हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्न - पत्र परीक्षा सम्बन्धी
भारतीय गायिकाओं में बेजोड़- लता मंगेशकर, MCQ
समास
(2) तत्पुरुष समास
- इस समास में पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
- समस्त पद बनाते समय पदों के विभक्ति चिह्नों को लुप्त किया जाता है।
- इस समास की दो प्रकार से रचना होती है:
(क) संज्ञा + संज्ञा/विशेषण
- युद्ध का क्षेत्र = युद्धक्षेत्र
- दान में वीर = दानवीर
(ख) संज्ञा + क्रिया
- शरण में आगत = शरणागत
- स्वर्ग को गमन = स्वर्गगमन
कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं:
1. कर्म तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'को')
जहाँ पूर्व पद में कर्म कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है। वहाँ कर्म तत्पुरुष होता है। उदाहरण के लिए-
समस्त पद | विग्रह |
परलोकगमन | परलोक को गमन |
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
मरणप्राप्त | मरण को प्राप्त |
स्वर्गगत | स्वर्ग को गया हुआ |
विद्यालयगत | विद्यालय को आया हुआ |
नगरगत | नगर को गया हुआ |
2. करण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'से, के द्वारा')
करण तत्पुरुष समास के पूर्वपद में करण कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण के लिए-
समस्त पद विग्रह रक्त लिप्त रक्त से लिप्त देवदत्त देव के द्वारा दिया गया हस्तलिखित हस्त से लिखित प्रेमपीड़ित प्रेम से पीड़ित पुत्रसंतुष्ट पुत्र के द्वारा संतुष्ट स्वरचित स्वयं के द्वारा रचित परिश्रमसाध्य परिश्रम से साध्य राजपालित राजा के द्वारा पालित विद्यालंकृत विद्या से अलंकृत पुरस्कारसम्मानित पुरस्कार से सम्मानित
3. सम्प्रदान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'के लिए')
संप्रदान तत्पुरुष में पूर्व पद के संप्रदान कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण के लिए-
समस्त पद विग्रह छात्रशाला छात्रों के लिए शाला यज्ञसामग्री यज्ञ के लिए सामग्री मार्गव्यय मार्ग के लिए व्यय रसोईघर रसोई के लिए घर प्रयोगभवन प्रयोग के लिए भवन राष्ट्रप्रेम राष्ट्र के लिए प्रेम हाथघड़ी हाथ के लिए घड़ी गुरुदक्षिणा गुरु के लिए दक्षिणा बलिपुरुष बलि के लिए पुरुष आरामकुर्सी आराम के लिए कुर्सी
4. अपादान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'से' [अलग होने का भाव])
अपादान तत्पुरुष समास में पूर्व पद के अपादान कारक की विभक्ति का लोप हो जाता है जैसे-
समस्त पद विग्रह धनहीन धन से हीन चौरभय चोर से भय वनागमन वन से आगमन राजभय राजा से भय जन्मांध जन्म से अंधा भयभीत भयभीत सर्वसुंदर सबसे सुंदर आचारशून्य आचार से शून्य ऋणमुक्त ऋण से मुक्त
5. संबंध तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'का, के, की')
संबंध तत्पुरुष समास में पूर्व पद के संबंध कारक की विभक्ति होती है, उसका लोप कर पूर्व पद को उत्तर पद के साथ जोड़ दिया जाता है। जैसे-
समस्त पद विग्रह राष्ट्रीय सुरक्षा राष्ट्र की सुरक्षा रामाश्रय राम का आश्रय देवमूर्ति देव की मूर्ति राष्ट्रपिता राष्ट्र का पिता राजघराना राजा का घराना राजमहल राजा का महल देशवासी देश का वासी स्वास्थ्यरक्षा स्वास्थ्य की रक्षा राजकुल राजा का कुल करोड़पति करोड़ों का पति मकानमालिक मकान का मालिक जनहित जनों का हित धनशक्ति धन की शक्ति हिमालय हिम का आलय दीनबंधु दीनो का बंधु
6. अधिकरण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'में, पर')
जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति का- मैं, पर का लोप हो जाता है वहां अधिकरण तत्पुरुष समास होता है. जैसे
समस्त पद विग्रह धर्मवीर धर्म में वीर कलानिधि कला में निधि लोकप्रिय लोक में प्रिय भक्तिमग्न भक्ति में मग्न वनवास वन में वास शरणागत शरण में आगत पुरुषोत्तम पुरुषों में उत्तम डिब्बाबंद डिब्बे में बंद जगबीती जग पर बीती सरदर्द सर में दर्द
यद्यपि तत्पुरुष समास के अधिकांश विग्रहों में कोई विभक्ति चिह्न अवश्य आता है परंतु तत्पुरुष समास के कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनके विग्रहों में विभक्ति चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता; संस्कृत में इस भेद को नञ तत्पुरुष कहा जाता है। जैसे:
समस्त-पद | विग्रह |
---|---|
अनाचार | न आचार |
अनदेखा | न देखा हुआ |
अन्याय | न न्याय |
अनभिज्ञ | न अभिज्ञ |
नालायक | नहीं लायक |
अचल | न चल |
नास्तिक | न आस्तिक |
अनुचित | न उचित |
(3) कर्मधारय समास
- इस समास में पूर्व पद तथा उत्तर पद के मध्य में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है।
- पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
समस्त पद | समास-विग्रह | समस्त पद | समास-विग्रह |
---|---|---|---|
चंद्रमुख | चंद्र जैसा मुख | कमलनयन | कमल के समान नयन |
देहलता | देह रूपी लता | महादेव | महान देव |
नीलकमल | नीला कमल | पीतांबर | पीला अंबर (वस्त्र) |
सज्जन | सत् (अच्छा) जन | नरसिंह | नरों में सिंह के समान |
(4) द्विगु समास
यह कर्मधारय समास का उपभेद होता है। इस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्त पद किसी समुह को बोध होता है।
समस्त पद | समास-विग्रह | समस्त पद | समास-विग्रह |
---|---|---|---|
नवग्रह | नौ ग्रहों का समूह | दोपहर | दो पहरों का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोकों का समाहार | चौमासा | चार मासों का समूह |
नवरात्र | नौ रात्रियों का समूह | शताब्दी | सौ अब्दो (वर्षों) का समूह |
अठन्नी | आठ आनों का समूह | त्रयम्बकेश्वर | तीन लोकों का ईश्वर |
(5) बहुव्रीहि समास
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे:
समस्त पद | समास-विग्रह |
---|---|
दशानन | दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण |
नीलकंठ | नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव |
सुलोचना | सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी |
पीतांबर | पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण |
लंबोदर | लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी |
दुरात्मा | बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट) |
श्वेतांबर | श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी |
(6) द्वंद्व समास
इस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर योजक या समुच्चय बोधक शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे- सत्य-असत्य , भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा, माता-पिता
"और" का प्रयोग समान प्रकृति के पदों के मध्य तथा "या" का प्रयोग विपरीत प्रकृति के पदों के मध्य किया जाता है। उदाहरण: माता-पिता = माता और पिता (समान प्रकृति) गाय-भैंस = गाय और भैंस (समान प्रकृति) धर्माधर्म = धर्म या अधर्म (विपरीत प्रकृति) सुरासुर = सुर या असुर (विपरीत प्रकृति)
द्वंद्व समास के तीन भेद होते हैं- इतरेतर द्वंद्व, समाहार द्वंद्व, वैकल्पिक द्वंद्व
1. इतरेतर द्वन्द्व समास
इतरेतर द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है और प्रत्येक दो पदों के बीच में और शब्द का लोप पाया जाता है उसे इतरेतर द्वन्द्व समास कहते हैं।
उदाहरण :-
माता-पिता | माता और पिता |
तन-मन | तन और मन |
ज्ञान-विज्ञान | ज्ञान और विज्ञान |
धनु-र्बाण | धनुष और बाण |
जल-वायु | जल और वायु |
लव-कुश | लव और कुश |
लोटा-डोरी | लोटा और डोरी |
तिर-सठ | तीन और साठ |
सीता-राम | सीता और राम |
सुरा-सर | सुर और असुर |
2. वैकल्पिक द्वन्द्व समास
जिसमे समस्त पद में दो विरोधी शब्दों का प्रयोग हो और प्रत्येक दो पदों के बीच या अथवा में से किसी एक का लोप पाया जाए उसे वैकल्पिक द्वन्द्व समास कहते है।
दो-चार | दो या चार |
लाभा-लाभ | लाभ या अलाभ |
सुरा-सुर | सुर या असुर |
भला-बुरा | भला या बुरा |
धर्मा-धर्मा | धर्म या अधर्म |
आजकल | आज या कल |
ऊँच नीच | ऊँच या नीच |
जीवन मरण | जीवन और मरण |
3. समाहार द्वन्द्व समास
जिसमे दोनों पद प्रधान हो और दोनों ही पद बहुवचन में प्रयुक्त हो, उसे समाहार द्वन्द्व समास कहते है। इसके विग्रह के अंत में आदि शब्द का प्रयोग किया जाता हैं।
उदाहरण :-
फल-फूल | फल फूल आदि |
दाल-रोटी | दाल रोटी आदि |
कपड़ा-लत्ता | कपड़ा लत्ता आदि |
हाथ-पैर | हाथ पैर आदि |
साग-पात | साग पात आदि |
पेड़-पौधे | पेड़ पौधे आदि |
धन दौलत | धन दौलत आदि |
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है।
जैसे: नीलकंठ = नीला कंठ।
बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है।
जैसे: नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।
संधि और समास में अंतर
संधि में वर्णों का मेल होत है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे: देव + आलय = देवालय।
समास में दो पदों का मेल होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।
जैसे: विद्यालय = विद्या के लिए आलय।
अपठित बोध ( गद्यांश )
विधि एवं विशेषताएँ
- प्रस्तुत अवतरण को मन-ही-मन एक-दो बार पढ़ना चाहिए।
- अनुच्छेद को पुनः पढ़ते समय विशिष्ट स्थलों को रेखांकित करना चाहिए।
- अपठित के उत्तर देते समय भाषा एकदम सरल, व्यावहारिक और सहज होनी चाहिए। बनावटी या लच्छेदार भाषा का प्रयोग करना एकदम अनुचित होगा।
- अपठित से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर लिखते समय कम-से-कम शब्दों में अपनी बात कहने का प्रयास करना चाहिए।
- शीर्षक देते समय संक्षिप्तता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
1. संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद चैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्म के माध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्म मनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया। धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआ उतना और किसी कारण से नहीं। पर धीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारण होने वाले अनर्थ को समझने लग गया है। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभाव अब धरती से मिटते जा रहे हैं। विज्ञान की प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि के कारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं। इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईर्ष्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।
प्रश्न
(क) मनुष्य अधर्म के कारण होने वाले अनर्थ को कैसे समझने लगा है
(i) संतों के अनुभव से
(ii) वर्ण भेद से
(iii) घृणा, ईर्ष्या, वैमनस्य, कटुता से
(iv) अपनी शुभ बुधि से
(ख) विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों की वृद्धि का परिणाम क्या हुआ है|
(i) देशों में भिन्नता बढ़ी है।
(ii) देशों में वैमनस्यता बढ़ी है।
(iii) देशों की दूरियाँ कम हुई है।
(iv) देशों में विदेशी व्यापार बढ़ा है ।
(ग) देश में आज भी कौन-सी समस्या है
(i) नफ़रत की
(ii) वर्ण-भेद की
(iii) सांप्रदायिकता की
(iv) अमीरी-गरीबी की
(घ) किस कारण से देश में मानव के बीच, घृणा, ईर्ष्या, वैमनस्यता एवं कटुता में कमी नहीं आई है?
(i) नफ़रत से
(ii) सांप्रदायिकता से
(iii) अमीरी गरीबी के कारण
(iv) वर्ण-भेद के कारण
(ङ) मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है
(i) शिक्षा का व्यापक प्रसार
(ii) धर्म का व्यापक प्रसार
(ii) प्रेम और सद्भावना का व्यापक प्रसार
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(क) (iv) (ख) (iii) (ग) (ii) (घ) (iv) (ङ) (i)
2. संघर्ष के मार्ग में अकेला ही चलना पड़ता है। कोई बाहरी शक्ति आपकी सहायता नहीं करती है। परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन आदि मानवीय गुण व्यक्ति को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दो महत्त्वपूर्ण तथ्य स्मरणीय है – प्रत्येक समस्या अपने साथ संघर्ष लेकर आती है। प्रत्येक संघर्ष के गर्भ में विजय निहित रहती है। एक अध्यापक छोड़ने वाले अपने छात्रों को यह संदेश दिया था – तुम्हें जीवन में सफल होने के लिए समस्याओं से संघर्ष करने को अभ्यास करना होगा। हम कोई भी कार्य करें, सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने का संकल्प लेकर चलें। सफलता हमें कभी निराश नहीं करेगी। समस्त ग्रंथों और महापुरुषों के अनुभवों को निष्कर्ष यह है कि संघर्ष से डरना अथवा उससे विमुख होना अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है और अपने विकास को अनावश्यक रूप से बाधित करना है। आप जागिए, उठिए दृढ़-संकल्प और उत्साह एवं साहस के साथ संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़िए और अपने जीवन के विकास की बाधाओं रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कीजिए।
प्रश्न
(क) मनुष्य को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं
(i) निर्भीकता, साहस, परिश्रम
(ii) परिश्रम, लगन, आत्मविश्वास
(iii) साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम
(iv) परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन
(ख) प्रत्येक समस्या अपने साथ लेकर आती है–
(i) संघर्ष
(ii) कठिनाइयाँ
(iii) चुनौतियाँ
(iv) सुखद परिणाम
(ग) समस्त ग्रंथों और अनुभवों का निष्कर्ष है
(i) संघर्ष से डरना या विमुख होना अहितकर है।
(ii) मानव-धर्म के प्रतिकूल है।
(iii) अपने विकास को बाधित करना है।
(iv) उपर्युक्त सभी
(घ) ‘मानवीय’ शब्द में मूल शब्द और प्रत्यय है
(i) मानवी + य
(ii) मानव + ईय
(iii) मानव + नीय
(iv) मानव + इय
(ङ) संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़ने के लिए आवश्यक है
(i) दृढ़ संकल्प, निडरता और धैर्य
(ii) दृढ़ संकल्प, उत्साह एवं साहस
(iii) दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और साहस
(iv) दृढ़ संकल्प, उत्तम चरित्र एवं साहस
उत्तर-
(क) (iv) (ख) (i) (ग) (iv) (घ) (ii) (ङ) (ii)
3. कार्य का महत्त्व और उसकी सुंदरता उसके समय पर संपादित किए जाने पर ही है। अत्यंत सुघड़ता से किया हुआ कार्य भी यदि आवश्यकता के पूर्व न पूरा हो सके तो उसका किया जाना निष्फले ही होगा। चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिए जाने पर यदि रखवाला उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करे तो सर्वत्र उपहास का पात्र ही बनेगा। उसके देर से किए गए उद्यम का कोई मूल्य नहीं होगा। श्रम का गौरव तभी है जब उसका लाभ किसी को मिल सके। इसी कारण यदि बादलों द्वारा बरसाया गया जल कृषक की फ़सल को फलने-फूलने में मदद नहीं कर सकता तो उसका बरसना व्यर्थ ही है। अवसर का सदुपयोग न करने वाले व्यक्ति को इसी कारण पश्चाताप करना पड़ता है।
प्रश्न
(क) जीवन में समय का महत्त्व क्यों है?
(i) समय काम के लिए प्रेरणा देता है।
(ii) समय की परवाह लोग नहीं करते।
(iii) समय पर किया गया काम सफल होता है।
(iv) समय बड़ा ही बलवान है।
(ख) खेत का रखवाला उपहास का पात्र क्यों बनता है?
(i) खेत में पौधे नहीं उगते।
(ii) समय पर खेत की रखवाली नहीं करता।
(iii) चिड़ियों का इंतजार करता रहता है।
(iv) खेत पर मौजूद नहीं रहता।।
ग) चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिए जाने पर यदि रखवाला उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करे तो सर्वत्र उपहास का पात्र ही बनेगा। इस पदबंध का प्रकार होगा
(i) संज्ञा
(ii) सर्वनाम
(iii) क्रिया
(iv) क्रियाविशेषण
(घ) बादल का बरसना व्यर्थ है, यदि
(i) गरमी शांत न हो।
(ii) फ़सल को लाभ न पहुँचे
(iii) किसान प्रसन्न न हो
(iv) नदी-तालाब न भर जाएँ
(ङ) गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(i) बादल का बरसना
(ii) चिड़ियों द्वारा खेत का चुगना
(iii) किसान का पछतावा करना
(iv) समय का सदुपयोग
उत्तर-
(क) (iii) (ख) (ii) (ग) (i)(घ) (ii) (ङ) (iv)
4. मानव जाति को अन्य जीवधारियों से अलग करके महत्त्व प्रदान करने वाला जो एकमात्र गुरु है, वह है उसकी विचार-शक्ति। मनुष्य के पास बुधि है, विवेक है, तर्कशक्ति है अर्थात उसके पास विचारों की अमूल्य पूँजी है। अपने सविचारों की नींव पर ही आज मानव ने अपनी श्रेष्ठता की स्थापना की है और मानव-सभ्यता का विशाल महल खड़ा किया है। यही कारण है कि विचारशील मनुष्य के पास जब सविचारों का अभाव रहता है तो उसका वह शून्य मानस कुविचारों से ग्रस्त होकर एक प्रकार से शैतान के वशीभूत हो जाता है। मानवी बुधि जब सद्भावों से प्रेरित होकर कल्याणकारी योजनाओं में प्रवृत्त रहती है तो उसकी सदाशयता का कोई अंत नहीं होता, किंतु जब वहाँ कुविचार अपना घर बना लेते हैं तो उसकी पाशविक प्रवृत्तियाँ उस पर हावी हो उठती हैं। हिंसा और पापाचार का दानवी साम्राज्य इस बात का द्योतक है कि मानव की विचार-शक्ति, जो उसे पशु बनने से रोकती है, उसका साथ देती है।
प्रश्न
(क) मानव जाति को महत्त्व देने में किसका योगदान है?
(i) शारीरिक शक्ति का
(ii) परिश्रम और उत्साह का
(iii) विवेक और विचारों का
(iv) मानव सभ्यता का
(ख) विचारों की पूँजी में शामिल नहीं है
(i) उत्साह
(ii) विवेक
(iii) तर्क
(iv) बुधि
(ग) मानव में पाशविक प्रवृत्तियाँ क्यों जागृत होती हैं?
(i) हिंसाबुधि के कारण
(ii) असत्य बोलने के कारण
(iii) कुविचारों के कारण
(iv) स्वार्थ के कारण
(घ) “मनुष्य के पास बुधि है, विवेक है, तर्कशक्ति है’ रचना की दृष्टि से उपर्युक्त वाक्य है
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) जटिल
(ङ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है
(i) मनुष्य का गुरु
(ii) विवेक शक्ति
(iii) दानवी शक्ति
(iv) पाशविक प्रवृत्ति
उत्तर-
(क) (iii) (ख) (i) (ग) (iii) (घ) (i) (ङ) (ii)
5. बातचीत करते समय हमें शब्दों के चयन पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि सम्मानजनक शब्द व्यक्ति को उदात्त एवं महान बनाते हैं। बातचीत को सुगम एवं प्रभावशाली बनाने के लिए सदैव प्रचलित भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। अत्यंत साहित्यिक एवं क्लिष्ट भाषा के प्रयोग से कहीं ऐसा न हो कि हमारा व्यक्तित्व चोट खा जाए। बातचीत में केवल विचारों का ही आदानप्रदान नहीं होता, बल्कि व्यक्तित्व का भी आदान-प्रदान होता है। अतः शिक्षक वर्ग को शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। शिक्षक वास्तव में एक अच्छा अभिनेता होता है, जो अपने व्यक्तित्व, शैली, बोलचाल और हावभाव से विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और उन पर अपनी छाप छोड़ता है।
प्रश्न
(क) शिक्षक होता है
(i) राजनेता
(ii) साहित्यकार
(iii) अभिनेता
(iv) कवि
(ख) बातचीत में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए?
(i) अप्रचलित
(ii) प्रचलित
(iii) क्लिष्ट
(iv) रहस्यमयी
(ग) शिक्षक वर्ग को बोलना चाहिए?
(i) सोच-समझकर
(ii) ज्यादा
(iii) बिना सोचे-समझे
(iv) तुरंत
(घ) बातचीत में आदान-प्रदान होता है–
(i) केवल विचारों का
(ii) केवल भाषा का
(ii) केवल व्यक्तित्व का
(iv) विचारों एवं व्यक्तित्व का
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है
(i) बातचीत की कला
(ii) शब्दों का चयन
(iii) साहित्यिक भाषा
(iv) व्यक्तित्व का प्रभाव
उत्तर-
(क) (iii) (ख) (iii) (ग) (i) (घ) (iv) (ङ) (ii)
रस विवेचन
काव्यगुण
जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं, ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गुणों के कारण मनुष्य की शोभा बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।
काव्यगुण काव्य में आन्तरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण या शब्द गुण कहते हैं। यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है, जैसे फूल में सुगन्ध।
आचार्य वामन द्वारा प्रवर्तित रीति सम्प्रदाय को ही गुण सम्प्रदाय भी कहा जाता है
काव्यगुण
काव्य में आन्तरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण या शब्द गुण कहते हैं। यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है, जैसे फूल में सुगन्ध।
अर्थात काव्य की शोभा करने वाले या रस को प्रकाशित करने वाले तत्व या विशेषता का नाम ही गुण है।
विशेष :
1. काव्य गुण और रीति परस्पर आश्रित है।
2. काव्य गुणों पर व्यापक और विस्तृत चर्चा आचार्य वामन ने की।
आचार्य वामन ने गुण को स्पष्ट करते हुए स्वरचित ’काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ ग्रंथ में लिखा है
"काव्याशोभायाः कर्तारी धर्माः गुणाः। तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः।।’’
अर्थात् शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है।
वामन के अनुसार ’गुण’ काव्य के नित्य धर्म है।
इनकी अनुपस्थिति में काव्य का अस्तित्व असंभव है।
काव्य गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं -
1. माधुर्य 2. ओज 3. प्रसाद
1. माधुर्य गुण
किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में जहाँ मधुरता का संचार होता है, उसमें माधुर्य गुण होता है। यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है।
(अ) माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है, जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, ...आदि। (ट वर्ग को छोडकर)
(ब) इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता।
(स) आनुनासिक वर्णों की अधिकता।
(द) अल्प समास या समास का अभाव।
इस प्रकार हम कह सकते हैं,कि कर्ण प्रिय, आर्द्रता, समासरहितता, चित की द्रवणशीलता और प्रसन्नताकारक काव्य माधुर्य गुण युक्त काव्य होता है।
1. बसों मोरे नैनन में नंदलाल,
मोहिनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल।
2. कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि॥
3.फटा हुआ है नील वसन क्या, ओ यौवन की मतवाली ।
2. ओज गुण
यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स, रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है।
(स) समासाधिक्य और कठोर वर्णों की प्रधानता होती है।
1. बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
2. हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।
स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
3. हाय रुण्ड गिरे, गज झुण्ड गिरे, फट-फट अवनि पर शुण्ड गिरे।
3. प्रसाद गुण
प्रसाद का शाब्दिकार्थ है - निर्मलता, प्रसन्नता।यह सभी रसों में पाया जा सकता है।
1. जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।
2. हे प्रभो ज्ञान दाता ! ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
3. विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना।
परिचय इतना इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।।
हिंदी साहित्य का इतिहास
अलंकार ( कक्षा - 10 )
इतिहास लेखन की पद्धतियाँ
(1) वर्णानुक्रम पद्धति - गार्सा द तासी, शिव सिंह सेंगर
(2) कालानुक्रम पद्धति - ग्रियर्सन, मिश्रबन्धु(3) वैज्ञानिक पद्धति - गणपति चंद्र गुप्त
(4) विधेयवादी पद्धति - रामचंद्र शुक्ल, तेन
(5) आलोचनात्मक पद्धति - डॉ. रामकुमार वर्मा
(6) समाज शास्त्रीय पद्धति -
1. वर्णानुक्रम पद्धति :- वर्ण + अनुक्रम
वर्णमाला के वर्णों के अनुक्रम से रचनाकारों का परिचय देना, वर्णानुक्रम पद्धति है। यह पद्धति शब्दकोश की तरह है।
* सबसे प्राचीन पद्धति
* अमनोवैज्ञानिक पद्धति
- गार्सा द तासी ने अपने इतिहास ग्रन्थ 'इस्त्वार द ला लितरेत्युर ऐंदुई ए ऐंदुस्तानी' में तथा शिव सिंह सेंगर ने 'शिवसिंह सरोज' में इसी पद्धति का प्रयोग किया ह
2. कालानुक्रम पद्धति :- काल + अनुक्रम
* जन्म तिथि के आधार पर रचनाकारों का परिचय देना
* ग्रियर्सन ने अपने इतिहास ग्रन्थ 'द मॉर्डन वर्नाक्युलर लिट्रेचर ऑफ हिंदुस्तान' में इसी पद्धति का प्रयोग किया है।
3. वैज्ञानिक पद्धति :-
- प्रवृत्तियों का विश्लेषण
- भाषा के विकास क्रम को ध्यान में रखना
- रचनाकारों पर युगीन परिस्थितियों का प्रभाव
- सबसे पहले पद्धति का प्रयोग :- डॉ. गणपति चंद्र गुप्त 'हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास' में
4. विधेयवादी पद्धति :- जनक - तेन ( जाति, वातावरण, क्षण)
- हिंदी में प्रथम प्रयोक्ता - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
* रचनाकारों का परिचय - कालानुक्रम पद्धति में
- प्रवृत्तियों का विश्लेषण, तुलनात्मक दृष्टिकोण
5. आलोचनात्मक पद्धति :- रचनाकारों व रचनाओं के परिचय से ज्यादा रचनाओं के मूल्यांकन पर बल देना
* रचनाकारों के परिचय के साथ साथ शास्त्रीय मान्यताओं के आधार पर रचनाओं की समीक्षा
6. समाज शास्त्रीय पद्धति :- रचनाकारों के परिचय के साथ साथ इस बात पर बल देना की उसने समाज से क्या कुछ ग्रहण किया तथा रचनाकार का समाज पर प्रभाव
हिंदी साहित्य का इतिहास
हिंदी साहित्य का इतिहास
'इतिहास' शब्द की व्युत्पति एवं अर्थ :-
व्युत्पति :- इति (ऐसा) + ह ( निश्चित ही ) + आस ( घटित हुआ / था )
अर्थ :- ऐसा निश्चित ही था / ऐसा निश्चित ही घटित हुआ
इतिहास की परिभाषाएँ :-
पाठ्यपुस्तक : क्षितिज भाग - 2 (सूरदास के पद)
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पदों का सार |