कक्षा 12 सहर्ष स्वीकारा है

                       कक्षा - 12 पाठ - 5
                         सहर्ष स्वीकारा है 
प्रतिपादय- मुक्तिबोध की कविताएँ आमतौर पर लंबी होती हैं। इन्होंने जो भी छोटी कविताएँ लिखी हैं उनमें एक है ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ जो ‘भूरी-भूरी खाक-धूल‘ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है-‘स्वीकारना’ और दूसरा होता है-‘सहर्ष स्वीकारना’ यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली, कविता प्रेरणा के उस उत्स तक भी हमको ले जाती है। उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता के इसी ‘सहजता’ के चलते उसको स्वीकार किया था-कुछ इस तरह स्वीकार किया था कि आज तक सामने नहीं भी है तो भी आस-पास उसके होने का एहसास है-
मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

सार- कवि कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी है, वह मुझे सहर्ष स्वीकार है। मुझे जो कुछ भी मिला है, वह तुम्हारा दिया हुआ है तथा तुम्हें प्यारा है। मेरी गर्वीली गरीबी, विचार-वैभव, गंभीर अनुभव, दृढ़ता, भावनाएँ आदि सब पर तुम्हारा प्रभाव है। तुम्हारे साथ मेरा न जाने कौन-सा नाता है कि मैं जितनी भी भावनाएँ बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, वे भावनाएँ उतनी ही अधिक उमड़ती रहती हैं। तुम्हारा चेहरा मेरी ऊपरी धरती पर चाँद के समान अपनी कांति बिखेरता रहता है। कवि कहता है कि “मैं तुम्हारे प्रभाव से दूर जाना चाहता हूँ क्योंकि मैं भीतर से दुर्बल पड़ने लगा हूँ। तुम्हीं मुझे दंड दो ताकि मैं दक्षिण ध्रुव की अंधकारमयी अमावस्या की रात्रि के अँधेरों में लुप्त हो जाऊँ। मैं तुम्हारे उजालेपन को अधिक सहन नहीं कर पा रहा हूँ। तुम्हारी ममता की कोमलता भीतर से चुभने-सी लगी है। मेरी आत्मा कमजोर पड़ने लगी है।” वह स्वयं को पाताली अँधेरों की गुफाओं में लापता होने की बात कहता है, किंतु वहाँ भी उसे प्रियतम का सहारा है।

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर  व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

जिंदगी में जो कुछ हैं, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत हैं अपलक हैं-
संवेदन तुम्हारा हैं!!

शब्दार्थ – सहर्ष- खुशी के साथ। स्वीकारा- मन से माना। गरबीली– स्वाभिमानी। गंभीर– गहरा। अनुभव– व्यावहारिक ज्ञान। विचार-वैभव– भरे-पूरे विचार। दृढ़ता– मजबूती। सरिता– नदी। भीतर की सरिता – भावनाओं की नदी। अभिनव– नया। मौलिक– वास्तविक। जाग्रत– जागा हुआ। अपलक–निरंतर। संवेदन– अनुभूति।

व्याख्या – कवि कहता है कि मेरी जिंदगी में जो कुछ है, जैसा भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी-ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है।
विशेष-
(i) कवि अपनी हर उपलब्धि का श्रेय उसको (माँ या प्रिया) देता है।
(ii) संबोधन शैली है।
(iii) ‘मौलिक है’ की आवृत्ति प्रभावी बन पड़ी है।
(iv) ‘विचार-वैभव’ और ‘भीतर की सरिता’ में रूपक अलंकार तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(v) ‘सहर्ष स्वीकारा’, ‘गरबीली गरीबी’, ‘विचार-वैभव’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(vi) खड़ी बोली है।
(vi) काव्य की रचना मुक्तक छंद में है, जिसमें ‘गरबीली’, ‘गंभीर’ आदि विशेषणों का सुंदर प्रयोग है।
प्रश्न
(क) कवि जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार क्यों करता हैं?
उत्तर- कवि को अपने जीवन की हर उपलब्धि व स्थिति इसलिए सहर्ष स्वीकार है क्योंकि यह सब कुछ उसकी माँ या प्रेयसी को प्रिय लगता है; क्योंकि उसे कवि की हर उपलब्धि पसंद है।
(ख) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण का औचित्य और सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण है-गरबीली। इसका औचित्य यह है कि कवि इस दशा में भी अपना स्वाभिमान बनाए हुए है। वह गरीबी को बोझ न मानकर उस स्थिति में भी प्रसन्नता महसूस कर रहा है।
(ग) कवि किन्हें नवीन और मौलिक मानता है तथा क्यों?
उत्तर- कवि स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, वैचारिक चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंत:करण की भावनाओं को मौलिक मानता है। इसका कारण यह है कि ये सब उसके यथार्थ के प्रतिफल हैं और इन पर किसी का प्रभाव नहीं है।
(घ) ‘जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है’—इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है’-कथन का आशय यह है कि कवि के पास जो कुछ उपलब्धियाँ हैं वह उसे (अभीष्ट महिला) को प्रिय हैं। इन उपलब्धियों में वह अपनी प्रियतता (माँ या प्रिया) का समर्थन महसूस करता है।

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! 

शब्दार्थ -रिश्ता– रक्त संबंध। नाता– संबंध। उँड़ेलना- बाहर निकालना। सोता–झरना।

व्याख्या- कवि कहता है कि तुम्हारे साथ न जाने कौन-सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाये हुए तुम्हारे स्नेह रूपी जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह फिर-फिर चारों ओर से सिमटकर चला आता है और मेरे हृदय में भर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है। वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और उधर तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। कवि का आंतरिक व बाहय जगत-दोनों उसी स्नेह से युक्त स्वरूप से संचालित होते हैं।
विशेष-
(i) कवि अपने प्रिय के स्नेह से पूर्णत: आच्छादित है।
(ii) ‘दिल में क्या झरना है’ में प्रश्न अलंकार है।
(iii) ‘भर-भर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है,’जितना भी उँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है’ में विरोधाभास अलंकार है, ‘मीठे पानी का सोता है’ में रूपक अलंकार है, प्रिय के मुख की चाँद के साथ समानता के कारण उपमा अलंकार है।
(iv) मुक्तक छंद है।
(v) खड़ी बोली युक्त भाषा में लाक्षणिकता है।
प्रश्न
(क) कवि अपने उस प्रिय संबंधी के साथ अपने संबंध कैसे बताता हैं?
उत्तर- कवि का अपने उस प्रिय के साथ गहरा संबंध है। उसके स्नेह से वह अंदर व बाहर से पूर्णत: आच्छादित है और उसका स्नेह उसे भिगोता रहता है।
(ख) कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है तथा क्यों?
उत्तर- कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम बाहर उँड़ेलता है, उतना ही यह फिर भर जाता है।
(ग) कवि प्रिय को अपने जीवन में किस प्रकार अनुभव करता है?
उत्तर- कवि प्रिय को अपने जीवन में इस प्रकार अनुभव करता है जैसे धरती पर सदा चाँद मुस्कराता रहता है। कवि के जीवन पर सदा उसके प्रिय का मुस्कराता हुआ चेहरा जगमगाता रहता है।

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।                                                
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिरती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवित व्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !           
शब्दार्थ- दंड– सजा। दक्षिण ध्रुवी अंधकार- दक्षिण ध्रुव पर छाने वाला गहरा अँधेरा। अमावस्या- चंद्रमाविहीन काली रात। अंतर- हृदय, अंत:करण। परिवेष्टित- चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित- छाया हुआ, ढका हुआ। रमणीय- मनोरम। उजेला- प्रकाश। ममता- अपनापन, स्नेह। मँडराती- छाई हुई। पिराती- दर्द करना। अक्षम- अशक्त। भवितव्यता- भविष्य की आशंका। बहलाती- मन को प्रसन्न करती। सहलाती- दर्द को कम करती हुई। आत्मीयता- अपनापन।

व्याख्या- कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है। वह उस अंधकार को अपने शरीर, हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। यह उजाला अब उसके लिए असहनीय हो गया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव उसके भीतर मँडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण उसकी आत्मा बहुत कमजोर और असमर्थ हो गई है। उसे भविष्य में होने वाली अनहोनी से डर लगने लगा है। उसे भीतर-ही-भीतर यह डर लगने लगा है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है।
विशेष-
(i) कवि अत्यधिक मोह से अलग होना चाहता है।
(ii) संबोधन शैली है।
(iii) खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है, जिसमें तत्सम शब्दों की बहुलता है।
(iv) अंधकार-अमावस्या निराशा के प्रतीक हैं।
(v) ‘ममता के बादल’, ‘दक्षिण ध्रुव अंधकार-अमावस्या’ में रूपक अलंकार,’छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार, तथा ‘बहलाती-सहलाती’ में स्वर मैत्री अलंकार है।
(vi) कोमलता व आत्मीयता का मानवीकरण किया गया है।
(vii) ‘सहा नहीं जाता है’ की पुनरुक्ति से दर्द की गहराई का पता चलता है।
प्रश्न
(क) कवि क्या दंड चाहता हैं और क्यों ?
उत्तर- कवि अपनी प्रियतमा को भूलने का दंड चाहता है क्योंकि उसके अत्यधिक स्नेह के कारण उसकी आत्मा कमजोर हो गई है। उसका अपराधबोध से दबा मन यह प्रेम सहन नहीं कर पा रहा है। उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।
(ख) कवि अपने जीवन में क्या चाहता है ?
उत्तर- कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वस्तुत: वह अपने प्रिय को भूलना चाहता है तथा उसके विस्मरण को शरीर, मुख और हृदय में बसाकर उसमें डूब जाना चाहता है।
(ग)  कवि को क्या सहन नहीं होता?
उत्तर- कवि की प्रियतमा के स्नेह का उजाला अत्यंत रमणीय है। कवि का व्यक्तित्व चारों ओर से उसके स्नेह से घिर गया है। इस अद्भुत, निश्छल और उज्ज्वल प्रेम के प्रकाश को उसका मन सहन नहीं कर पा रहा है।
(घ)  कवि की आत्मा कैसे हो गई है तथा क्यों ?
उत्तर- कवि की आत्मा अत्यंत कमजोर हो गई है क्योंकि वह अपनी प्रियतमा के अत्यधिक स्नेह के कारण पराश्रित हो गया है। यह स्नेह उसके मन को अंदर-ही-अंदर पीड़ित कर रहा है। दुख से छटपटाता किसी अनहोनी की कल्पना मात्र से ही उसका मन काँप उठता है।

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता हैं, होता-सा संभव हैं
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकार है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं।  

शब्दार्थ–पाताली अँधेरे- धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध। गुहा- गुफा। विवर- बिल। लापता- गायब। कारण- मूल प्रेरणा। घेरा- फैलाव। वैभव-समृद्ध।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है। वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगों में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपने प्रिय का ही सहारा है। उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण हैं। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित हैं। कवि ने हर सुख-दुख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं।
विशेष-
(i) कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रियतमा के योगदान को स्वीकार किया है।
(ii) ‘पाताली अँधेरे’ व ‘धुएँ के बादल’ आदि उपमान विस्मृति के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
(iii) ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार है।
(iv) ‘लापता कि . सहारा है!’ में विरोधाभास अलंकार है।
(v) काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग है।
(vi) मुक्तक छंद है।
प्रश्न
(क) कवि दड पाने की इच्छा क्यों रखता हैं?
उत्तर- कवि अपनी प्रियतमा के बिना अकेला रहना सीखना चाहता है। वह गुमनामी के अँधेरे में खोना चाहता है। प्रिया के अत्यधिक स्नेह ने कवि को भीतर से कमजोर बना दिया है। कवि स्वयं को अपनी प्रियतमा का दोषी मानता है, अत: वह दंड पाना चाहता है।
(ख) कवि दंड-स्वरूप कहाँ जाना चाहता हैं और क्यों?
उत्तर- कवि दंड स्वरूप गहन अंधकार वाली गुफाओं, सुरंगों या धुएँ के बादलों में छिप जाना चाहता है। इससे वह अपनी प्रियतमा से दूर रह पाएगा और अकेला रहना सीख सकेगा।
(ग) प्रियतमा के बारे में कवि क्या अनुभव करता है?
उत्तर- कवि को अपनी प्रियतमा के बारे में यह अनुभव है कि उसके जीवन की हर गतिविधि पर उसका प्रभाव है। उसके जीवन में जो कुछ घटित होने वाला है, उन सब पर उसकी प्रियतमा की अदृश्य छाया है।
(घ) कवि को जीवन की हर दशा सहर्ष क्यों स्वीकार है?
उत्तर- कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, सफलताएँ-असफलताएँ सभी कुछ खुशी-खुशी अपनाया है क्योंकि ये उसकी प्रियतमा को अच्छे लगते हैं और उन्हें अस्वीकार करना कवि के लिए असंभव है।



कक्षा 12 कैमरे में बंद अपाहिज

                         कक्षा - 12 पाठ - 4 
                        कैमरे में बंद अपाहिज
प्रतिपादय-'कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गये हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ दूर-संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीड़ा को दर्शक वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए। आज विडंबना यह है कि जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियो के भीतर की दुनिया को समाज के सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द, यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते हैं।
सार-इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं को शक्तिशाली बताते हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता है। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके। इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ वाक्य से उसके व्यापार की प्रोल खुल जाती है।

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर  व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे 
एक बंद कमरे में  
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या हैं
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा।

शब्दार्थ-  समर्थ- सक्षम। शक्तिवान- ताकतवर। दुबल- कमजोर। बंद कमरे में- टी.वी. स्टूडियो में। अपाहिज -अपंग, विकलांग। दुख -कष्ट।

व्याख्या-कवि मीडिया के लोगों की मानसिकता का वर्णन करता है। मीडिया के लोग स्वयं को समर्थ व शक्तिशाली मानते हैं। वे ही दूरदर्शन पर बोलते हैं। अब वे एक बंद कमरे अर्थात स्टूडियो में एक कमजोर व्यक्ति को बुलाएँगे तथा उससे प्रश्न पुछेंगे। क्या आप अपाहिज हैं? यदि हैं तो आप क्यों अपाहिज हैं? क्या आपका अपाहिजपन आपको दुख देता है? ये प्रश्न इतने बेतुके हैं कि अपाहिज इनका उत्तर नहीं दे पाएगा, जिसकी वजह से वह चुप रहेगा। इस बीच प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को निर्देश देता है कि इसको (अपाहिज को) स्क्रीन पर बड़ा-बड़ा दिखाओ। फिर उससे प्रश्न पूछा जाएगा कि आपको कष्ट क्या है? अपने दुख को जल्दी बताइए। अपाहिज इन प्रश्नों का उत्तर नहीं देगा क्योंकि ये प्रश्न उसका मजाक उड़ाते हैं।
विशेष
1. मीडिया की मानसिकता पर करारा व्यंग्य है।
2. काव्यांश में नाटकीयता है।
3. भाषा सहज व सरल है।
4. व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न
(क) ‘हम दूरदर्शन पर बोलेंगे’ में आए ‘हम’ शब्द से क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर- दूरदर्शन पर ‘हम’ बोलेगा कि हम शक्तिशाली हैं तथा अब हम किसी कमजोर का साक्षात्कार लेंगे। यहाँ’हम’ समाज का ताकतवर मीडिया है।
(ख) प्रश्न पूछने वाला अपने उद्देश्य में कितना सफल हो पाता हैं और क्यों?
उत्तर- अपाहिज से पूछे गए प्रश्न बेतुके व निरर्थक हैं। ये अपाहिज के वजूद को झकझोरते हैं तथा उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाते हैं। फलस्वरूप वह चुप हो जाता है। इस प्रकार प्रश्न पूछने वाला अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाता। उसकी असफलता का कारण यह है कि उसे अपंग व्यक्ति की व्यथा से कोई वास्ता नहीं है। वह तो अपने कार्यक्रम की लोकप्रियता बढ़ाना चाहता है।
(ग) प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को क्या निर्देश देता है और क्यों?
उत्तर- प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को अपंग की तस्वीर बड़ी करके दिखाने के लिए कहता है ताकि आम जनता की सहानुभूति उस व्यक्ति के साथ हो जाए और कार्यक्रम लोकप्रिय हो सके।

सोचिए
बताइए 
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
 कैसा
यानी कैसा लगता है 
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
( यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा )

शब्दार्थ- रोचक- दिलचस्प। वास्ते- के लिए। इंतज़ार- प्रतीक्षा।
व्याख्या-इस काव्यांश में कवि कहता है कि मीडिया के लोग अपाहिज से बेतुके सवाल करते हैं। वे अपाहिज से पूछते हैं कि-अपाहिज होकर आपको कैसा लगता है? यह बात सोचकर बताइए। यदि वह नहीं बता पाता तो वे स्वयं ही उत्तर देने की कोशिश करते हैं। वे इशारे करके बताते हैं कि क्या उन्हें ऐसा महसूस होता है। थोड़ा सोचकर और कोशिश करके बताइए। यदि आप इस समय नहीं बता पाएँगे तो सुनहरा अवसर खो देंगे। अपाहिज के पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता कि वह अपनी पीड़ा समाज के सामने रख सके। मीडिया वाले कहते हैं कि हमारा लक्ष्य अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है और इसके लिए हम ऐसे प्रश्न पूछेगे कि वह रोने लगेगा। वे समाज पर भी कटाक्ष करते हैं कि वे भी उसके रोने का इंतजार करते हैं। वह यह प्रश्न दर्शकों से नहीं पूछेगा।

विशेष-
1. कवि ने क्षीण होती मानवीय संवेदना का चित्रण किया है।
2. दूरदर्शन के कार्यक्रम निर्माताओं पर करारा व्यंग्य है।
3. काव्य-रचना में नाटकीयता तथा व्यंग्य है।
4. सरल एवं भावानुकूल खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
5. अनुप्रास व प्रश्न अलंकार हैं।
6. मुक्तक छंद है।

प्रश्न
(क) कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की किस मानसिकता को उजागर किया हैं?
उत्तर- कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की व्यावसायिकता पर करारा व्यंग्य किया है। वे अपाहिज के कष्ट को कम करने की बजाय उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वे क्रूरता की तमाम हदें पार कर जाते हैं।
(ख) संचालकों द्वारा अपाहिज को संकेत में बताने का उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर- संचालक संकेत द्वारा अपाहिज को बताते हैं कि वह अपना दर्द इस प्रकार बताए जैसा वे चाहते हैं। यहाँ दर्द किसी का है और उसे अभिव्यक्त करने का तरीका कोई और बता रहा है। किसी भी तरह उन्हें अपना कार्यक्रम रोचक बनाना है। यही उनका एकमात्र उद्देश्य है।
(ग) दर्शकों की मानसिकता क्या है।
उत्तर- दर्शकों की मानसिकता है कि वे किसी की पीड़ा के चरम रूप का आनंद लेते हैं। वे भी संवेदनहीन हो गए हैं क्योंकि उन्हें भी अपंग व्यक्ति के रोने का इंतजार रहता है।
(घ) दूरदर्शन वाले किस अवसर की प्रतीक्षा में रहते हैं?
उत्तर- दूरदर्शन वाले इस अवसर की प्रतीक्षा में रहते हैं कि उनके सवालों से सामने बैठा अपाहिजरो पड़े, ताकि उनका कार्यक्रम रोचक बन सके।

फिर हम परदे पर दिखाएँगे
फुल हुई आँख काँ एक बडी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर 
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे) 
एक और कोशिश
दर्शक 
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों को एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा बस करो नहीं हुआ रहने दो परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई)
धन्यवाद!

शब्दार्थ – कसमसाहट- बेचैनी । धीरज- धैर्य । परदे पर -टी.वी. पर । वक्त -समय । कसर -कमी ।

व्याख्या -कवि कहता है कि दूरदर्शन वाले अपाहिज का मानसिक शोषण करते हैं। वे उसकी फूली हुई आँखों की तसवीर को बड़ा करके परदे पर दिखाएँगे। वे उसके होंठों पर होने वाली बेचैनी और कुछ न बोल पाने की तड़प को भी दिखाएँगे। ऐसा करके वे दर्शकों को उसकी पीड़ा बताने की कोशिश करेंगे। वे कोशिश करते हैं कि वह रोने लगे। साक्षात्कार लेने वाले दर्शकों को धैर्य धारण करने के लिए कहते हैं। वे दर्शकों व अपाहिज दोनों को एक साथ रुलाने की कोशिश करते हैं। तभी वे निर्देश देते हैं कि अब कैमरा बंद कर दो। यदि अपाहिज अपना दर्द पूर्णत: व्यक्त न कर पाया तो कोई बात नहीं। परदे का समय बहुत महँगा है। इस कार्यक्रम के बंद होते ही दूरदर्शन में कार्यरत सभी लोग मुस्कराते हैं और यह घोषणा करते हैं कि आप सभी दर्शक सामाजिक उद्देश्य से भरपूर कार्यक्रम देख रहे थे। इसमें थोड़ी-सी कमी यह रह गई कि हम आप दोनों को एक साथ रुला नहीं पाए। फिर भी यह कार्यक्रम देखने के लिए आप सबका धन्यवाद!

विशेष-
1. अपाहिज की बेचैनी तथा मीडिया व दर्शकों की संवेदनहीनता को दर्शाया गया है।
2. मुक्त छंद है।
3. उर्दू शब्दावली का सहज प्रयोग है।
4. ‘परदे पर’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. व्यंग्यपूर्ण नाटकीयता है।

प्रश्न
(क) कार्यक्रम-संचालक परदे पर फूली हुई आँख की तसवीर क्यों दिखाना चाहता हैं?
उत्तर- कार्यक्रम-संचालक परदे पर फूली हुई आँख की बड़ी तसवीर इसलिए दिखाना चाहता है ताकि वह लोगों को उसके कष्ट के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बता सके। इससे जहाँ कार्यक्रम प्रभावी बनेगा, वहीं संचालक का वास्तविक उद्देश्य भी पूरा होगा।
(ख) ‘ एक और कोशिश ‘-इस पंक्ति का क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर- ‘एक और कोशिश’ कैमरामैन व कार्यक्रम-संचालक कार्यक्रम संचालन कर रहे हैं। वे अपाहिज को रोती मुद्रा में दिखाकर अपने कार्यक्रम की लोकप्रियता बढ़ाना चाहते हैं, इस प्रकार वे अपाहिज से मनमाना व्यवहार करवाना चाहते हैं, जिसमें वे अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं।
(ग) कार्यक्रम-संचालक दोनों को एक साथ रुलाना चाहता हैं, क्यों?
उत्तर- कार्यक्रम-संचालक अपाहिज व दर्शकों-दोनों को एक साथ रुलाना चाहता था। ऐसा करने से उसके कार्यक्रम का सामाजिक उद्देश्य पूरा हो जाता तथा कार्यक्रम भी रोचक व लोकप्रिय हो जाता।
(घ) संचालक किस बात पर मुस्कराता हैं? उसकी मुस्कराहट में क्या छिपा हैं?
उत्तर- संचालक कार्यक्रम खत्म होने पर मुस्कराता है। उसे अपने कार्यक्रम के सफल होने की खुशी है। उसे अपाहिज की पीड़ा से कुछ लेना-देना नहीं। इस मुस्कराहट में मीडिया की संवेदनहीनता छिपी है। इसमें पीड़ित के प्रति सहानुभूति नहीं, बल्कि अपने व्यापार की सफलता छिपी है।


कक्षा 12 बात सीधी थी पर

                   पाठ - 3 ( काव्य खंड )
                     बात सीधी थी पर
प्रतिपादय-यह कविता ‘कोई दूसरा नहीं'’ कविता-संग्रह से संकलित है। इसमें कथ्य के द्वंद्व उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। अब तक जिन शब्दों को हम एक-दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, उन सबके भी अपने अर्थ होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती, वह सहूलियत के साथ हो जाता है। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है।

सार-कवि का मानना है कि बात और भाषा स्वाभाविक रूप से जुड़े होते हैं। किंतु कभी-कभी भाषा के मोह में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। मनुष्य अपनी भाषा को टेढ़ी तब बना देता है जब वह आडंबरपूर्ण तथा चमत्कारपूर्ण शब्दों के माध्यम से कथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। अंतत: शब्दों के चक्कर में पड़कर वे कथ्य अपना अर्थ खो बैठते हैं। अत: अपनी बात सहज एवं व्यावहारिक भाषा में कहना चाहिए ताकि आम लोग कथ्य को भलीभाँति समझ सकें।

बात सीधी थी पर……
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में 
जरा टेढ़ी फैंस गई।
उसे पाने की कोशिश में 
भाषा को उलटा-पालटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

शब्दार्थ- सीधी-सरल, सहज। चक्कर-प्रभाव। टेढ़ा फैसना-बुरा फँसना। पेचीदा-कठिन, मुश्किल।

व्याख्या-कवि कहता है कि वह अपने मन के भावों को सहज रूप से अभिव्यक्त करना चाहता था, परंतु समाज की प्रकृति को देखते हुए उसे प्रभावी भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहा। पर भाषा के चक्कर में भावों की सहजता नष्ट हो गई। कवि कहता है कि मैंने मूल बात को कहने के लिए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदला। फिर उसके रूप को बदला तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने कोशिश की कि या तो इस प्रयोग से उसका काम बन जाए या फिर वह भाषा के उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो सके, परंतु कवि को कोई भी सफलता नहीं मिली। उसकी भाषा के साथ-साथ कथ्य भी जटिल होता गया।

विशेष-
1. कवि ने भाषा की जटिलता पर कटाक्ष किया है।
2. भाषा सरल, सहज साहित्यिक खड़ी बोली है।
3. काव्यांश रचना मुक्त छंद में है।
4. ‘टेढ़ी फसना’, ‘पेचीदा होना’ मुहावरों का सुंदर प्रयोग है।
5. ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
प्रश्न-
(क) ‘भाषा के चक्कर” का तातपर्य बताइए।
उत्तर-  ‘भाषा के चक्कर’ से तात्पर्य है-भाषा को जबरदस्ती अलंकृत करना।
(ख) कवि अपनी बात के बारे में क्या बताता है?
उत्तर- कवि कहता है कि उसकी बात साधारण थी, परंतु वह भाषा के चक्कर में उलझकर जटिल हो गई।
(ग) कवि ने बात को पाने के चक्कर में क्या-क्या किया?
उत्तर- कवि ने बात को प्राप्त करने के लिए भाषा को घुमाया-फिराया, उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा। फलस्वरूप वह बात पेचीदा हो गई।
(घ) कवि की असफलता का क्या कारण था?
उत्तर- कवि ने अपनी बात को कहने के लिए भाषा को जटिल व अलंकारिक बनाने की कोशिश की। इस कारण बात अपनी सहजता खो बैठी और वह पेचीदा हो गई।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
में पेंच को खोलने की बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।

शब्दार्थ-मुश्किल-कठिन। धैर्य-धीरज। पेंच-ऐसी कील जिसके आधे भाग पर चूड़ियाँ बनी होती हैं, उलझन। बेतरह-बुरी तरह। करतब-चमत्कार। तमाशबीनों -दर्शक, तमाशा देखने वाले। शाबाशी- प्रशंसा, प्रोत्साहन।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब उसकी बात पेचीदा हो गई तो उसने सारी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। हल ढूँढ़ने की बजाय वह और अधिक शब्दजाल में फैस गया। बात का पेंच खुलने के स्थान पर टेढ़ा होता गया और कवि उसे अनुचित रूप से कसता चला गया। इससे भाषा और कठिन हो गई। शब्दों के प्रयोग पर दर्शक उसे प्रोत्साहन दे रहे थे, उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
विशेष-
1. कवि धैर्यपूर्वक सरलता से काम करने की सलाह दे रहा है।
2. ‘वाह-वाह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. ‘पेंच कसने’ के बिंब से कवि का कथ्य प्रभावी बना है।
4. ‘बेतरह’ विशेषण सटीक है।
5. ‘करतब’ शब्द में व्यंग्यात्मकता का भाव निहित है।
6. लोकप्रिय उर्दू शब्दों-बेतरह, करतब, तमाशबीन, साफ़ आदि का सुंदर प्रयोग है।
7. मुक्तक छंद है।
प्रश्न
(क) कवि की क्या कमी थी?
उत्तर- कवि ने अपनी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। वह धैर्य खो बैठा।
(ख) ‘पेंच को खोलने की बजाय कसना’-पक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर- इसका अर्थ यह है कि उसने बात को स्पष्ट नहीं किया। इसके विपरीत, वह शब्दजाल में उलझता गया।
(ग) कवि ने अपने किस कार्य को करतब कहा है?
उत्तर- कवि ने अभिव्यक्ति को बिना सोचे-समझे उलझाने व कठिन बनाने को करतब कहा है।
(घ) कवि के करतब का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर- कवि ने भाषा को जितना ही बनावटी ढंग और शब्दों के जाल में उलझाकर लाग-लपेट करने वाले शब्दों में कहा, सुनने वालों द्वारा उसे उतनी ही शाबाशी मिली।

आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी! 
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत !
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?’

शब्दार्थ- जोर -बल । चूड़ी मरना- पेंच कसने के लिए बनी चूड़ी का नष्ट होना, कथ्य का मुख्य भाव समाप्त होना। कसाव- खिचाव, गहराई। सहूलियत- सहजता, सुविधा। बरतना- व्यवहार में लाना।

व्याख्या- कवि अपनी बात कहने के लिए बनावटी भाषा का प्रयोग करने लगा। परिणाम वही हुआ जिसका कवि को डर था। जैसे पेंच के साथ जबरदस्ती करने से उसकी चूड़ियाँ समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार शब्दों के जाल में उलझकर कवि की बात का प्रभाव नष्ट हो गया और वह बनावटीपन में ही खो गई। उसकी अभिव्यंजना समाप्त हो गई। अंत में, कवि जब अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो उसने अपनी बात को वहीं पर छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ी समाप्त होने पर उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है। ऐसी स्थिति में कवि की अभिव्यक्ति बाहरी तौर पर कविता जैसी लगती थी, परंतु उसमें भावों की गहराई नहीं थी, शब्दों में ताकत नहीं थी। कविता प्रभावहीन हो गई। जब वह अपनी बात स्पष्ट न कर सका तो बात ने शरारती बच्चे के समान पसीना पोंछते कवि से पूछा कि क्या तुमने कभी भाषा को सरलता, सहजता और सुविधा से प्रयोग करना नहीं सीखा।

विशेष-
1. कवि ने कविताओं की आडंबरपूर्ण भाषा पर व्यंग्य किया है।
2. बात का मानवीकरण किया है।
3. ‘कील की तरह’, ‘शरारती बच्चे की तरह’ में उपमा अलंकार है।
4. ‘जोर-जबरदस्ती’, ‘पसीना पोंछते’ में अनुप्रास तथा ‘बात की चूड़ी’ में रूपक अलंकार है।
5. ‘ कील की तरह ठोंकना’ भाषा को जबरदस्ती जटिल बनाने का परिचायक है।
6. मुक्तक छंद है।
7. काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग है।
प्रश्न
(क) बात की चूड़ी मर जाने और बेकार घूमने के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता हैं?
उत्तर- जब हम पेंच को जबरदस्ती कसते चले जाते हैं तो वह अपनी चूड़ी खो बैठता है तथा स्वतंत्र रूप से घूमने लगता है। इसी तरह जब किसी बात में जबरदस्ती शब्द ढूँसे जाते हैं तो वह अपना प्रभाव खो बैठती है तथा शब्दों के जाल में उलझकर रह जाती है।
(ख) काव्यांश में प्रयुक्त दोनों आयामों के प्रयोग-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए/
उत्तर- बात के उपेक्षित प्रभाव के लिए कवि ने पेंच और कील की उपमा दी है। इन शब्दों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि निरर्थक व अलंकारिक शब्दों के प्रयोग से बात शब्द-जाल में घूमती रहती है। उसका प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(ग) भाष को सहूलियत से बरतने का क्या अभिप्राय हैं?
उतर- ‘भाषा को सहूलियत से बरतने’ का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति सहज तरीके से करनी चाहिए। शब्द-जाल में उलझने से बात का प्रभाव समाप्त हो जाता है और केवल शब्दों की कारीगरी रह जाती है।
(घ) बात ने कवि से क्या पूछा तथा क्यों?
उत्तर- बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा कि क्या उसने भाषा के सरल, सहज प्रयोग को नहीं सीखा। इसका कारण यह था कि कवि ने भाषा के साथ जोर-जबरदस्ती की थी।

कक्षा - 12 अभिव्यक्ति और माध्यम ( कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण )

             कक्षा - 12 अभिव्यक्ति और मध्यम
    पाठ - 11 कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 1. कहानी और नाटक में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कहानी और नाटक में क्या-क्या असमानताएँ हैं ?

उत्तर-कहानी और नाटक दोनों गद्य विधाएँ हैं। इनमें जहाँ कुछ समानताएँ हैं, वहाँ कुछ असमानताएँ या अंतर भी हैं जो इस प्रकार है-
कहानी
1. कहानी एक ऐसी गद्य विधा है जिसमें जीवन के किसी अंक विशेष का मनोरंजन पूर्ण चित्रण किया जाता है।
2. कहानी का संबंध लेखक और पाठकों से होता है।
3. कहानी कही अथवा पढ़ी जाती है।
4. कहानी का आरंभ, मध्य और अंत के आधार पर बांटा जाता है।
5. कहानी में मंच सज्जा, संगीत तथा प्रकाश का महत्त्व नहीं है।
नाटक
1. नाटक एक ऐसी गद्य विधा है जिसका मंच पर अभिनय किया जाता है।
2. नाटक का संबंध लेखक, निर्देशक, दर्शक तथा श्रोताओं से है।
3. नाटक का मंच पर अभिनय किया जाता है।
4. नाटक को दृश्यों में विभाजित किया जाता है।
5. नाटक में मंच सज्जा, संगीत और प्रकाश व्यवस्था का विशेष महत्त्व होता है।

प्रश्न 2. कहानी को नाटक में किस प्रकार रूपांतरित किया जा सकता है ?

उत्तर-कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जो इस प्रकार है-
1. कहानी की कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है।
2. कहानी में घटित विभिन्न घटनाओं के आधार पर दृश्यों का निर्माण किया जाता है।
3. कथावस्तु से संबंधित वातावरण की व्यवस्था की जाती है।
4: ध्वनि और प्रकाश व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है।
5. कथावस्तु के अनुरूप मंच सज्जा और संगीत का निर्माण किया जाता है।
6. पात्रों के द्वंद्व को अभिनय के अनुरूप परिवर्तित किया जाता है।
7. संवादों को अभिनय के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता है।
8. कथानक को अभिनय के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 3. नाट्य रूपांतरण में किस प्रकार की मुख्य समस्या का सामना करना पड़ता है ?
अथवा
नाट्य रूपांतरण करते समय कौन-कौन सी समस्याएँ आती हैं ?

उत्तर-नाट्य रूपांतरण करते समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो इस प्रकार है-

1. सबसे प्रमुख समस्या कहानी के पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा प्रस्तुत प्रसंगों अथवा मानसिक द्वंद्वों के नाटकीय प्रस्तुति में आती है।
2. पात्रों के द्वंद्व को अभिनय के अनुरूप बनाने में समस्या आती है।
3. संवादों को नाटकीय रूप प्रदान करने समस्या आती है।
4. संगीत, ध्वनि और प्रकाश व्यवस्था करने में समस्या होती है।
5. कथानक को अभिनय के अनुरूप बनाने में समस्या होती है।

प्रश्न 4. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?

उत्तर-कहानी अथवा कथानक का नाट्य रूपांतरण करते समय निम्नलिखित आवश्यक बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. कथानक के अनुसार ही दृश्य दिखाए जाने चाहिए।
2. नाटक के दृश्य बनाने से पहले उसका खाका तैयार करना चाहिए।
3. नाटकीय संवादों का कहानी के मूल संवादों के साथ मेल होना चाहिए।
4. कहानी के संवादों को नाट्य रूपांतरण में एक निश्चित स्थान मिलना चाहिए।
5. संवाद सहज, सरल, संक्षिप्त, सटीक, प्रभावशैली और बोलचाल की भाषा में होने चाहिए।
6. संवाद अधिक लंबे और ऊबाऊ नहीं होने चाहिए।

प्रश्न 5. कहानी के पात्र नाट्य रूपांतरण में किस प्रकार परिवर्तित किये जा सकते हैं ?

उत्तर-कहानी के पात्र नाट्य रूपांतरण में निम्न प्रकार से परिवर्तित किये जा सकते हैं-
1. नाट्य रूपांतरण करते समय कहानी के पात्रों की दृश्यात्मकता का नाटक के पात्रों से मेल होना चाहिए।
2. पात्रों की भाव भंगिमाओं तथा उनके व्यवहार का भी उचित ध्यान रखना चाहिए।
3. पात्र घटनाओं के अनुरूप मनोभावों को प्रस्तुत करने वाले होने चाहिए।
4. पात्र अभिनय के अनुरूप होने चाहिए।
5. पात्रों का मंच के साथ मेल होना चाहिए।

प्रश्न 6. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य विभाजन कैसे करते हैं ?

उत्तर-कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य विभाजन निम्न प्रकार करते हैं-
1. कहानी की कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित करके दृश्य बनाए जाते हैं।
2. प्रत्येक दृश्य कथानक के अनुसार बनाया जाता है।
3. एक स्थान और समय पर घट रही घटना को एक दृश्य में लिया जाता है।
4. दूसरे स्थान और समय पर घट रही घटना को अलग दृश्यों में बांटा जाता है।
5. दृश्य विभाजन करते समय कथाक्रम और विकास का भी ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 7. कहानी और नाटक में क्या समानता होती है ? 
उत्तर- कहानी और नाटक में निम्नलिखित समानताएँ हैं- 
कहानी
1. कहानी का केंद्र बिंदु होता है।                                
2. कहानी में एक कहानी होती है।                             
3. कहानी में पात्र होते हैं।।                                       
4. कहानी में शामिल हो रहे हैं।
5. कथानक का विकास होता है।
6. कहानी में संवाद होते हैं। 
7. कहानी का चरमोत्कर्ष होता है।
8. कहानी में एक उद्देश्य निहित होता है।
9. कहानी में पात्रों के माध्यम से द्वंद्व होता है।
नाटक
1. नाटक का मध्य बिंदु समन्वय होता है।                    
2. नाटक में भी एक कहानी होती है।                          
3. नाटक में भी पात्र होते हैं।
4. नाटक में भी समझ होती है।
5. नाटक का भी संकेत विकास होता है। 
6. नाटक में भी संवाद होते हैं।
7. नाटक में भी पात्रों के बीच द्वंद्व होता है।
8. नाटक में भी एक उद्देश्य निहित होता है।
9. नाटक का भी चरमोत्कर्ष होता है।

कक्षा 12 कविता के बहाने (कुंवर नारायण)

                           कविता के बहाने
प्रतिपादय-‘कविता के बहाने’ कविता कवि के कविता-संग्रह ‘इन दिनों’ से ली गई है। आज के समय में कविता के अस्तित्व के बारे में संशय हो रहा है। यह आशंका जताई जा रही है कि यांत्रिकता के दबाव से कविता का अस्तित्व नहीं रहेगा। ऐसे में यह कविता-कविता की अपार संभावनाओं को टटोलने का एक अवसर देती है।

सार-यह कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम बढ़ाता बच्चा। कवि कहता है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य-सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते हैं। वह सीमा चाहे घर की हो, भाषा की हो या समय की ही क्यों न हो।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

                       कविता के बहाने

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर  व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता की उडान भला चिडिया क्या जाने?
बाहर भीतर
इस धर, उस घर
कविता के पंख लया उड़ने के माने
चिडिया क्या जाने?

शब्दार्थ- माने-अर्थ। 
व्याख्या-कवि कहता है कि कविता कल्पना की उड़ान है। इसे सिद्ध करने के लिए वह चिड़िया का उदाहरण देता है। साथ ही चिड़िया की उड़ान के बारे में यह भी कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है किंतु कविता की कल्पना का दायरा असीमित होता है। चिड़िया घर के अंदर-बाहर या एक घर से दूसरे घर तक ही उड़ती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। कवि के भावों की कोई सीमा नहीं है। कविता घर-घर की कहानी कहती है। वह पंख लगाकर हर जगह उड़ सकती है। उसकी उड़ान चिड़िया की उड़ान से कहीं आगे है।

विशेष
1. कविता की अपार संभावनाओं को बताया गया है।
2. सरल एवं सहज खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
3. ‘चिड़िया क्या जाने?” में प्रश्न अलंकार है।
4. कविता का मानवीकरण किया गया है।
5. लाक्षणिकता है।
6. ‘कविता की उड़ान भला’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न
(क) ‘कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने’-पक्ति का भाव बताइए।
उत्तर- इस पंक्ति का अर्थ यह है कि चिड़िया को उड़ते देखकर कवि की कल्पना भी ऊँची-ऊँची उड़ान भरने लगती है। वह रचना करते समय कल्पना की उड़ान भरता है।
(ख) कविता कहाँ-कहाँ उड़ सकती हैं?
उत्तर- कविता पंख लगाकर मानव के आंतरिक व बाहय रूप में उड़ान भरती है। वह एक घर से दूसरे घर तक उड़ सकती है।
(ग) कविता की उडान व चिडिया की उडान में क्या अंतर हैं?
उत्तर- चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक होती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। चिड़िया कब्रिता की उड़ान को नहीं जान सकती।
(घ) कविता के पंख लगाकर कौन उड़ता है?
उत्तर- कविता के पंख लगाकर कवि उड़ता है। वह इसके सहारे मानव-मन व समाज की भावनाओं को अभिव्यक्ति देता है।

कविता एक खिलना हैं फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला कूल क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?

शब्दार्थ- महकना- सुगंध बिखेरना।
व्याख्या-कवि कहता है कि कविता की रचना फूलों के बहाने हो सकती है। फूलों को देखकर कवि का मन प्रफुल्लित रहता है। उसके मन में कविता फूल की भाँति विकसित होती है। फूल से कविता में रंग, भाव आदि आते हैं, परंतु कविता के खिलने के बारे में फूल कुछ नहीं जानते। फूल कुछ समय के लिए खिलते हैं, खुशबू फैलाते हैं, फिर मुरझा जाते हैं। उनकी परिणति निश्चित होती है। वे घर के अंदर-बाहर, एक घर से दूसरे घर में अपनी सुगंध फैलाते हैं, परंतु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। कविता बिना मुरझाए लंबे समय तक लोगों के मन में व्याप्त रहती है। इस बात को फूल नहीं समझ पाता।

विशेष-
1. कविता व फूल की तुलना मनोरम है।
2. सरल एवं सहज खड़ी बोली भावानुकूल है।
3. ‘मुरझाए महकने’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘फूल क्या जाने?” में प्रश्न अलंकार है।
4. शांत रस है।
5. मुक्त छंद है।
प्रश्न
(क) ‘कविता एक खिलन हैं, फूलों के बहाने’ ऐसा क्यों?
उत्तर- कविता फूलों के बहाने खिलना है क्योंकि फूलों को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो जाता है। उसके मन में कविता फूलों की भाँति विकसित होती जाती है।
(ख) कविता रचने और फूल खिलने में क्या साम्यता हैं?
उत्तर- जिस प्रकार फूल पराग, मधु व सुगंध के साथ खिलता है, उसी प्रकार कविता भी मन के भावों को लेकर रची जाती है।
(ग) बिना मुरझाए कौन कहाँ महकता हैं?
उत्तर- बिना मुरझाए कविता हर जगह महका करती है। यह अनंतकाल तक सुगंध फैलाती है।
(घ) ‘कविता का खिलना भला कूल क्या जाने। ‘-पंक्ति का आशय स्पष्ट र्काजि।
उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि फूल के खिलने व मुरझाने की सीमा है, परंतु कविता शाश्वत है। उसका महत्व फूल से अधिक है।

कविता एक खेल हैं बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह धर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
कच्च ही जाने।

व्याख्या-कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे कहीं भी किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं, उसी प्रकार कवि के लिए कविता शब्दों की क्रीड़ा है। वह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती है। वह किसी भी समय अपने भावों को व्यक्त कर सकती है। बच्चों के लिए सभी घर एक समान होते हैं। वे खेलने के समय अपने-पराये में भेद नहीं करते। इसी तरह कवि अपने शब्दों से आंतरिक व बाहरी संसार के मनोभावों को रूप प्रदान करता है। वह बच्चों की तरह बेपरवाह है। कविता पर कोई बंधन लागू नहीं होता।
विशेष-
1. कविता की रचनात्मक व्यापकता को प्रकट किया गया है।
2. बच्चों व कवियों में समानता दर्शाई गई है।
3. ‘बच्चा ही जाने’ पंक्ति से बालमन की सरलता की अभिव्यक्ति होती है।
4. मुक्त छंद है।
5. ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार है।
6. साहित्यिक खड़ी बोली है।

प्रश्न
(क) कविता को क्या सज्ञा दी गई हैं? क्यों?
उत्तर- कविता को खेल की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार खेल का उद्देश्य मनोरंजन व आत्मसंतुष्टि होता है, उसी प्रकार कविता भी शब्दों के माध्यम से मनोरंजन करती है तथा रचनाकार को संतुष्टि प्रदान करती है।
(ख) कविता और बच्चों के खेल में क्या समानता हैं?
उत्तर- बच्चे कहीं भी, कभी भी खेल खेलने लगते हैं। इस तरह कविता कहीं भी प्रकट हो सकती है। दोनों कभी कोई बंधन नहीं स्वीकारते।
(ग) कविता की कौन-कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर- कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
* यह सर्वव्यापक होती है।
* इसमें रचनात्मक ऊर्जा होती है।
* यह खेल के समान होती है।
(घ) बच्चा कौन-सा बहाना जानता हैं?
उत्तर- बच्चा सभी घरों को एक समान करने के बहाने जानता है।

कक्षा 12 पतंग ( आलोक धन्वा )

                                       पतंग ( आलोक धन्वा )

कविता का प्रतिपादय एवं सार

प्रतिपादय-‘पतंग’ कविता कवि के ‘दुनिया रोज बनती है’ व्यंग्य संग्रह से ली गई है। इस कविता में कवि ने बालसुलभ इच्छाओं और उमंगों का सुंदर चित्रण किया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए इन्होंने सुंदर बिंबों का उपयोग किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है जिसके जरिये वे आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं तथा उसके पार जाना चाहते हैं। यह कविता बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है, दिशाओं के मृदंग बजते हैं, जहाँ छतों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिरगिरकर सँभलते हैं तथा पृथ्वी का हर कोना खुद-ब-खुद उनके पास आ जाता है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए अँधेरे के बाद उजाले की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सार-कवि कहता है कि भादों के बरसते मौसम के बाद शरद ऋतु आ गई। इस मौसम में चमकीली धूप थी तथा उमंग का माहौल था। बच्चे पतंग उड़ाने के लिए इकट्ठे हो गए। मौसम साफ़ हो गया तथा आकाश मुलायम हो गया। बच्चे पतंगें उड़ाने लगे तथा सीटियाँ व किलकारियाँ मारने लगे। बच्चे भागते हुए ऐसे लगते हैं मानो उनके शरीर में कपास लगे हों। उनके कोमल नरम शरीर पर चोट व खरोंच अधिक असर नहीं डालती। उनके पैरों में बेचैनी होती है जिसके कारण वे सारी धरती को नापना चाहते हैं। वे मकान की छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं मानो छतें नरम हों। खेलते हुए उनका शरीर रोमांचित हो जाता है। इस रोमांच मैं वे गिरने से बच जाते हैं। बच्चे पतंग के साथ उड़ते-से लगते हैं। कभी-कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिरकर भी बच जाते हैं। इसके बाद इनमें साहस तथा आत्मविश्वास बढ़ जाता है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके-
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया।

शब्दार्थ- भादो -भादों मास, अँधेरा। शरद -शरद ऋतु, उजाला। झुंड -समूह। इशारों से -संकेतों से। मुलायम -कोमल। रंगीन- रंगबिरंगी। बाँस -एक प्रकार की लकड़ी। नाजुक -कोमल। किलकारी- खुशी में चिल्लाना।

व्याख्या-कवि कहता है कि बरसात के मौसम में जो तेज बौछारें पड़ती थीं, वे समाप्त हो गई। तेज बौछारों और भादों माह की विदाई के साथ-साथ ही शरद ऋतु का आगमन हुआ। अब शरद का प्रकाश फैल गया है। इस समय सवेरे उगने वाले सूरज में खरगोश की आँखों जैसी लालिमा होती है। कवि शरद का मानवीकरण करते हुए कहता है कि वह अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज गति से चलाते हुए और जोर-जोर से घंटी बजाते हुए पुलों को पार करते हुए आ रहा है। वह अपने चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को बुला रहा है। दूसरे शब्दों में, कवि कहना चाहता है कि शरद ऋतु के आगमन से उत्साह, उमंग का माहौल बन जाता है। कवि कहता है कि शरद ने आकाश को मुलायम कर दिया है ताकि पतंग ऊपर उड़ सके। वह ऐसा माहौल बनाता है कि दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके। यानी बच्चे दुनिया के सबसे पतले कागज व बाँस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंग उड़ा सकें। इन पतंगों को उड़ता देखकर बच्चे सीटियाँ किलकारियाँ मारने लगते हैं। इस ऋतु में रंग-बिरंगी तितलियाँ भी दिखाई देने लगती हैं। बच्चे भी तितलियों की भाँति कोमल व नाजुक होते हैं।

विशेष-

1. कवि ने बिंबात्मक शैली में शरद ऋतु का सुंदर चित्रण किया है।
2. बाल-सुलभ चेष्टाओं का अनूठा वर्णन है।
3. शरद ऋतु का मानवीकरण किया गया है।
4. उपमा, अनुप्रास, श्लेष, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
5. खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
6. लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
7. मिश्रित शब्दावली है।
प्रश्न

(क) शरद ऋतु का आगमन कैसे हुआ?
उत्तर- शरद ऋतु अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज चलाते हुए पुलों को पार करते हुए आया। वह अपनी साइकिल की घंटी जोर-जोर से बजाकर पतंग उड़ाने वाले बच्चों को इशारों से बुला रहा है।
(ख) भादों मास के बाद मौसम में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर- भादों मास में रात अँधेरी होती है । सुबह में सूरज का लालिमायुक्त प्रकाश होता है । चारों ओर उत्साह और उमंग का माहौल होता है ।
(ग) पता के बारे में कवि क्या बताता हैं?
उत्तर- पतंग के बारे में कवि बताता है कि वह संसार की सबसे हलकी, रंग-बिरंगी व हलके कागज की बनी होती है। इसमें लगी बाँस की कमानी सबसे पतली होती है।
(घ) बच्चों की दुनिया कैसी होती हैं?
उत्तर- बच्चों की दुनिया उत्साह, उमंग व बेफ़िक्री का होता है। आसमान में उड़ती पतंग को देखकर वे किलकारी मारते हैं तथा सीटियाँ बजाते हैं। वे तितलियों के समान मोहक होते हैं।

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग सो अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक-
उस समय गिरने से बचाता हैं उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे।

शब्दार्थ- कपास- इस शब्द का प्रयोग कोमल व नरम अनुभूति के लिए हुआ है। बेसुध -मस्त। मृदंग -ढोल जैसा वाद्य यंत्र। पेंग भरना -झूला झूलना। डाल -शाखा। लचीला वेग -लचीली गति। अकसर -प्राय:। रोमांचित-पुलकित। महज-केवल, सिर्फ़।
व्याख्या-कवि कहता है कि बच्चों का शरीर कोमल होता है। वे ऐसे लगते हैं मानो वे कपास की नरमी, लोच आदि लेकर ही पैदा हुए हों। उनकी कोमलता को स्पर्श करने के लिए धरती भी लालायित रहती है। वह उनके बेचैन पैरों के पास आती है-जब वे मस्त होकर दौड़ते हैं। दौड़ते समय उन्हें मकान की छतें भी कठोर नहीं लगतीं। उनके पैरों से छतें भी नरम हो जाती हैं। उनकी पदचापों से सारी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा स्वर उत्पन्न होता है। वे पतंग उड़ाते हुए इधर से उधर झूले की पेंग की तरह आगे-पीछे आते-जाते हैं। उनके शरीर में डाली की तरह लचीलापन होता है। पतंग उड़ाते समय वे छतों के खतरनाक किनारों तक आ जाते हैं। यहाँ उन्हें कोई बचाने नहीं आता, अपितु उनके शरीर का रोमांच ही उन्हें बचाता है। वे खेल के रोमांच के सहारे खतरनाक जगहों पर भी पहुँच जाते हैं। इस समय उनका सारा ध्यान पतंग की डोर के सहारे, उसकी उड़ान व ऊँचाई पर ही केंद्रित रहता है। ऐसा लगता है मानो पतंग की ऊँचाइयों ने ही उन्हें केवल डोर के सहारे थाम लिया हो।

विशेष-

1. कवि ने बच्चों की चेष्टाओं का मनोहारी वर्णन किया है।
2. मानवीकरण, अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
3. खड़ी बोली में भावानुकूल सहज अभिव्यक्ति है।
4. मिश्रित शब्दावली है।
5. पतंग को कल्पना के रूप में चित्रित किया गया है।

प्रश्न

(क) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास कैसे आती हैं?
उत्तर- पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास इस तरह आती है, मानो वह अपना पूरा चक्कर लगाकर आ रही हो।
(ख) छतों को नरम बनाने से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर- छतों को नरम बनाने से कवि का आशय यह है कि बच्चे छत पर ऐसी तेजी और बेफ़िक्री से दौड़ते फिर रहे हैं मानो किसी नरम एवं मुलायम स्थान पर दौड़ रहे हों, जहाँ गिर जाने पर भी उन्हें चोट लगने का खतरा नहीं है।
(ग) बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की क्या कल्पना रही होगी?
उत्तर- बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की कल्पना यह रही होगी कि बच्चे पतंग उड़ाते हुए उनकी डोर थामे आगे-पीछे यूँ घूम रहे हैं, मानो वे किसी लचीली डाल को पकड़कर झूला झूलते हुए आगे-पीछे हो रहे हों।
(घ) इन पक्तियों में कवि ने पतग उड़ाते बच्चों की तीव्र गतिशीलता व चचलता का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर- इन पंक्तियों में कवि ने पतंग उड़ाते बच्चों की तीव्र गतिशीलता का वर्णन पृथ्वी के घूमने के माध्यम से और बच्चों की चंचलता का वर्णन डाल पर झूला झूलने से किया है।

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है
उनके बचन पैरों के पास।

शब्दार्थ- रंध्रों- सुराखों। सुनहले सूरज -सुनहरा सूर्य।

व्याख्या-कवि कहता है कि आकाश में अपनी पतंगों को उड़ते देखकर बच्चों के मन भी आकाश में उड़ रहे हैं। उनके शरीर के रोएँ भी संगीत उत्पन्न कर रहे हैं तथा वे भी आकाश में उड़ रहे हैं। कभी-कभार वे छतों के किनारों से गिर जाते हैं, परंतु अपने लचीलेपन के कारण वे बच जाते हैं। उस समय उनके मन का भय समाप्त हो जाता है। वे अधिक उत्साह के साथ सुनहरे सूरज के सामने फिर आते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अगली सुबह फिर पतंग उड़ाते हैं। उनकी गति और अधिक तेज हो जाती है। पृथ्वी और तेज गति से उनके बेचैन पैरों के पास आती है।

विशेष-

1. बच्चे खतरों का सामना करके और भी साहसी बनते हैं, इस भाव की अभिव्यक्ति है।
2. मुक्त छंद का प्रयोग है।
3. मानवीकरण, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
4. दृश्य बिंब है।
5. भाषा में लाक्षणिकता है।

प्रश्न

(क) सुनहले सूरज के सामने आने से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर- सुनहले सूरज के सामने आने का आशय है-सूरज के समान तेजमय होकर क्रियाशील होना तथा बालसुलभ क्रियाओं जैसे-खेलना-कूदना, ऊधम मचाना, भागदौड़ करना आदि, में शामिल हो जाना।
(ख) गिरकर बचने पर बच्चों में क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर- गिरकर बचने के बाद बच्चों की यह प्रतिक्रिया होती है कि उनका भय समाप्त हो जाता है और वे निडर हो जाते हैं। अब उन्हें तपते सूरज के सामने आने से डर नहीं लगता। अर्थात वे विपत्ति और कष्ट का सामना निडरतापूर्वक करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
(ग) पैरों को बेचैन क्यों कहा गया हैं?
उत्तर- पैरों को बेचैन इसलिए कहा गया है क्योंकि बच्चे इतने गतिशील होते हैं कि वे एक स्थान पर टिकना ही नहीं जानते। वे अपने नन्हे-नन्हे पैरों के सहारे पूरी पृथ्वी नाप लेना चाहते हैं।
(घ) ‘पतगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं”-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं’ का आशय है बच्चे खुद भी पतंगों के सहारे कल्पना के आकाश में पतंगों जैसी ही ऊँची उड़ान भरना चाहते हैं। जिस प्रकार पतंगें ऊपर-नीचे उड़ती हैं उसी प्रकार उनकी कल्पनाएँ भी ऊँची-नीची उड़ान भरती हैं जो मन की डोरी से बँधी होती हैं। 


कक्षा 12 एक गीत ( दिन जल्दी जल्दी ढलता है )

                              एक गीत

प्रतिपादय-निशा-निमंत्रण से उद्धृत इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचल तेजी भर सकता है-अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशिप्त हो जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।
सार-कवि कहता है कि साँझ घिरते ही पथिक लक्ष्य की ओर तेजी से कदम बढ़ाने लगता है। उसे रास्ते में रात होने का भय होता है। जीवन-पथ पर चलते हुए व्यक्ति जब अपने लक्ष्य के निकट होता है तो उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती है। पक्षी भी बच्चों की चिंता करके तेजी से पंख फड़फड़ाने लगते हैं। अपनी संतान से मिलने की चाह में हर प्राणी आतुर हो जाता है। आशा व्यक्ति के जीवन में नई चेतना भर देती है। जिनके जीवन में कोई आशा नहीं होती, वे शिथिल हो जाते हैं। उनका जीवन नीरस हो जाता है। उनके भीतर उत्साह समाप्त हो जाता है। अत: रात जीवन में निराशा नहीं, अपितु आशा का संचार भी करती है।
एक गीत
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं, 
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता हैं!
दिन जल्दी-जल्दी ढोलता हैं!

शब्दार्थ -ढलता -समाप्त होता। पथ -रास्ता। मंजिल -लक्ष्य। पंथी -यात्री।
व्याख्या-कवि जीवन की व्याख्या करता है। वह कहता है कि शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है कि कहीं रास्ते में रात न हो जाए। उसकी मंजिल समीप ही होती है इस कारण वह थकान होने के बावजूद भी जल्दी-जल्दी चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए उसे दिन जल्दी ढलता प्रतीत होता है। रात होने पर पथिक को अपनी यात्रा बीच में ही समाप्त करनी पड़ेगी, इसलिए थकित शरीर में भी उसका उल्लासित, तरंगित और आशान्वित मन उसके पैरों की गति कम नहीं होने देता।
विशेष-
1. कवि ने जीवन की क्षणभंगुरता व प्रेम की व्यग्रता को व्यक्त किया है।
2. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
3. भाषा सरल, सहज और भावानुकूल है, जिसमें खड़ी बोली का प्रयोग है।
4. जीवन को बिंब के रूप में व्यक्त किया है।
5. वियोग श्रृंगार रस की अनुभूति है।

प्रश्न
(क) ‘हो जाए न पथ में’- यहाँ किस पथ की ओर कवि ने संकेत किया हैं?
उत्तर – ‘हो जाए न पथ में' -के माध्यम से कवि अपने जीवन-पथ की ओर संकेत कर रहा है, जिस पर वह अकेले चल रहा है।
(ख) पथिक के तेज चलने का क्या कारण हैं?
उत्तर – पथिक तेज इसलिए चलता है क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।
(ग) कवि दिन के बारे में क्या बताता हैं?
उत्तर – कवि कहता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। दूसरे शब्दों में, समय परिवर्तनशील है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । 

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

शब्दार्थ- प्रत्याशा- आशा। नीड़ -घोंसला। पर- पंख। चंचलता -अस्थिरता।
व्याख्या- कवि प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर चंचल हो उठती हैं। वे जल्दी से जल्दी अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं। उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन आदि की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही उनके पंखों में तेजी आ जाती है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं।
विशेष-
1. उक्त काव्यांश में कवि कह रहा है कि वात्सल्य भाव की व्यग्रता सभी प्राणियों में पाई जाती है।
2. पक्षियों के बच्चों द्वारा घोंसलों से झाँका जाना गति एवं दृश्य बिंब उपस्थित करता है।
3. तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।
4. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
5. सरल, सहज और भावानुकूल खड़ी बोली में सार्थक अभिव्यक्ति है।
प्रश्न
(क) बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों?
उत्तर- बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि चिड़िया (माँ) के पहुँचने पर ही उनके भोजन इत्यादि की पूर्ति होगी।
(ख) चिड़ियों के घोंसलों में किस दृश्य की कल्पना की गई हैं?
उत्तर- कवि चिड़ियों के घोंसलों में उस दृश्य की कल्पना करता है जब बच्चे माँ-बाप की प्रतीक्षा में अपने घरों से झाँकने लगते हैं।
(ग) चिड़ियों के परों में चंचलता आने का क्या कारण हैं?
उत्तर- चिड़ियों के परों में चंचलता इसलिए आ जाती है क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की चिंता में बेचैनी हो जाती है। वे अपने बच्चों को भोजन, स्नेह व सुरक्षा देना चाहती हैं।
(घ) इस अशा से किस मानव-सत्य को दर्शाया गया है?
उत्तर- इस अंश से कवि, माँ के वात्सल्य भाव का सजीव वर्णन कर रहा है। वात्सल्य प्रेम के कारण मातृमन आशंका से भर उठता है

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता हैं!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

शब्दार्थ- विकल- व्याकुल। हित -लिए, वास्ते। चंचल- क्रियाशील। शिथिल- ढीला। पद -पैर। उर -हृदय। विह्वलता -बेचैनी, भाव आतुरता।
व्याख्या- कवि कहता है कि इस संसार में वह अकेला है। इस कारण उससे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं होता, उसकी उत्कंठा से प्रतीक्षा नहीं करता, वह भला किसके लिए भागकर घर जाए। कवि के मन में प्रेम-तरंग जगने का कोई कारण नहीं है। कवि के मन में यह प्रश्न आने पर उसके पैर शिथिल हो जाते हैं। उसके हृदय में यह व्याकुलता भर जाती है कि दिन ढलते ही रात हो जाएगी। रात में एकाकीपन और उसकी प्रिया की वियोग-वेदना उसे अशांत कर देगी। इससे उसका हृदय पीड़ा से बेचैन हो उठता है।
विशेष-
1. एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति की मनोदशा का वास्तविक चित्रण किया गया है।
2. सरल, सहज और भावानुकूल खड़ी बोली का प्रयोग है।
3. ‘मुझसे मिलने’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘मैं होऊँ किसके हित चंचल?’ में प्रश्नालंकार है।
3. तत्सम-प्रधान शब्दावली है जिसमें अभिव्यक्ति की सरलता है।
प्रश्न
(क) कवि के मन में कौन-से प्रश्न उठते हैं?
(क) कवि के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं-
(i) उससे मिलने के लिए कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा है?
(ii) वह किसके लिए चंचल होकर कदम बढ़ाए?
(ख) कवि की व्याकुलता का क्या कारण हैं?
(ख) कवि के हृदय में व्याकुलता है क्योंकि वह अकेला है। प्रिया के वियोग की वेदना इस व्याकुलता को प्रगाढ़ कर देती है। इस कारण उसके मन में अनेक प्रश्न उठते हैं।
(ग) कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
(ग) कवि अकेला है। उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं है। इस कारण कवि के मन में भी उत्साह नहीं है, इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।
(घ) ‘मैं होऊँ किसके हित चचल?’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘मैं होऊँ किसके हित चंचल’ का आशय यह है कि कवि अपनी पत्नी से दूर होकर एकाकी जीवन बिता रहा है। उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वह किसके लिए बेचैन होकर घर जाने की चंचलता दिखाए।

कक्षा - 12 हरिवंश राय बच्चन ( आत्म परिचय )

                 काव्य भाग – आत्म-परिचय, एक गीत
                       कविता का प्रतिपादय एवं सार
                                आत्मपरिचय

प्रतिपादय- कवि का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है।
कवि अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है- उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उत्तर आई है कि दुनिया का तलबगार नहीं हूँ। बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ-जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है।
किसी असंभव आदर्श की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से कि जैसे दुनिया से इन्हें कोई वास्ता ही नहीं है। 
सार-कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। वह निरर्थक कल्पनाओं में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यह संसार कभी भी किसी की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाया है। कवि सुख-दुख, यश-अपयश, हानि-लाभ आदि द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में एक जैसा रहता है। यह संसार मिथ्या है, अत: यहाँ स्थायी वस्तु की कामना करना व्यर्थ है।
कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। संसार उसे कवि कहता है, परंतु वह स्वयं को नया दीवाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

                           आत्मपरिचय

मैं जग – जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ !
मैं स्नेह-सुरा का पान किया कस्ता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ;
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ !

शब्दार्थ- जग-जीवन -सांसारिक गतिविधि। झंकृत -तारों को बजाकर स्वर निकालना। सुरा -शराब। स्नेह -प्रेम। पान -पीना। ध्यान करना -परवाह करना। गाते -प्रशंसा करते।
व्याख्या- बच्चन जी कहते हैं कि मैं संसार में जीवन का भार उठाकर घूमता रहता हूँ। इसके बावजूद मेरा जीवन प्यार से भरा-पूरा है। जीवन की समस्याओं के बावजूद कवि के जीवन में प्यार है। उसका जीवन सितार की तरह है जिसे किसी ने छूकर झंकृत कर दिया है। फलस्वरूप उसका जीवन संगीत से भर उठा है। उसका जीवन इन्हीं तार रूपी साँसों के कारण चल रहा है। उसने स्नेह रूपी शराब पी रखी है अर्थात प्रेम किया है तथा बाँटा है। उसने कभी संसार की परवाह नहीं की। संसार के लोगों की प्रवृत्ति है कि वे उनको पूछते हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। कवि अपने मन की इच्छानुसार चलता है, अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है।
विशेष-
1. कवि ने निजी प्रेम को स्वीकार किया है।
2. संसार के स्वार्थी स्वभाव पर टिप्पणी की है।
3. ‘स्नेह-सुरा’ व ‘साँसों के तार’ में रूपक अलंकार है।
4. ‘जग-जीवन’, ‘स्नेह-सुरा’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. ‘किया करता हूँ’, ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति में गीत की मस्ती है।
प्रश्न-
(क) जग-जीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है?
उत्तर:- ‘जग-जीवन का भार लिए फिरने’ से कवि का आशय है- सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा-पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है।
(ख) ‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर:- ‘स्नेह-सुरा’ से आशय है -प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है।
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।
उत्तर:- ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते’ का आशय है -यह संसार उन लोगों की स्तुति(प्रशंसा) करता है जो संसार के अनुसार चलते हैं और उसका गुणगान करते है।
(घ) ‘साँसों के तार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा?
उत्तर:- ‘साँसों के तार’ से कवि का तात्पर्य है -उसके जीवन में भरा प्रेम रूपी तार, जिनके कारण उसका जीवन चल रहा है। मेरे विचार से उन्हें कवि की प्रेयसी ने झंकृत किया होगा।

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
            है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ !
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
           जग भव-सागर तरने की नाव बनाए,
मैं भव-मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

शब्दार्थ- उदगार- दिल के भाव। उपहार -भेंट। भाता -अच्छा लगता। स्वप्नों का संसार -कल्पनाओं की दुनिया। दहा -जलना। भव-सागर -संसार रूपी सागर। मौज -लहरों।
व्याख्या -कवि अपने मन की भावनाओं को दुनिया के सामने कहने की कोशिश करता है। उसे खुशी के जो उपहार मिले हैं, उन्हें वह साथ लिए फिरता है। उसे यह संसार अधूरा लगता है। इस कारण यह उसे पसंद नहीं है। वह अपनी कल्पना का संसार लिए फिरता है। उसे प्रेम से भरा संसार अच्छा लगता है। वह कहता है कि मैं अपने हृदय में आग जलाकर उसमें जलता हूँ अर्थात मैं प्रेम की जलन को स्वयं ही सहन करता हूँ। प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के जो सुख-दुख आते हैं, उनमें मस्त रहता हूँ। यह संसार आपदाओं का सागर है। लोग इसे पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। उसे संसार की कोई चिंता नहीं है।
विशेष-
1. कवि ने प्रेम की मस्ती को प्रमुखता दी है।
2. व्यक्तिवादी विचारधारा की प्रमुखता है।
3. ‘स्वप्नों का संसार’ में अनुप्रास तथा ‘भव-सागर’ और ‘भव मौजों’ में रूपक अलंकार है।
4. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
5. तत्सम शब्दावली की बहुलता है।
6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है।
प्रश्न-
(क) कवि के हृदय में कौन-सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यथित क्यों है?
उत्तर – कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है।
(ख) ‘निज उर के उद्गार व उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘निज उर के उद्गार’ का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है। ’निज उर के उपहार’ से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना चाहता है।
(ग) कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
उत्तर – कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उनके अनुसार संसार अधूरा है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है।
(घ) संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता हैं?
उत्तर – संसार में रहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसलिए मनुष्य को हँसते हुए जीना चाहिए।

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों’ में अवसाद लिए फिरता हूँ,
        जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं , हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ !
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं हैं, हाय, जहाँ पर दाना!
        फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं  सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !

शब्दार्थ- यौवन -जवानी। उन्माद -पागलपन। अवसाद -उदासी, खेद। यत्न -प्रयास। नादान -नासमझ, अनाड़ी। दाना -चतुर, ज्ञानी। मूढ़ -मूर्ख। जग -संसार। 

व्याख्या- कवि कहता है कि उसके मन पर जवानी का पागलपन सवार है। वह उसकी मस्ती में घूमता रहता है। इस दीवानेपन के कारण उसे अनेक दुख भी मिले हैं। वह इन दुखों को उठाए हुए घूमता है। कवि को जब किसी प्रिय की याद आ जाती है तो उसे बाहर से हँसा जाती है, परंतु उसका मन रो देता है अर्थात याद आने पर कवि-मन व्याकुल हो जाता है।
कवि कहता है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें सीख रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहे अनुसार चलना सीख रहा हूँ।
विशेष-
1. पहली चार पंक्तियों में कवि ने आत्माभिव्यक्ति की है तथा अंतिम चार में सांसारिक जीवन के विषय में बताया है।
2. ‘उन्मादों में अवसाद’ में विरोधाभास अलंकार है।
3. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति से गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है।
4. ‘कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
5. ‘नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना’ में सूक्ति जैसा प्रभाव है।
6. खड़ी बोली है।
प्रश्न-
(क) ‘यौवन का उन्माद’ का आशय है।
उत्तर:- कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है।
(ख) कवि की मनःस्थिति कैसी है?
उत्तर:- कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।
(ग) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं?
उत्तर:- कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने के लिए प्रयास करते हैं, परंतु वे कभी सफल नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।
(घ) कवि सीखे ज्ञान को क्यों भूला रहा है?
उत्तर:- कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं होती, जिससे वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके।

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
         जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
        हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ!

शब्दार्थ- नाता -संबंध। वैभव -समृद्ध। पग -पैर। रोदन -रोना। राग -प्रेम। आग -जोश। भूप -राजा। प्रासाद -महल। निछावर -कुर्बान। खंडहर -टूटा हुआ भवन। भाग -हिस्सा।
व्याख्या- कवि कहता है कि मुझमें और संसार-दोनों में कोई संबंध नहीं है। संसार के साथ मेरा टकराव चल रहा है। कवि अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता है। यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है, परंतु कवि हर कदम पर धरती को ठुकराया करता है। अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी के प्रतिकूल आचार-विचार रखता है। कवि कहता है कि वह अपने रोदन में भी प्रेम लिए फिरता है। उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई है अर्थात उसमें असंतोष झलकता है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, फिर भी उस पर राजाओं के महल न्योछावर होते हैं। ऐसे खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता है जिसे महल पर न्योछावर कर सके।
विशेष-
1. कवि ने अपनी अनुभूतियों का परिचय दिया है।
2. ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार है।
3. ‘रोदन में राग’ और ‘शीतल वाणी में आग’ में विरोधाभास अलंकार तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. ‘और’ की आवृत्ति में यमक अलंकार है।
5. ‘कहाँ का’ और ‘जग जिस पृथ्वी पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है तथा खड़ी बोली का प्रयोग है।
प्रश्न-
(क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं?
उत्तर- कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मर्जी से संसार बनाता व मिटाता है।
(ख) कवि और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति हैं?
उत्तर- कवि को सांसारिक आकर्षणों का मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करते हैं।
(ग) ‘शीतल वाणी में’ आग लिए फिरता हूँ’ -से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर सके।
(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं?
उत्तर- कवि के पास प्रेम महल के खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार के बड़े-बड़े राजा प्रेम के आवेग में राजगद्दी भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।


मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना,
मैं फूट पडा, तुम कहते, छंद बनाना;
          क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक क्या दीवान!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
         जिसको सुनकर जग झूम, झुके; लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

शब्दार्थ- फूट पड़ा- जोर से रोया। दीवाना- पागल। मादकता- मस्ती। नि:शेष- संपूर्ण।

व्याख्या -कवि कहता है कि प्रेम की पीड़ा के कारण उसका मन रोता है। अर्थात हृदय की व्यथा शब्द रूप में प्रकट हुई। उसके रोने को संसार गाना मान बैठता है। जब वेदना अधिक हो जाती है तो वह दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है। संसार इस प्रक्रिया को छंद बनाना कहती है। कवि प्रश्न करता है कि यह संसार मुझे कवि के रूप में अपनाने के लिए तैयार क्यों है? वह स्वयं को नया दीवाना कहता है जो हर स्थिति में मस्त रहता है। समाज उसे दीवाना क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार में घूमता रहता है। उसके जीवन में जो मस्ती शेष रह गई है, उसे लिए वह घूमता रहता है। इस मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम में झुक जाते हैं तथा आनंद से झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार में घूमता है जिसे लोग गीत समझने की भूल कर बैठते हैं।
विशेष-
1. कवि मस्त प्रकृति का व्यक्ति है। यह मस्ती उसके गीतों से फूट पड़ती है।
2. ‘कवि कहकर’ तथा ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार और ‘क्यों कवि . अपनाए’ में प्रश्न अलंकार है।
3. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
4. ‘मैं’ शैली के प्रयोग से कवि ने अपनी बात कही है।
5. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है।
6. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति गेयता में वृद्धि करती है।
7. तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।

(क) कवि की किस बात को संसार क्या समझता हैं?
उत्तर- कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है।
(ख) कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों?
(ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।
(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?
(ग) कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर दुनिया झूमती है।
(घ) कवि संसार को क्या संदेश देता हैं? संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद से लहराता है

कवि परिचय : हरिवंश राय बच्चन

जन्म: 27 नवंबर 1907, इलाहाबाद (प्रयागराज)
मृत्यु: 18 जनवरी 2003, मुंबई

मुख्य धारा: हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक और हालावादी दर्शन के प्रवर्तक।

प्रमुख रचनाएँ: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, क्या भूलूँ क्या याद करूँ (आत्मकथा)।
भाषा-शैली: इनकी भाषा सीधी-सादी, जीवंत और संवेदनशील है। इन्होंने फारसी के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग किया है।

पाठ का सारांश
इस पाठ में बच्चन जी की दो कविताएँ संकलित हैं:-
आत्मपरिचय: इस कविता में कवि अपने और संसार के संबंधों के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी मस्ती और प्रेम की दुनिया में खोए रहते हैं। वे संसार के साथ अपने विरोधाभासी (contradictory) संबंधों को उजागर करते हैं। जैसे - वे रोते हैं तो भी उसमें संगीत होता है, उनकी शीतल वाणी में भी आग छिपी है। कविता का मूल भाव है - दुनिया से मेरा संबंध प्रीति-कलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।
एक गीत (दिन जल्दी-जल्दी ढलता है): यह गीत 'निशा निमंत्रण' काव्य संग्रह से लिया गया है। इसमें कवि ने समय के बीतने के एहसास को बताया है। एक राहगीर (पथिक) अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए तेजी से चलता है क्योंकि उसे डर है कि रात न हो जाए। पक्षी भी अपने बच्चों की याद करके तेजी से पंख फड़फड़ाते हैं। लेकिन कवि के जीवन में कोई ऐसा नहीं है जो उनका इंतज़ार कर रहा हो, इसलिए यह सोचकर उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। यह गीत जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता है।

NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर 'मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' - विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर: इन दोनों पंक्तियों में विरोधाभास है, लेकिन इनका गहरा अर्थ है।
● 'जग-जीवन का भार लिए फिरना' का अर्थ है कि कवि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरी तरह निभाते हैं। वे संसार से अलग नहीं हैं।
● 'कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' का अर्थ है कि कवि सांसारिक बातों, व्यर्थ की आलोचनाओं और लोक-निंदा की परवाह नहीं करते। वे वही करते हैं जो उनका मन कहता है, जो उन्हें सही लगता है।
इस प्रकार, कवि जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मस्ती को बनाए रखते हैं।

प्रश्न 2: जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं - कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर: यहाँ 'दाना' का अर्थ है ज्ञानी और समझदार लोग, और 'नादान' का अर्थ है मूर्ख या सांसारिक मोह-माया में फँसे लोग। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि यह संसार ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के लोगों से मिलकर बना है। जहाँ कुछ लोग सत्य और ज्ञान को पहचानते हैं, वहीं अधिकतर लोग सांसारिक भोग-विलास और धन-संपत्ति को ही सब कुछ मानकर उसके पीछे भागते रहते हैं। कवि कहते हैं कि इतना सत्य जानने के बाद भी लोग नादानी करते हैं, तो मैं प्रेम में दीवाना बनकर नादान क्यों न रहूँ?

प्रश्न 3: 'मैं और, और जग और, कहाँ का नाता' - पंक्ति में 'और' शब्द की विशेषता बताइए।

उत्तर: इस पंक्ति में 'और' शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है और हर बार इसका अर्थ अलग है, जिससे पंक्ति में एक विशेष सौंदर्य उत्पन्न हुआ है।
● पहला 'और': 'मैं और' में 'और' का अर्थ है 'अलग' या 'भिन्न'। (मेरा स्वभाव अलग है)
● दूसरा 'और': 'जग और' में 'और' का अर्थ भी 'अलग' है। (संसार का स्वभाव अलग है)
● तीसरा 'और': 'और जग' के बीच योजक (conjunction) के रूप में प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है 'तथा'।
पूरा अर्थ है: मेरा स्वभाव अलग है, और इस संसार का स्वभाव अलग है, इसलिए हम दोनों में कोई संबंध कैसे हो सकता है।

प्रश्न 4: 'शीतल वाणी में आग' - के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: यह भी एक विरोधाभासी कथन है। 'शीतल वाणी' का अर्थ है कि कवि की भाषा और अभिव्यक्ति बहुत सहज, सरल और ठंडी है। लेकिन 'आग' का अर्थ है कि उन शब्दों में प्रेम की तीव्रता, विद्रोह का भाव और जोश भरा हुआ है। कवि अपनी शीतल वाणी के माध्यम से समाज की कुरीतियों और जड़ नियमों के प्रति अपने असंतोष और विद्रोह की आग को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 5: बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

उत्तर: बच्चे इस आशा में घोंसलों (नीड़ों) से झाँक रहे होंगे कि उनके माता-पिता (पक्षी) दिन ढलने पर उनके लिए भोजन लेकर लौट रहे होंगे। वे माता-पिता से मिलने वाले स्नेह, स्पर्श और भोजन की आतुरता में बाहर झाँकते हैं।

प्रश्न 6: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' - की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है:
1. समय की गति: यह पंक्ति बार-बार आकर यह बताती है कि समय किसी के लिए नहीं रुकता, वह तेजी से बीत रहा है।
2. लक्ष्य प्राप्ति की आतुरता: यह पंक्ति पथिक और पक्षियों को अपने लक्ष्य (घर) तक पहुँचने के लिए प्रेरित करती है।
3. कवि की निराशा: जब कवि यह सोचता है कि उसका कोई इंतज़ार नहीं कर रहा, तो यही पंक्ति उसे निराश करती है और उसके कदमों को धीमा कर देती है।
यह पंक्ति कविता के केंद्रीय भाव को गति और गहराई प्रदान करती है।

राजस्थान बोर्ड (RBSE) के विगत वर्षों के महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1: 'आत्मपरिचय' कविता के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर: हरिवंश राय बच्चन।
प्रश्न 2: कवि किसका पान किया करते हैं?
उत्तर: कवि स्नेह-सुरा (प्रेम रूपी शराब) का पान किया करते हैं।
प्रश्न 3: कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
उत्तर: कवि को संसार इसलिए अपूर्ण लगता है क्योंकि उसमें सच्चे प्रेम और भावुकता का अभाव है।
प्रश्न 4: चिड़िया के पंखों में चंचलता क्यों आ जाती है?
उत्तर: अपने बच्चों से शीघ्र मिलने की आतुरता के कारण चिड़िया के पंखों में चंचलता आ जाती है।
प्रश्न 5: कवि के पग शिथिल क्यों हो जाते हैं?
उत्तर: जब कवि को यह याद आता है कि घर पर कोई भी उनकी प्रतीक्षा करने वाला नहीं है, तो यह सोचकर उनके कदम शिथिल (धीमे) हो जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1: कवि का जीवन 'विरुद्धों का सामंजस्य' है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवि हरिवंश राय बच्चन का जीवन विरुद्धों (विरोधाभासों) का सामंजस्य है। वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी सांसारिकता से अलग रहते हैं। वे दुनिया के बीच रहकर भी अपनी मस्ती में जीते हैं। उनकी 'शीतल वाणी में आग' है और वे 'रोदन में राग' लिए फिरते हैं। इस प्रकार, वे सुख-दुःख, प्रेम-वैराग्य, मिलन-वियोग जैसे विरोधी भावों को एक साथ साधकर चलते हैं।

प्रश्न 2: 'मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि कवि अपने दुःख और पीड़ा को भी गीत या कविता का रूप दे देते हैं। उनके लिए उनका रोना भी एक संगीत की तरह है, जिसमें प्रेम की गहरी अनुभूति छिपी होती है। वे अपने व्यक्तिगत दुःख को अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं, जो दूसरों के लिए एक प्रेम-गीत बन जाता है।

प्रश्न 3: "मुझसे मिलने को कौन विकल?" - यह प्रश्न कवि के उर में क्या भरता है और क्यों?

उत्तर: यह प्रश्न कवि के हृदय में विह्वलता (व्याकुलता) और निराशा भर देता है। इससे उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कवि के जीवन में कोई ऐसा प्रिय व्यक्ति नहीं है जो घर पर उनसे मिलने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हो। जीवन में प्रेम और अपनेपन की यह कमी उन्हें शिथिल और उदास कर देती है।

सप्रसंग व्याख्या (4-5 अंक)

काव्यांश:
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!
उत्तर:
प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग-2' में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता 'आत्मपरिचय' से उद्धृत है। इसमें कवि अपने जीवन और संसार के साथ अपने संबंधों को व्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि मेरे ऊपर संसार की अनेक जिम्मेदारियों का बोझ है, जिन्हें मैं एक सामाजिक व्यक्ति होने के नाते निभा रहा हूँ। लेकिन इन बोझ और जिम्मेदारियों के बावजूद मेरे हृदय में सबके लिए प्रेम भरा हुआ है। मेरा जीवन प्रेम से संचालित होता है। कवि आगे कहते हैं कि उनके जीवन रूपी सितार के साँसों रूपी तारों को किसी प्रिय ने अपने प्रेम-स्पर्श से झंकृत कर दिया है, अर्थात् उनके जीवन में प्रेम का संगीत भर दिया है। वे उसी प्रेम की मधुर स्मृति और संगीत के सहारे अपना जीवन जी रहे हैं।
विशेष:
1. कवि ने संसार के साथ अपने विरोधाभासी संबंध को उजागर किया है।
2. 'जग-जीवन', 'साँसों के तार' में रूपक अलंकार है।
3. भाषा सरल, सहज और खड़ी बोली हिंदी है।
4. रचना में गेयता और संगीतात्मकता का गुण है।
5. कवि की आत्म-स्वीकृति का भाव प्रकट हुआ है।

भारतीय कलाएँ


भारतीय कला और संस्कृति 

1.) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की निम्न शैलियों में से किसके साथ गुंडेचा भाई जाने जाते है
[A] ख्याल [B] थराना [C] ध्रुपद [D] ठुमरी

2.) निम्न में से किस शहर में हाथी उत्सव प्रतिवर्ष मनाया जाता है
[A] जयपुर [B] जोधपुर [C] कोटा [D] अजमेर

3.) festival Me-Dam-Me-Phi ’त्योहार उत्तर पूर्वी भारत में किस समुदाय का त्योहार है
[A] ताई-अहोम [B] देवरी जनजाति [C] गारो [D] खासी

4.) आज की गुरुमुखी, डोगरी और सिंधी लिपियाँ किस लिपि से विकसित हुई हैं
[A] ब्राह्मी लिपि [B] सारदा लिपि [C] टंकरी स्क्रिप्ट [D] कुषाण लिपि

5.) किस राज्य की सरकार ने बसवश्री पुरस्कार ग्रहण किया
[A] गुजरात [B] महाराष्ट्र [C] आंध्र प्रदेश [D] कर्नाटक

भारतीय शिलालेखों का इतिहास 

6.) एक अग्नि मंदिर _____ के लिए पूजा स्थल है
[A] सिख [C] जोरास्ट्रियन [C] बौद्ध [D] शिंटो का

7.) बागेश्वरी क़मर भारत की पहली और एकमात्र (संभवतः) महिला खिलाड़ी है, जो निम्नलिखित संगीत वाद्ययंत्रों में से एक है
[A] घाटम [B] शहनाई [C] पखावज [D] संतूर

8.) मथुरा स्कूल ऑफ़ आर्ट में निम्नलिखित में से किस सामग्री का उपयोग किया गया था
[A] ग्रेनाइट [B] सफेद संगमरमर [C] स्लेट [D] लाल बलुआ पत्थर

9.) भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, धूम्रवर्ण _______ का अवतार या अवतार हैं
[A] विष्णु [B] शिव [C] गणेश [D] हनुमान

10.) निम्नलिखित में से कौन भारत में सबसे पुरानी जीवित रॉक-कट गुफा है
[A] बाग की गुफाएँ [B] एलोरा की गुफाएँ [C] उदय गिरि गुफाएँ [D] बाराबर गुफाएं

भारतीय कला और संस्कृति ऑब्जेक्टिव प्रश्न और उत्तर

प्रश्न.1  अजंता और एलोरा की गुफाओं में चित्रकारी कला के विकास के संकेत है।
(अ) पल्लव (ब) चालुक्य (स) पाण्ड्य (द) राष्ट्रकूट

प्रश्न.2  द्रुपद धमार की गायन शैली किसके द्वारा शुरू की गई थी?
(अ) राजा मान सिंह तोमर (ब) तानसेन (स) विष्णु दिगंबर पलुस्कर (द) अमीर खुसरो

प्रश्न.3 निम्न में से किस शास्त्रीय नृत्य का नाम उस गाँव के नाम पर पड़ा है, जिसका जन्म हुआ था?
(अ) कुचिपुड़ी (ब) कथकली (स) भरतनाट्यम (द) मोहिनीअट्टम

प्रश्न.4 निम्नलिखित में से कौन उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की विशेषता नहीं है?
(अ) सिखरा (ब) गर्भ गृह (स) गोपुरा (द) प्रदक्षिणा

प्रश्न.5  "सारे जहां से अच्छा" गीत किसने तैयार किया?
(अ) रबींद्रनाथ टैगोर (ब) जयदेव (स) मोहम्मद इकबाल (द) बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

प्रश्न.6  सत्तारिया किस राज्य का शास्त्रीय नृत्य है?
(अ) असम (ब) केरल (स) पंजाब (द) बंगाल

प्रश्न.7  निम्नलिखित में से किस त्यौहार में नौका दौड़ एक विशेष विशेषता है?
(अ) पोंगल (ब) नवरात्रि (स) रँगाली बिहू (द) ओणम

भारतीय कला और संस्कृति

प्रश्न.8  राममन ____ का धार्मिक त्योहार और अनुष्ठान थिएटर है?
(अ) उत्तर प्रदेश (ब) बंगाल (स) उत्तराखंड (द) हरियाणा
प्रश्न.9   'चौथ' थी 
(अ) पड़ोसी राज्यों पर शिवाजी द्वारा लगाया गया भूमि कर
(ब) शिवाजी द्वारा लगाया गया टोल टैक्स
(स) औरंगजेब द्वारा लगाया गया एक धार्मिक कर
(द) अकबर द्वारा लिया गया सिंचाई कर

प्रश्न.10  ___________ उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है।
(अ) मोहिनीअट्टम (ब) कुचिपुड़ी (स) कथकली (द) कथक

प्रश्न.11 तमिलनाडु में कौन सा शास्त्रीय नृत्य रूप प्रसिद्ध है?
(अ) मोहिनीअट्टम (ब) कुचिपुड़ी (स) भरतनाट्यम (द) कथकली

प्रश्न.12 प्रसिद्ध नकाबलेबरा त्योहार निम्नलिखित में से किस राज्य का है?
(अ) केरल (ब) बिहार (स) राजस्थान (द) ओडिशा

प्रश्न.13 भारत के निम्नलिखित मंदिरों में से किसे काला पैगोडा कहा जाता है?
(अ) बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर           (ब) सूर्य मंदिर, कोणार्क
(स) भगवान जगन्नाथ मंदिर, पुरी  (द) मीनाक्षी मंदिर, मदुरै

प्रश्न.14  तानसेन, अपने समय के महान संगीतकार थे -
(अ) जहाँगीर (ब) शाहजहाँ (स) अकबर (द) बहादुर शाह

प्रश्न.15 उत्तर प्रदेश का निम्न में से कौन सा लोकनृत्य नहीं है?
(अ) बिरहा (ब) छाऊ (स) चरकुलस (द) कव्वालियाँ

प्रश्न.16 कथक का शास्त्रीय नृत्य है
(अ) मणिपुर (ब) केरल (स) तमिलनाडु (द) उत्तर भारत

प्रश्न.17 पेशे से भक्त संत कौन थे?
(अ) सूरदास (ब) तुलसीदास (स) रैदास (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न.18 काला घोड़ा कला महोत्सव निम्नलिखित में से किस शहर से संबंधित है?
(अ) दिल्ली (ब) मुंबई (स) हरियाणा (द) केरल

प्रश्न.19 कौन सी भारतीय अकादमी नृत्य, नाटक और संगीत को बढ़ावा दे रही है?
(अ) साहित्य अकादमी      (ब) ललित कला अकादमी 
(स) राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (द) संगीत अकादमी

प्रश्न.20  हनुख, प्रकाश पर्व किस धर्म से संबंधित है?
(अ) यहूदी (ब) हिंदू (स) ईसाई (द) जैन

प्रश्न.21 पुंगी राज्य से संबंधित एक नृत्य शैली है?
(अ) पंजाब (स) हिमाचल प्रदेश (स) हरियाणा (द) दिल्ली