कक्षा 12 बात सीधी थी पर

                   पाठ - 3 ( काव्य खंड )
                     बात सीधी थी पर
प्रतिपादय-यह कविता ‘कोई दूसरा नहीं'’ कविता-संग्रह से संकलित है। इसमें कथ्य के द्वंद्व उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। अब तक जिन शब्दों को हम एक-दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, उन सबके भी अपने अर्थ होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती, वह सहूलियत के साथ हो जाता है। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है।

सार-कवि का मानना है कि बात और भाषा स्वाभाविक रूप से जुड़े होते हैं। किंतु कभी-कभी भाषा के मोह में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। मनुष्य अपनी भाषा को टेढ़ी तब बना देता है जब वह आडंबरपूर्ण तथा चमत्कारपूर्ण शब्दों के माध्यम से कथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। अंतत: शब्दों के चक्कर में पड़कर वे कथ्य अपना अर्थ खो बैठते हैं। अत: अपनी बात सहज एवं व्यावहारिक भाषा में कहना चाहिए ताकि आम लोग कथ्य को भलीभाँति समझ सकें।

बात सीधी थी पर……
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में 
जरा टेढ़ी फैंस गई।
उसे पाने की कोशिश में 
भाषा को उलटा-पालटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

शब्दार्थ- सीधी-सरल, सहज। चक्कर-प्रभाव। टेढ़ा फैसना-बुरा फँसना। पेचीदा-कठिन, मुश्किल।

व्याख्या-कवि कहता है कि वह अपने मन के भावों को सहज रूप से अभिव्यक्त करना चाहता था, परंतु समाज की प्रकृति को देखते हुए उसे प्रभावी भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहा। पर भाषा के चक्कर में भावों की सहजता नष्ट हो गई। कवि कहता है कि मैंने मूल बात को कहने के लिए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदला। फिर उसके रूप को बदला तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने कोशिश की कि या तो इस प्रयोग से उसका काम बन जाए या फिर वह भाषा के उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो सके, परंतु कवि को कोई भी सफलता नहीं मिली। उसकी भाषा के साथ-साथ कथ्य भी जटिल होता गया।

विशेष-
1. कवि ने भाषा की जटिलता पर कटाक्ष किया है।
2. भाषा सरल, सहज साहित्यिक खड़ी बोली है।
3. काव्यांश रचना मुक्त छंद में है।
4. ‘टेढ़ी फसना’, ‘पेचीदा होना’ मुहावरों का सुंदर प्रयोग है।
5. ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
प्रश्न-
(क) ‘भाषा के चक्कर” का तातपर्य बताइए।
उत्तर-  ‘भाषा के चक्कर’ से तात्पर्य है-भाषा को जबरदस्ती अलंकृत करना।
(ख) कवि अपनी बात के बारे में क्या बताता है?
उत्तर- कवि कहता है कि उसकी बात साधारण थी, परंतु वह भाषा के चक्कर में उलझकर जटिल हो गई।
(ग) कवि ने बात को पाने के चक्कर में क्या-क्या किया?
उत्तर- कवि ने बात को प्राप्त करने के लिए भाषा को घुमाया-फिराया, उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा। फलस्वरूप वह बात पेचीदा हो गई।
(घ) कवि की असफलता का क्या कारण था?
उत्तर- कवि ने अपनी बात को कहने के लिए भाषा को जटिल व अलंकारिक बनाने की कोशिश की। इस कारण बात अपनी सहजता खो बैठी और वह पेचीदा हो गई।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
में पेंच को खोलने की बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।

शब्दार्थ-मुश्किल-कठिन। धैर्य-धीरज। पेंच-ऐसी कील जिसके आधे भाग पर चूड़ियाँ बनी होती हैं, उलझन। बेतरह-बुरी तरह। करतब-चमत्कार। तमाशबीनों -दर्शक, तमाशा देखने वाले। शाबाशी- प्रशंसा, प्रोत्साहन।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब उसकी बात पेचीदा हो गई तो उसने सारी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। हल ढूँढ़ने की बजाय वह और अधिक शब्दजाल में फैस गया। बात का पेंच खुलने के स्थान पर टेढ़ा होता गया और कवि उसे अनुचित रूप से कसता चला गया। इससे भाषा और कठिन हो गई। शब्दों के प्रयोग पर दर्शक उसे प्रोत्साहन दे रहे थे, उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
विशेष-
1. कवि धैर्यपूर्वक सरलता से काम करने की सलाह दे रहा है।
2. ‘वाह-वाह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘पेंच कसने’ के बिंब से कवि का कथ्य प्रभावी बना है।
4. ‘बेतरह’ विशेषण सटीक है।
5. ‘करतब’ शब्द में व्यंग्यात्मकता का भाव निहित है।
6. लोकप्रिय उर्दू शब्दों-बेतरह, करतब, तमाशबीन, साफ़ आदि का सुंदर प्रयोग है।
7. मुक्तक छंद है।
प्रश्न
(क) कवि की क्या कमी थी?
उत्तर- कवि ने अपनी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। वह धैर्य खो बैठा।
(ख) ‘पेंच को खोलने की बजाय कसना’-पक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर- इसका अर्थ यह है कि उसने बात को स्पष्ट नहीं किया। इसके विपरीत, वह शब्दजाल में उलझता गया।
(ग) कवि ने अपने किस कार्य को करतब कहा है?
उत्तर- कवि ने अभिव्यक्ति को बिना सोचे-समझे उलझाने व कठिन बनाने को करतब कहा है।
(घ) कवि के करतब का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर- कवि ने भाषा को जितना ही बनावटी ढंग और शब्दों के जाल में उलझाकर लाग-लपेट करने वाले शब्दों में कहा, सुनने वालों द्वारा उसे उतनी ही शाबाशी मिली।

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी! 
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत !
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?’

शब्दार्थ- जोर -बल । चूड़ी मरना- पेंच कसने के लिए बनी चूड़ी का नष्ट होना, कथ्य का मुख्य भाव समाप्त होना। कसाव- खिचाव, गहराई। सहूलियत- सहजता, सुविधा। बरतना- व्यवहार में लाना।

व्याख्या- कवि अपनी बात कहने के लिए बनावटी भाषा का प्रयोग करने लगा। परिणाम वही हुआ जिसका कवि को डर था। जैसे पेंच के साथ जबरदस्ती करने से उसकी चूड़ियाँ समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार शब्दों के जाल में उलझकर कवि की बात का प्रभाव नष्ट हो गया और वह बनावटीपन में ही खो गई। उसकी अभिव्यंजना समाप्त हो गई। अंत में, कवि जब अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो उसने अपनी बात को वहीं पर छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ी समाप्त होने पर उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है। ऐसी स्थिति में कवि की अभिव्यक्ति बाहरी तौर पर कविता जैसी लगती थी, परंतु उसमें भावों की गहराई नहीं थी, शब्दों में ताकत नहीं थी। कविता प्रभावहीन हो गई। जब वह अपनी बात स्पष्ट न कर सका तो बात ने शरारती बच्चे के समान पसीना पोंछते कवि से पूछा कि क्या तुमने कभी भाषा को सरलता, सहजता और सुविधा से प्रयोग करना नहीं सीखा।

विशेष-
1. कवि ने कविताओं की आडंबरपूर्ण भाषा पर व्यंग्य किया है।
2. बात का मानवीकरण किया है।
3. ‘कील की तरह’, ‘शरारती बच्चे की तरह’ में उपमा अलंकार है।
4. ‘जोर-जबरदस्ती’, ‘पसीना पोंछते’ में अनुप्रास तथा ‘बात की चूड़ी’ में रूपक अलंकार है।
5. ‘ कील की तरह ठोंकना’ भाषा को जबरदस्ती जटिल बनाने का परिचायक है।
6. मुक्तक छंद है।
7. काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग है।
प्रश्न
(क) बात की चूड़ी मर जाने और बेकार घूमने के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता हैं?
उत्तर- जब हम पेंच को जबरदस्ती कसते चले जाते हैं तो वह अपनी चूड़ी खो बैठता है तथा स्वतंत्र रूप से घूमने लगता है। इसी तरह जब किसी बात में जबरदस्ती शब्द ढूँसे जाते हैं तो वह अपना प्रभाव खो बैठती है तथा शब्दों के जाल में उलझकर रह जाती है।
(ख) काव्यांश में प्रयुक्त दोनों आयामों के प्रयोग-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए/
उत्तर- बात के उपेक्षित प्रभाव के लिए कवि ने पेंच और कील की उपमा दी है। इन शब्दों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि निरर्थक व अलंकारिक शब्दों के प्रयोग से बात शब्द-जाल में घूमती रहती है। उसका प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(ग) भाष को सहूलियत से बरतने का क्या अभिप्राय हैं?
उतर- ‘भाषा को सहूलियत से बरतने’ का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति सहज तरीके से करनी चाहिए। शब्द-जाल में उलझने से बात का प्रभाव समाप्त हो जाता है और केवल शब्दों की कारीगरी रह जाती है।
(घ) बात ने कवि से क्या पूछा तथा क्यों?
उत्तर- बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा कि क्या उसने भाषा के सरल, सहज प्रयोग को नहीं सीखा। इसका कारण यह था कि कवि ने भाषा के साथ जोर-जबरदस्ती की थी।

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