चमक-दमक। यही चमक-दमक गाँवों तथा छोटे-छोटे शहरों के वासियों को आकर्षित करती है। महानगर की प्रच्छन्न समस्याएँ यहाँ आने वालों को अपने जाल में यूँ उलझा लेती हैं जैसे मकड़ी के जाल में कोई कीड़ा। महानगर की इन समस्याओं से आम आदमी का निकलना आसान नहीं होता है। गाँवों से या छोटे शहरों से आने वालों के लिए महानगरीय जीवन दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। हमारे देश में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई की गणना महानगरों में की जाती है। इन महानगरों का अपना विशेष आकर्षण है। इनका
ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्त्व भी है। इन महानगरों में विश्व की आधुनिकतम सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ रोजगार के साधन हैं। शिक्षा एवं परिवहन की उत्तम व्यवस्था है। यहाँ की गगनचुंबी इमारतें जनसाधारण के लिए कौतूहल का विषय बनती हैं। ये महानगरों के सौंदर्य में चार चाँद लगाती हैं। यह सब देखकर विदेशी पर्यटक भी इन महानगरों की ओर आकर्षित हो पर्यटन के लिए आते हैं। महानगरों में पाई जाने वाली इन सुख-सुविधाओं की ओर जनसाधारण आसानी से आकर्षित होता है। वह कभी रोजगार की तलाश में तो कभी बेहतर जीवन जीने की लालसा में यहाँ आता है और यहीं का होकर रह जाता है।
दिल्ली जैसे महानगर की जनसंख्या तो कई साल पहले ही एक करोड़ को पार कर चुकी थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि महानगरीय जीवन संपन्न लोगों के लिए वरदान है। उनके व्यवसाय तथा कारोबार यहीं फलते-फूलते हैं, जो शहरों के लिए भी लाभदायी होते हैं। अपनी बेहतर आमदनी के कारण ये संपन्न व्यक्ति कार, ए.सी. तथा विलासिता की वस्तुओं को प्रयोग कर स्वर्गिक सुख की अनुभूति करते हैं। इसके अलावा शिक्षा की बेहतर सुविधाएँ, आवागमन के उन्नत साधन, चमचमाती सड़कें, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएँ, एक फोन काल की दूरी पर पुलिस, खाद्य वस्तुओं की बेमौसम लगता है। महानगरों की बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में मूलभूत सुविधाओं में वृद्ध न होने से यहाँ के अधिकतर निवासियों का जीवन दूभर हो गया है। यहाँ सबसे बड़ी समस्या आवास की है।
थोड़ी-सी जगह मिली नहीं कि निम्नवर्ग ने अपनी झोंपड़ी/झुग्गी बना ली। एक ओर गगनचुंबी अट्टालिकाएँ तो दूसरी ओर शहर के माथे पर दाग बनकर सौंदर्य का नाश करती झोंपड़पट्टयाँ। यहाँ संपन्न वर्ग के एक आदमी के लिए बीस-बीस कमरे हैं तो दूसरी ओर किराए के एक कमरे में पंद्रह या बीस आदमी रहने के लिए विवश हैं। इसके अलावा यहाँ न पीने के लिए शुद्ध पानी और न साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा है। खाद्य वस्तुओं में मिलावट का कहना ही क्या। कुछ भी शुद्ध नहीं। कमरे ऐसे कि जिनमें शायद ही कभी धूप के दर्शन हों। यहाँ की दूषित वस्तुएँ अकसर बीमारी की जनक होती हैं। इस प्रकार जनसाधारण के लिए ये महानगर किसी अभिशाप से कम नहीं हैं। जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार नगरीय जीवन के भी अच्छाई और बुराई रूपी दो पहलू हैं। संपन्न वर्ग के लिए महानगर किसी वरदान से कम नहीं है तो गरीबों के लिए अभिशाप है। यह सत्य है कि महानगरों में आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर हैं। अथक परिश्रम और लगन से इस अभिशाप को वरदान में बदलकर इनका लाभ उठाया जा सकता है।
मनोरंजन के साधन
मनुष्य कर्मशील प्राणी है। जीवन की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वह कर्म में लीन रहता है। काम की अधिकता उसके जीवन में नीरसता लाती है। नीरसता से छुटकारा पाने के लिए उसे मनोविनोद की आवश्यकता होती है। इसके अलावा काम के बीच-बीच में उसे मनोरंजन मिल जाए तो काम करने की गति बढ़ती है तथा मनुष्य का काम में मन लगा रहता है।
मनुष्य ने जब से विकास की ओर कदम बढ़ाया, उसी समय से उसकी आवश्यकता बढ़ती गई। दूसरों के सुखमय जीवन से प्रतिस्पर्धा करके उसने अपनी आवश्यकताएँ और भी बढ़ा लीं, जिसके कारण उसे न दिन को चैन है न रात को आराम। ऐसे में उसका मस्तिष्क, तन, मन यहाँ तक कि उसका अंग-अंग थक जाता है। एक ही प्रकार की दिनचर्या से मनुष्य उकता जाता है उसे अपनी थकान मिटाने और जी बहलाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है, जो उसकी थकान भगाकर उसके मन को पुन: उत्साह एवं उमंग से भर देता है। यही कारण है कि मनुष्य आदि काल से ही किसी-न-किसी रूप में अपना मनोरंजन करता आया है।
मानव ने प्राचीन काल से ही अपने मनोरंजन के साधन खोज रखे थे। अपने मनोविनोद के लिए पक्षियों को लड़ाना, विभिन्न जानवरों को लड़ाना, रथों की दौड़, धनुष-बाण से निशाना लगाना, लाठी-तलवार से मुकाबला करना, कम तथा बड़ी दूरी की दौड़, वृक्ष पर चढ़ना, कबड्डी, कुश्ती, गुल्ली-डंडा, गुड्डे-गुड़ियों का विवाह, रस्साकशी करना, रस्सी कूदना, जुआ, गाना-बजाना, नाटक करना, नाचना, अभिनय, नौकायन, भाला-कटार चलाना, शिकार करना, पंजा लड़ाना आदि करता था। मनुष्य के जीवन में विकास के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों में भी बदलाव आने लगा।
आधुनिक युग में मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। यह तो मनुष्य की रुचि, सामथ्र्य आदि पर निर्भर करता है कि वह इनमें से किनका चुनाव करता है। विज्ञान ने मनोरंजन के क्षेत्र में हमारी सुविधाएँ बढ़ाई हैं। रेडियो पर हम लोकसंगीत, फिल्म संगीत, शास्त्रीय संगीत का आनंद लेते हैं तो सिनेमा हॉल में चित्रपट पर विभिन्न फिल्मों का। इसके अलावा ताश, शतरंज, सर्कस, प्रदर्शनी, फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, टेनिस, खो-खो, बैडमिंटन आदि ऐसे मनोरंजन के साधन हैं, जो स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद हैं।
हमारे सामने आजकल मनोरंजन के अनेक विकल्प मौजूद हैं, जिनमें से अपनी रुचि के अनुसार साधन अपनाकर हम अपना मनोरंजन कर सकते हैं। आज कवि सम्मेलन सुनना, ताश एवं शतरंज खेलना, फिल्म देखना, रेडियो सुनना, विभिन्न प्रकार के खेल खेलना तथा संगीत सुनकर मनोरंजन किया जा सकता है। सिनेमा हॉल में फिल्म देखना एक लोकप्रिय साधन है। मजदूर या गरीब व्यक्ति कम कमाता है, फिर भी वह समय निकालकर फिल्म देखने अवश्य जाता है। युवकों से लेकर वृद्धों तक के लिए यह मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है। आज मोबाइल फोन पर गाने सुनने का प्रचलन इस प्रकार बढ़ा है कि युवाओं को कानों में लीड लगाकर गाने सुनते हुए देखा जा सकता है।
मनोरंजन करने से मनुष्य अपनी थकान, चिंता, दुख से छुटकारा पाता है या यूँ कह सकते हैं कि मनोरंजन मनुष्य को खुशियों की दुनिया में ले जाते हैं। उसे उमंग, उत्साह से भरकर कार्य से छुटकारा दिलाते हैं। बीमारियों में दर्द को भूलने का उत्तम साधन मनोरंजन है। यह मनुष्य को स्वस्थ रहने में भी मदद करता है। ‘अति सर्वत्र वर्जते’ अर्थात् मनोरंजन की अधिकता भी मनुष्य को आलसी एवं अकर्मण्य बनाती है। अत: मनुष्य अपने काम को छोड़कर आमोद-प्रमोद में न डूबा रहे अन्यथा मनोरंजन ही उसे विनाश की ओर ले जा सकता है। हमें मनोरंजन के उन्हीं साधनों को अपनाना चाहिए, जिससे हमारा चरित्र मजबूत हो तथा हम स्वस्थ बनें।
शिक्षा में खेलों का महत्व
अथवा
जीवन में खेलों का महत्व
विधाता ने सृष्टि में जितने भी प्राणियों की रचना की उनमें मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। जैसे मनुष्य किसी बिंदु या विचार पर चिंतन कर सकता है, वैसे अन्य प्राणी विचार नहीं कर सकते। अपनी इसी शक्ति के बल पर वह अन्य प्राणियों पर शासन करता आया है। मनुष्य ने अपनी शक्ति के बल पर प्रकृति के कार्य-कलाप में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। मनुष्य की शक्ति में जहाँ उसकी बुद्ध और विवेक की भूमिका है वहीं इसमें उसके शारीरिक बल के योगदान को कम करके नहीं आँका जा सकता है। मस्तिष्क के विकास का साधन यदि शिक्षा है तो शारीरिक विकास का साधन परिश्रम एवं खेल है। परिश्रम खेल में किसी-न-किसी रूप में समाया रहता है। खेल शारीरिक विकास के सर्वोत्तम साधन हैं।
घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-कबड्डी, कुश्ती, फुटबॉल, टेनिस, बालीवॉल, क्रिकेट, भ्रमण, दौड़ आदि शारीरिक विकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इनकी गणना स्वास्थ्यवर्धक खेलों में की जाती है। कैरम, शतरंज, ताश आदि कुछ ऐसे खेल हैं जिन्हें घर में बैठकर खेला जा सकता है। इन खेलों से हमारा मानसिक विकास होता है। खेलों से हमारा शारीरिक और मानसिक विकास होता ही है साथ ही मनोरंजन भी होता है। खेल थके-हारे शरीर की थकान हर लेते हैं और हमें ऊर्जा एवं उत्साह से भर देते हैं। आदमी खेलते समय अपनी चिंता एवं छोटे-मोटे दुख भूल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूर वर्ग तथा किसानों को दोपहर के भोजन के बाद ताश खेलकर समय बिताते देखा जा सकता है। इससे उनका मनोरंजन होता है और वे अपनी थकान से छुटकारा पाकर दोपहर बाद काम पर जाने को तैयार होते हैं।
विद्यार्थियों के लिए खेलों का विशेष महत्व है। वे मध्यांतर में अपना खाना जल्दी से समाप्त कर खेलने में व्यस्त हो जाते हैं। उनकी पढ़ाई के घंटों में खेल के लिए समय निर्धारित होता है, जिससे वे अपनी शारीरिक तथा मानसिक थकान भूल जाएँ। उनका मनोरंजन हो और वे प्रसन्नचित्त होकर बाद की पढ़ाई में एकाग्रचित्त हो सकें। खेलों से खिलाड़ियों में मानवीय गुणों का उदय होता है। खिलाड़ी खेल-खेल में कब यह सब सीख जाते हैं पता ही नहीं चलता। कुछ खेल खिलाड़ियों द्वारा सामूहिक रूप में खेले जाते हैं; जैसे-कबड्डी, क्रिकेट, फुटबॉल, वालीबॉल आदि। इनसे खिलाड़ियों में सामूहिकता की भावना विकसित होती है, क्योंकि टीम की हार-जीत प्रत्येक खिलाड़ी के योगदान पर निर्भर करती है। इसके अलावा खिलाड़ी में आत्मनिर्भरता की भावना भी विकसित होती है।
उसमें अपने साथियों के लिए स्नेह और मित्रता पैदा होती है जो बाद में अपनत्व की भावना प्रबल करती है। खेलते समय खिलाड़ी में जो प्रतिस्पर्धा की भावना होती है वही खेल की समाप्ति पर हाथ मिलाते ही मित्रता में बदल जाती है। ऋषियों-मुनियों को यह बात भली प्रकार पता थी कि शारीरिक और मानसिक विकास बनाए रखने के लिए खेलों का बहुत महत्व है। वे अपने आश्रम में विद्यार्थियों को विभिन्न खेलों में पारंगत बना देते थे। इससे वे बलिष्ठ बनते थे, जो रणकौशल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण योग्यता थी। शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर वे मानसिक रूप से भी स्वस्थ होते थे।
मानसिक स्वास्थ्य के साथ शारीरिक बल ‘सोने पर सुहागा’ के समान होती है। अकसर देखा गया है कि दिन-रात किताबों में डूबा रहने वाला विद्यार्थी यदि बीमार रहता है तो उससे सफलता की आशा कैसे की जा सकती है। वास्तव में शारीरिक बल के अभाव में सभी गुण विफल हो जाते हैं। कुछ समय पहले तक खेलों को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था पर अब समय एवं सोच बदल चुकी है। ‘खेलोगे-कूदोगे हो जाओगे खराब’ वाली कहावत को लोग भूलकर ‘खेलोगे-कूदोगे बनोगे नवाब’ वाली कहावत को अपने जीवन का अंग बना चुके हैं।
ओलंपिक खेलों और कॉमनवेल्थ खेलों आदि में विजयी होने वाले खिलाड़ियों पर होने वाली नोटों की बरसात से यह बात प्रमाणित भी हो चुकी है। खेलों के माध्यम से इतना धन, यश तथा सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं कि आम आदमी बस इनकी कल्पना भर कर सकता है। सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, विजेंद्र कुमार, सोमदेव देव वर्मन, सायना नेहवाल आदि कुछ ऐसे ही नाम हैं जिनके कदम यश और धन चूम रहे हैं। अति हर चीज की बुरी होती है। यह सत्य है कि विद्यार्थियों के लिए शिक्षा के समान ही खेल भी आवश्यक है पर वही विद्यार्थी खेलों में इतना लीन हो जाए कि पढ़ाई भूल जाए तो अच्छा नहीं होगा; क्योंकि हर बालक सचिन तेंदुलकर नहीं बन सकता है। अत: आवश्यक है कि खेल और शिक्षा में समन्वय बनया जाए तथा खेलों को शिक्षा का अंग बनाकर प्रत्येक विद्यालय में लागू किया जाए।
कंप्यूटर-आज की आवश्यकता
मनुष्य की प्रगति में विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसने मनुष्य को वह सभी सुविधाएँ दी हैं जिनकी वह सदा से लालस: किया करता था। विज्ञान ने जिन उपकरणों एवं विशिष्ट साधनों से जीवन सुखमय बनाया है, उनमें दूरदर्शन, मोबाइल फोन, विभिन्न चिकित्सीय उपकरण, फ्रिज, ए.सी. कारें आदि हैं, परंतु कप्यूटर का नाम लिए बिना यह विकास यात्रा अधूरी सी लगती है। आज इसका प्रयोग लगभग हर स्थान पर देखा जा सकता है।
कंप्यूटर क्या है, ऐसी जिज्ञासा मन में आना स्वाभाविक है। वास्तव में कंप्यूटर अनेक यांत्रिक मस्तिष्कों का योग है, जो अत्यंत तेज गति से कम-से-कम समय में सही-सही काम कर सकता हैं। गणितीय समस्याओं को हल करने में कंप्यूटर का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। इसके प्रयोग से हर कार्य को अत्यंत शीघ्रता से किया जा रहा है जो इसकी दिन-प्रतिदिन बढ़ती लोकप्रियता का कारण है। भारत में भी कंप्यूटर के प्रति आकर्षण बढ़ा है, जिसको और उन्नत बनाने के लिए विभिन्न देशों के साथ शोध कार्य किया जा रहा है।
कंप्यूटर का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में हुआ। जिसके जनक थे-चालर्स बेवेज। यह कंप्यूटर जटिल गणनाएँ आसानी से और कम समय में कर सकता है। इसमें आँकड़ों को मुद्रित करने की भी अद्भुत क्षमता है। इसमें गणनाओं के लिए एक विशेष भाषा का प्रयोग किया जाता है जिसे ‘कंप्यूटर का प्रोग्राम’ कहा जाता है। कंप्यूटर की गणना कितनी शुद्ध है, इसका उत्तरदायित्व कंप्यूटर पर कम उसके प्रयोगकर्ता पर अधिक निर्भर करता है। आज इसका प्रयोग हर क्षेत्र में होने लगा है। कंप्यूटर का प्रयोग अब इतना बढ़ गया है कि यह सोचना पड़ता है कि कंप्यूटर का प्रयोग कहाँ नहीं हो रहा है। बैंक में हिसाब-किताब रखना हो या पुस्तकों का प्रकाशन, कंप्यूटर ने अपनी भूमिका से इसे आसान बना दिया है।
आज चिकित्सा, इंजीनियरिंग, रेलगाड़ियों के संचालन, उनके टिकटों की बुकिंग, वायुयान की उड़ान तथा टिकट बुकिंग में इसका प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा भवनों, मोटर-गाड़ियों, हवाई-जहाज, विभिन्न उपकरणों के पुजों के डिजाइन तैयार करने में इसका उपयोग किया जा रहा है। कला के क्षेत्र में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान, औद्योगिक क्षेत्र, आम-चुनाव तथा परीक्षा के प्रश्नपत्र बनाने और उनका मूल्यांकन करने के लिए भी कंप्यूटर का उपयोग किया जा रहा है। कंप्यूटर ने अपनी उपयोगिता के कारण कार्यालयों में गहरी पैठ बना ली है। इसकी मदद से अब फाइलों की संख्या घटकर बहुत ही कम हो गई है। कार्यालय की सारी गतिविधियाँ सी.डी. में संग्रहित कर ली जाती हैं और यथा समय उनको कंप्यूटर के माध्यम से सुविधाजनक तरीके से प्रयोग में लाया जा सकता है। स्थिति यह है कि ‘फाइलों को दीमक चाट गए’ वाली बातें बीते समय की होती जा रही हैं।
इंटरनेट का साथ कंप्यूटर के लिए सोने पर सुहागा वाली स्थिति बना देता है। अब तो समाचार-पत्र भी इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर पढ़े जा सकते हैं। विश्व के किसी कोने में छपी पुस्तक हो या कोई फिल्म या किसी घटना की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर उपलब्ध है। वास्तव में बहुत-सी जानकारियों का ढेर कंप्यूटर के रूप में हमारे कमरे में उपलब्ध है। , कंप्यूटर बहुत ही उपयोगी उपकरण है। यह विज्ञान की वह अद्भुत खोज है जो बहुउपयोगी है। आवश्यकता है कि इसका आवश्यकतानुरूप तथा ठीक-ठीक प्रयोग किया जाए। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने हर कार्य के लिए कंप्यूटर पर आश्रित न बने तथा स्वयं भी सक्रिय रहे। इसे प्रयोग में लाते समय स्वास्थ्य संबंधी निर्देशों का पालन अवश्य करना चाहिए जिससे हमारे स्वास्थ्य पर इसका कुप्रभाव न पड़े।
कक्षा - 11 पाठ - 19 (सबसे खतरनाक - अवतार सिंह पाश)
सबसे खतरनाक( कविता का सारांश )
कवि का मानना है कि मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ की मुट्ठी खतरनाक स्थितियाँ तो हैं, परंतु अन्य बातों से कम खतरनाक हैं। बिना कारण पकड़े जाना, कपट के वातावरण में सच्ची बात गुम होना या विवशतावश समय गुजार लेना या गरीबी में दिन काटना आदि बुरी दशाएँ हैं, परंतु खतरनाक नहीं। कवि कहता है कि सबसे खतरनाक वह है जब व्यक्ति में मुदों जैसी शांति भर जाती है। ऐसी स्थिढ़ि में व्यक्ति की विरोध-शक्ति समाप्त हो जाती है। व्यक्ति बँधे-बँधाए ढरे पर चलता है तो उसके सपने समाप्त हो जाते हैं। समय की गति रुकना भी खतरनाक दशा है, क्योंकि व्यक्ति समय के अनुसार बदल नहीं पाता।
मनुष्य की संवेदनशून्यता भी खतरनाक है। अन्याय के प्रति विद्रोह की भावना समाप्त होना भी गलत है। गीत भी जब मरसिए पढ़कर सुनाने लगे और आतंकित व्यक्तियों के दरवाजों पर अकड़ दिखाए तो वह भी खतरनाक होता है। उल्लू व गीदड़ों की आवाज युक्त रात भी खतरनाक है। कवि कहता है कि जब मनुष्य आत्मा की आवाज को अनसुना कर देता है तो वह संवेदनशून्य हो जाता है। मेहनत का लुटना, पुलिस की मार, गद्दारी व लोभ की दशा अधिक खतरनाक नहीं है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़ जाना-बुरा तो हैं
सहमी-सी चुप में जकड़ जाना-बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शर में
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है
किसी जुगनू की ली में पढ़ना-बुरा तो है
मुट्टियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना-बुरा तो हैं
सबसे खतरनाक नहीं होता
शब्दार्थ
गद्दारी-देश के शासन के विरुद्ध होकर उसे हानि पहुँचाने का भाव। लोभ-लालच। सहमी-डरी। जकड़े जाना-पकड़े जाना। कपट-छल। लौ-रोशनी। मुट्टियाँ भींचकर-गुस्से को दबाकर। वक्त-समय।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है। इस अंश में कवि कुछ खतरनाक स्थितियों के विषय में बता रहा है।
व्याख्या-कवि यहाँ उन स्थितियों का वर्णन करता है जो मानव को दुख तो देती हैं, परंतु सबसे खतरनाक नहीं होतीं। वह बताता है कि किसी की मेहनत की कमाई को लूटने की स्थिति सबसे खतरनाक नहीं है, क्योंकि उसे फिर पाया जा सकता है। पुलिस की मार पड़ना भी इतनी खतरनाक नहीं है। किसी के साथ गद्दारी करना अथवा लोभवश रिश्वत देना भी खतरनाक है, परंतु अन्य बातों जितना नहीं। वह कहता है कि किसी दोष के बिना पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बुरा लगता है तथा अन्याय को डरकर चुपचाप सहन करना भी बुरी बात है, परंतु यह सबसे खतरनाक स्थिति नहीं है। छल-कपट के महौल में सच्ची बातें छिप जाती हैं, कोई जुगनू की लौ में पढ़ता है अर्थात् साधनहीनता में गुजारा करता है, विवशतावश अन्याय को सहन कर समय गुजार देना आदि बुरी तो है, परंतु सबसे खतरनाक नहीं है। कई बातें ऐसी हैं जो बहुत खतरनाक हैं और उनके परिणाम दूरगामी होते हैं।
विशेष-
- ‘सबसे खतरनाक नहीं होती’ तथा ‘बुरा तो है’ की आवृत्ति से परिस्थितियों की भयावहता का पता चलता है।
- ‘सहमी-सी चुप’ में उपमा अलंकार है।
- ‘बैठे-बिठाए’ में अनुप्रास अलंकार है।
- साधनहीनता के लिए ‘जुगनू की लौ’ नया प्रयोग है।
- ‘गद्दारी लोभ की मुट्ठी’ भी नया प्रयोग है।
- कथन में जोश, आवेश व मौलिकता है।
- ‘मुट्ठयाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेने’ का बिंब प्रभावशाली है।
- सहज सरल खड़ी बोली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- ‘सबसे खतरनाक नहीं होती’-वाक्यांश की आवृत्ति से कवि क्या कहना चाहता है
- कवि ने किन-किन खतरनाक स्थितियों का उल्लेख किया है?
- ‘किसी जुगनू की लौ में पढ़ना’-आशय स्पष्ट कीजिए।
- मुदठियाँ भींचकर वक्त निकालने को बुरा क्यों कहा गया है?
उत्तर –
- इस वाक्यांश की आवृत्ति से कवि कहना चाहता है कि समाज में अनेक स्थितियाँ खतरनाक हैं, परंतु इनसे भी खतरनाक स्थिति जड़ता, प्रतिक्रियाहीनता की है।
- कवि ने निम्नलिखित खतरनाक स्थितियों के बारे में बताया है-
मेहनत की कमाई लूटना, पुलिस की मार, शासन के प्रति गद्दारी, लोभ करना। - इसका अर्थ है कि साधनहीनता की स्थिति में गुजारा चलाना बहुत बुरा है किंतु खतरनाक नहीं है।
- कवि ने अपने आक्रोश को दबाकर टालते रहने की प्रवृत्ति को बुरा बताया है इससे मनुष्य अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकता।
2.
सबसे खतरनाक होता है ।
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता हैं
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी निगाह में रुकी होती हैं
शब्दार्थ
मुर्दा शांति-निष्क्रियता, प्रतिरोध विहीनता की स्थिति। तड़प-बेचैनी। सपनों का मरना-इच्छाओं का नष्ट होना। घड़ी-समय बताने का यंत्र, वक्त। निगाह-दृष्टि।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि सबसे खतरनाक स्थिति वह है जब व्यक्ति जीवन के उल्लास व उमंग से मुँह मोड़कर निराशा व अवसाद से घिरकर सन्नाटे में जीने का अभ्यस्त हो जाता है। उसके अंदर कभी न समाप्त होने वाली शांति छा जाती है। वह मूक दर्शक बनकर सब कुछ चुपचाप सहन करता जाता है, ढरें पर आधारित जीवन जीने लगता है। वह घर से काम पर चला जाता है और काम समाप्त करके घर लौट आता है। उसके जीवन का मशीनीकरण हो जाता है। उसके सभी सपने मर जाते हैं और जीवन में कोई नयापन नहीं रह जाता है। उसकी सारी इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं। ये परिस्थितियाँ अत्यंत खतरनाक होती हैं। कवि कहता है कि सबसे खतरनाक दृष्टि वह है जो अपनी कलाई पर बँधी घड़ी को सामने चलता देख कर सोचे कि जीवन स्थिर है; दूसरे शब्दों में, मनुष्य नित्य हो रहे परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को नहीं बदलता और न ही स्वयं को बदलना चाहता है।
विशेष-
- कवि जीवन में आशा व समयानुसार परिवर्तन की माँग करता है।
- ‘घड़ी’ में श्लेष अलंकार है।
- ‘सपनों का मर जाना’ में लाक्षणिकता है।
- ‘मुर्दा शांति’ से भाव स्पष्ट हो गया है।
- भाषा व्यंजना प्रधान है।
- खड़ी बोली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवि के अनुसार सबसे खतरनाक क्या होता है?
- ‘मुद शांति’ से क्या अभिप्राय है?
- सपनों के मर जाने से क्या होता है?
- घड़ी के माध्यम से कवि क्या कहता है?
उत्तर –
- कवि के अनुसार, सबसे खतरनाक वह स्थिति है जब मनुष्य प्रतिक्रिया नहीं जताता, वह उत्साहहीन हो जाता है।
- ‘मुर्दा शांति’ से अभिप्राय है, मानय जीवन में जड़ता और निष्क्रियता का भाव होना अर्थात् अत्याचारों को मूक बनकर सहते जाना और कोई प्रतिक्रिया न व्यक्त करना।
- सपनों के मरने से मनुष्य की कामनाएँ, इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं। वह वर्तमान से संतुष्ट रहता है। इस प्रवृति से समाज में नए विचार व आविष्कार नहीं हो पाते।
- घड़ी समय को बताती है। वह समय की गतिशीलता दर्शाती है तथा मनुष्य को समय के अनुसार बदलने की प्रेरणा देती है। मनुष्य द्वारा स्वयं को न बदल पाने की स्थिति खतरनाक होती है।
3.
सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अधेपन की भाप पर दुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
शब्दार्थ
जमी बर्फ-संवेदनशून्यता। दुनिया-संसार। मुहब्बत-प्रेम। रोजमर्रा-दैनिक कार्य। उलटफेर-चक्कर। दुहराव-दोहराना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि सामाजिक विदूपताओं का विरोध न करने को खतरनाक मानता है। वह कहता है कि वह आँख बहुत खतरनाक होती है जो अपने सामने हो रहे अन्याय को संवेदनशून्य होकर वैसे देखती रहती है जैसे वह जमी बर्फ हो। जिसकी नजर इस संसार को प्यार से चूमना भूल जाती है अर्थात् जिस नजर से प्रेम व सौंदर्य की भावना समाप्त हो जाती है और हर वस्तु को घृणा से देखती है, वह नजर खतरनाक हो जाती है। ऐसी नजर वस्तु के स्वार्थ के लोभ में अंधी हो जाती है तथा उसे पाने के लिए लालयित हो उठती है, वह खतरनाक होती है। वह जिंदगी जो दैनिक क्रियाकलापों में संवेदनहीनता के साथ भटकती रहती है। जिसका कोई लक्ष्य नहीं है, जो लक्ष्यहीन होकर अपनी दिनचर्या को पूरा करती है, खतरनाक होती है।
विशेष-
- कवि संवेदनशून्यता पर गहरा व्यंग्य करता है।
- ‘जमी बर्फ’, ‘मुहब्बत से चूमना’, ‘अंधेपन की भाप’, ‘रोजमर्रा के क्रम को पीती’ आदि नए भाषिक प्रयोग हैं।
- ‘जमी बर्फ’ संवेदनशून्यता का परिचायक है।
- भाषा व्यंजना प्रधान है।
- ‘अंधेपन की भाप’ में रूपक अलंकार है।
- खड़ी बोली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवि कैसी आँख को खतरनाक मानता है?
- दुनिया को मुहब्बत की नजर से न चूमने वाली आँख को कवि खतरनाक क्यों मानता है?
- ‘जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुड़ी पंक्ति का आशय बताइए।
- आँख का अंधेपन की भाप पर दुलकना क्या कटाक्ष करता है?
उत्तर –
- कवि उस आँख को खतरनाक मानता है जो अन्याय को देखकर भी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती। इस तरह से कवि मनुष्य की संवेदनशून्यता पर चोट कर रहा है।
- दुनिया को मुहब्बत की नजर से न चूमने वाली आँख को कवि इसलिए खतरनाक मानता है; क्योंकि ऐसी नजर से प्रेम एवं सौंदर्य की भावना समाप्त हो जाती है। ऐसी आँख हर वस्तु को घृणा की दृष्टि से देखती है।
- इसका अर्थ है-वह जिदगी जो दैनिक क्रियाकलापों में संवेदनहीनता के साथ भटकती रहती है।
- इसमें कवि कहता है कि मनुष्य वस्तुओं की चाह में गलत-सही कार्य करता है। वह उनकी पूर्ति की चाह में हर मूल्य को दाँव पर लगा देता है।
4.
सबसे खतरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है
पर आपकी आँखों की मिचों की तरह नहीं गड़ता है।
शब्दार्थ
हत्याकांड-हत्या की घटना। वीरान-सुनसान। गड़ता-चुभना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि अपराधीकरण के बारे में बताता है कि वह चाँद सबसे खतरनाक है जो हत्याकांड के बाद उन आँगनों में चढ़ता है जो वीरान हो गए हैं। चाँद सौंदर्य और शांति का परिचायक है, परंतु हत्याकांडों का चश्मदीद गवाह भी है। ऐसे चाँद की चाँदनी लोगों की आँखों में मिर्च की तरह नहीं गड़ती। इसके विपरीत लोग शांति महसूस करते हैं।
विशेष–
- ‘चाँद’ आस्था व शांति का प्रतीक है।
- ‘मिर्च की तरह गड़ना’ सशक्त प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- ‘चाँद’ किसका प्रतीक है? कवि उसे खतरनाक क्यों मानता है?
- घर-आँगन के वीरान होने का क्या कारण है?
- अंतिम पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
- ‘चाँद’ आस्था व शांति का प्रतीक है। कवि उसे खतरनाक मानता है, क्योंकि वह लोगों में प्रतिकार की भावना को दबा देता है।
- इस आँगन के वीरान होने के कारण हत्याकांड हैं जो आतंक के कारण हो रहे हैं।
- इस पंक्ति का अर्थ है कि लोग हत्याकांड पर भी शांत रहते हैं तथा अपनी खुशियों में मग्न रहते हैं, जबकि उन्हें ऐसे हमलों का प्रतिकार करना चाहिए।
5.
सबसे खतरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
जो जिंदा रूह के आसमानों पर ढलती हैं
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़
आतांकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडे की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वह रात होती है
हमेशा के औधरे बद दरवाज-चौगाठों पर चिपक जाते हैं
शब्दार्थ
मरसिए-मृत्यु पर गाए जाने वाले करुण गीत। आतंकित-डरे हुए। जिंदा रूह-जीवित आत्मा। चौगाठों-चौखटें।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि वे गीत सबसे खतरनाक हैं जो मनुष्य के हृदय में शोक की लहर दौड़ाते हैं। वस्तुत: ये गीत मृत्यु पर गाए जाते हैं तथा भयभीत लोगों को और डराते हैं, उन्हें गुंडों की तरह धमकाते हैं तथा अकड़ते हैं। कवि ऐसे गीतों को निरर्थक मानता है, क्योंकि ये प्रतिरोध के भाव को नहीं जगाते। वह कहता है कि जब किसी जीवित आत्मा के आसमान पर निराशा रूपी रात्रि का घना औधेरा छा जाता है और उसमें कोई उत्साह नहीं रह जाता, ऐसी रात बहुत खतरनाक होती है। उसके हर कोने-चौखट पर उल्लू व गीदड़ों की तरह शोक व भय चिपक जाते हैं जो कभी निराशा से उबरने नहीं देते।
विशेष-
- कवि ने संवेदनहीनता व निराशा को खतरनाक बताया है।
- प्रतीकात्मकता है।
- ‘गुंडे की तरह अकड़ता है’, उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ’ बिंब सार्थक व सजीव है।
- गीत का मानवीकरण किया गया है।
- ‘मिचों की तरह’, ‘गुंडों की तरह’ में उपमा अलंकार है।
- खड़ी बोली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवि कैसे गीत को खतरनाक मानता है तथा क्यों?
- कवि लोगों की किस आदत को खतरनाक मानता है?
- कवि ने किस रात को खतरनाक माना है?
- ‘जिदा रूह के आसमानों’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर –
- कवि उन गीतों को खतरनाक मानता है जो शोक गीत गाकर लोगों के मन में प्रतिकार के भाव को समाप्त करके उन्हें और अधिक डराता है।
- कवि लोगों का आतंक सहने तथा उसका विरोध न करने की आदत को खतरनाक मानता है।
- कवि उस रात को खतरनाक मानता है जो जीवित लोगों की आत्मा रूपी आसमान पर अंधकार के समान छा जाती है
- इसका अर्थ है-सजग लोग। वह कहना चाहता है कि सजग लोगों को अंधविश्वासों व रूढ़ियों से बचना चाहिए।
6.
सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुद धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती।
शब्दार्थ
मुर्दा-मृत। जिस्म-शरीर। पूरब-पूर्व दिशा।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि सबसे खतरनाक दिशा वह है जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने अंदर की आवाज को नहीं सुनता। उसकी मुर्दा जैसी स्थिति हमें कहीं कोई प्रभाव छोड़ जाए तो यह स्थिति भी खतरनाक होती है। ऐसे लोगों में धूप की किरणों से आशा उत्पन्न भी हो तो मृतप्राय ही होती है। जो अपने ही शरीर रूपी पूर्व दिशा में चुभकर उसे लहूलुहान करती है। कवि कहना चाहता है कि अन्याय को सहना ही लोगों ने अपनी नियति मान लिया है।
कवि कहता है कि किसी की मेहनत की कमाई लुट जाए तो वह खतरनाक नहीं होती। पुलिस की मार या गद्दारी आदि भी इतने खतरनाक नहीं होते। खतरनाक स्थिति वह है जब व्यक्ति में संघर्ष करने की क्षमता ही खत्म हो जाए।
विशेष-
- कवि व्यक्ति की संवेदनहीनता को खतरनाक स्थिति बताता है।
- ‘आत्मा का सूरज’ और ‘जिस्म के पूरब’ में रूपक अलंकार है।
- खड़ी बोली है।
- सांकेतिक भाषा है।
- काव्य रचना मुक्त छंद है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवि ने आत्मा को क्या माना है?
- कवि किस दिशा को खतरनाक मानता है?
- ‘आत्मा का सूरज डूबने जाए’ का अर्थ बताइए।
- मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा का व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
- कवि ने आत्मा को मृत के समान तटस्थ माना है।
- कवि उस दिशा को खतरनाक मानता है जिस पर चलकर मनुष्य अपनी आत्मा की बात अनसुनी कर देता है।
- इसका अर्थ है-अंतरात्मा की आवाज का क्षीण पड़ना।
- कवि कहना चाहता है कि आदर्शपरक अच्छी बातें ; जैसे-त्याग, अहिंसा, बलिदान आदि मनुष्य को प्रतिक्रियाहीन व जड़ बना देती हैं।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न
1.
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो हैं
किसी जुगनू की लों में पढ़ना-बुरा तो हैं
मुट्टियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना-बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता
प्रश्न
- भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
- शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर –
- इस काव्यांश में कवि ने कुछ स्थितियों का वर्णन किया है जो बुरी तो हैं, परंतु सबसे खतरनाक नहीं हैं। सही बातों का कपट के कारण दब जाना, अभाव में रहना, क्रोध को व्यक्त करना आदि बुरी स्थितियाँ तो हैं; परंतु सबसे खतरनाक नहीं हैं।
- ‘बुरा तो है’ पद की आवृत्ति प्रभावी है।
- ‘जुगनू की लौ’ से साधनहीनता प्रकट होती है।
- ‘कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना’, ‘जुगनू की लौ में पढ़ना’, ‘मुट्ठयाँ भींचकर वक्त निकाल लेना’ आदि नए भाषिक प्रयोग हैं।
- व्यंजना शब्द शक्ति है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- मुक्त छंद है।
- सरल शब्दावली है।
2.
सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अधेपन की भाप पर दुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
प्रश्न
- भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
- शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर –
- इस काव्यांश में दृष्टि के अनेक रूपों का उल्लेख किया गया है। कवि संवेदनशील व परिवर्तनकारी जीवन शैली का समर्थन है। ‘सबसे खतरनाक’ कहकर कवि उन वस्तुओं या भावों को समाज के लिए हानिकारक व अनुपयोगी मानता है।
- जमी बर्फ’, संवेदना शून्य ठडे जीवन का
- ‘जमी बर्फ होती’, ‘मुहब्बत से चूमना’, ‘अंधेपन की प्रतीक है। भाप’ आदि नए भाषिक प्रयोग हैं।
- ‘अंधेपन की भाप’ में रूपक अलंकार है।
- भाषा में व्यंजना शक्ति है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है।
- प्रतीकों व बिंबों का सशक्त प्रयोग है।
3.
सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुद धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
प्रश्न
- भाव-सौदर्य बताइए।
- शिल्प–सौंदर्य बताइए।
उत्तर –
- इस अंश में, कवि आत्मा की आवाज को अनसुना करने वाली चिंतन-शैली को धिक्कारता है। वह कट्टर विचारधारा का विरोधी है।
- ‘आत्मा का सूरज’ में रूपक अलंकार है।
- ‘जिस्म के पूरब’ में रूपक अलंकार है।
- सांकेतिक भाषा का प्रयोग है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- मुक्त छंद है।
- उर्दू शब्दावली का प्रयोग है।