कक्षा - 12 अभिव्यक्ति और माध्यम ( कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण )

             कक्षा - 12 अभिव्यक्ति और मध्यम
    पाठ - 11 कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 1. कहानी और नाटक में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कहानी और नाटक में क्या-क्या असमानताएँ हैं ?

उत्तर-कहानी और नाटक दोनों गद्य विधाएँ हैं। इनमें जहाँ कुछ समानताएँ हैं, वहाँ कुछ असमानताएँ या अंतर भी हैं जो इस प्रकार है-
कहानी
1. कहानी एक ऐसी गद्य विधा है जिसमें जीवन के किसी अंक विशेष का मनोरंजन पूर्ण चित्रण किया जाता है।
2. कहानी का संबंध लेखक और पाठकों से होता है।
3. कहानी कही अथवा पढ़ी जाती है।
4. कहानी का आरंभ, मध्य और अंत के आधार पर बांटा जाता है।
5. कहानी में मंच सज्जा, संगीत तथा प्रकाश का महत्त्व नहीं है।
नाटक
1. नाटक एक ऐसी गद्य विधा है जिसका मंच पर अभिनय किया जाता है।
2. नाटक का संबंध लेखक, निर्देशक, दर्शक तथा श्रोताओं से है।
3. नाटक का मंच पर अभिनय किया जाता है।
4. नाटक को दृश्यों में विभाजित किया जाता है।
5. नाटक में मंच सज्जा, संगीत और प्रकाश व्यवस्था का विशेष महत्त्व होता है।

प्रश्न 2. कहानी को नाटक में किस प्रकार रूपांतरित किया जा सकता है ?

उत्तर-कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जो इस प्रकार है-
1. कहानी की कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है।
2. कहानी में घटित विभिन्न घटनाओं के आधार पर दृश्यों का निर्माण किया जाता है।
3. कथावस्तु से संबंधित वातावरण की व्यवस्था की जाती है।
4: ध्वनि और प्रकाश व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है।
5. कथावस्तु के अनुरूप मंच सज्जा और संगीत का निर्माण किया जाता है।
6. पात्रों के द्वंद्व को अभिनय के अनुरूप परिवर्तित किया जाता है।
7. संवादों को अभिनय के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता है।
8. कथानक को अभिनय के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 3. नाट्य रूपांतरण में किस प्रकार की मुख्य समस्या का सामना करना पड़ता है ?
अथवा
नाट्य रूपांतरण करते समय कौन-कौन सी समस्याएँ आती हैं ?

उत्तर-नाट्य रूपांतरण करते समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो इस प्रकार है-

1. सबसे प्रमुख समस्या कहानी के पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा प्रस्तुत प्रसंगों अथवा मानसिक द्वंद्वों के नाटकीय प्रस्तुति में आती है।
2. पात्रों के द्वंद्व को अभिनय के अनुरूप बनाने में समस्या आती है।
3. संवादों को नाटकीय रूप प्रदान करने समस्या आती है।
4. संगीत, ध्वनि और प्रकाश व्यवस्था करने में समस्या होती है।
5. कथानक को अभिनय के अनुरूप बनाने में समस्या होती है।

प्रश्न 4. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?

उत्तर-कहानी अथवा कथानक का नाट्य रूपांतरण करते समय निम्नलिखित आवश्यक बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. कथानक के अनुसार ही दृश्य दिखाए जाने चाहिए।
2. नाटक के दृश्य बनाने से पहले उसका खाका तैयार करना चाहिए।
3. नाटकीय संवादों का कहानी के मूल संवादों के साथ मेल होना चाहिए।
4. कहानी के संवादों को नाट्य रूपांतरण में एक निश्चित स्थान मिलना चाहिए।
5. संवाद सहज, सरल, संक्षिप्त, सटीक, प्रभावशैली और बोलचाल की भाषा में होने चाहिए।
6. संवाद अधिक लंबे और ऊबाऊ नहीं होने चाहिए।

प्रश्न 5. कहानी के पात्र नाट्य रूपांतरण में किस प्रकार परिवर्तित किये जा सकते हैं ?

उत्तर-कहानी के पात्र नाट्य रूपांतरण में निम्न प्रकार से परिवर्तित किये जा सकते हैं-
1. नाट्य रूपांतरण करते समय कहानी के पात्रों की दृश्यात्मकता का नाटक के पात्रों से मेल होना चाहिए।
2. पात्रों की भाव भंगिमाओं तथा उनके व्यवहार का भी उचित ध्यान रखना चाहिए।
3. पात्र घटनाओं के अनुरूप मनोभावों को प्रस्तुत करने वाले होने चाहिए।
4. पात्र अभिनय के अनुरूप होने चाहिए।
5. पात्रों का मंच के साथ मेल होना चाहिए।

प्रश्न 6. कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य विभाजन कैसे करते हैं ?

उत्तर-कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य विभाजन निम्न प्रकार करते हैं-
1. कहानी की कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित करके दृश्य बनाए जाते हैं।
2. प्रत्येक दृश्य कथानक के अनुसार बनाया जाता है।
3. एक स्थान और समय पर घट रही घटना को एक दृश्य में लिया जाता है।
4. दूसरे स्थान और समय पर घट रही घटना को अलग दृश्यों में बांटा जाता है।
5. दृश्य विभाजन करते समय कथाक्रम और विकास का भी ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 7. कहानी और नाटक में क्या समानता होती है ? 
उत्तर- कहानी और नाटक में निम्नलिखित समानताएँ हैं- 
कहानी
1. कहानी का केंद्र बिंदु होता है।                                
2. कहानी में एक कहानी होती है।                             
3. कहानी में पात्र होते हैं।।                                       
4. कहानी में शामिल हो रहे हैं।
5. कथानक का विकास होता है।
6. कहानी में संवाद होते हैं। 
7. कहानी का चरमोत्कर्ष होता है।
8. कहानी में एक उद्देश्य निहित होता है।
9. कहानी में पात्रों के माध्यम से द्वंद्व होता है।
नाटक
1. नाटक का मध्य बिंदु समन्वय होता है।                    
2. नाटक में भी एक कहानी होती है।                          
3. नाटक में भी पात्र होते हैं।
4. नाटक में भी समझ होती है।
5. नाटक का भी संकेत विकास होता है। 
6. नाटक में भी संवाद होते हैं।
7. नाटक में भी पात्रों के बीच द्वंद्व होता है।
8. नाटक में भी एक उद्देश्य निहित होता है।
9. नाटक का भी चरमोत्कर्ष होता है।

कक्षा 12 कविता के बहाने (कुंवर नारायण)

                           कविता के बहाने
प्रतिपादय-‘कविता के बहाने’ कविता कवि के कविता-संग्रह ‘इन दिनों’ से ली गई है। आज के समय में कविता के अस्तित्व के बारे में संशय हो रहा है। यह आशंका जताई जा रही है कि यांत्रिकता के दबाव से कविता का अस्तित्व नहीं रहेगा। ऐसे में यह कविता-कविता की अपार संभावनाओं को टटोलने का एक अवसर देती है।

सार-यह कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम बढ़ाता बच्चा। कवि कहता है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य-सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते हैं। वह सीमा चाहे घर की हो, भाषा की हो या समय की ही क्यों न हो।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

                       कविता के बहाने

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर  व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता की उडान भला चिडिया क्या जाने?
बाहर भीतर
इस धर, उस घर
कविता के पंख लया उड़ने के माने
चिडिया क्या जाने?

शब्दार्थ- माने-अर्थ। 
व्याख्या-कवि कहता है कि कविता कल्पना की उड़ान है। इसे सिद्ध करने के लिए वह चिड़िया का उदाहरण देता है। साथ ही चिड़िया की उड़ान के बारे में यह भी कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है किंतु कविता की कल्पना का दायरा असीमित होता है। चिड़िया घर के अंदर-बाहर या एक घर से दूसरे घर तक ही उड़ती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। कवि के भावों की कोई सीमा नहीं है। कविता घर-घर की कहानी कहती है। वह पंख लगाकर हर जगह उड़ सकती है। उसकी उड़ान चिड़िया की उड़ान से कहीं आगे है।

विशेष
1. कविता की अपार संभावनाओं को बताया गया है।
2. सरल एवं सहज खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
3. ‘चिड़िया क्या जाने?” में प्रश्न अलंकार है।
4. कविता का मानवीकरण किया गया है।
5. लाक्षणिकता है।
6. ‘कविता की उड़ान भला’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न
(क) ‘कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने’-पक्ति का भाव बताइए।
उत्तर- इस पंक्ति का अर्थ यह है कि चिड़िया को उड़ते देखकर कवि की कल्पना भी ऊँची-ऊँची उड़ान भरने लगती है। वह रचना करते समय कल्पना की उड़ान भरता है।
(ख) कविता कहाँ-कहाँ उड़ सकती हैं?
उत्तर- कविता पंख लगाकर मानव के आंतरिक व बाहय रूप में उड़ान भरती है। वह एक घर से दूसरे घर तक उड़ सकती है।
(ग) कविता की उडान व चिडिया की उडान में क्या अंतर हैं?
उत्तर- चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक होती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। चिड़िया कब्रिता की उड़ान को नहीं जान सकती।
(घ) कविता के पंख लगाकर कौन उड़ता है?
उत्तर- कविता के पंख लगाकर कवि उड़ता है। वह इसके सहारे मानव-मन व समाज की भावनाओं को अभिव्यक्ति देता है।

कविता एक खिलना हैं फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला कूल क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?

शब्दार्थ- महकना- सुगंध बिखेरना।
व्याख्या-कवि कहता है कि कविता की रचना फूलों के बहाने हो सकती है। फूलों को देखकर कवि का मन प्रफुल्लित रहता है। उसके मन में कविता फूल की भाँति विकसित होती है। फूल से कविता में रंग, भाव आदि आते हैं, परंतु कविता के खिलने के बारे में फूल कुछ नहीं जानते। फूल कुछ समय के लिए खिलते हैं, खुशबू फैलाते हैं, फिर मुरझा जाते हैं। उनकी परिणति निश्चित होती है। वे घर के अंदर-बाहर, एक घर से दूसरे घर में अपनी सुगंध फैलाते हैं, परंतु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। कविता बिना मुरझाए लंबे समय तक लोगों के मन में व्याप्त रहती है। इस बात को फूल नहीं समझ पाता।

विशेष-
1. कविता व फूल की तुलना मनोरम है।
2. सरल एवं सहज खड़ी बोली भावानुकूल है।
3. ‘मुरझाए महकने’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘फूल क्या जाने?” में प्रश्न अलंकार है।
4. शांत रस है।
5. मुक्त छंद है।
प्रश्न
(क) ‘कविता एक खिलन हैं, फूलों के बहाने’ ऐसा क्यों?
उत्तर- कविता फूलों के बहाने खिलना है क्योंकि फूलों को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो जाता है। उसके मन में कविता फूलों की भाँति विकसित होती जाती है।
(ख) कविता रचने और फूल खिलने में क्या साम्यता हैं?
उत्तर- जिस प्रकार फूल पराग, मधु व सुगंध के साथ खिलता है, उसी प्रकार कविता भी मन के भावों को लेकर रची जाती है।
(ग) बिना मुरझाए कौन कहाँ महकता हैं?
उत्तर- बिना मुरझाए कविता हर जगह महका करती है। यह अनंतकाल तक सुगंध फैलाती है।
(घ) ‘कविता का खिलना भला कूल क्या जाने। ‘-पंक्ति का आशय स्पष्ट र्काजि।
उत्तर- इस पंक्ति का आशय यह है कि फूल के खिलने व मुरझाने की सीमा है, परंतु कविता शाश्वत है। उसका महत्व फूल से अधिक है।

कविता एक खेल हैं बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह धर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
कच्च ही जाने।

व्याख्या-कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे कहीं भी किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं, उसी प्रकार कवि के लिए कविता शब्दों की क्रीड़ा है। वह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान पर प्रकट हो सकती है। वह किसी भी समय अपने भावों को व्यक्त कर सकती है। बच्चों के लिए सभी घर एक समान होते हैं। वे खेलने के समय अपने-पराये में भेद नहीं करते। इसी तरह कवि अपने शब्दों से आंतरिक व बाहरी संसार के मनोभावों को रूप प्रदान करता है। वह बच्चों की तरह बेपरवाह है। कविता पर कोई बंधन लागू नहीं होता।
विशेष-
1. कविता की रचनात्मक व्यापकता को प्रकट किया गया है।
2. बच्चों व कवियों में समानता दर्शाई गई है।
3. ‘बच्चा ही जाने’ पंक्ति से बालमन की सरलता की अभिव्यक्ति होती है।
4. मुक्त छंद है।
5. ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार है।
6. साहित्यिक खड़ी बोली है।

प्रश्न
(क) कविता को क्या सज्ञा दी गई हैं? क्यों?
उत्तर- कविता को खेल की संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार खेल का उद्देश्य मनोरंजन व आत्मसंतुष्टि होता है, उसी प्रकार कविता भी शब्दों के माध्यम से मनोरंजन करती है तथा रचनाकार को संतुष्टि प्रदान करती है।
(ख) कविता और बच्चों के खेल में क्या समानता हैं?
उत्तर- बच्चे कहीं भी, कभी भी खेल खेलने लगते हैं। इस तरह कविता कहीं भी प्रकट हो सकती है। दोनों कभी कोई बंधन नहीं स्वीकारते।
(ग) कविता की कौन-कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर- कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
* यह सर्वव्यापक होती है।
* इसमें रचनात्मक ऊर्जा होती है।
* यह खेल के समान होती है।
(घ) बच्चा कौन-सा बहाना जानता हैं?
उत्तर- बच्चा सभी घरों को एक समान करने के बहाने जानता है।

कक्षा 12 पतंग ( आलोक धन्वा )

                                       पतंग ( आलोक धन्वा )

कविता का प्रतिपादय एवं सार

प्रतिपादय-‘पतंग’ कविता कवि के ‘दुनिया रोज बनती है’ व्यंग्य संग्रह से ली गई है। इस कविता में कवि ने बालसुलभ इच्छाओं और उमंगों का सुंदर चित्रण किया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए इन्होंने सुंदर बिंबों का उपयोग किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है जिसके जरिये वे आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं तथा उसके पार जाना चाहते हैं। यह कविता बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है, दिशाओं के मृदंग बजते हैं, जहाँ छतों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिरगिरकर सँभलते हैं तथा पृथ्वी का हर कोना खुद-ब-खुद उनके पास आ जाता है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए अँधेरे के बाद उजाले की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सार-कवि कहता है कि भादों के बरसते मौसम के बाद शरद ऋतु आ गई। इस मौसम में चमकीली धूप थी तथा उमंग का माहौल था। बच्चे पतंग उड़ाने के लिए इकट्ठे हो गए। मौसम साफ़ हो गया तथा आकाश मुलायम हो गया। बच्चे पतंगें उड़ाने लगे तथा सीटियाँ व किलकारियाँ मारने लगे। बच्चे भागते हुए ऐसे लगते हैं मानो उनके शरीर में कपास लगे हों। उनके कोमल नरम शरीर पर चोट व खरोंच अधिक असर नहीं डालती। उनके पैरों में बेचैनी होती है जिसके कारण वे सारी धरती को नापना चाहते हैं। वे मकान की छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं मानो छतें नरम हों। खेलते हुए उनका शरीर रोमांचित हो जाता है। इस रोमांच मैं वे गिरने से बच जाते हैं। बच्चे पतंग के साथ उड़ते-से लगते हैं। कभी-कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिरकर भी बच जाते हैं। इसके बाद इनमें साहस तथा आत्मविश्वास बढ़ जाता है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके-
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया।

शब्दार्थ- भादो -भादों मास, अँधेरा। शरद -शरद ऋतु, उजाला। झुंड -समूह। इशारों से -संकेतों से। मुलायम -कोमल। रंगीन- रंगबिरंगी। बाँस -एक प्रकार की लकड़ी। नाजुक -कोमल। किलकारी- खुशी में चिल्लाना।

व्याख्या-कवि कहता है कि बरसात के मौसम में जो तेज बौछारें पड़ती थीं, वे समाप्त हो गई। तेज बौछारों और भादों माह की विदाई के साथ-साथ ही शरद ऋतु का आगमन हुआ। अब शरद का प्रकाश फैल गया है। इस समय सवेरे उगने वाले सूरज में खरगोश की आँखों जैसी लालिमा होती है। कवि शरद का मानवीकरण करते हुए कहता है कि वह अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज गति से चलाते हुए और जोर-जोर से घंटी बजाते हुए पुलों को पार करते हुए आ रहा है। वह अपने चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को बुला रहा है। दूसरे शब्दों में, कवि कहना चाहता है कि शरद ऋतु के आगमन से उत्साह, उमंग का माहौल बन जाता है। कवि कहता है कि शरद ने आकाश को मुलायम कर दिया है ताकि पतंग ऊपर उड़ सके। वह ऐसा माहौल बनाता है कि दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके। यानी बच्चे दुनिया के सबसे पतले कागज व बाँस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंग उड़ा सकें। इन पतंगों को उड़ता देखकर बच्चे सीटियाँ किलकारियाँ मारने लगते हैं। इस ऋतु में रंग-बिरंगी तितलियाँ भी दिखाई देने लगती हैं। बच्चे भी तितलियों की भाँति कोमल व नाजुक होते हैं।

विशेष-

1. कवि ने बिंबात्मक शैली में शरद ऋतु का सुंदर चित्रण किया है।
2. बाल-सुलभ चेष्टाओं का अनूठा वर्णन है।
3. शरद ऋतु का मानवीकरण किया गया है।
4. उपमा, अनुप्रास, श्लेष, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
5. खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
6. लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
7. मिश्रित शब्दावली है।
प्रश्न

(क) शरद ऋतु का आगमन कैसे हुआ?
उत्तर- शरद ऋतु अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज चलाते हुए पुलों को पार करते हुए आया। वह अपनी साइकिल की घंटी जोर-जोर से बजाकर पतंग उड़ाने वाले बच्चों को इशारों से बुला रहा है।
(ख) भादों मास के बाद मौसम में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर- भादों मास में रात अँधेरी होती है । सुबह में सूरज का लालिमायुक्त प्रकाश होता है । चारों ओर उत्साह और उमंग का माहौल होता है ।
(ग) पता के बारे में कवि क्या बताता हैं?
उत्तर- पतंग के बारे में कवि बताता है कि वह संसार की सबसे हलकी, रंग-बिरंगी व हलके कागज की बनी होती है। इसमें लगी बाँस की कमानी सबसे पतली होती है।
(घ) बच्चों की दुनिया कैसी होती हैं?
उत्तर- बच्चों की दुनिया उत्साह, उमंग व बेफ़िक्री का होता है। आसमान में उड़ती पतंग को देखकर वे किलकारी मारते हैं तथा सीटियाँ बजाते हैं। वे तितलियों के समान मोहक होते हैं।

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग सो अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक-
उस समय गिरने से बचाता हैं उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे।

शब्दार्थ- कपास- इस शब्द का प्रयोग कोमल व नरम अनुभूति के लिए हुआ है। बेसुध -मस्त। मृदंग -ढोल जैसा वाद्य यंत्र। पेंग भरना -झूला झूलना। डाल -शाखा। लचीला वेग -लचीली गति। अकसर -प्राय:। रोमांचित-पुलकित। महज-केवल, सिर्फ़।
व्याख्या-कवि कहता है कि बच्चों का शरीर कोमल होता है। वे ऐसे लगते हैं मानो वे कपास की नरमी, लोच आदि लेकर ही पैदा हुए हों। उनकी कोमलता को स्पर्श करने के लिए धरती भी लालायित रहती है। वह उनके बेचैन पैरों के पास आती है-जब वे मस्त होकर दौड़ते हैं। दौड़ते समय उन्हें मकान की छतें भी कठोर नहीं लगतीं। उनके पैरों से छतें भी नरम हो जाती हैं। उनकी पदचापों से सारी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा स्वर उत्पन्न होता है। वे पतंग उड़ाते हुए इधर से उधर झूले की पेंग की तरह आगे-पीछे आते-जाते हैं। उनके शरीर में डाली की तरह लचीलापन होता है। पतंग उड़ाते समय वे छतों के खतरनाक किनारों तक आ जाते हैं। यहाँ उन्हें कोई बचाने नहीं आता, अपितु उनके शरीर का रोमांच ही उन्हें बचाता है। वे खेल के रोमांच के सहारे खतरनाक जगहों पर भी पहुँच जाते हैं। इस समय उनका सारा ध्यान पतंग की डोर के सहारे, उसकी उड़ान व ऊँचाई पर ही केंद्रित रहता है। ऐसा लगता है मानो पतंग की ऊँचाइयों ने ही उन्हें केवल डोर के सहारे थाम लिया हो।

विशेष-

1. कवि ने बच्चों की चेष्टाओं का मनोहारी वर्णन किया है।
2. मानवीकरण, अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
3. खड़ी बोली में भावानुकूल सहज अभिव्यक्ति है।
4. मिश्रित शब्दावली है।
5. पतंग को कल्पना के रूप में चित्रित किया गया है।

प्रश्न

(क) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास कैसे आती हैं?
उत्तर- पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास इस तरह आती है, मानो वह अपना पूरा चक्कर लगाकर आ रही हो।
(ख) छतों को नरम बनाने से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर- छतों को नरम बनाने से कवि का आशय यह है कि बच्चे छत पर ऐसी तेजी और बेफ़िक्री से दौड़ते फिर रहे हैं मानो किसी नरम एवं मुलायम स्थान पर दौड़ रहे हों, जहाँ गिर जाने पर भी उन्हें चोट लगने का खतरा नहीं है।
(ग) बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की क्या कल्पना रही होगी?
उत्तर- बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की कल्पना यह रही होगी कि बच्चे पतंग उड़ाते हुए उनकी डोर थामे आगे-पीछे यूँ घूम रहे हैं, मानो वे किसी लचीली डाल को पकड़कर झूला झूलते हुए आगे-पीछे हो रहे हों।
(घ) इन पक्तियों में कवि ने पतग उड़ाते बच्चों की तीव्र गतिशीलता व चचलता का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर- इन पंक्तियों में कवि ने पतंग उड़ाते बच्चों की तीव्र गतिशीलता का वर्णन पृथ्वी के घूमने के माध्यम से और बच्चों की चंचलता का वर्णन डाल पर झूला झूलने से किया है।

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है
उनके बचन पैरों के पास।

शब्दार्थ- रंध्रों- सुराखों। सुनहले सूरज -सुनहरा सूर्य।

व्याख्या-कवि कहता है कि आकाश में अपनी पतंगों को उड़ते देखकर बच्चों के मन भी आकाश में उड़ रहे हैं। उनके शरीर के रोएँ भी संगीत उत्पन्न कर रहे हैं तथा वे भी आकाश में उड़ रहे हैं। कभी-कभार वे छतों के किनारों से गिर जाते हैं, परंतु अपने लचीलेपन के कारण वे बच जाते हैं। उस समय उनके मन का भय समाप्त हो जाता है। वे अधिक उत्साह के साथ सुनहरे सूरज के सामने फिर आते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अगली सुबह फिर पतंग उड़ाते हैं। उनकी गति और अधिक तेज हो जाती है। पृथ्वी और तेज गति से उनके बेचैन पैरों के पास आती है।

विशेष-

1. बच्चे खतरों का सामना करके और भी साहसी बनते हैं, इस भाव की अभिव्यक्ति है।
2. मुक्त छंद का प्रयोग है।
3. मानवीकरण, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
4. दृश्य बिंब है।
5. भाषा में लाक्षणिकता है।

प्रश्न

(क) सुनहले सूरज के सामने आने से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर- सुनहले सूरज के सामने आने का आशय है-सूरज के समान तेजमय होकर क्रियाशील होना तथा बालसुलभ क्रियाओं जैसे-खेलना-कूदना, ऊधम मचाना, भागदौड़ करना आदि, में शामिल हो जाना।
(ख) गिरकर बचने पर बच्चों में क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर- गिरकर बचने के बाद बच्चों की यह प्रतिक्रिया होती है कि उनका भय समाप्त हो जाता है और वे निडर हो जाते हैं। अब उन्हें तपते सूरज के सामने आने से डर नहीं लगता। अर्थात वे विपत्ति और कष्ट का सामना निडरतापूर्वक करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
(ग) पैरों को बेचैन क्यों कहा गया हैं?
उत्तर- पैरों को बेचैन इसलिए कहा गया है क्योंकि बच्चे इतने गतिशील होते हैं कि वे एक स्थान पर टिकना ही नहीं जानते। वे अपने नन्हे-नन्हे पैरों के सहारे पूरी पृथ्वी नाप लेना चाहते हैं।
(घ) ‘पतगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं”-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं’ का आशय है बच्चे खुद भी पतंगों के सहारे कल्पना के आकाश में पतंगों जैसी ही ऊँची उड़ान भरना चाहते हैं। जिस प्रकार पतंगें ऊपर-नीचे उड़ती हैं उसी प्रकार उनकी कल्पनाएँ भी ऊँची-नीची उड़ान भरती हैं जो मन की डोरी से बँधी होती हैं। 


कक्षा 12 एक गीत ( दिन जल्दी जल्दी ढलता है )

                              एक गीत

प्रतिपादय-निशा-निमंत्रण से उद्धृत इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचल तेजी भर सकता है-अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशिप्त हो जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।
सार-कवि कहता है कि साँझ घिरते ही पथिक लक्ष्य की ओर तेजी से कदम बढ़ाने लगता है। उसे रास्ते में रात होने का भय होता है। जीवन-पथ पर चलते हुए व्यक्ति जब अपने लक्ष्य के निकट होता है तो उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती है। पक्षी भी बच्चों की चिंता करके तेजी से पंख फड़फड़ाने लगते हैं। अपनी संतान से मिलने की चाह में हर प्राणी आतुर हो जाता है। आशा व्यक्ति के जीवन में नई चेतना भर देती है। जिनके जीवन में कोई आशा नहीं होती, वे शिथिल हो जाते हैं। उनका जीवन नीरस हो जाता है। उनके भीतर उत्साह समाप्त हो जाता है। अत: रात जीवन में निराशा नहीं, अपितु आशा का संचार भी करती है।
एक गीत
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं, 
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता हैं!
दिन जल्दी-जल्दी ढोलता हैं!

शब्दार्थ -ढलता -समाप्त होता। पथ -रास्ता। मंजिल -लक्ष्य। पंथी -यात्री।
व्याख्या-कवि जीवन की व्याख्या करता है। वह कहता है कि शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है कि कहीं रास्ते में रात न हो जाए। उसकी मंजिल समीप ही होती है इस कारण वह थकान होने के बावजूद भी जल्दी-जल्दी चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए उसे दिन जल्दी ढलता प्रतीत होता है। रात होने पर पथिक को अपनी यात्रा बीच में ही समाप्त करनी पड़ेगी, इसलिए थकित शरीर में भी उसका उल्लासित, तरंगित और आशान्वित मन उसके पैरों की गति कम नहीं होने देता।
विशेष-
1. कवि ने जीवन की क्षणभंगुरता व प्रेम की व्यग्रता को व्यक्त किया है।
2. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
3. भाषा सरल, सहज और भावानुकूल है, जिसमें खड़ी बोली का प्रयोग है।
4. जीवन को बिंब के रूप में व्यक्त किया है।
5. वियोग श्रृंगार रस की अनुभूति है।

प्रश्न
(क) ‘हो जाए न पथ में’- यहाँ किस पथ की ओर कवि ने संकेत किया हैं?
उत्तर – ‘हो जाए न पथ में' -के माध्यम से कवि अपने जीवन-पथ की ओर संकेत कर रहा है, जिस पर वह अकेले चल रहा है।
(ख) पथिक के तेज चलने का क्या कारण हैं?
उत्तर – पथिक तेज इसलिए चलता है क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।
(ग) कवि दिन के बारे में क्या बताता हैं?
उत्तर – कवि कहता है कि दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। दूसरे शब्दों में, समय परिवर्तनशील है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । 

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

शब्दार्थ- प्रत्याशा- आशा। नीड़ -घोंसला। पर- पंख। चंचलता -अस्थिरता।
व्याख्या- कवि प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर चंचल हो उठती हैं। वे जल्दी से जल्दी अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं। उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन आदि की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही उनके पंखों में तेजी आ जाती है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं।
विशेष-
1. उक्त काव्यांश में कवि कह रहा है कि वात्सल्य भाव की व्यग्रता सभी प्राणियों में पाई जाती है।
2. पक्षियों के बच्चों द्वारा घोंसलों से झाँका जाना गति एवं दृश्य बिंब उपस्थित करता है।
3. तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।
4. ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
5. सरल, सहज और भावानुकूल खड़ी बोली में सार्थक अभिव्यक्ति है।
प्रश्न
(क) बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों?
उत्तर- बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि चिड़िया (माँ) के पहुँचने पर ही उनके भोजन इत्यादि की पूर्ति होगी।
(ख) चिड़ियों के घोंसलों में किस दृश्य की कल्पना की गई हैं?
उत्तर- कवि चिड़ियों के घोंसलों में उस दृश्य की कल्पना करता है जब बच्चे माँ-बाप की प्रतीक्षा में अपने घरों से झाँकने लगते हैं।
(ग) चिड़ियों के परों में चंचलता आने का क्या कारण हैं?
उत्तर- चिड़ियों के परों में चंचलता इसलिए आ जाती है क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की चिंता में बेचैनी हो जाती है। वे अपने बच्चों को भोजन, स्नेह व सुरक्षा देना चाहती हैं।
(घ) इस अशा से किस मानव-सत्य को दर्शाया गया है?
उत्तर- इस अंश से कवि, माँ के वात्सल्य भाव का सजीव वर्णन कर रहा है। वात्सल्य प्रेम के कारण मातृमन आशंका से भर उठता है

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता हैं!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

शब्दार्थ- विकल- व्याकुल। हित -लिए, वास्ते। चंचल- क्रियाशील। शिथिल- ढीला। पद -पैर। उर -हृदय। विह्वलता -बेचैनी, भाव आतुरता।
व्याख्या- कवि कहता है कि इस संसार में वह अकेला है। इस कारण उससे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं होता, उसकी उत्कंठा से प्रतीक्षा नहीं करता, वह भला किसके लिए भागकर घर जाए। कवि के मन में प्रेम-तरंग जगने का कोई कारण नहीं है। कवि के मन में यह प्रश्न आने पर उसके पैर शिथिल हो जाते हैं। उसके हृदय में यह व्याकुलता भर जाती है कि दिन ढलते ही रात हो जाएगी। रात में एकाकीपन और उसकी प्रिया की वियोग-वेदना उसे अशांत कर देगी। इससे उसका हृदय पीड़ा से बेचैन हो उठता है।
विशेष-
1. एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति की मनोदशा का वास्तविक चित्रण किया गया है।
2. सरल, सहज और भावानुकूल खड़ी बोली का प्रयोग है।
3. ‘मुझसे मिलने’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘मैं होऊँ किसके हित चंचल?’ में प्रश्नालंकार है।
3. तत्सम-प्रधान शब्दावली है जिसमें अभिव्यक्ति की सरलता है।
प्रश्न
(क) कवि के मन में कौन-से प्रश्न उठते हैं?
(क) कवि के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं-
(i) उससे मिलने के लिए कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा है?
(ii) वह किसके लिए चंचल होकर कदम बढ़ाए?
(ख) कवि की व्याकुलता का क्या कारण हैं?
(ख) कवि के हृदय में व्याकुलता है क्योंकि वह अकेला है। प्रिया के वियोग की वेदना इस व्याकुलता को प्रगाढ़ कर देती है। इस कारण उसके मन में अनेक प्रश्न उठते हैं।
(ग) कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
(ग) कवि अकेला है। उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं है। इस कारण कवि के मन में भी उत्साह नहीं है, इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।
(घ) ‘मैं होऊँ किसके हित चचल?’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘मैं होऊँ किसके हित चंचल’ का आशय यह है कि कवि अपनी पत्नी से दूर होकर एकाकी जीवन बिता रहा है। उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वह किसके लिए बेचैन होकर घर जाने की चंचलता दिखाए।

कक्षा - 12 हरिवंश राय बच्चन ( आत्म परिचय )

                 काव्य भाग – आत्म-परिचय, एक गीत
                       कविता का प्रतिपादय एवं सार
                                आत्मपरिचय

प्रतिपादय- कवि का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है।
कवि अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है- उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उत्तर आई है कि दुनिया का तलबगार नहीं हूँ। बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ-जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है।
किसी असंभव आदर्श की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से कि जैसे दुनिया से इन्हें कोई वास्ता ही नहीं है। 
सार-कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। वह निरर्थक कल्पनाओं में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यह संसार कभी भी किसी की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाया है। कवि सुख-दुख, यश-अपयश, हानि-लाभ आदि द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में एक जैसा रहता है। यह संसार मिथ्या है, अत: यहाँ स्थायी वस्तु की कामना करना व्यर्थ है।
कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। संसार उसे कवि कहता है, परंतु वह स्वयं को नया दीवाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

                           आत्मपरिचय

मैं जग – जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ !
मैं स्नेह-सुरा का पान किया कस्ता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ;
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ !

शब्दार्थ- जग-जीवन -सांसारिक गतिविधि। झंकृत -तारों को बजाकर स्वर निकालना। सुरा -शराब। स्नेह -प्रेम। पान -पीना। ध्यान करना -परवाह करना। गाते -प्रशंसा करते।
व्याख्या- बच्चन जी कहते हैं कि मैं संसार में जीवन का भार उठाकर घूमता रहता हूँ। इसके बावजूद मेरा जीवन प्यार से भरा-पूरा है। जीवन की समस्याओं के बावजूद कवि के जीवन में प्यार है। उसका जीवन सितार की तरह है जिसे किसी ने छूकर झंकृत कर दिया है। फलस्वरूप उसका जीवन संगीत से भर उठा है। उसका जीवन इन्हीं तार रूपी साँसों के कारण चल रहा है। उसने स्नेह रूपी शराब पी रखी है अर्थात प्रेम किया है तथा बाँटा है। उसने कभी संसार की परवाह नहीं की। संसार के लोगों की प्रवृत्ति है कि वे उनको पूछते हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। कवि अपने मन की इच्छानुसार चलता है, अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है।
विशेष-
1. कवि ने निजी प्रेम को स्वीकार किया है।
2. संसार के स्वार्थी स्वभाव पर टिप्पणी की है।
3. ‘स्नेह-सुरा’ व ‘साँसों के तार’ में रूपक अलंकार है।
4. ‘जग-जीवन’, ‘स्नेह-सुरा’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. ‘किया करता हूँ’, ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति में गीत की मस्ती है।
प्रश्न-
(क) जग-जीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है?
उत्तर:- ‘जग-जीवन का भार लिए फिरने’ से कवि का आशय है- सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा-पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है।
(ख) ‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय हैं?
उत्तर:- ‘स्नेह-सुरा’ से आशय है -प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है।
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते।
उत्तर:- ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते’ का आशय है -यह संसार उन लोगों की स्तुति(प्रशंसा) करता है जो संसार के अनुसार चलते हैं और उसका गुणगान करते है।
(घ) ‘साँसों के तार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा?
उत्तर:- ‘साँसों के तार’ से कवि का तात्पर्य है -उसके जीवन में भरा प्रेम रूपी तार, जिनके कारण उसका जीवन चल रहा है। मेरे विचार से उन्हें कवि की प्रेयसी ने झंकृत किया होगा।

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
            है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ !
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
           जग भव-सागर तरने की नाव बनाए,
मैं भव-मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।

शब्दार्थ- उदगार- दिल के भाव। उपहार -भेंट। भाता -अच्छा लगता। स्वप्नों का संसार -कल्पनाओं की दुनिया। दहा -जलना। भव-सागर -संसार रूपी सागर। मौज -लहरों।
व्याख्या -कवि अपने मन की भावनाओं को दुनिया के सामने कहने की कोशिश करता है। उसे खुशी के जो उपहार मिले हैं, उन्हें वह साथ लिए फिरता है। उसे यह संसार अधूरा लगता है। इस कारण यह उसे पसंद नहीं है। वह अपनी कल्पना का संसार लिए फिरता है। उसे प्रेम से भरा संसार अच्छा लगता है। वह कहता है कि मैं अपने हृदय में आग जलाकर उसमें जलता हूँ अर्थात मैं प्रेम की जलन को स्वयं ही सहन करता हूँ। प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के जो सुख-दुख आते हैं, उनमें मस्त रहता हूँ। यह संसार आपदाओं का सागर है। लोग इसे पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। उसे संसार की कोई चिंता नहीं है।
विशेष-
1. कवि ने प्रेम की मस्ती को प्रमुखता दी है।
2. व्यक्तिवादी विचारधारा की प्रमुखता है।
3. ‘स्वप्नों का संसार’ में अनुप्रास तथा ‘भव-सागर’ और ‘भव मौजों’ में रूपक अलंकार है।
4. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
5. तत्सम शब्दावली की बहुलता है।
6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है।
प्रश्न-
(क) कवि के हृदय में कौन-सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यथित क्यों है?
उत्तर – कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है।
(ख) ‘निज उर के उद्गार व उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘निज उर के उद्गार’ का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है। ’निज उर के उपहार’ से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना चाहता है।
(ग) कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
उत्तर – कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उनके अनुसार संसार अधूरा है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है।
(घ) संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता हैं?
उत्तर – संसार में रहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसलिए मनुष्य को हँसते हुए जीना चाहिए।

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों’ में अवसाद लिए फिरता हूँ,
        जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं , हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ !
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं हैं, हाय, जहाँ पर दाना!
        फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं  सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !

शब्दार्थ- यौवन -जवानी। उन्माद -पागलपन। अवसाद -उदासी, खेद। यत्न -प्रयास। नादान -नासमझ, अनाड़ी। दाना -चतुर, ज्ञानी। मूढ़ -मूर्ख। जग -संसार। 

व्याख्या- कवि कहता है कि उसके मन पर जवानी का पागलपन सवार है। वह उसकी मस्ती में घूमता रहता है। इस दीवानेपन के कारण उसे अनेक दुख भी मिले हैं। वह इन दुखों को उठाए हुए घूमता है। कवि को जब किसी प्रिय की याद आ जाती है तो उसे बाहर से हँसा जाती है, परंतु उसका मन रो देता है अर्थात याद आने पर कवि-मन व्याकुल हो जाता है।
कवि कहता है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें सीख रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहे अनुसार चलना सीख रहा हूँ।
विशेष-
1. पहली चार पंक्तियों में कवि ने आत्माभिव्यक्ति की है तथा अंतिम चार में सांसारिक जीवन के विषय में बताया है।
2. ‘उन्मादों में अवसाद’ में विरोधाभास अलंकार है।
3. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति से गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है।
4. ‘कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
5. ‘नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना’ में सूक्ति जैसा प्रभाव है।
6. खड़ी बोली है।
प्रश्न-
(क) ‘यौवन का उन्माद’ का आशय है।
उत्तर:- कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है।
(ख) कवि की मनःस्थिति कैसी है?
उत्तर:- कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।
(ग) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं?
उत्तर:- कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने के लिए प्रयास करते हैं, परंतु वे कभी सफल नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।
(घ) कवि सीखे ज्ञान को क्यों भूला रहा है?
उत्तर:- कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं होती, जिससे वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके।

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता;
         जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
        हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ!

शब्दार्थ- नाता -संबंध। वैभव -समृद्ध। पग -पैर। रोदन -रोना। राग -प्रेम। आग -जोश। भूप -राजा। प्रासाद -महल। निछावर -कुर्बान। खंडहर -टूटा हुआ भवन। भाग -हिस्सा।
व्याख्या- कवि कहता है कि मुझमें और संसार-दोनों में कोई संबंध नहीं है। संसार के साथ मेरा टकराव चल रहा है। कवि अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता है। यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है, परंतु कवि हर कदम पर धरती को ठुकराया करता है। अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी के प्रतिकूल आचार-विचार रखता है। कवि कहता है कि वह अपने रोदन में भी प्रेम लिए फिरता है। उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई है अर्थात उसमें असंतोष झलकता है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, फिर भी उस पर राजाओं के महल न्योछावर होते हैं। ऐसे खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता है जिसे महल पर न्योछावर कर सके।
विशेष-
1. कवि ने अपनी अनुभूतियों का परिचय दिया है।
2. ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार है।
3. ‘रोदन में राग’ और ‘शीतल वाणी में आग’ में विरोधाभास अलंकार तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. ‘और’ की आवृत्ति में यमक अलंकार है।
5. ‘कहाँ का’ और ‘जग जिस पृथ्वी पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है तथा खड़ी बोली का प्रयोग है।
प्रश्न-
(क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं?
उत्तर- कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मर्जी से संसार बनाता व मिटाता है।
(ख) कवि और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति हैं?
उत्तर- कवि को सांसारिक आकर्षणों का मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करते हैं।
(ग) ‘शीतल वाणी में’ आग लिए फिरता हूँ’ -से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर सके।
(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं?
उत्तर- कवि के पास प्रेम महल के खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार के बड़े-बड़े राजा प्रेम के आवेग में राजगद्दी भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।


मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना,
मैं फूट पडा, तुम कहते, छंद बनाना;
          क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक क्या दीवान!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
         जिसको सुनकर जग झूम, झुके; लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

शब्दार्थ- फूट पड़ा- जोर से रोया। दीवाना- पागल। मादकता- मस्ती। नि:शेष- संपूर्ण।

व्याख्या -कवि कहता है कि प्रेम की पीड़ा के कारण उसका मन रोता है। अर्थात हृदय की व्यथा शब्द रूप में प्रकट हुई। उसके रोने को संसार गाना मान बैठता है। जब वेदना अधिक हो जाती है तो वह दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है। संसार इस प्रक्रिया को छंद बनाना कहती है। कवि प्रश्न करता है कि यह संसार मुझे कवि के रूप में अपनाने के लिए तैयार क्यों है? वह स्वयं को नया दीवाना कहता है जो हर स्थिति में मस्त रहता है। समाज उसे दीवाना क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार में घूमता रहता है। उसके जीवन में जो मस्ती शेष रह गई है, उसे लिए वह घूमता रहता है। इस मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम में झुक जाते हैं तथा आनंद से झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार में घूमता है जिसे लोग गीत समझने की भूल कर बैठते हैं।
विशेष-
1. कवि मस्त प्रकृति का व्यक्ति है। यह मस्ती उसके गीतों से फूट पड़ती है।
2. ‘कवि कहकर’ तथा ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार और ‘क्यों कवि . अपनाए’ में प्रश्न अलंकार है।
3. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
4. ‘मैं’ शैली के प्रयोग से कवि ने अपनी बात कही है।
5. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है।
6. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति गेयता में वृद्धि करती है।
7. तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।

(क) कवि की किस बात को संसार क्या समझता हैं?
उत्तर- कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है।
(ख) कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों?
(ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।
(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?
(ग) कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर दुनिया झूमती है।
(घ) कवि संसार को क्या संदेश देता हैं? संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद से लहराता है

कवि परिचय : हरिवंश राय बच्चन

जन्म: 27 नवंबर 1907, इलाहाबाद (प्रयागराज)
मृत्यु: 18 जनवरी 2003, मुंबई

मुख्य धारा: हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक और हालावादी दर्शन के प्रवर्तक।

प्रमुख रचनाएँ: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, क्या भूलूँ क्या याद करूँ (आत्मकथा)।
भाषा-शैली: इनकी भाषा सीधी-सादी, जीवंत और संवेदनशील है। इन्होंने फारसी के शब्दों का भी सुंदर प्रयोग किया है।

पाठ का सारांश
इस पाठ में बच्चन जी की दो कविताएँ संकलित हैं:-
आत्मपरिचय: इस कविता में कवि अपने और संसार के संबंधों के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी मस्ती और प्रेम की दुनिया में खोए रहते हैं। वे संसार के साथ अपने विरोधाभासी (contradictory) संबंधों को उजागर करते हैं। जैसे - वे रोते हैं तो भी उसमें संगीत होता है, उनकी शीतल वाणी में भी आग छिपी है। कविता का मूल भाव है - दुनिया से मेरा संबंध प्रीति-कलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।
एक गीत (दिन जल्दी-जल्दी ढलता है): यह गीत 'निशा निमंत्रण' काव्य संग्रह से लिया गया है। इसमें कवि ने समय के बीतने के एहसास को बताया है। एक राहगीर (पथिक) अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए तेजी से चलता है क्योंकि उसे डर है कि रात न हो जाए। पक्षी भी अपने बच्चों की याद करके तेजी से पंख फड़फड़ाते हैं। लेकिन कवि के जीवन में कोई ऐसा नहीं है जो उनका इंतज़ार कर रहा हो, इसलिए यह सोचकर उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। यह गीत जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता है।

NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर 'मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' - विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर: इन दोनों पंक्तियों में विरोधाभास है, लेकिन इनका गहरा अर्थ है।
● 'जग-जीवन का भार लिए फिरना' का अर्थ है कि कवि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरी तरह निभाते हैं। वे संसार से अलग नहीं हैं।
● 'कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ' का अर्थ है कि कवि सांसारिक बातों, व्यर्थ की आलोचनाओं और लोक-निंदा की परवाह नहीं करते। वे वही करते हैं जो उनका मन कहता है, जो उन्हें सही लगता है।
इस प्रकार, कवि जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मस्ती को बनाए रखते हैं।

प्रश्न 2: जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं - कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर: यहाँ 'दाना' का अर्थ है ज्ञानी और समझदार लोग, और 'नादान' का अर्थ है मूर्ख या सांसारिक मोह-माया में फँसे लोग। कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि यह संसार ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के लोगों से मिलकर बना है। जहाँ कुछ लोग सत्य और ज्ञान को पहचानते हैं, वहीं अधिकतर लोग सांसारिक भोग-विलास और धन-संपत्ति को ही सब कुछ मानकर उसके पीछे भागते रहते हैं। कवि कहते हैं कि इतना सत्य जानने के बाद भी लोग नादानी करते हैं, तो मैं प्रेम में दीवाना बनकर नादान क्यों न रहूँ?

प्रश्न 3: 'मैं और, और जग और, कहाँ का नाता' - पंक्ति में 'और' शब्द की विशेषता बताइए।

उत्तर: इस पंक्ति में 'और' शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है और हर बार इसका अर्थ अलग है, जिससे पंक्ति में एक विशेष सौंदर्य उत्पन्न हुआ है।
● पहला 'और': 'मैं और' में 'और' का अर्थ है 'अलग' या 'भिन्न'। (मेरा स्वभाव अलग है)
● दूसरा 'और': 'जग और' में 'और' का अर्थ भी 'अलग' है। (संसार का स्वभाव अलग है)
● तीसरा 'और': 'और जग' के बीच योजक (conjunction) के रूप में प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है 'तथा'।
पूरा अर्थ है: मेरा स्वभाव अलग है, और इस संसार का स्वभाव अलग है, इसलिए हम दोनों में कोई संबंध कैसे हो सकता है।

प्रश्न 4: 'शीतल वाणी में आग' - के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: यह भी एक विरोधाभासी कथन है। 'शीतल वाणी' का अर्थ है कि कवि की भाषा और अभिव्यक्ति बहुत सहज, सरल और ठंडी है। लेकिन 'आग' का अर्थ है कि उन शब्दों में प्रेम की तीव्रता, विद्रोह का भाव और जोश भरा हुआ है। कवि अपनी शीतल वाणी के माध्यम से समाज की कुरीतियों और जड़ नियमों के प्रति अपने असंतोष और विद्रोह की आग को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 5: बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

उत्तर: बच्चे इस आशा में घोंसलों (नीड़ों) से झाँक रहे होंगे कि उनके माता-पिता (पक्षी) दिन ढलने पर उनके लिए भोजन लेकर लौट रहे होंगे। वे माता-पिता से मिलने वाले स्नेह, स्पर्श और भोजन की आतुरता में बाहर झाँकते हैं।

प्रश्न 6: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' - की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर: 'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है:
1. समय की गति: यह पंक्ति बार-बार आकर यह बताती है कि समय किसी के लिए नहीं रुकता, वह तेजी से बीत रहा है।
2. लक्ष्य प्राप्ति की आतुरता: यह पंक्ति पथिक और पक्षियों को अपने लक्ष्य (घर) तक पहुँचने के लिए प्रेरित करती है।
3. कवि की निराशा: जब कवि यह सोचता है कि उसका कोई इंतज़ार नहीं कर रहा, तो यही पंक्ति उसे निराश करती है और उसके कदमों को धीमा कर देती है।
यह पंक्ति कविता के केंद्रीय भाव को गति और गहराई प्रदान करती है।

राजस्थान बोर्ड (RBSE) के विगत वर्षों के महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1: 'आत्मपरिचय' कविता के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर: हरिवंश राय बच्चन।
प्रश्न 2: कवि किसका पान किया करते हैं?
उत्तर: कवि स्नेह-सुरा (प्रेम रूपी शराब) का पान किया करते हैं।
प्रश्न 3: कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
उत्तर: कवि को संसार इसलिए अपूर्ण लगता है क्योंकि उसमें सच्चे प्रेम और भावुकता का अभाव है।
प्रश्न 4: चिड़िया के पंखों में चंचलता क्यों आ जाती है?
उत्तर: अपने बच्चों से शीघ्र मिलने की आतुरता के कारण चिड़िया के पंखों में चंचलता आ जाती है।
प्रश्न 5: कवि के पग शिथिल क्यों हो जाते हैं?
उत्तर: जब कवि को यह याद आता है कि घर पर कोई भी उनकी प्रतीक्षा करने वाला नहीं है, तो यह सोचकर उनके कदम शिथिल (धीमे) हो जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1: कवि का जीवन 'विरुद्धों का सामंजस्य' है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवि हरिवंश राय बच्चन का जीवन विरुद्धों (विरोधाभासों) का सामंजस्य है। वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी सांसारिकता से अलग रहते हैं। वे दुनिया के बीच रहकर भी अपनी मस्ती में जीते हैं। उनकी 'शीतल वाणी में आग' है और वे 'रोदन में राग' लिए फिरते हैं। इस प्रकार, वे सुख-दुःख, प्रेम-वैराग्य, मिलन-वियोग जैसे विरोधी भावों को एक साथ साधकर चलते हैं।

प्रश्न 2: 'मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि कवि अपने दुःख और पीड़ा को भी गीत या कविता का रूप दे देते हैं। उनके लिए उनका रोना भी एक संगीत की तरह है, जिसमें प्रेम की गहरी अनुभूति छिपी होती है। वे अपने व्यक्तिगत दुःख को अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं, जो दूसरों के लिए एक प्रेम-गीत बन जाता है।

प्रश्न 3: "मुझसे मिलने को कौन विकल?" - यह प्रश्न कवि के उर में क्या भरता है और क्यों?

उत्तर: यह प्रश्न कवि के हृदय में विह्वलता (व्याकुलता) और निराशा भर देता है। इससे उनके कदम धीमे पड़ जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कवि के जीवन में कोई ऐसा प्रिय व्यक्ति नहीं है जो घर पर उनसे मिलने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हो। जीवन में प्रेम और अपनेपन की यह कमी उन्हें शिथिल और उदास कर देती है।

सप्रसंग व्याख्या (4-5 अंक)

काव्यांश:
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!
उत्तर:
प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग-2' में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता 'आत्मपरिचय' से उद्धृत है। इसमें कवि अपने जीवन और संसार के साथ अपने संबंधों को व्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि मेरे ऊपर संसार की अनेक जिम्मेदारियों का बोझ है, जिन्हें मैं एक सामाजिक व्यक्ति होने के नाते निभा रहा हूँ। लेकिन इन बोझ और जिम्मेदारियों के बावजूद मेरे हृदय में सबके लिए प्रेम भरा हुआ है। मेरा जीवन प्रेम से संचालित होता है। कवि आगे कहते हैं कि उनके जीवन रूपी सितार के साँसों रूपी तारों को किसी प्रिय ने अपने प्रेम-स्पर्श से झंकृत कर दिया है, अर्थात् उनके जीवन में प्रेम का संगीत भर दिया है। वे उसी प्रेम की मधुर स्मृति और संगीत के सहारे अपना जीवन जी रहे हैं।
विशेष:
1. कवि ने संसार के साथ अपने विरोधाभासी संबंध को उजागर किया है।
2. 'जग-जीवन', 'साँसों के तार' में रूपक अलंकार है।
3. भाषा सरल, सहज और खड़ी बोली हिंदी है।
4. रचना में गेयता और संगीतात्मकता का गुण है।
5. कवि की आत्म-स्वीकृति का भाव प्रकट हुआ है।

भारतीय कलाएँ


भारतीय कला और संस्कृति 

1.) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की निम्न शैलियों में से किसके साथ गुंडेचा भाई जाने जाते है
[A] ख्याल [B] थराना [C] ध्रुपद [D] ठुमरी

2.) निम्न में से किस शहर में हाथी उत्सव प्रतिवर्ष मनाया जाता है
[A] जयपुर [B] जोधपुर [C] कोटा [D] अजमेर

3.) festival Me-Dam-Me-Phi ’त्योहार उत्तर पूर्वी भारत में किस समुदाय का त्योहार है
[A] ताई-अहोम [B] देवरी जनजाति [C] गारो [D] खासी

4.) आज की गुरुमुखी, डोगरी और सिंधी लिपियाँ किस लिपि से विकसित हुई हैं
[A] ब्राह्मी लिपि [B] सारदा लिपि [C] टंकरी स्क्रिप्ट [D] कुषाण लिपि

5.) किस राज्य की सरकार ने बसवश्री पुरस्कार ग्रहण किया
[A] गुजरात [B] महाराष्ट्र [C] आंध्र प्रदेश [D] कर्नाटक

भारतीय शिलालेखों का इतिहास 

6.) एक अग्नि मंदिर _____ के लिए पूजा स्थल है
[A] सिख [C] जोरास्ट्रियन [C] बौद्ध [D] शिंटो का

7.) बागेश्वरी क़मर भारत की पहली और एकमात्र (संभवतः) महिला खिलाड़ी है, जो निम्नलिखित संगीत वाद्ययंत्रों में से एक है
[A] घाटम [B] शहनाई [C] पखावज [D] संतूर

8.) मथुरा स्कूल ऑफ़ आर्ट में निम्नलिखित में से किस सामग्री का उपयोग किया गया था
[A] ग्रेनाइट [B] सफेद संगमरमर [C] स्लेट [D] लाल बलुआ पत्थर

9.) भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, धूम्रवर्ण _______ का अवतार या अवतार हैं
[A] विष्णु [B] शिव [C] गणेश [D] हनुमान

10.) निम्नलिखित में से कौन भारत में सबसे पुरानी जीवित रॉक-कट गुफा है
[A] बाग की गुफाएँ [B] एलोरा की गुफाएँ [C] उदय गिरि गुफाएँ [D] बाराबर गुफाएं

भारतीय कला और संस्कृति ऑब्जेक्टिव प्रश्न और उत्तर

प्रश्न.1  अजंता और एलोरा की गुफाओं में चित्रकारी कला के विकास के संकेत है।
(अ) पल्लव (ब) चालुक्य (स) पाण्ड्य (द) राष्ट्रकूट

प्रश्न.2  द्रुपद धमार की गायन शैली किसके द्वारा शुरू की गई थी?
(अ) राजा मान सिंह तोमर (ब) तानसेन (स) विष्णु दिगंबर पलुस्कर (द) अमीर खुसरो

प्रश्न.3 निम्न में से किस शास्त्रीय नृत्य का नाम उस गाँव के नाम पर पड़ा है, जिसका जन्म हुआ था?
(अ) कुचिपुड़ी (ब) कथकली (स) भरतनाट्यम (द) मोहिनीअट्टम

प्रश्न.4 निम्नलिखित में से कौन उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की विशेषता नहीं है?
(अ) सिखरा (ब) गर्भ गृह (स) गोपुरा (द) प्रदक्षिणा

प्रश्न.5  "सारे जहां से अच्छा" गीत किसने तैयार किया?
(अ) रबींद्रनाथ टैगोर (ब) जयदेव (स) मोहम्मद इकबाल (द) बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

प्रश्न.6  सत्तारिया किस राज्य का शास्त्रीय नृत्य है?
(अ) असम (ब) केरल (स) पंजाब (द) बंगाल

प्रश्न.7  निम्नलिखित में से किस त्यौहार में नौका दौड़ एक विशेष विशेषता है?
(अ) पोंगल (ब) नवरात्रि (स) रँगाली बिहू (द) ओणम

भारतीय कला और संस्कृति

प्रश्न.8  राममन ____ का धार्मिक त्योहार और अनुष्ठान थिएटर है?
(अ) उत्तर प्रदेश (ब) बंगाल (स) उत्तराखंड (द) हरियाणा
प्रश्न.9   'चौथ' थी 
(अ) पड़ोसी राज्यों पर शिवाजी द्वारा लगाया गया भूमि कर
(ब) शिवाजी द्वारा लगाया गया टोल टैक्स
(स) औरंगजेब द्वारा लगाया गया एक धार्मिक कर
(द) अकबर द्वारा लिया गया सिंचाई कर

प्रश्न.10  ___________ उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है।
(अ) मोहिनीअट्टम (ब) कुचिपुड़ी (स) कथकली (द) कथक

प्रश्न.11 तमिलनाडु में कौन सा शास्त्रीय नृत्य रूप प्रसिद्ध है?
(अ) मोहिनीअट्टम (ब) कुचिपुड़ी (स) भरतनाट्यम (द) कथकली

प्रश्न.12 प्रसिद्ध नकाबलेबरा त्योहार निम्नलिखित में से किस राज्य का है?
(अ) केरल (ब) बिहार (स) राजस्थान (द) ओडिशा

प्रश्न.13 भारत के निम्नलिखित मंदिरों में से किसे काला पैगोडा कहा जाता है?
(अ) बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर           (ब) सूर्य मंदिर, कोणार्क
(स) भगवान जगन्नाथ मंदिर, पुरी  (द) मीनाक्षी मंदिर, मदुरै

प्रश्न.14  तानसेन, अपने समय के महान संगीतकार थे -
(अ) जहाँगीर (ब) शाहजहाँ (स) अकबर (द) बहादुर शाह

प्रश्न.15 उत्तर प्रदेश का निम्न में से कौन सा लोकनृत्य नहीं है?
(अ) बिरहा (ब) छाऊ (स) चरकुलस (द) कव्वालियाँ

प्रश्न.16 कथक का शास्त्रीय नृत्य है
(अ) मणिपुर (ब) केरल (स) तमिलनाडु (द) उत्तर भारत

प्रश्न.17 पेशे से भक्त संत कौन थे?
(अ) सूरदास (ब) तुलसीदास (स) रैदास (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न.18 काला घोड़ा कला महोत्सव निम्नलिखित में से किस शहर से संबंधित है?
(अ) दिल्ली (ब) मुंबई (स) हरियाणा (द) केरल

प्रश्न.19 कौन सी भारतीय अकादमी नृत्य, नाटक और संगीत को बढ़ावा दे रही है?
(अ) साहित्य अकादमी      (ब) ललित कला अकादमी 
(स) राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (द) संगीत अकादमी

प्रश्न.20  हनुख, प्रकाश पर्व किस धर्म से संबंधित है?
(अ) यहूदी (ब) हिंदू (स) ईसाई (द) जैन

प्रश्न.21 पुंगी राज्य से संबंधित एक नृत्य शैली है?
(अ) पंजाब (स) हिमाचल प्रदेश (स) हरियाणा (द) दिल्ली

रचनात्मक लेखन


महानगरीय जीवन : अभिशाप या वरदान

कहा गया है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मानव ने ज्यों-ज्यों सभ्यता की ओर कदम बढ़ाए त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गई। अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह इधर-उधर जाने के लिए विवश हुआ। इसी क्रम में मनुष्य ने बेहतर जीवनयापन के लिए शहर की ओर कदम बढ़ाए।

महानगरीय जीवन का अपना एक विशेष आकर्षण होता है। यह आकर्षण है-आधुनिकता की चमक-दमक। यही चमक-दमक गाँवों तथा छोटे-छोटे शहरों के वासियों को आकर्षित करती है। महानगर की प्रच्छन्न समस्याएँ यहाँ आने वालों को अपने जाल में यूँ उलझा लेती हैं जैसे मकड़ी के जाल में कोई कीड़ा। महानगर की इन समस्याओं से आम आदमी का निकलना आसान नहीं होता है। गाँवों से या छोटे शहरों से आने वालों के लिए महानगरीय जीवन दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। हमारे देश में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई की गणना महानगरों में की जाती है। इन महानगरों का अपना विशेष आकर्षण है। इनका

ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्त्व भी है। इन महानगरों में विश्व की आधुनिकतम सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ रोजगार के साधन हैं। शिक्षा एवं परिवहन की उत्तम व्यवस्था है। यहाँ की गगनचुंबी इमारतें जनसाधारण के लिए कौतूहल का विषय बनती हैं। ये महानगरों के सौंदर्य में चार चाँद लगाती हैं। यह सब देखकर विदेशी पर्यटक भी इन महानगरों की ओर आकर्षित हो पर्यटन के लिए आते हैं। महानगरों में पाई जाने वाली इन सुख-सुविधाओं की ओर जनसाधारण आसानी से आकर्षित होता है। वह कभी रोजगार की तलाश में तो कभी बेहतर जीवन जीने की लालसा में यहाँ आता है और यहीं का होकर रह जाता है।

दिल्ली जैसे महानगर की जनसंख्या तो कई साल पहले ही एक करोड़ को पार कर चुकी थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि महानगरीय जीवन संपन्न लोगों के लिए वरदान है। उनके व्यवसाय तथा कारोबार यहीं फलते-फूलते हैं, जो शहरों के लिए भी लाभदायी होते हैं। अपनी बेहतर आमदनी के कारण ये संपन्न व्यक्ति कार, ए.सी. तथा विलासिता की वस्तुओं को प्रयोग कर स्वर्गिक सुख की अनुभूति करते हैं। इसके अलावा शिक्षा की बेहतर सुविधाएँ, आवागमन के उन्नत साधन, चमचमाती सड़कें, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएँ, एक फोन काल की दूरी पर पुलिस, खाद्य वस्तुओं की बेमौसम लगता है। महानगरों की बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में मूलभूत सुविधाओं में वृद्ध न होने से यहाँ के अधिकतर निवासियों का जीवन दूभर हो गया है। यहाँ सबसे बड़ी समस्या आवास की है।

थोड़ी-सी जगह मिली नहीं कि निम्नवर्ग ने अपनी झोंपड़ी/झुग्गी बना ली। एक ओर गगनचुंबी अट्टालिकाएँ तो दूसरी ओर शहर के माथे पर दाग बनकर सौंदर्य का नाश करती झोंपड़पट्टयाँ। यहाँ संपन्न वर्ग के एक आदमी के लिए बीस-बीस कमरे हैं तो दूसरी ओर किराए के एक कमरे में पंद्रह या बीस आदमी रहने के लिए विवश हैं। इसके अलावा यहाँ न पीने के लिए शुद्ध पानी और न साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा है। खाद्य वस्तुओं में मिलावट का कहना ही क्या। कुछ भी शुद्ध नहीं। कमरे ऐसे कि जिनमें शायद ही कभी धूप के दर्शन हों। यहाँ की दूषित वस्तुएँ अकसर बीमारी की जनक होती हैं। इस प्रकार जनसाधारण के लिए ये महानगर किसी अभिशाप से कम नहीं हैं। जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार नगरीय जीवन के भी अच्छाई और बुराई रूपी दो पहलू हैं। संपन्न वर्ग के लिए महानगर किसी वरदान से कम नहीं है तो गरीबों के लिए अभिशाप है। यह सत्य है कि महानगरों में आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर हैं। अथक परिश्रम और लगन से इस अभिशाप को वरदान में बदलकर इनका लाभ उठाया जा सकता है।

मनोरंजन के साधन

मनुष्य कर्मशील प्राणी है। जीवन की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वह कर्म में लीन रहता है। काम की अधिकता उसके जीवन में नीरसता लाती है। नीरसता से छुटकारा पाने के लिए उसे मनोविनोद की आवश्यकता होती है। इसके अलावा काम के बीच-बीच में उसे मनोरंजन मिल जाए तो काम करने की गति बढ़ती है तथा मनुष्य का काम में मन लगा रहता है।

मनुष्य ने जब से विकास की ओर कदम बढ़ाया, उसी समय से उसकी आवश्यकता बढ़ती गई। दूसरों के सुखमय जीवन से प्रतिस्पर्धा करके उसने अपनी आवश्यकताएँ और भी बढ़ा लीं, जिसके कारण उसे न दिन को चैन है न रात को आराम। ऐसे में उसका मस्तिष्क, तन, मन यहाँ तक कि उसका अंग-अंग थक जाता है। एक ही प्रकार की दिनचर्या से मनुष्य उकता जाता है उसे अपनी थकान मिटाने और जी बहलाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है, जो उसकी थकान भगाकर उसके मन को पुन: उत्साह एवं उमंग से भर देता है। यही कारण है कि मनुष्य आदि काल से ही किसी-न-किसी रूप में अपना मनोरंजन करता आया है।

मानव ने प्राचीन काल से ही अपने मनोरंजन के साधन खोज रखे थे। अपने मनोविनोद के लिए पक्षियों को लड़ाना, विभिन्न जानवरों को लड़ाना, रथों की दौड़, धनुष-बाण से निशाना लगाना, लाठी-तलवार से मुकाबला करना, कम तथा बड़ी दूरी की दौड़, वृक्ष पर चढ़ना, कबड्डी, कुश्ती, गुल्ली-डंडा, गुड्डे-गुड़ियों का विवाह, रस्साकशी करना, रस्सी कूदना, जुआ, गाना-बजाना, नाटक करना, नाचना, अभिनय, नौकायन, भाला-कटार चलाना, शिकार करना, पंजा लड़ाना आदि करता था। मनुष्य के जीवन में विकास के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों में भी बदलाव आने लगा।

आधुनिक युग में मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। यह तो मनुष्य की रुचि, सामथ्र्य आदि पर निर्भर करता है कि वह इनमें से किनका चुनाव करता है। विज्ञान ने मनोरंजन के क्षेत्र में हमारी सुविधाएँ बढ़ाई हैं। रेडियो पर हम लोकसंगीत, फिल्म संगीत, शास्त्रीय संगीत का आनंद लेते हैं तो सिनेमा हॉल में चित्रपट पर विभिन्न फिल्मों का। इसके अलावा ताश, शतरंज, सर्कस, प्रदर्शनी, फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, टेनिस, खो-खो, बैडमिंटन आदि ऐसे मनोरंजन के साधन हैं, जो स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद हैं।

हमारे सामने आजकल मनोरंजन के अनेक विकल्प मौजूद हैं, जिनमें से अपनी रुचि के अनुसार साधन अपनाकर हम अपना मनोरंजन कर सकते हैं। आज कवि सम्मेलन सुनना, ताश एवं शतरंज खेलना, फिल्म देखना, रेडियो सुनना, विभिन्न प्रकार के खेल खेलना तथा संगीत सुनकर मनोरंजन किया जा सकता है। सिनेमा हॉल में फिल्म देखना एक लोकप्रिय साधन है। मजदूर या गरीब व्यक्ति कम कमाता है, फिर भी वह समय निकालकर फिल्म देखने अवश्य जाता है। युवकों से लेकर वृद्धों तक के लिए यह मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है। आज मोबाइल फोन पर गाने सुनने का प्रचलन इस प्रकार बढ़ा है कि युवाओं को कानों में लीड लगाकर गाने सुनते हुए देखा जा सकता है।

मनोरंजन करने से मनुष्य अपनी थकान, चिंता, दुख से छुटकारा पाता है या यूँ कह सकते हैं कि मनोरंजन मनुष्य को खुशियों की दुनिया में ले जाते हैं। उसे उमंग, उत्साह से भरकर कार्य से छुटकारा दिलाते हैं। बीमारियों में दर्द को भूलने का उत्तम साधन मनोरंजन है। यह मनुष्य को स्वस्थ रहने में भी मदद करता है। ‘अति सर्वत्र वर्जते’ अर्थात् मनोरंजन की अधिकता भी मनुष्य को आलसी एवं अकर्मण्य बनाती है। अत: मनुष्य अपने काम को छोड़कर आमोद-प्रमोद में न डूबा रहे अन्यथा मनोरंजन ही उसे विनाश की ओर ले जा सकता है। हमें मनोरंजन के उन्हीं साधनों को अपनाना चाहिए, जिससे हमारा चरित्र मजबूत हो तथा हम स्वस्थ बनें।

शिक्षा में खेलों का महत्व
अथवा

जीवन में खेलों का महत्व

विधाता ने सृष्टि में जितने भी प्राणियों की रचना की उनमें मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। जैसे मनुष्य किसी बिंदु या विचार पर चिंतन कर सकता है, वैसे अन्य प्राणी विचार नहीं कर सकते। अपनी इसी शक्ति के बल पर वह अन्य प्राणियों पर शासन करता आया है। मनुष्य ने अपनी शक्ति के बल पर प्रकृति के कार्य-कलाप में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। मनुष्य की शक्ति में जहाँ उसकी बुद्ध और विवेक की भूमिका है वहीं इसमें उसके शारीरिक बल के योगदान को कम करके नहीं आँका जा सकता है। मस्तिष्क के विकास का साधन यदि शिक्षा है तो शारीरिक विकास का साधन परिश्रम एवं खेल है। परिश्रम खेल में किसी-न-किसी रूप में समाया रहता है। खेल शारीरिक विकास के सर्वोत्तम साधन हैं।

घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-कबड्डी, कुश्ती, फुटबॉल, टेनिस, बालीवॉल, क्रिकेट, भ्रमण, दौड़ आदि शारीरिक विकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इनकी गणना स्वास्थ्यवर्धक खेलों में की जाती है। कैरम, शतरंज, ताश आदि कुछ ऐसे खेल हैं जिन्हें घर में बैठकर खेला जा सकता है। इन खेलों से हमारा मानसिक विकास होता है। खेलों से हमारा शारीरिक और मानसिक विकास होता ही है साथ ही मनोरंजन भी होता है। खेल थके-हारे शरीर की थकान हर लेते हैं और हमें ऊर्जा एवं उत्साह से भर देते हैं। आदमी खेलते समय अपनी चिंता एवं छोटे-मोटे दुख भूल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूर वर्ग तथा किसानों को दोपहर के भोजन के बाद ताश खेलकर समय बिताते देखा जा सकता है। इससे उनका मनोरंजन होता है और वे अपनी थकान से छुटकारा पाकर दोपहर बाद काम पर जाने को तैयार होते हैं।

विद्यार्थियों के लिए खेलों का विशेष महत्व है। वे मध्यांतर में अपना खाना जल्दी से समाप्त कर खेलने में व्यस्त हो जाते हैं। उनकी पढ़ाई के घंटों में खेल के लिए समय निर्धारित होता है, जिससे वे अपनी शारीरिक तथा मानसिक थकान भूल जाएँ। उनका मनोरंजन हो और वे प्रसन्नचित्त होकर बाद की पढ़ाई में एकाग्रचित्त हो सकें। खेलों से खिलाड़ियों में मानवीय गुणों का उदय होता है। खिलाड़ी खेल-खेल में कब यह सब सीख जाते हैं पता ही नहीं चलता। कुछ खेल खिलाड़ियों द्वारा सामूहिक रूप में खेले जाते हैं; जैसे-कबड्डी, क्रिकेट, फुटबॉल, वालीबॉल आदि। इनसे खिलाड़ियों में सामूहिकता की भावना विकसित होती है, क्योंकि टीम की हार-जीत प्रत्येक खिलाड़ी के योगदान पर निर्भर करती है। इसके अलावा खिलाड़ी में आत्मनिर्भरता की भावना भी विकसित होती है।

उसमें अपने साथियों के लिए स्नेह और मित्रता पैदा होती है जो बाद में अपनत्व की भावना प्रबल करती है। खेलते समय खिलाड़ी में जो प्रतिस्पर्धा की भावना होती है वही खेल की समाप्ति पर हाथ मिलाते ही मित्रता में बदल जाती है। ऋषियों-मुनियों को यह बात भली प्रकार पता थी कि शारीरिक और मानसिक विकास बनाए रखने के लिए खेलों का बहुत महत्व है। वे अपने आश्रम में विद्यार्थियों को विभिन्न खेलों में पारंगत बना देते थे। इससे वे बलिष्ठ बनते थे, जो रणकौशल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण योग्यता थी। शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर वे मानसिक रूप से भी स्वस्थ होते थे।

मानसिक स्वास्थ्य के साथ शारीरिक बल ‘सोने पर सुहागा’ के समान होती है। अकसर देखा गया है कि दिन-रात किताबों में डूबा रहने वाला विद्यार्थी यदि बीमार रहता है तो उससे सफलता की आशा कैसे की जा सकती है। वास्तव में शारीरिक बल के अभाव में सभी गुण विफल हो जाते हैं। कुछ समय पहले तक खेलों को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था पर अब समय एवं सोच बदल चुकी है। ‘खेलोगे-कूदोगे हो जाओगे खराब’ वाली कहावत को लोग भूलकर ‘खेलोगे-कूदोगे बनोगे नवाब’ वाली कहावत को अपने जीवन का अंग बना चुके हैं।

ओलंपिक खेलों और कॉमनवेल्थ खेलों आदि में विजयी होने वाले खिलाड़ियों पर होने वाली नोटों की बरसात से यह बात प्रमाणित भी हो चुकी है। खेलों के माध्यम से इतना धन, यश तथा सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं कि आम आदमी बस इनकी कल्पना भर कर सकता है। सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, विजेंद्र कुमार, सोमदेव देव वर्मन, सायना नेहवाल आदि कुछ ऐसे ही नाम हैं जिनके कदम यश और धन चूम रहे हैं। अति हर चीज की बुरी होती है। यह सत्य है कि विद्यार्थियों के लिए शिक्षा के समान ही खेल भी आवश्यक है पर वही विद्यार्थी खेलों में इतना लीन हो जाए कि पढ़ाई भूल जाए तो अच्छा नहीं होगा; क्योंकि हर बालक सचिन तेंदुलकर नहीं बन सकता है। अत: आवश्यक है कि खेल और शिक्षा में समन्वय बनया जाए तथा खेलों को शिक्षा का अंग बनाकर प्रत्येक विद्यालय में लागू किया जाए।

कंप्यूटर-आज की आवश्यकता

मनुष्य की प्रगति में विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसने मनुष्य को वह सभी सुविधाएँ दी हैं जिनकी वह सदा से लालस: किया करता था। विज्ञान ने जिन उपकरणों एवं विशिष्ट साधनों से जीवन सुखमय बनाया है, उनमें दूरदर्शन, मोबाइल फोन, विभिन्न चिकित्सीय उपकरण, फ्रिज, ए.सी. कारें आदि हैं, परंतु कप्यूटर का नाम लिए बिना यह विकास यात्रा अधूरी सी लगती है। आज इसका प्रयोग लगभग हर स्थान पर देखा जा सकता है।

कंप्यूटर क्या है, ऐसी जिज्ञासा मन में आना स्वाभाविक है। वास्तव में कंप्यूटर अनेक यांत्रिक मस्तिष्कों का योग है, जो अत्यंत तेज गति से कम-से-कम समय में सही-सही काम कर सकता हैं। गणितीय समस्याओं को हल करने में कंप्यूटर का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। इसके प्रयोग से हर कार्य को अत्यंत शीघ्रता से किया जा रहा है जो इसकी दिन-प्रतिदिन बढ़ती लोकप्रियता का कारण है। भारत में भी कंप्यूटर के प्रति आकर्षण बढ़ा है, जिसको और उन्नत बनाने के लिए विभिन्न देशों के साथ शोध कार्य किया जा रहा है।

कंप्यूटर का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में हुआ। जिसके जनक थे-चालर्स बेवेज। यह कंप्यूटर जटिल गणनाएँ आसानी से और कम समय में कर सकता है। इसमें आँकड़ों को मुद्रित करने की भी अद्भुत क्षमता है। इसमें गणनाओं के लिए एक विशेष भाषा का प्रयोग किया जाता है जिसे ‘कंप्यूटर का प्रोग्राम’ कहा जाता है। कंप्यूटर की गणना कितनी शुद्ध है, इसका उत्तरदायित्व कंप्यूटर पर कम उसके प्रयोगकर्ता पर अधिक निर्भर करता है। आज इसका प्रयोग हर क्षेत्र में होने लगा है। कंप्यूटर का प्रयोग अब इतना बढ़ गया है कि यह सोचना पड़ता है कि कंप्यूटर का प्रयोग कहाँ नहीं हो रहा है। बैंक में हिसाब-किताब रखना हो या पुस्तकों का प्रकाशन, कंप्यूटर ने अपनी भूमिका से इसे आसान बना दिया है।

आज चिकित्सा, इंजीनियरिंग, रेलगाड़ियों के संचालन, उनके टिकटों की बुकिंग, वायुयान की उड़ान तथा टिकट बुकिंग में इसका प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा भवनों, मोटर-गाड़ियों, हवाई-जहाज, विभिन्न उपकरणों के पुजों के डिजाइन तैयार करने में इसका उपयोग किया जा रहा है। कला के क्षेत्र में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान, औद्योगिक क्षेत्र, आम-चुनाव तथा परीक्षा के प्रश्नपत्र बनाने और उनका मूल्यांकन करने के लिए भी कंप्यूटर का उपयोग किया जा रहा है। कंप्यूटर ने अपनी उपयोगिता के कारण कार्यालयों में गहरी पैठ बना ली है। इसकी मदद से अब फाइलों की संख्या घटकर बहुत ही कम हो गई है। कार्यालय की सारी गतिविधियाँ सी.डी. में संग्रहित कर ली जाती हैं और यथा समय उनको कंप्यूटर के माध्यम से सुविधाजनक तरीके से प्रयोग में लाया जा सकता है। स्थिति यह है कि ‘फाइलों को दीमक चाट गए’ वाली बातें बीते समय की होती जा रही हैं।

इंटरनेट का साथ कंप्यूटर के लिए सोने पर सुहागा वाली स्थिति बना देता है। अब तो समाचार-पत्र भी इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर पढ़े जा सकते हैं। विश्व के किसी कोने में छपी पुस्तक हो या कोई फिल्म या किसी घटना की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर उपलब्ध है। वास्तव में बहुत-सी जानकारियों का ढेर कंप्यूटर के रूप में हमारे कमरे में उपलब्ध है। , कंप्यूटर बहुत ही उपयोगी उपकरण है। यह विज्ञान की वह अद्भुत खोज है जो बहुउपयोगी है। आवश्यकता है कि इसका आवश्यकतानुरूप तथा ठीक-ठीक प्रयोग किया जाए। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने हर कार्य के लिए कंप्यूटर पर आश्रित न बने तथा स्वयं भी सक्रिय रहे। इसे प्रयोग में लाते समय स्वास्थ्य संबंधी निर्देशों का पालन अवश्य करना चाहिए जिससे हमारे स्वास्थ्य पर इसका कुप्रभाव न पड़े।

कक्षा - 11 पाठ - 19 (सबसे खतरनाक - अवतार सिंह पाश)

सबसे खतरनाक( कविता का सारांश )

यह कविता पंजाबी भाषा से अनूदित है। यह दिनोदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही दुनिया की विदूपताओं के चित्रण के साथ उस खौफनाक स्थिति की ओर इशारा करती है, जहाँ प्रतिकूलताओं से जूझने के संकल्प क्षीण पड़ते जा रहे हैं। पथरायी आँखों-सी तटस्थता से कवि की असहमति है। कवि इस प्रतिकूलता की तरफ विशेष संकेत करता है जहाँ आत्म के सवाल बेमानी हो जाते हैं। जड़ स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के गुम हो जाने को कवि सबसे खतरनाक स्थिति मानता है।

कवि का मानना है कि मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ की मुट्ठी खतरनाक स्थितियाँ तो हैं, परंतु अन्य बातों से कम खतरनाक हैं। बिना कारण पकड़े जाना, कपट के वातावरण में सच्ची बात गुम होना या विवशतावश समय गुजार लेना या गरीबी में दिन काटना आदि बुरी दशाएँ हैं, परंतु खतरनाक नहीं। कवि कहता है कि सबसे खतरनाक वह है जब व्यक्ति में मुदों जैसी शांति भर जाती है। ऐसी स्थिढ़ि में व्यक्ति की विरोध-शक्ति समाप्त हो जाती है। व्यक्ति बँधे-बँधाए ढरे पर चलता है तो उसके सपने समाप्त हो जाते हैं। समय की गति रुकना भी खतरनाक दशा है, क्योंकि व्यक्ति समय के अनुसार बदल नहीं पाता।

मनुष्य की संवेदनशून्यता भी खतरनाक है। अन्याय के प्रति विद्रोह की भावना समाप्त होना भी गलत है। गीत भी जब मरसिए पढ़कर सुनाने लगे और आतंकित व्यक्तियों के दरवाजों पर अकड़ दिखाए तो वह भी खतरनाक होता है। उल्लू व गीदड़ों की आवाज युक्त रात भी खतरनाक है। कवि कहता है कि जब मनुष्य आत्मा की आवाज को अनसुना कर देता है तो वह संवेदनशून्य हो जाता है। मेहनत का लुटना, पुलिस की मार, गद्दारी व लोभ की दशा अधिक खतरनाक नहीं है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1.

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती 
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती 
बैठे-बिठाए पकड़ जाना-बुरा तो हैं 
सहमी-सी चुप में जकड़ जाना-बुरा तो है 
पर सबसे खतरनाक नहीं होता

कपट के शर में
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है
किसी जुगनू की ली में पढ़ना-बुरा तो है
मुट्टियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना-बुरा तो हैं
सबसे खतरनाक नहीं होता

शब्दार्थ
गद्दारी
-देश के शासन के विरुद्ध होकर उसे हानि पहुँचाने का भाव। लोभ-लालच। सहमी-डरी। जकड़े जाना-पकड़े जाना। कपट-छल। लौ-रोशनी। मुट्टियाँ भींचकर-गुस्से को दबाकर। वक्त-समय।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है। इस अंश में कवि कुछ खतरनाक स्थितियों के विषय में बता रहा है।
व्याख्या-कवि यहाँ उन स्थितियों का वर्णन करता है जो मानव को दुख तो देती हैं, परंतु सबसे खतरनाक नहीं होतीं। वह बताता है कि किसी की मेहनत की कमाई को लूटने की स्थिति सबसे खतरनाक नहीं है, क्योंकि उसे फिर पाया जा सकता है। पुलिस की मार पड़ना भी इतनी खतरनाक नहीं है। किसी के साथ गद्दारी करना अथवा लोभवश रिश्वत देना भी खतरनाक है, परंतु अन्य बातों जितना नहीं। वह कहता है कि किसी दोष के बिना पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बुरा लगता है तथा अन्याय को डरकर चुपचाप सहन करना भी बुरी बात है, परंतु यह सबसे खतरनाक स्थिति नहीं है। छल-कपट के महौल में सच्ची बातें छिप जाती हैं, कोई जुगनू की लौ में पढ़ता है अर्थात् साधनहीनता में गुजारा करता है, विवशतावश अन्याय को सहन कर समय गुजार देना आदि बुरी तो है, परंतु सबसे खतरनाक नहीं है। कई बातें ऐसी हैं जो बहुत खतरनाक हैं और उनके परिणाम दूरगामी होते हैं।

विशेष-

  1. ‘सबसे खतरनाक नहीं होती’ तथा ‘बुरा तो है’ की आवृत्ति से परिस्थितियों की भयावहता का पता चलता है।
  2. ‘सहमी-सी चुप’ में उपमा अलंकार है।
  3. ‘बैठे-बिठाए’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. साधनहीनता के लिए ‘जुगनू की लौ’ नया प्रयोग है।
  5. ‘गद्दारी लोभ की मुट्ठी’ भी नया प्रयोग है।
  6. कथन में जोश, आवेश व मौलिकता है।
  7. ‘मुट्ठयाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेने’ का बिंब प्रभावशाली है।
  8. सहज सरल खड़ी बोली है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. ‘सबसे खतरनाक नहीं होती’-वाक्यांश की आवृत्ति से कवि क्या कहना चाहता है
  2. कवि ने किन-किन खतरनाक स्थितियों का उल्लेख किया है?
  3. ‘किसी जुगनू की लौ में पढ़ना’-आशय स्पष्ट कीजिए।
  4. मुदठियाँ भींचकर वक्त निकालने को बुरा क्यों कहा गया है?

उत्तर –

  1. इस वाक्यांश की आवृत्ति से कवि कहना चाहता है कि समाज में अनेक स्थितियाँ खतरनाक हैं, परंतु इनसे भी खतरनाक स्थिति जड़ता, प्रतिक्रियाहीनता की है।
  2. कवि ने निम्नलिखित खतरनाक स्थितियों के बारे में बताया है-
    मेहनत की कमाई लूटना, पुलिस की मार, शासन के प्रति गद्दारी, लोभ करना।
  3. इसका अर्थ है कि साधनहीनता की स्थिति में गुजारा चलाना बहुत बुरा है किंतु खतरनाक नहीं है।
  4. कवि ने अपने आक्रोश को दबाकर टालते रहने की प्रवृत्ति को बुरा बताया है इससे मनुष्य अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकता।

2.

सबसे खतरनाक होता है ।
मुर्दा शांति से भर जाना 
न होना तड़प का सब सहन कर जाना 
घर से निकलना काम पर 
और काम से लौटकर घर आना

सबसे खतरनाक होता हैं
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी निगाह में रुकी होती हैं

शब्दार्थ
मुर्दा शांति-निष्क्रियता, प्रतिरोध विहीनता की स्थिति। तड़प-बेचैनी। सपनों का मरना-इच्छाओं का नष्ट होना। घड़ी-समय बताने का यंत्र, वक्त। निगाह-दृष्टि।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि सबसे खतरनाक स्थिति वह है जब व्यक्ति जीवन के उल्लास व उमंग से मुँह मोड़कर निराशा व अवसाद से घिरकर सन्नाटे में जीने का अभ्यस्त हो जाता है। उसके अंदर कभी न समाप्त होने वाली शांति छा जाती है। वह मूक दर्शक बनकर सब कुछ चुपचाप सहन करता जाता है, ढरें पर आधारित जीवन जीने लगता है। वह घर से काम पर चला जाता है और काम समाप्त करके घर लौट आता है। उसके जीवन का मशीनीकरण हो जाता है। उसके सभी सपने मर जाते हैं और जीवन में कोई नयापन नहीं रह जाता है। उसकी सारी इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं। ये परिस्थितियाँ अत्यंत खतरनाक होती हैं। कवि कहता है कि सबसे खतरनाक दृष्टि वह है जो अपनी कलाई पर बँधी घड़ी को सामने चलता देख कर सोचे कि जीवन स्थिर है; दूसरे शब्दों में, मनुष्य नित्य हो रहे परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को नहीं बदलता और न ही स्वयं को बदलना चाहता है।

विशेष-

  1. कवि जीवन में आशा व समयानुसार परिवर्तन की माँग करता है।
  2. ‘घड़ी’ में श्लेष अलंकार है।
  3. ‘सपनों का मर जाना’ में लाक्षणिकता है।
  4. ‘मुर्दा शांति’ से भाव स्पष्ट हो गया है।
  5. भाषा व्यंजना प्रधान है।
  6. खड़ी बोली है।
  7. अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. कवि के अनुसार सबसे खतरनाक क्या होता है?
  2. ‘मुद शांति’ से क्या अभिप्राय है?
  3. सपनों के मर जाने से क्या होता है?
  4. घड़ी के माध्यम से कवि क्या कहता है?

उत्तर –

  1. कवि के अनुसार, सबसे खतरनाक वह स्थिति है जब मनुष्य प्रतिक्रिया नहीं जताता, वह उत्साहहीन हो जाता है।
  2. ‘मुर्दा शांति’ से अभिप्राय है, मानय जीवन में जड़ता और निष्क्रियता का भाव होना अर्थात् अत्याचारों को मूक बनकर सहते जाना और कोई प्रतिक्रिया न व्यक्त करना।
  3. सपनों के मरने से मनुष्य की कामनाएँ, इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं। वह वर्तमान से संतुष्ट रहता है। इस प्रवृति से समाज में नए विचार व आविष्कार नहीं हो पाते।
  4. घड़ी समय को बताती है। वह समय की गतिशीलता दर्शाती है तथा मनुष्य को समय के अनुसार बदलने की प्रेरणा देती है। मनुष्य द्वारा स्वयं को न बदल पाने की स्थिति खतरनाक होती है।

3.

सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है 
जिसकी नजर दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीजों से उठती अधेपन की भाप पर दुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

शब्दार्थ
जमी बर्फ
-संवेदनशून्यता। दुनिया-संसार। मुहब्बत-प्रेम। रोजमर्रा-दैनिक कार्य। उलटफेर-चक्कर। दुहराव-दोहराना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि सामाजिक विदूपताओं का विरोध न करने को खतरनाक मानता है। वह कहता है कि वह आँख बहुत खतरनाक होती है जो अपने सामने हो रहे अन्याय को संवेदनशून्य होकर वैसे देखती रहती है जैसे वह जमी बर्फ हो। जिसकी नजर इस संसार को प्यार से चूमना भूल जाती है अर्थात् जिस नजर से प्रेम व सौंदर्य की भावना समाप्त हो जाती है और हर वस्तु को घृणा से देखती है, वह नजर खतरनाक हो जाती है। ऐसी नजर वस्तु के स्वार्थ के लोभ में अंधी हो जाती है तथा उसे पाने के लिए लालयित हो उठती है, वह खतरनाक होती है। वह जिंदगी जो दैनिक क्रियाकलापों में संवेदनहीनता के साथ भटकती रहती है। जिसका कोई लक्ष्य नहीं है, जो लक्ष्यहीन होकर अपनी दिनचर्या को पूरा करती है, खतरनाक होती है।

विशेष-

  1. कवि संवेदनशून्यता पर गहरा व्यंग्य करता है।
  2. ‘जमी बर्फ’, ‘मुहब्बत से चूमना’, ‘अंधेपन की भाप’, ‘रोजमर्रा के क्रम को पीती’ आदि नए भाषिक प्रयोग हैं।
  3. ‘जमी बर्फ’ संवेदनशून्यता का परिचायक है।
  4. भाषा व्यंजना प्रधान है।
  5. ‘अंधेपन की भाप’ में रूपक अलंकार है।
  6. खड़ी बोली है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. कवि कैसी आँख को खतरनाक मानता है?
  2. दुनिया को मुहब्बत की नजर से न चूमने वाली आँख को कवि खतरनाक क्यों मानता है?
  3. ‘जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुड़ी पंक्ति का आशय बताइए।
  4. आँख का अंधेपन की भाप पर दुलकना क्या कटाक्ष करता है?

उत्तर –

  1. कवि उस आँख को खतरनाक मानता है जो अन्याय को देखकर भी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती। इस तरह से कवि मनुष्य की संवेदनशून्यता पर चोट कर रहा है।
  2. दुनिया को मुहब्बत की नजर से न चूमने वाली आँख को कवि इसलिए खतरनाक मानता है; क्योंकि ऐसी नजर से प्रेम एवं सौंदर्य की भावना समाप्त हो जाती है। ऐसी आँख हर वस्तु को घृणा की दृष्टि से देखती है।
  3. इसका अर्थ है-वह जिदगी जो दैनिक क्रियाकलापों में संवेदनहीनता के साथ भटकती रहती है।
  4. इसमें कवि कहता है कि मनुष्य वस्तुओं की चाह में गलत-सही कार्य करता है। वह उनकी पूर्ति की चाह में हर मूल्य को दाँव पर लगा देता है।

4.

सबसे खतरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद

वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है
पर आपकी आँखों की मिचों की तरह नहीं गड़ता है।

शब्दार्थ
हत्याकांड
-हत्या की घटना। वीरान-सुनसान। गड़ता-चुभना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि अपराधीकरण के बारे में बताता है कि वह चाँद सबसे खतरनाक है जो हत्याकांड के बाद उन आँगनों में चढ़ता है जो वीरान हो गए हैं। चाँद सौंदर्य और शांति का परिचायक है, परंतु हत्याकांडों का चश्मदीद गवाह भी है। ऐसे चाँद की चाँदनी लोगों की आँखों में मिर्च की तरह नहीं गड़ती। इसके विपरीत लोग शांति महसूस करते हैं।

विशेष

  1. ‘चाँद’ आस्था व शांति का प्रतीक है।
  2. ‘मिर्च की तरह गड़ना’ सशक्त प्रयोग है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. ‘चाँद’ किसका प्रतीक है? कवि उसे खतरनाक क्यों मानता है?
  2. घर-आँगन के वीरान होने का क्या कारण है?
  3. अंतिम पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

  1. ‘चाँद’ आस्था व शांति का प्रतीक है। कवि उसे खतरनाक मानता है, क्योंकि वह लोगों में प्रतिकार की भावना को दबा देता है।
  2. इस आँगन के वीरान होने के कारण हत्याकांड हैं जो आतंक के कारण हो रहे हैं।
  3. इस पंक्ति का अर्थ है कि लोग हत्याकांड पर भी शांत रहते हैं तथा अपनी खुशियों में मग्न रहते हैं, जबकि उन्हें ऐसे हमलों का प्रतिकार करना चाहिए।

5.

सबसे खतरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुँचने के लिए 
जो मरसिए पढ़ता है
जो जिंदा रूह के आसमानों पर ढलती हैं 
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ करते गीदड़

आतांकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडे की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वह रात होती है
हमेशा के औधरे बद दरवाज-चौगाठों पर चिपक जाते हैं

शब्दार्थ
मरसिए-मृत्यु पर गाए जाने वाले करुण गीत। आतंकित-डरे हुए। जिंदा रूह-जीवित आत्मा। चौगाठों-चौखटें।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि वे गीत सबसे खतरनाक हैं जो मनुष्य के हृदय में शोक की लहर दौड़ाते हैं। वस्तुत: ये गीत मृत्यु पर गाए जाते हैं तथा भयभीत लोगों को और डराते हैं, उन्हें गुंडों की तरह धमकाते हैं तथा अकड़ते हैं। कवि ऐसे गीतों को निरर्थक मानता है, क्योंकि ये प्रतिरोध के भाव को नहीं जगाते। वह कहता है कि जब किसी जीवित आत्मा के आसमान पर निराशा रूपी रात्रि का घना औधेरा छा जाता है और उसमें कोई उत्साह नहीं रह जाता, ऐसी रात बहुत खतरनाक होती है। उसके हर कोने-चौखट पर उल्लू व गीदड़ों की तरह शोक व भय चिपक जाते हैं जो कभी निराशा से उबरने नहीं देते।

विशेष-

  1. कवि ने संवेदनहीनता व निराशा को खतरनाक बताया है।
  2. प्रतीकात्मकता है।
  3. ‘गुंडे की तरह अकड़ता है’, उल्लू बोलते और हुआँ हुआँ’ बिंब सार्थक व सजीव है।
  4. गीत का मानवीकरण किया गया है।
  5. ‘मिचों की तरह’, ‘गुंडों की तरह’ में उपमा अलंकार है।
  6. खड़ी बोली है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. कवि कैसे गीत को खतरनाक मानता है तथा क्यों?
  2. कवि लोगों की किस आदत को खतरनाक मानता है?
  3. कवि ने किस रात को खतरनाक माना है?
  4. ‘जिदा रूह के आसमानों’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर –

  1. कवि उन गीतों को खतरनाक मानता है जो शोक गीत गाकर लोगों के मन में प्रतिकार के भाव को समाप्त करके उन्हें और अधिक डराता है।
  2. कवि लोगों का आतंक सहने तथा उसका विरोध न करने की आदत को खतरनाक मानता है।
  3. कवि उस रात को खतरनाक मानता है जो जीवित लोगों की आत्मा रूपी आसमान पर अंधकार के समान छा जाती है
  4. इसका अर्थ है-सजग लोग। वह कहना चाहता है कि सजग लोगों को अंधविश्वासों व रूढ़ियों से बचना चाहिए।

6.

सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए 
और उसकी मुद धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती। 

शब्दार्थ
मुर्दा-
मृत। जिस्म-शरीर। पूरब-पूर्व दिशा।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘सबसे खतरनाक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता पंजाबी कवि पाश हैं। पंजाबी भाषा से अनूदित इस कविता में, कवि ने दिनोंदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही स्थितियों को उसकी विदूपताओं के साथ चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि सबसे खतरनाक दिशा वह है जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने अंदर की आवाज को नहीं सुनता। उसकी मुर्दा जैसी स्थिति हमें कहीं कोई प्रभाव छोड़ जाए तो यह स्थिति भी खतरनाक होती है। ऐसे लोगों में धूप की किरणों से आशा उत्पन्न भी हो तो मृतप्राय ही होती है। जो अपने ही शरीर रूपी पूर्व दिशा में चुभकर उसे लहूलुहान करती है। कवि कहना चाहता है कि अन्याय को सहना ही लोगों ने अपनी नियति मान लिया है।
कवि कहता है कि किसी की मेहनत की कमाई लुट जाए तो वह खतरनाक नहीं होती। पुलिस की मार या गद्दारी आदि भी इतने खतरनाक नहीं होते। खतरनाक स्थिति वह है जब व्यक्ति में संघर्ष करने की क्षमता ही खत्म हो जाए।

विशेष-

  1. कवि व्यक्ति की संवेदनहीनता को खतरनाक स्थिति बताता है।
  2. ‘आत्मा का सूरज’ और ‘जिस्म के पूरब’ में रूपक अलंकार है।
  3. खड़ी बोली है।
  4. सांकेतिक भाषा है।
  5. काव्य रचना मुक्त छंद है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. कवि ने आत्मा को क्या माना है?
  2. कवि किस दिशा को खतरनाक मानता है?
  3. ‘आत्मा का सूरज डूबने जाए’ का अर्थ बताइए।
  4. मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा का व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

  1. कवि ने आत्मा को मृत के समान तटस्थ माना है।
  2. कवि उस दिशा को खतरनाक मानता है जिस पर चलकर मनुष्य अपनी आत्मा की बात अनसुनी कर देता है।
  3. इसका अर्थ है-अंतरात्मा की आवाज का क्षीण पड़ना।
  4. कवि कहना चाहता है कि आदर्शपरक अच्छी बातें ; जैसे-त्याग, अहिंसा, बलिदान आदि मनुष्य को प्रतिक्रियाहीन व जड़ बना देती हैं।

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

1.

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो हैं
किसी जुगनू की लों में पढ़ना-बुरा तो हैं

मुट्टियाँ भींचकर बस वक्त निकाल लेना-बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता

प्रश्न

  1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
  2. शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –

  1. इस काव्यांश में कवि ने कुछ स्थितियों का वर्णन किया है जो बुरी तो हैं, परंतु सबसे खतरनाक नहीं हैं। सही बातों का कपट के कारण दब जाना, अभाव में रहना, क्रोध को व्यक्त करना आदि बुरी स्थितियाँ तो हैं; परंतु सबसे खतरनाक नहीं हैं।
  2. ‘बुरा तो है’ पद की आवृत्ति प्रभावी है।
    • ‘जुगनू की लौ’ से साधनहीनता प्रकट होती है।
    • ‘कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना’, ‘जुगनू की लौ में पढ़ना’, ‘मुट्ठयाँ भींचकर वक्त निकाल लेना’ आदि नए भाषिक प्रयोग हैं।
    • व्यंजना शब्द शक्ति है।
    • खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
    • मुक्त छंद है।
    • सरल शब्दावली है।

2.

सबसे खतरनाक वह आँख होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है 
जिसकी नजर दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीजों से उठती अधेपन की भाप पर दुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

प्रश्न

  1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
  2. शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –

  1. इस काव्यांश में दृष्टि के अनेक रूपों का उल्लेख किया गया है। कवि संवेदनशील व परिवर्तनकारी जीवन शैली का समर्थन है। ‘सबसे खतरनाक’ कहकर कवि उन वस्तुओं या भावों को समाज के लिए हानिकारक व अनुपयोगी मानता है।
  2. जमी बर्फ’, संवेदना शून्य ठडे जीवन का
    • ‘जमी बर्फ होती’, ‘मुहब्बत से चूमना’, ‘अंधेपन की प्रतीक है। भाप’ आदि नए भाषिक प्रयोग हैं।
    • ‘अंधेपन की भाप’ में रूपक अलंकार है।
    • भाषा में व्यंजना शक्ति है।
    • खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
    • उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है।
    • प्रतीकों व बिंबों का सशक्त प्रयोग है।

3.

सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए 
और उसकी मुद धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

प्रश्न

  1. भाव-सौदर्य बताइए।
  2. शिल्प–सौंदर्य बताइए।

उत्तर –

  1. इस अंश में, कवि आत्मा की आवाज को अनसुना करने वाली चिंतन-शैली को धिक्कारता है। वह कट्टर विचारधारा का विरोधी है।
  2. ‘आत्मा का सूरज’ में रूपक अलंकार है।
    • ‘जिस्म के पूरब’ में रूपक अलंकार है।
    • सांकेतिक भाषा का प्रयोग है।
    • खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
    • मुक्त छंद है।
    • उर्दू शब्दावली का प्रयोग है।

आलो आँधारि

1. 'आलो आँधारि' पाठ के रचयिता कौन है?
A. कुमार गंधर्व  B. अनुपम मिश्र
C. बेबी हालदार D. इनमें से कोई नहीं

2. बेबी हालदार के कितने बच्चे थे? .
A. दो B. तीन C. चार D. पाँच

3. बेबी हालदार को काम दिलवाने में किस युवक ने मदद की थी?
A. सुनील B. भोला दा C. उसके भाई D. इनमें से कोई नहीं

4.. बेबी हालदार से पहले तातुश के घर में काम करने वाली को कितना वेतन मिलता था?
A. ₹500 B. ₹800 C. ₹1000 D. ₹1200

5. बेबी हालदार से पहले तातुश के घर में काम करने वाली की उम्र कितनी थी?
 A. 35 से 40 B. 40 से 45
 C. 45 से 50 D. 50 से 55

6. बेबी हालदार कितना पढ़ी लिखी थी?
 A. चौथी तक B. पाँचवी तक
 C. छठी तक  D. सातवीं तक

7. तातुश के बच्चे तातुश को क्या कहकर बुलाते थे?
 A. पिता   B. बाबा
 C. तातुश D. पापा

8. तातुश के कितने बच्चे थे?
A. एक  B. दो C. तीन  D. चार

9.. बेबी हालदार के किराए के घर में कुल कितने सदस्य रहते थे?
A. एक   B. दो C. तीन  D. चार

10. तातुश के परम मित्र कौन थे?
A. सुनील     B. जेठू
C. भोला दा  D. इनमें से कोई नहीं
11. जब बेबी हालदार का घर तोड़ दिया गया तो उसकी मदद किसने की?
A. सुनील   B. जेठू C. उसके भाई D. भोला दा

12. भोला दा किस धर्म से संबंधित था? .
A. हिंदू    B. मुसलमान  C. सिख  D. ईसाई

13. बेबी हालदार के बड़े लड़के को कौन ले गए थे?
 A. पड़ोस के लोग  B. उसके पिता
 C. सुनील            D. इनमें से कोई नहीं

14. तातुश के छोटे लड़के का क्या नाम था?
 A. अर्जुन  B. सुखदीप
 C. रमण   D. इनमें से कोई नहीं

15. तातुश के बच्चों में सबसे कम बोलने वाला लड़का कौन था?
 A. अर्जुन  B. सुखदीप
 C. रमण।  D. इनमें से कोई नहीं

16. बेबी हालदार को पार्क में जो लड़की मिलती थी उसका क्या नाम था?
A. सुनीता  B. सुनिधि C. सुनीति  D. सोनाली

17. बेबी हालदार के लेखन की तुलना किससे की गई है? .
A. आशापूर्णा देवी B. जेठू
C. तातुश।             D. इनमें से कोई नहीं

18. बेबी हालदार ज्यादातर अपना लेखन किस समय में करती थी?
A. सुबह B. दोपहर C. शाम D. रात

19. 'दरकार' का क्या अर्थ है?
A. जरूर  B. जरूरत  C. जोगन  D. जानना

20. 'जबरन' का क्या अर्थ है?
A. खुश होना             B. तैयार रहना
C. जबरदस्ती करना  D. जोर से रोना